भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) का एक प्रमुख अनुसंधान केन्द्र है जो कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत संस्था है।
एक परिचय

ऊँट रेगिस्तानी पारिस्थतिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण घटक है। अपनी अनूठी जैव-भौतिकीय विशेषताओं के कारण यह शुष्क एवं उर्द्ध शुष्क क्षेत्रों की विषमताओं में जीवनयापन की अनुकूलनता का प्रतीक बन गया है। ‘रेगिस्तान का जहाज’ के नाम से प्रसिद्ध इस पशु ने परिवहन एवं भारवाहन के क्षेत्र में अपरिहार्यता दर्शाते हुए अपनी पहचान बनाई है परंतु इसके अतिरिक्त भी ऊँट की बहुत सी उपयोगिताएं हैं जो निरन्तर सामाजिक और आर्थिक परिवर्तनों से प्रभावित होती है। ऊँटों ने प्राचीन काल से वर्तमान समय तक नागरिक कानून एवं व्यवस्था, रक्षा व युद्ध के क्षेत्र में महत्ती भूमिका निभाई है। तत्कालीन बीकानेर के विश्व प्रसिद्ध गंगा रिसाले को शाही सेना में स्थान मिला था तथा इन ऊँटों ने प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्धों में भी भाग लिया था। राजस्थान के पश्चिमी भाग में इन्दिरा गांधी नहर के निर्माण के समय ऊँटों ने इंजीनियरों की बहुत सहायता की थी। आजकल उष्ट्र कोर भारतीय अर्द्ध सैनिक बल के अन्तर्गत सीमा सुरक्षा बल का एक महत्वपूर्ण भाग है।
शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों के समाजार्थिक विकास में ऊँटों के महत्व को अनुभव करते हुए भारत सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप के अधीन ) के अधीन बीकानेर में उष्ट्र परियोजना निदेशालय की स्थापना 5 जुलाई, 1984 को की थी। यह केन्द्र बीकानेर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर जोड़बीड़ क्षेत्र में स्थित है जिसे 20 सितम्बर, 1995 को क्रमोन्नत कर राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र का नाम दिया गया है।
भारत में एक कूबड़ीय ऊँटों की संख्या लगभग 5 लाख है जो मुख्यतया भारत के उत्तर-पश्चिमी शुष्क एवं अर्द्ध शुष्क भाग के सीमांत राज्यों राजस्थान, गुजरात एवं हरियाणा में पाए जाते हैं। राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र एक कूबड़ वाले ऊँटों पर आधारभूत एवं व्यावहारिक अनुसंधान के साथ-साथ लद्दाख की नूब्रा घाटी के ठंडे रेगिस्तान में पाए जाने वाले दो कूबड़ीय ऊँटों पर भी अनुसंधान हेतु ध्यान केन्द्रित कर रहा है।