PRESS RELEASE
एनआरसीसी में ओजोन परत पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन
बीकानेर 17.09.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में ‘ओजोन परत, इसका क्षरण, और जीवों पर प्रभाव (ओजोन लेयर, इट्स डिप्लीशन एण्ड इम्पेक्ट ऑन लिविंग बींगस् ) ’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आज दिनांक को समापन हुआ । नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली द्वारा एनआरसीसी सहित अन्य विभिन्न संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न प्रान्तों – उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों के प्रतिभागियों ने इस आयोजन के माध्यम से अपने अनुसंधान कार्यों को प्रस्तुत किया ।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो.राजेन्द्र पुरोहित, प्राचार्य, राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर ने कहा कि ओजोन परत, इसका क्षरण, और जीवों पर इससे पड़ने वाले प्रभाव पर गहन चिंतन व मनन नितांत आवश्यक है तथा ओजोन परत की सुरक्षा को एक नैतिक कार्य के रूप में लिया जाना चाहिए । प्रो.पुरोहित ने पर्यावरण संतुलन हेतु पौधरोपरण पर जोर देते हुए कहा कि देश में अनेकानेक औषधीय जड़ी बूटियां व पौधे है जो हमारी धरोहर है, इन पर शोध कार्य किया जाना चाहिए ।
कार्यक्रम संयोजक व केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के.सावल, निदेशक, एनआरसीसी,बीकानेर ने कहा कि ओजोन परत के दुष्प्रभाव से बचने के लिए हमें क्लाईमेंट रेसीलियंट उत्पादकता पर काम करना होगा । उन्होंने सतत कृषि उत्पादकता पर जोर देते हुए कहा कि सम्मेलन के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा कृषि, फसलों के उत्पादन, पर्याप्त वर्षो, प्राकृतिक आपदाएं तथा पर्यावरण संतुलन आदि विविध पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया गया, सम्मेलन के निष्कर्षों एवं सुझावों के आधार पर ओजोन परत के क्षरण को रोकने एवं आमजन में इसके प्रति जागरूकता लाने की दिशा में यह निश्चित रूप से मददगार साबित हो सकेगा । डॉ.सावल ने ऊँट को एक एनवॉयरमेंट फ्रेंडली पशु मानते हुए इसका पालन समग्र मानवता के हित में किए जाने की बात कही।
इस अवसर पर पधारें सम्माननीय अतिथि केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर के निदेशक डॉ.जगदीश राणे ने ओजोन परत के निर्माण, विघटन एवं उसके प्रभावों पर विस्तृत प्रकाश डाला और यह बताया कि अब ऐसे उपकरण उपलब्ध है जिनके माध्यम से हम अपने घरों में लघु रूप से ओजोन का निर्माण कर सकते हैं , जिनका उपयोग चिकित्सीय कार्यों में भी होता है ।
नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली के प्रतिनिधि व कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि डॉ. संदीप कुमार, कृषि वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने नेसा संस्था के उद्देश्य पर प्रकाश डाला तथा इस आयोजन को सार्थक बताया ।
समापन कार्यक्रम से पूर्व आमंत्रित विषय विशेषज्ञों द्वारा अपने लीड पेपर प्रस्तुत किए । साथ ही ओजोन परत के प्रबंधन एवं पुनःस्थापन ( रिमेडिएशन) पर गहन विचार किया गया तथा इस आधार पर एक अनुशंसा नोट तैयार किया गया । समापन कार्यक्रम में बेस्ट ऑरल प्रजेंटेशन एवं बेस्ट पोस्टर प्रजेंटेशन के विजेताओं को अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया ।
आयोजन सचिव डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी ने कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा तैयार की तथा केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ.मृणालिनी प्रेरणा द्वारा आयोजन में पधारे सभी गणमान्य जनों, शोधकर्त्ताओं, प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।
भाकृअनुप-एनआरसीसी द्वारा अनुसूचित जाति उप-योजना तहत महिला पशुपालकों हेतु कार्यशाला आयोजित
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत बीकानेर के गांव सोनियासर मीठिया में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से दिनांक 17 अगस्त, 2024 को ‘पशु स्वास्थ्य प्रबंधन एवं स्वच्छ दूध उत्पादक’ विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें पशुपालन व्यवसाय से जुड़ी गांव की 50 से अधिक महिलाओं को विषयगत प्रशिक्षण दिया गया ।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के.सावल ने महिला पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश के सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुधन का योगदान सराहनीय है तथा पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीण महिलाओं की मुख्य भूमिका देखी जा सकती हैं, ऐसे में उनके ज्ञान को समयानुसार अद्यतित किया जाना चाहिए ताकि इस व्यवसाय में आशातीत वृद्धि लाई जा सकें । डॉ.सावल ने अनुसूचित जाति की महिलाअें के सशक्तिकरण और कृषि उत्पादकता बढ़ाने में इस उप-योजना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पशुओं से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन व उसका संग्रहण, ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता व इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने, पशु आहार के रूप में लवण व खनिज मिश्रण की पर्याप्त पूर्ति, मौसमी चारों खासकर बारिश में उगने वाली सेवण व धामण घास तथा क्षेत्र विशेष वनस्पतियों आदि का आपात स्थिति हेतु संग्रहण आदि विभिन्न पहलुओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया ।
इस अवसर पर नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक श्री रमेश ताम्बिया ने महिलाओं के उत्थान और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने हेतु नाबार्ड की स्वयं रोजगार के लिए प्रेरित करने संबंधी विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए इनका अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित किया । राजीविका मिशन डूंगरगढ़ के ब्लॉक परियोजना प्रबंधक श्री रघुनाथ डूडी ने कहा कि राजीविका मिशन का मुख्य कार्य, ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतमंद महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के रूप में जोड़ते हुए इन समूहों में व्यावसायिक कौशल विकसित करना है। उन्होंने एनआरसीसी एवं नाबार्ड के इस संयुक्त कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया ।
इस दौरान वैज्ञानिक डॉ.शान्तनु रक्षित ने प्रतिभागी महिलाओं को एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों की जानकारी देते हुए पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, उष्ट्र पर्यटन विकास व उष्ट्र डेयरी के सफल संचालन की व्यावहारिक जानकारी लेने हेतु केन्द्र में भ्रमण करने की बात कही । केन्द्र के डॉ.काशी नाथ, वरिष्ठ पशु चिकित्सक ने कहा कि पशुओं को बारिश के मौसम में अफारा, खुरपका और मुंहपका, थनैला, निमोनिया, चीचड़ तथा त्वचा रोगों से बचाने हेतु प्रभावित पशुओं की खास देखभाल, रोगों से बचाव व इनकी रोकथाम किया जाना जरूरी है ताकि पशु स्वामी को आर्थिक हानि से बच सकें । कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा पशुओं के थनों की जांच व उचित देखभाल की जानकारी भी दी गई ।
केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी, राजीविका मिशन व ‘ड्रोन दीदी’ से जुड़ी महिलाओं ने पंजीयन, पशु आहार तथा स्वच्छ दूध उत्पादन संबधित वस्तुओं यथा-मलमल का कपड़ा, छलनी, दवा किट वितरण आदि विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया ।
एनआरसीसी द्वारा आबुरोड़ सिरोही के जनजातीय क्षेत्र में पशु स्वास्थ्य शिविर आयोजित
30.07.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा जनजातीय उप-योजना तहत जिला सिरोही जनजातीय क्षेत्र के गांव मोरडु, आबु रोड़ में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया । केन्द्र द्वारा मोरडू, आबू रोड़ के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय परिसर में लगाए गए इस पशु स्वास्थ्य शिविर में कुल 142 पशुपालकों द्वारा लाए गए 419 पशुओं यथा- गाय 65, भैंस 116, भेड़ 46, बकरी 192 की स्वास्थ्य जांच, उपचार व दवाओं आदि का वितरण किया गया तथा उन्हें उचित परामर्श दिया गया । जहां इस शिविर में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता रहीं वहीं स्कूली बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहन स्वरूप केन्द्र की इस गतिविधि से जोड़ते हुए 230 बच्चों को स्कूली किट बैग का भी वितरण किया गया।
एनआरसीसी के निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने पशुपालकों से बातचीत के दौरान बताया कि पशुओं से भरपूर उत्पादन लेने हेतु उनके स्वास्थ्य, आहार-पोषण, स्वच्छ दूध उत्पादन, उचित आवास व्यवस्था आदि सभी पहलुओं पर ध्यान देने की महत्ती आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि पारम्परिक रूप से पशुपालन व्यवसाय के साथ-2 वैज्ञानिक ढंग से भी पशुओं के प्रबन्धन को जानना व सीखना चाहिए ताकि पशुपालक अपनी आमदनी में आशातीत वृद्धि ला सकें। डॉ. सावल ने पशुपालकों को अपने ज्ञान में अभिवृद्धि लाने, स्वास्थ्य-स्वच्छता के प्रति जागरूकता, विशेषकर बच्चों में शिक्षा के प्रसार आदि हेतु अभिभावकों को प्रेरित किया ताकि वे समाजार्थिक रूप से सक्षम बन सकें ।
केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. शान्तनु रक्षित ने एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पशुपालक भाइयों को पशुओं के वैज्ञानिक ढंग से रखरखाव की व्यावहारिक जानकारी व इसका लाभ लेने हेतु सामूहिक रूप से केन्द्र का भ्रमण करना चाहिए । डॉ.श्याम सुंदर चौधरी ने पशुपालकों को पशु प्रौद्योगिकी से जुड़ने हेतु प्रोत्साहित करते हुए पशुओं के स्वास्थ्य और पशुधन उत्पादन पर विस्तार से जानकारी दीं ।
केन्द्र की जन जातीय उप-योजना से जुड़े डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने जानकारी दीं कि शिविर में लाए गए पशुओं में चींचड़ व वर्षा ऋतु में अफारा आदि की समस्या अधिक देखी गई । वहीं पशुओं में खनिज आपूर्ति हेतु पशुपालकों को नमक की ईंटे व करभ पशु आहार का वितरण किया गया।
इस अवसर पर आबुरोड़ सिरोही के प्रगतिशील पशुपालक श्री सेवाराम ने इस गतिविधि के माध्यम से पशुपालकों की जिज्ञासाओं व समस्याओं के उचित समाधान हेतु केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया वहीं स्कूल के प्रधानाध्यक श्री रूपाराम द्वारा स्कूली बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने व शिक्षा संबद्ध सामग्री वितरण हेतु आभार व्यक्त किया गया। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी व श्री रणवीर सिंह, तकनीशिएन ने शिविर में पशुओं के पंजीयन, दवा व पशु आहार वितरण आदि विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया ।
एनअरसीसी ने मनाया 41वां स्थापना दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र ने अपना 41वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया । इस समारोह में राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, झालावाड़, बारां जिलों तथा बीकानेर से गाढ़वाला, भामटसर, मोरखाना आदि के ऊँट पालकों, महिला किसान, दुग्ध उद्यमिता से जुड़े युवा उद्यमियों, बीएसएफ के जवानों, स्कूली बच्चों, बीकानेर स्थित आईसीएआर के विभागाध्यक्षों व एनआरसीसी के सेवा निवृत्त तथा कार्यरत वैज्ञानिकों, अधिकारियों, कर्मचारियों सहित 200 से ज्यादा ने शिरकत दी ।
केन्द्र सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि डॉ.जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि यद्यपि ऊँटों की संख्या घट रही है परंतु उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास की दिशा में एनआरसीसी बेहतरीन कार्य कर रहा है तथा खास बात यह है कि यहां शोध को मानव समाज के स्वास्थ्य लाभ से जोड़कर उसे सिद्ध किया जा रहा है । उन्होंने वैज्ञानिकों को मार्केटिंग के हिसाब से उत्पाद तैयार कर इनके पेटेंट हेतु तथा युवा उद्यमियों को ऊँटनी के दूध आदि को लेकर स्टार्टअप खोलने हेतु भी प्रेरित किया ।
केन्द्र के निदेशक व कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर.के.सावल ने एनआरसीसी की विगत वर्षों में प्राप्त उपलब्धियों एवं उल्लेखनीय कार्यों से अवगत कराते हुए कहा कि केन्द्र द्वारा ऊँटों के जनन, प्रजनन, आनुवांशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य आदि को लेकर गहन शोध कार्य किए गए साथ ही बदलते परिवेश में ऊँटों की उपादेयता बढ़ाने के लिए शोध द्वारा ऊँटनी के औषधीय दूध का मानव रोगों यथा-मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में लाभदायक पाया है फलस्वरूप समाज में इसके प्रति जागरूकता व दूध की स्वीकार्यता भी तेजी से बढ़ी है साथ ही ऊँट पालकों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने हेतु उष्ट्र पर्यावरणीय पर्यटन विकास कार्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है । वर्तमान में संस्थान में भ्रमणार्थ पर्यटकों की सालाना संख्या लगभग 50 हजार से ऊपर पहुंच गई है।
विशिष्ट अतिथि डॉ.एस.एन.टंडन, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक , एनआरसीसी ने विगत वर्षों में एनआरसीसी की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि ऊँटों की उपादेयता को समाजार्थिक आवश्यकता अनुसार तलाशे जाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि इस उष्ट्र प्रजाति व संबद्ध समुदायों को लाभ मिले ।
केन्द्र के स्थापना दिवस पर बीएसएफ के जवानों द्वारा उष्ट्र परेड, केन्द्र द्वारा सजावटी ऊँटों का प्रदर्शन, महिला पशुपालकों द्वारा उष्ट्र गाड़ा प्रदर्शन, ऊँट नृत्य, स्कूली विद्यार्थियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कैमलिडस वर्ष थीम पर रंगोली प्रदर्शन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही उष्ट्र दुगध उत्पादों, उष्ट्र आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी लगाई गई। ऊँटों के लोक गीतों,फिल्मों, विज्ञापनों इत्यादि में उपयोग संबंधी चलचित्र की प्रस्तुति की गई । उष्ट्र पालन से जुड़े हितधारकों द्वारा उष्ट्र संरक्षण, पालन व उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता पर विचार साझा किए तथा उष्ट्र पालन को लेकर जमीनी स्तर पर आ रही चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता जताई । इस अवसर पर केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा संस्थान की गत 40 वर्षों की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया गया । साथ ही दो कूबड़ ऊँट व शुष्क क्षेत्रों में पौधों की प्रजातियों की वर्तमान स्थिति संबंधित पुस्तकों का विमोचन किया गया । केन्द्र द्वारा उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता से जुड़े उष्ट्र पालकों को उनके उल्लेखनीय योगदान तथा बीएसएफ को ऊँटों की उपयोगिता को आज के दौर में बनाए रखने में महत्वपूएर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उष्ट्र पालन के क्षेत्र में केन्द्र के उष्ट्र अनुचरों के महत्ती योगदान हेतु भी सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का संयोजन डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने किया तथा डॉ.स्वागतिका प्रियदर्शिनी, वैज्ञानिक द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक ने किया ।
एनआरसीसी ने समारोहपूर्वक मनाया विश्व ऊँट दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा ‘विश्व ऊँट दिवस’ दिनांक 22.06.2024 को समारोहपूर्वक मनाया गया। जिनमें 500 से अधिक सिरोही, गंगाशहर, देशनोक, बीकानेर के ऊँट पालकों, महिला किसान, आमजन के साथ-साथ परिषद के बीकानेर स्थित विभिन्न संस्थान/केन्द्र के वैज्ञानिकों, एनआरसीसी परिवार ने अपनी सहभागिता निभाई। केन्द्र द्वारा इस उपलक्ष्य पर ऊँट दौड़, ऊँट सजावट प्रतियोगिता, ऊँट व ऊँट गाड़ा प्रदर्शन प्रतियोगिता, स्कूली विद्यार्थियों हेतु चित्रकला प्रतियोगिता, ‘ऊँट के बिना जीवन‘ विषयक कार्यशाला एवं ऊँट: आज और कल‘ विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी, पशु स्वास्थ्य शिविर व संवाद गतिविधियों का आयोजन किया गया। केन्द्र द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.आर्तबन्धु साहू, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु ने कहा कि निश्चित तौर पर आज का दिवस एक विशेष उद्देश्य से प्रेरित है उसी अनुरूप संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2024 को अंतर्राष्ट्रीय कैमलिड्स वर्ष घोषित किया गया है। डॉ.साहू ने राजकीय पशु ऊँट की स्थिति, इसमें अपेक्षित बदलाव, ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणों के कारण इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने, दूध का व्यवस्थित संग्रहण, इसमें गैर सरकारी संगठनों की भूमिका तथा इस प्रजाति के पर्यटनीय महत्व को बढ़ावा देने पर जोर दिया । इस अवसर पर एन.आर.सी.सी. के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर.के.सावल ने ऊँट को एक विशेष पशु बताते हुए कहा कि आज का यह दिवस, रेगिस्तान में उष्ट्र प्रजाति के अतुलनीय योगदान को उजागर करने का है क्योंकि मानव सभ्यता के विकास क्रम में ऊँट की बदौलत ही आज हम आधुनिकता के दौर में प्रवेश कर सके हैं। उन्होंने कहा कि एन.आर.सी.सी. उष्ट्र प्रजाति के सैद्धांतिक व व्यावहारिक पक्ष को लेकर आगे बढ़ रहा है ताकि ऊँट व इससे संबद्ध समुदायों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो सकें। विशिष्ट अतिथि डॉ.नितिन गोयल, निदेशक, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ऊँटों के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि रेगिस्तान में ग्रामीण संस्कृति के परिचायक ऊँट के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं थी । डॉ.गोयल ने ऊँटों की खरीद-फरोख्त, इसके दूध का प्राचीन समय से महत्व, आमजन में इसकी कीमत/ उपयोगिता से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भों को प्रस्तुत किया । केन्द्र के डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने विश्व ऊँट दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम समन्वयक डॉ.शान्तनु रक्षित ने बताया कि इस दिवस के माध्यम से ऊँट से जुड़े हितधारकों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया गया ताकि उष्ट्र के संरक्षण व इसके विकास को बढ़ावा मिल सकें । केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ.स्वागतिका प्रियदर्शिनी द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया गया ।
एनआरसीसी ने योग दिवस पर सामूहिक योग अभ्यास कार्यक्रम में लिया भाग
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर दिनांक 21 जून 2024 को प्रात: 6 से 8 बजे तक स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में निदेशालय छात्र कल्याण व योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के तत्वावधान में सामूहिक योग अभ्यास कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। योग दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) बीकानेर सहित बीकानेर स्थित आईसीएआर संस्थानों/केन्द्रों एवं अन्य विभिन्न संस्थानों के अधिकारियों/कर्मचारियों ने अपने परिवार सहित इसमें भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. अरुणकुमार, माननीय कुलपति, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि यह मन और मस्तिष्क को भी शांति प्रदान करने के साथ-साथ हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है । नियमित योग, ध्यान, प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा आदि क्रियाओं का अभ्यास करने से हमे स्वस्थ जीवन मिलता है, इस लिए अपने जीवन को स्वस्थ व सुखी रखने के लिए नियमित योग का अभ्यास करते रहें।
इस अवसर पर भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसनधान केन्द्र के निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने योग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली योग की मांग करती है क्योंकि व्यक्तिगत प्रगति के आवरण में बंधा व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहा है, इसलिए संतुलित जीवन हेतु स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए और योग, इसके लिए सरल व सर्वोत्तम व्यवस्था उपलब्ध है ।
योग अभ्यास के कार्यक्रम में बाल आरोग्यम शिविर के विद्यार्थियों ने सामूहिक योग प्रदर्शन किया। यूजीसी के निर्देशानुसार योग दिवस कार्यक्रम में सभी को डॉ. उत्कर्ष गुप्ता द्वारा हृदय रोग से बचाव, सावधानी व प्रारंभिक उपचार की जानकारी दी गई। इसके साथ ही बी एल एफ तकनीकी एवं सी पी आर की भी जानकारी दी गई। कार्यक्रम में बाल आरोग्यम शिविर के प्रतिभागियों और एनआरसीसी सहित अन्य संस्थानों को उनके सक्रिय योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। योग दिवस कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. देवाराम काकड़ ने योग का महत्व बताते हुए सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जयप्रकाश राजपुरोहित ने किया।
एनआरसीसीनेमनाया विश्व पर्यावरण दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर दिनांक 5 जून, 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया । इस अवसर पर केन्द्र के सामुदायिक भवन परिसर में पौधारोपण किया गया जिसमें 14 अशोक के पौधे एवं 500 नर्सरी पौधे आगामी मानसून हेतु तैयार किए गए । पर्यावरण दिवस के इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने केन्द्र परिवार को पर्यावरण दिवस की बधाई देते हुए इसके संरक्षण के प्रति विशेष रूप से प्रोत्साहित किया । उन्होंने कहा कि इस वर्ष (2024) पर्यावरण दिवस की थीम (विषय वस्तु) ‘‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखा सहनशीलता (लैण्ड रिसटोरेशन डेजर्टीफिकेशन एण्ड ड्रॉट रेजिलेंस)’’ रखी गई है । अत: पर्यावरण संरक्षण के तहत इस थीम को देखते हुए आस-पास के क्षेत्रों में अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए ताकि मरुस्थलीकरण व सूखा से निजात पाई जा सकें । इस अवसर पर भाकृअनुप- राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर के विभागाध्यक्ष डॉ.शरत चन्द्र मेहता ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता आवश्यक है तथा हमें इसे एक मिशन के रूप में लेना होगा । केन्द्र की जी.एफ.यूनिट प्रभारी डॉ.प्रियंका गौतम ने कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला एवं केन्द्र परिवार व अतिथियों के प्रति पर्यावरण संरक्षण के इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता हेतु आभार व्यक्त किया ।
एनआरसीसी द्वारा गांव नगासर सुगनी में पशु स्वास्थ्य शिविर व किया पशुपालकों से संवाद
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा ग्रामीण पशुपालकों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आज दिनांक 24 मई 2024 को गांव नगासर सुगनी में अनुसूचित जाति उपयोजना ( एससीएसपी) तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें 133 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- गाय-133, , ऊँट 26, भैंस 23, भेड़ 99, बकरी-132 सहित इस शिविर का लाभ उठाया केन्द्र की इस गतिविधि का लाभ उठाया ।
इस अवसर पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में केन्द्र में संचालित एससीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि अभी अत्यधिक गर्मी को देखते हुए पशुओं की देखभाल में विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए साथ ही गर्मी के मौसम में पशुओं से पर्याप्त उत्पादन लेने हेतु उनके आहार-दाना, पानी व उचित रखरखाव संबंधी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना जरूरी होता है । नोडल अधिकारी ने पशुओं के नवजात बच्चों की समुचित देखभाल तथा पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन लेने हेतु पशुपालकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया ।
शिविर में केन्द्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने मौसम के अनुसार पशुओं में होने वाली बीमारियों के प्रति पशुपालकों को चेताया । उन्होंने ऊँटों में खाज-खुजली/पाव रोग से बचाव व उपचार अन्य पशुओं जैसे कि गाय, भेड़ व बकरी आदि में अन्त: व बाह्य परजीवियों से होने वाले दुष्परिणामों व उनके निदान आदि के बारे में पशुपालकों को विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए पशुओं में खनिज लवण आदि के महत्व पर भी बात कीं।
गांव नगासर सुगनी में आयोजित केन्द्र की इस महत्वपूर्ण गतिविधि के बारे में नोडल अधिकारी से अद्यतन जानकारी लेते हुए कहा पशुपालकों के लिए पशुधन आजीविका का एक प्रमुख साधन है, अत: बदलते परिवेश में पशुपालन व्यवसाय से श्रेष्ठ उत्पादन लेने हेतु वैज्ञानिक तरीकों से पशुओं के रखरखाव की जानकारी पशुपालकों को होनी चाहिए तथा इस प्रयोजनार्थ यह केन्द्र अपनी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सतत प्रयत्नशील है ताकि पशुपालकों की स्वास्थ्य स्थिति व पशुपालकों की आजीविका में अपेक्षित सुधार लाया जा सकें।
केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी द्वारा शिविर में आए पशुपालकों के पंजीयन, उन्हें ‘करभ’ पशु आहार, खनिज लवण बट्टिका, सॉल्ट लिक आदि वितरण कार्यों में सहयोग प्रदान किया गया ।
एनआरसीसी ने कोटड़ी गांव में लगाया पशु स्वास्थ्य शिविर व पशुपालकों से किया संवाद
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा ग्रामीण पशुपालकों की आवश्यकता को देखते हुए आज दिनांक 26 अप्रेल 2024 को गांव कोटड़ी में एससीएसपी तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। 86 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- गाय-63, भैंस 26, ऊँट 41, भेड़-334, बकरी-352 सहित केन्द्र की इस गतिविधि का लाभ उठाया । कैम्प में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता देखी गई। शिविर के दौरान एससीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि गर्मी के मौसम में पशुओं से पर्याप्त उत्पादन लेने हेतु उनके आहार-दाना, पानी व उचित रखरखाव की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है । डॉ.सावल ने पशुपालकों को आर्थिक नुकसान से बचाने हेतु पशुओं के नवजात बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल में बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी दीं वहीं उन्होंने स्वच्छ दूध उत्पादन के महत्व पर भी प्रकाश डाला। इस अवसर पर केन्द्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने पशुपालकों से बातचीत में ऊँटों में खाज-खुजली/पाव रोग से बचाव व उपचार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी साथ ही अन्य पशुओं जैसे कि गाय, भेड़ व बकरी आदि में अन्त: व बाह्य परजीवियों से होने वाले दुष्परिणामों व उनके निदान के बारे में चर्चा कर विस्तृत में बताया । उन्होंने कहा कि शिविर में लाए गए पशुओं में भूख न लगना, दस्त, पेट के कीड़े, चीचड़ आदि हेतु दवा दी गई । केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल से शिविर संबंधी जानकारी लेते हुए कहा पशुपालकों को पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन लेने एवं उनकी उचित देखभाल हेतु वैज्ञानिक जानकारी पहुंचाई जाए ताकि पशुपालकों व पशुधन के स्तर में सुधार लाया जा सकें। श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी एवं श्री राजेश चौधरी, सहायक प्रशासनिक अधिकारी ने पशुपालकों के पंजीयन, पशु आहार खनिज लवण बट्टिका आदि के वितरण में सहयोग किया। गर्मी के मौसम में पशुओं को निर्जलीकरण से बचाने हेतु पानी-टब भी वितरित किए गए ।
एनआरसीसी ने ऊँटनी के दूध व दुग्ध उत्पादों को लेकर बहुला फूड्स के साथ किया एमओयू
बीकानेर 16 अप्रैल, 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) एवं बहुला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के मध्य आज दिनांक को एक एमओयू किया गया। ऊँटनी के दूध व दुग्ध उत्पादों से संबद्ध इस एमओयू पर एनआरसीसी की ओर से निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू तथा बहुला फूड्स प्रा. लि. की आकृति श्रीवास्तव, सीईओ ने हस्ताक्षर किए । इस अवसर पर केन्द्र के डॉ.राकेश रंजन व डॉ. वेद प्रकाश तथा बहुला फूड्स के श्री संजय विश्वा मौजद रहे ।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एनआरसीसी में कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 12 अप्रैल 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में ‘मानवीय व्यवहार में परिवर्तन : मानसिक स्वास्थ्य के विकार’ विषयक राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वक्ता डॉ.अच्युत त्रिवेदी, प्रबंध निदेशक, पण्डित कृष्णा चन्द्र मेमोरियल न्यूरोसाइंस सेंटर, बीकानेर ने कहा कि मनोविकार से जुड़ी समस्याओं के प्रति समाज में बहुत अधिक भ्रांतियां फैली हुई, इस अनभिज्ञता व अज्ञानता का उन्मूलन किया जाना अत्यंत जरूरी है, वहीं मनोविकार से ग्रस्त व्यक्तियों को संबल देने की भी महत्ती आवश्यकता है । डॉ. त्रिवेदी ने अपने व्याख्यान में कई प्रकार के मनोरोगों यथा-डिप्रेशन, ऐंगज़ाइटी, सिज़ोफ्रेनिया, डिमेंशिया को सउदाहरण समझाया तथा कहा कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार इनका इलाज संभव है । इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने प्रस्तुत व्याख्यान को जनकल्याणकारी बताते हुए कहा कि हमें कार्यस्थल पर ऐसा नकारात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे दूसरे साथी प्रभावित हों । उन्होंने कहा कि यदि रोजमर्रा के कार्यों व अनुभवों आदि को लेकर आपका मन अच्छा अनुभव नहीं कर रहा है तो अपने हितैषी व सकारात्मक मित्रों से बात करनी चाहिए । उन्होंने आपात स्थिति में भी अपनी व्यवहार कुशलता का परिचय देने हेतु प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया । इस अवसर पर अतिथि के रूप में डॉ.जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए, यदि आपमें आत्मविश्वास की कमी है तो इस पर गंभीरता पूर्वक काम करना चाहिए। उन्होंने खेलों से जुड़ने की भी सलाह दीं। कार्यशाला में डॉ.एस.सी.मेहता, प्रभागाध्यक्ष, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र , डॉ.आर.ए.लेघा, प्रभागाध्यक्ष, केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, बीकानेर तथा एनआरसीसी स्टाफ परिवार सहित बीकानेर में परिषद अधीनस्थ इन संस्थानों के अधिकारियों व कर्मचारियों ने भी भाग लिया। डॉ.आर.के.सावल, नोडल अधिकारी राजभाषा ने कार्यशाला के उद्देश्य व महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रस्तुत व्याख्यान को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम संचालन में श्री दिनेश मुंजाल, मुख्य तकनीकी अधिकारी ने सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी में उष्ट्र अनुसंधान के विविध आयामों को लेकर परिचर्चा आयोजित
बीकानेर । 07.04.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में परिचर्चा आयोजित की गई । ‘उष्ट्र अनुसंधान के विविध आयाम’ विषयक देर रात तक चली इस परिचर्चा कार्यक्रम में एनआरसीसी स्टाफ सहित परिषद के बीकानेर स्थित वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी इसमें सक्रिय सहभागिता निभाई । डॉ. राघवेन्द्र भट्टा, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने इस अवसर पर कहा कि अनुसंधान की दिशा में टॉप 5 संस्थानों में एनआरसीसी द्वारा पहचाना बनाना निश्चित रूप से सराहनीय है परंतु बदलते परिवेश में उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें । उन्होंने अनूठी प्रजाति ‘ऊँट’ पर कार्य करने को गौरव का विषय बताते हुए अनुसंधान कार्यों में ठोस व त्वरित परिणाम हेतु अपने कार्यों में नवाचार लाते हुए समन्वयात्मक के रूप में आगे बढ्ने हेतु प्रोत्साहित किया । उप महानिदेशक महोदय ने कहा कि जिस किसी संस्थान में आप कार्यरत है, वहां समर्पित व सकारात्मक प्रवृत्ति से कार्य करेंगे तो न केवल उपयुक्त वातावरण का सृजन करने में सहायक बनेंगे बल्कि संस्थान के अनुसंधान कार्य भी अधिक तीव्र गति की ओर अग्रसर होते हुए लक्ष्य प्राप्ति की जा सकेगी। परिचर्चा में डॉ. शिव प्रसाद किमोथी, सदस्य,कृषि वैज्ञानिक चंयन मंडल, नई दिल्ली ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से देश के किसानों की खुशहाली हेतु योगदान देने को एक सुअवसर बताते हुए कहा कि अनुसंधान के विविध क्षेत्र में श्रेष्ठ वैज्ञानिकों के आगे आने तथा विकसित प्रौद्योगिकी से अंतिम छोर तक इसका लाभ पहुंचाने के ध्येय से मिलकर काम करना चाहिए ताकि देश और अधिक प्रगति कर सकें। उन्होंने ऊँटों की सीमित संख्या पर विवेचना व सतत कार्य की आवश्यकता जताई । केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी के कार्यक्षेत्र एवं अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संस्थान ‘ऊँट’ को ‘डेजर्ट टू मेडिसिन अप्रोच’ की नीति पर कार्य कर रहा है ताकि इस प्रजाति के औषधीय दूध को विविध माध्यम से मानव स्वास्थ्य लाभ हेतु पहुंचाया जा सकें । डॉ.साहू ने डेंगू, डायबिटीज, टीबी आदि सामयिक बीमारियों में ऊँटनी के दूध से लाभ पहुंचाने जैसे कई अनुसंधान कार्यों की भी जानकारी दीं । डॉ.ए.के.तोमर, निदेशक, केन्द्रीय भेड् एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानर ने वैज्ञानिक को प्रोत्साहित करते हुए संस्थान की कार्य प्रणाली, नई तकनीकी एवं इनसे जुड़े प्रशिक्षण आदि पर अपने विचार रखें ।
इस परिचर्चा की रूपरेखा प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन ने तैयार की तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.आर.के.सावल ने ज्ञापित किया।
एनआरसीसी में दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन
बीकानेर 15 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का आज दिनांक को समापन हुआ। ‘सफल उद्यमिता के लिए गैर-गोरवंशीय पशु उत्पादों का प्रसंस्करण, नवाचार और सुधार‘ विषयक इस संगोष्ठी में करीब 125 पशुपालकों, उद्यमियों, शोधकर्ताओं, एनआरसीसी तथा आईसीएआर के संस्थानों/केन्द्रों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) मनोज दीक्षित, माननीय कुलपति, महाराजा गंगासिंह विश्विद्यालय, बीकानेर ने कहा कि ऊँट प्रजाति के दूध की औषधीयता को वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय समन्वय कर प्रचारित-प्रसारित किया जाना चाहिए, साथ ही इसके गोबर, मूत्र, चमड़े आदि के वैकल्पिक उपयोग को भी समझना होगा ताकि ऊँट पालक इस पशु के बहुआयामी उपयोग को समझें, इससे ऊँटों की मांग स्वतः बढ़ने लगेगी। प्रो.दीक्षित ने किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने, उत्पादों के सुगम विपणन, समन्वयात्मक अनुसंधान आदि विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखीं। एनआरसीसी के निदेशक तथा कार्यक्रम संयोजक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि गैर-गोवंशीय पशु उत्पादों के प्रति पशुपालकों को जागरूक कर उन्हें उद्यमी के रूप में आगे बढ़ाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि इन गोवंशीय पशु उत्पादों का लाभ आमजन तक पहुंचाया जा सकें। डॉ.साहू ने पशु उत्पादों की सामाजिक जागरूकता, इनकी सुलभता आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने हाल ही में सरस डेरी द्वारा उष्ट्र दूध की शुरू की गई बिक्री से भी पशुपालकों को अवगत करवाते हुए कहा कि इससे उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय को एक संबल मिलने के साथ-साथ किसानों की आय में आशातीत वृद्धि हो सकेगी। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ.टी.के.गहलोत, एडिटर, जर्नल ऑफ कैमल प्रैक्टिस एण्ड रिसर्च, बीकानेर ने कहा कि ऊँट पालकों की समृद्धि हेतु सतत प्रयास जारी है, उन्होंने कहा कि ऊँटनी के दूध की वैश्विक स्तर पर उपयोगिता बढ़ रही है साथ ही उन्होंने दूध विपणन, मार्केटिंग, उष्ट्र संरक्षण तथा उष्ट्र पालन पर अनुदान की आवश्यकता जताई। विशिष्ट अतिथि डॉ.एस.पी.जोशी, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग राजस्थान ने किसानों को पशु गोबर को उन्नत खाद में परिवर्तित रसायनिक रहित अनाज उत्पाद बढ़ाने हेतु इसको उपयोग में लेने का महत्व बताया।समापन कार्यक्रम से पूर्व संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञों ने किसानों एवं उद्यमियों से संवाद करते हुए फील्ड स्तर पर आ रही उनकी चुनौतियों के निराकरण के उपाय सुझाए। कार्यक्रम में प्रस्तुत पोस्टर व ओरल शोध पत्र, तकनीकी प्रदर्शनी के विजेताओं को सम्मानित किया गया। आयोजन सचिव डॉ.योगेश कुमार द्वारा इस दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई तथा धन्यवाद प्रस्ताव आयोजन सह समन्वयक डॉ.सागर अशोक खुलापे द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी द्वारा सूक्ष्मजीवीय पारिस्थतिकी पर गहन विचार गोष्ठी आयोजित
बीकानेर 12 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में रूमेन में सूक्ष्मजीवीय पारिस्थतिकी पर आज दिनांक को एक दिवसीय गहन विचार-विमर्श गोष्ठी (ब्रेन स्टोर्मिंग मीट) का आयोजन किया गया। ‘‘जुगाली करने वाले पशुओं के सतत उत्पादन हेतु उनके रूमेन सूक्ष्मजीवों का विश्लेषण: अतीत, वर्तमान और भविष्य‘‘ विषयक इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में करीब 50 से ज्यादा अधिकारियों, वैज्ञानिकों, विषय-विशेषज्ञों एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने षिरकत कीं। साथ ही कई विषय विशेषज्ञ जिनमें डॉ. ए.के.पुनिया, प्रधान वैज्ञानिक, एन.डी.आर.आई., करनाल, डॉ. नीता अग्रवाल, डॉ. सचिन, डॉ. रविन्द्र श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, सी.आई.आर.जी., मथुरा आदि ने वर्चुअल रूप से भी इस बैठक से जुड़े।गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एन.वी.पाटिल, कुलपति, महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्व विद्यालय, नागपुर ने अपने निष्कर्षीय उद्बोधन में कहा कि पालतू जानवरों के पेट में पाए जाने वाले जीवाणुओं के बारे में गहन अध्ययन की आवश्यकता है। ये जीवाणु हमारे लिए बहुपयोगी सिद्ध हो सकते हैं और इस दिशा में सहयोगात्मक अनुसंधान के माध्यम से हम सफलता पा सकते हैं। केन्द्र के निदेशक एवं गोष्ठी कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने सभी विशेषज्ञों का अभिवादन करते हुए गहन विचार गोष्ठी के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा कि सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी जैसे महत्वपूर्ण विषय पशु पोषण एवं स्वास्थ्य में सुधार हेतु भविष्य में रूमेन सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी पर अंतर विषयक अनुसंधान की आवश्यकता है ताकि इन पशुओं में बेहतर पोषक तत्व उपयोग, पर्यावरणीय दुष्प्रभाव में कमी, तथा रूमिनेंट पशुपालन को समग्र रूप से लाभदायक बनाया जा सकें। उन्होंने रूमिनेंट उत्पादन संबंधी व्याख्यान भी प्रस्तुत किया। इस अवसर पर एक कम्पेंडियम का विमोचन किया गया साथ ही एनआरसीसी की ओर से केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू एवं महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर की ओर से डॉ. एन.पाटिल ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए वहीं एनआरसीसीएवं गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसन्धान केन्द्र के मध्य भी भी एक एमओयू किया गया।विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. सी.जी.जोशी, निदेशक, गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसन्धान केन्द्र ने कहा कि रूमेन सूक्ष्मजीवों के विश्लेषण हेतु नियोजित तथा समन्वयात्मक रूप से आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि भारत मं जैव विविधता बहुत अधिक देखी जा सकती है। साथ ही पशुओं के पेट में पाए जाने वाले विषाणुओं (वायरस) एवं कवक (फंगस) के बारे में भी अध्ययन की आवश्यकता है। उपस्थित विशेषज्ञों में डॉ. संजय बरूआ, प्रभारी, एन.सी.वी.टी.सी.,हिसार, डॉ. आर.के. वैद्य, डॉ. राजेन्द्रन, प्रभारी, रूमेन माइक्रोरिपोजिटरी, बैंगलूरू द्वारा अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए गए।केन्द्र द्वारा आयोजित इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में विशेषज्ञों के रूप में डॉ. निर्मला सैनी, डॉ. स्रोबना सरकार, अविकानगर सहित केन्द्र के विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिक गण शामिल थे। गोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने कार्यक्रम की रूपरेखा को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया तथा संचालन डॉ. एस.एस.चैधरी, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी वैज्ञानिकों ने गुजरात में उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता को लेकर संगोष्ठी के साथ फील्ड क्षेत्रों का किया दौरा
बीकानेर 11 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने 9 और 10 मार्च को गुजरात (भुज) में फील्ड क्षेत्रों विजिट के दौरान घड़सीसा में उष्ट्र पालकों से उनके द्वार जाकर बातचीत की तथा अमूल द्वारा विकसित उष्ट्र दूध डेरी का दौरा किया । वहीं भुज में ही अमूल द्वारा एनआरसीसी आदि के साथ उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता संबंधी आयोजित संगोष्ठी में उष्ट्र संबंध सभी पशुपालन विभाग, चिकित्सक, संबंधित समुदाय, घूमन्तू पशुओं से जुडी सहजीवन संस्था कामधेनु विश्व विद्यालय, सरहद डेरी, अमूल, इत्यादि के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने संगोष्ठी व अलग-अलग अवसरों के दौरान कहा कि ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों को ध्यान में रखते हुए इस प्रजाति को दुग्ध व्यवसाय के रूप में बढ़ावा दिए जाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि दूध को पुख्ता तौर पर उद्यमिता से जोड़ते हुए देशभर में आवश्यकता अनुसार उपभोक्ताओं की मांग को पूरा किया जा सकें। डॉ. साहू ने बताया कि गुजरात की अमूल संस्था द्वारा उष्ट्र ‘ दुग्ध संग्रहण बूथ’ संचालित किया जा रहा है जहां प्रतिदिन लगभग 1500 लीटर दूध, दुग्ध व्यवसायकों द्वारा पहुंचाया जाता है वहीं इसके अलग अलग बूथों में 4000-5000 लीटर दूध प्रतिदिन एकत्रित किया जाता है। उन्होंने ऊँटनी के दूध की मांग को देखते हुए गुजरात सरकार द्वारा उष्ट्र पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने हेतु किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा की वहीं इनमें गैर सरकारी संगठनों की अहम भूमिका को भी सराहा तथा कहा कि यदि राजस्थान में भी उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय हेतु सभी इसी भांति आगे आए तो प्रदेश में ऊँटनी के दूध की लहर आ सकती है ।डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध को लेकर एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे कार्यों की भी जानकारी देते हुए आहार व चरागाह विकास, नस्ल सुधार, उत्पादकता वृद्धि, ऊंटनी के दूध की गुणवत्ता में सुधार और आवश्यक औषधीय आवश्यकताओं के लिए प्रसंस्करण पर अनुप्रयोग अनुसंधान में अमूल उद्यम को सहयोग देने की बात कही, इन्हीं निहित उद्देश्यों के अंतर्गत ऊंटनी के दूध की उपयोगिता बढ़ाने और इसे जरूरतमंद उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए एनआरसीसी, अमूल और कामधेनु विश्वविद्यालय के बीच त्रिपक्षीय एमओयू किया जाएगा।
एनआरसीसी ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बीकानेर 07 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आज दिनांक को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सुश्री वंदना सिंघवी, संभागीय आयुक्त बीकानेर ने कहा कि आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें महिला सशक्तिकरण को वास्तविक रूप से परिभाषित करने हेतु अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए । सुश्री वंदना ने नशा प्रवृत्ति को रोकने, स्वच्छता का महत्व, अभिभावकों व गुरूजनों के प्रति आदर भाव रखने, अभावों के बावजूद सकारात्मक सोच के साथ उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करने, अवसर का लाभ लेने एवं कड़ी मेहनत द्वारा लक्ष्य प्राप्त करने आदि पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए संकल्प, श्रम और सफलता के साथ आगे बढ़ने हेतु महिलाओं का प्रोत्साहित किया ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि आज महिलाएं मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविल सर्विसेज आदि सभी जगह आनुपातिक रूप से प्रगति कर रही है जो कि परिवार, समाज व एक विकासशील राष्ट्र की पहचान है। डॉ.साहू ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम महिलाओं के विकास हेतु जितना अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे उसका परिणाम कई गुना मिलेगा, अत: सकारात्मक सोच के साथ महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने सभी को अपने-2 कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति हेतु सतत मेहनत के लिए प्रोत्साहित किया ।
इस अवसर पर महिलाओं के योगदान सम्बन्धी एक निबन्ध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी व सोफिया सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कुल 42 छात्राओं ने भाग लिया। शिवबाड़ी स्कूल की दिव्या भाटिया ने प्रथम, मुस्कान मौर्या ने द्वितीय व खूशबू रील ने तृतीय स्थान प्राप्त किया वहीं सोफिया स्कूल की अपेक्षा सारण प्रथम, तेजल सुथार द्वितीय व पलक व्यास तृतीय रहीं । सभी विजेता छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। साथ ही उद्यमिता एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों हेतु बहुला नैचुरल से सुश्री आकृति श्रीवास्तव, बीकानेर कशीदाकारी शिल्प कला हेतु श्रीमती सम्पत देवी व श्रीमती सीमा देवी व एनआरसीसी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.प्रियंका गौतम को सम्मानित किया गया ।
कार्यक्रम समन्वयक डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए तथा डॉ.बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं आयोज्य कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मृणालिनी प्रेरणा, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बीकानेर 07 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आज दिनांक को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सुश्री वंदना सिंघवी, संभागीय आयुक्त बीकानेर ने कहा कि आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें महिला सशक्तिकरण को वास्तविक रूप से परिभाषित करने हेतु अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए । सुश्री वंदना ने नशा प्रवृत्ति को रोकने, स्वच्छता का महत्व, अभिभावकों व गुरूजनों के प्रति आदर भाव रखने, अभावों के बावजूद सकारात्मक सोच के साथ उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करने, अवसर का लाभ लेने एवं कड़ी मेहनत द्वारा लक्ष्य प्राप्त करने आदि पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए संकल्प, श्रम और सफलता के साथ आगे बढ़ने हेतु महिलाओं का प्रोत्साहित किया । कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि आज महिलाएं मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविल सर्विसेज आदि सभी जगह आनुपातिक रूप से प्रगति कर रही है जो कि परिवार, समाज व एक विकासशील राष्ट्र की पहचान है। डॉ.साहू ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम महिलाओं के विकास हेतु जितना अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे उसका परिणाम कई गुना मिलेगा, अत: सकारात्मक सोच के साथ महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने सभी को अपने-2 कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति हेतु सतत मेहनत के लिए प्रोत्साहित किया । इस अवसर पर महिलाओं के योगदान सम्बन्धी एक निबन्ध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी व सोफिया सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कुल 42 छात्राओं ने भाग लिया। शिवबाड़ी स्कूल की दिव्या भाटिया ने प्रथम, मुस्कान मौर्या ने द्वितीय व खूशबू रील ने तृतीय स्थान प्राप्त किया वहीं सोफिया स्कूल की अपेक्षा सारण प्रथम, तेजल सुथार द्वितीय व पलक व्यास तृतीय रहीं । सभी विजेता छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। साथ ही उद्यमिता एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों हेतु बहुला नैचुरल से सुश्री आकृति श्रीवास्तव, बीकानेर कशीदाकारी शिल्प कला हेतु श्रीमती सम्पत देवी व श्रीमती सीमा देवी व एनआरसीसी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.प्रियंका गौतम को सम्मानित किया गया । कार्यक्रम समन्वयक डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए तथा डॉ.बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं आयोज्य कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मृणालिनी प्रेरणा, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी में तनाव प्रबंधन पर राजभाषा कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 4 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में आज दिनांक को राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें आधुनिक जीवन शैली रू तनाव प्रबंधन विषय पर आचार्य अरविन्द मुनि जी ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान बताया कि आज के इस दौर में हर आयु का व्यक्ति तनाव से प्रभावित है, नकारात्मकता हावी है और इससे व्यक्ति के भीतर विकार पैदा हो रहे हैं । अतरू शरीर और मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हमें ध्यान (मेडिटेशन) साधना करनी चाहिए । उन्होंने ध्यान की कई क्रियाओं का अभ्यास करवाया तथा कहा कि इससे न केवल स्वयं के जीवन को अपितु परिवार, समाज व देश की समृद्धि बनाने में योगदान दे सकेंगे । इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि हम सभी सभी को नैसर्गिक मानवीय गुणों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा जैसे हंसी को इस भौतिक परिवेश में विस्मृत करते जा रहे हैं और तनाव को आमंत्रित कर रहे हैं जबकि मानव स्वभाव का यह (हंसी) एक अत्यंत अनिवार्य पहलू है । इससे जीवन में ऊर्जा का संचार होता है तथा हम अपनी कार्यक्षमता के अनुरूप अपने-अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर कर सकते हैं। केन्द्र के नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.राजेश कुमार सावल ने कार्यशाला के उद्देश्य व महत्व पर प्रकाश डालते हुए इससे लाभ उठाने की बात कही। कार्यशाला कार्यक्रम का संचालन श्री मोहनीश पंचारिया ने किया ।
केन्द्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने ऊँटों को लेकर किए रौचक प्रश्न
पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2, बीकानेर के 80 विद्यार्थियों ने दिनांक 12.02.2024 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में शैक्षणिक भ्रमण किया । इस दौरान केन्द्र सभागार में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें उन्हें केन्द्र के अनुसंधान कार्यों एवं उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई । परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को केन्द्र की स्थापना एवं इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केन्द्र ऊँटों की प्रमुखत: चार नस्लों यथा-बीकानेरी, जैसलमेरी,कच्छी एवं मेवाड़ी पर अपना शोध कार्य कर रहा है। उन्होंने रेगिस्तानी जहाज-ऊँट की अनगिनत विशेषताओं को उजागर करते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में औषधीय लाभों के आधार पर इसे ‘औषधि का भण्डार’ की संज्ञा दीं । डॉ.साहू द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ऊँटों की स्थिति, उष्ट्र प्रजाति की विविध नस्लों, ऊँट की पारंपरिक व आधुनिक उपयोगिता, पशु का सांस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक कसौटी पर शारीरिक संरचना आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई । इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने स्कूली बच्चों को ऊँटों की मरुस्थल की विषम परिस्थितियों में शारीरिक अनुकूलनता, बदलते परिवेश में ऊँटों की बहुआयामी उपयोगिता यथा- ऊँट नृत्य, ऊँट दौड़, उष्ट्र साज-सजा, उष्ट्र सवारी आदि की जानकारी दी तथा अंतर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव पर इनका लुत्फ उठाने हेतु प्रोत्साहित भी किया। परिचर्चा के दौरान स्कूली विद्यार्थियों ने ऊँट का शारीरिक वजन, इसकी लम्बाई व औसत आयु, रंगों के आधार पर इसकी पहचान, पानी ग्रहण क्षमता व आहार प्रणाली आदि संबंधी अपनी जिज्ञासाओं को वैज्ञानिकों के समक्ष रखा जिनका उचित निराकरण किया गया । केन्द्रीय विद्यालय के अध्यापक श्री जय प्रकाश द्वारा केन्द्र निदेशक एवं एनआरसीसी वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया। तत्पश्चात केन्द्र के डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक (प्रसार) द्वारा इन विद्यार्थियों को उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, डेयरी इकाई, कैमल मिल्क पॉर्लर आदि स्थलों का व्यावहारिक भ्रमण करवाया गया व इस संबंध में जानकारी दी गई ।
अमेरिका से आए दल ने एनआरसीसी में ऊँटों के अनुसन्धान कार्यों को लेकर की खास बात
बीकानेर 18.02.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आज दिनांक को अमेरिका के नॉर्थ अमेरिकन कैमल रांच ऑनर्स एसोसिएशन के सात सदस्यीय दल ने भ्रमण कर केन्द्र की उष्ट्र से जुड़ी अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया । इस दौरान केन्द्र के निदेशक महोदय डॉ.साहू के नेतृत्व में वैज्ञानिकों द्वारा इस दल को ऊँटों प्रजाति हेतु किए जा रहे वैज्ञानिक कार्यों एवं व्यावहारिक प्रयासों के सम्बन्ध में बात की तथा एनआरसीसी द्वारा मधुमेह व ऑटिज्म बीमारियों के प्रबंधन की दिशा में ऊँटनी के दूध पर हुए अनुसन्धान कार्यों में गहरी रूचि दिखाते हुए इनकी सराहना की.
दल के साथ पारस्परिक परिचर्चा में डॉ. आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी के अनुसंधान एवं विकास कार्यों एवं प्राप्त उपलब्धियों के बारे में कहा कि ऊँट के विभिन्न पहलुओं यथा-जनन, प्रजनन, आनुवंशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य आदि पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है साथ ही परिवर्तित परिदृश्य में ऊँटनी के दूध की औषधीय उपादेयता को उजागर किया जा रहा है ताकि इस प्रजाति के संरक्षण के अलावा ऊँट पालन व्यवसाय को लाभकारी बनाया जा सकें। अमेरिका से आए इस दल की सचिव वालेरी क्रिमशो ने एनआरसीसी द्वारा ऊँट प्रजाति के कल्याणार्थ किए जा रहे उल्लेखनीय अनुसंधान कार्यों, ऊँटों के स्वास्थ्य एवं इनके प्रबंधन एवं उष्ट्र- पर्यटनीय पहलुओं से जुड़े समग्र विकास कार्यों की प्रशंसा करते हुए अनूठी प्रजाति हेतु ऐसे प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया ।
दल के अध्यक्ष डगलस ने बताया कि उनका समूह अमेरिका एवं भारत के ऊँटों की विविधता का अनुभव करना चाहता है, यहां एक कूबड़ीय ऊँटों पर अनुसंधान, उनकी नस्लों प्रजनन, ऊँटों का पारंपरिक उपयोग तथा उनकी स्वभावगत आदतों का पता लगाने आया है। दल में शामिल वेटरनरी चिकित्सक डॉ.किल्ली ने ऊँटों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान दल ने ऊँटनी के दूध से बनी ष्छाछश् तथा बीकानेरी मिठाई श्रसगुल्ला का स्वाद लिया साथ ही उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, उष्ट्र डेयरी आदि पर्यटनीय स्थलों का भ्रमण करवाया गया।
केन्द्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने ऊँटों को लेकर किए रौचक प्रश्न
पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2, बीकानेर के 80 विद्यार्थियों ने दिनांक 12.02.2024 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में शैक्षणिक भ्रमण किया । इस दौरान केन्द्र सभागार में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें उन्हें केन्द्र के अनुसंधान कार्यों एवं उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई ।
परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को केन्द्र की स्थापना एवं इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केन्द्र ऊँटों की प्रमुखत: चार नस्लों यथा-बीकानेरी, जैसलमेरी,कच्छी एवं मेवाड़ी पर अपना शोध कार्य कर रहा है। उन्होंने रेगिस्तानी जहाज-ऊँट की अनगिनत विशेषताओं को उजागर करते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में औषधीय लाभों के आधार पर इसे ‘औषधि का भण्डार’ की संज्ञा दीं । डॉ.साहू द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ऊँटों की स्थिति, उष्ट्र प्रजाति की विविध नस्लों, ऊँट की पारंपरिक व आधुनिक उपयोगिता, पशु का सांस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक कसौटी पर शारीरिक संरचना आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई ।
इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने स्कूली बच्चों को ऊँटों की मरुस्थल की विषम परिस्थितियों में शारीरिक अनुकूलनता, बदलते परिवेश में ऊँटों की बहुआयामी उपयोगिता यथा- ऊँट नृत्य, ऊँट दौड़, उष्ट्र साज-सजा, उष्ट्र सवारी आदि की जानकारी दी तथा अंतर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव पर इनका लुत्फ उठाने हेतु प्रोत्साहित भी किया।
परिचर्चा के दौरान स्कूली विद्यार्थियों ने ऊँट का शारीरिक वजन, इसकी लम्बाई व औसत आयु, रंगों के आधार पर इसकी पहचान, पानी ग्रहण क्षमता व आहार प्रणाली आदि संबंधी अपनी जिज्ञासाओं को वैज्ञानिकों के समक्ष रखा जिनका उचित निराकरण किया गया । केन्द्रीय विद्यालय के अध्यापक श्री जय प्रकाश द्वारा केन्द्र निदेशक एवं एनआरसीसी वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
तत्पश्चात केन्द्र के डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक (प्रसार) द्वारा इन विद्यार्थियों को उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, डेयरी इकाई, कैमल मिल्क पॉर्लर आदि स्थलों का व्यावहारिक भ्रमण करवाया गया व इस संबंध में जानकारी दी गई ।
एनआरसीसी अपने कृषि परिक्षेत्र में जल प्रबन्धन की दिशा में आईआईडब्ल्युएम के साथ करेगा समन्वयात्मक अनुसंधान
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर (एनआरसीसी) जल और कृषि उत्पादकता तथा बेहतर आजीविका के लिए जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के सतत विकास संबंधी भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान (आईआईडब्ल्युएम), भुवनेशवर के महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्यों एवं इस दिशा में इस संस्थान के वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता को देखते हुए समन्वयात्मक अनुसंधान की दिशा में आगे बढ़ रहा है । हाल ही में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस संस्थान का दौरा करते हुए जल प्रबंधन संबंधी प्रौद्योगिकियों का गहन अवलोकन किया तथा एनआरसीसी बीकानेर में जल प्रबंधन को लेकर विभिन्न मुद्दों यथा- वर्षा जल संचयन, रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग, जल के किफायती प्रबंधन हेतु सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, ड्रीप मैनेजमेंट सिस्टम, सेंसर बेस्ड इरिगेशऩ, एसटीपी वॉटर के उचित प्रयोग पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इसे चरागाह विकास हेतु कैसे उपयुक्त बनाया जा सकें ? एवं टयूब वैल के पानी में पाए जाने वाली उच्च टीडीएस स्तर वाले पानी का बेहतर उपयोग तथा इस जल का उपयोग चरागाह विकास एवं पशुओं हेतु प्रयुक्त किया जाना आदि के संबंध में आईआईडब्ल्युएम के निदेशक डॉ.अरजमादत्त सारंगी एवं संस्थान के वैज्ञानिकों से विस्तृत चर्चा की ।
एनआरसीसी के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि केन्द्र अपने क्षेत्र में बेहतर जल प्रबंधन को लेकर इस संस्थान के साथ समन्वयात्मक अनुसंधान को लेकर उत्साहित है । इस संस्थान की जल प्रबंधन रणनीति/स्ट्रेटजी हेतु विकसित प्रौद्योगिकियों का लाभ उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा लेना चाहता है। उन्होंने समन्वयात्मक अनुसंधान की आवश्यकता एवं इसके उद्देश्यों को लेकर कहा कि :
· भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, राजस्थान के अत्यधिक कम वर्षा वाले क्षेत्र बीकानेर जिले में स्थापित है । यद्यपि केन्द्र द्वारा वर्षा आधारित जल का उपयोग, अपने अनुसंधान कार्यों हेतु प्रयुक्त सैंकड़ों ऊँटों, इस पशु प्रजाति से जुड़े आहार संसाधनों, स्थानीय वनस्पतियों आदि के संरक्षण हेतु किया जाता है परंतु जल प्रबंधन के क्षेत्र में इस संस्थान वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का लाभ हम लेना चाहेंगे ।
· केन्द्र द्वारा उपलब्ध हार्ड वॉटर एवं वर्षा आधारित संचित जल का ऊँटों के लिए आहार एवं चारा संसाधनों के बेहतर विकास तथा क्षेत्र में उपलब्ध महत्वपूर्ण स्थानीय वनस्पतियों यथा- पेड़-पौधों, झाडियों-घासों आदि के संरक्षण हेतु किस प्रकार उपयोग किया जाए ताकि ऊँटों के लिए पौष्टिक आहार चारा उपलब्ध करवाया जा सकें जो कि इनके लिए सुरक्षित भी हों।
· केन्द्र द्वारा वर्षा आधारित जल संचयन का किस प्रकार प्रबंधन किया जाए ताकि इस जल का किफायती/ इकोनॉमिक उपयोग किया जा सकें जिसमें मृदा अपरदन (इरोजन) रोकना, ड्रिप सिस्टम को सिंक्रोनाईज करना, सेंसर आधारित सिंचाई से आवश्यकता अनुसार पानी या सिंचाई का नियंत्रण करना ।
आईआईडब्ल्युएम भुवनेश्वर के निदेशक डॉ.अरजमादत्त सारंगी ने जल प्रबंधन की दिशा में शुष्क प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार संस्थान की विकसित प्रौद्योगिकियों के सफल क्रियान्वयन की आशा व्यक्त करते हुए एनआरसीसी के साथ इस समन्वयात्मक अनुसंधान से दोनों संस्थानों के विशेषज्ञों का लाभ लेने की बात कही। एनआरसीसी के निदेशक महोदय के साथ आईआईडब्ल्युएम संस्थान में हुई इस परिचर्चा बैठक का संचालन डॉ.देबब्रत सेठ्ठी, वैज्ञानिक (प्रसार) ने किया ।
एनआरसीसी द्वारा गांव सांवता एवं सम में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन
जैसलमेर 12.02.2024 l भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केंद्र, बीकानेर द्वारा अनुसूचित जाति उप योजना के तहत जैसलमेर के गांव सांवता एवं सम गांव में दिनांक 09 से 10 फरवरी के दौरान पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । आयोजित शिविर में गांव सांवता के 133 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- ऊँट 350, गाय 273, भेड़ 1812 व बकरी 1070 सहित पशुओं एवं गांव सम के 28 पशुपालकों ने ऊँट 76, गाय 23, भेड़ 258 व बकरी 197 पशुओं सहित अपनी सहभागिता निभाते हुए शिविरों में प्रदत पशु स्वास्थ्य सुविधाओं का भरपूर लाभ लिया । शिविर में महिलाओं की अच्छी खासी सहभागिता देखी गई ।
केंद्र निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने पशुपालकों से बातचीत करते हुए कहा कि पशुपालन की दिशा में नूतन प्रोद्योगिकी का लाभ लेने हेतु पशुपालकों को जागरूक होना चाहिए ताकि वे अपने पशुधन से पर्याप्त उत्पादन एवं आमदनी प्राप्त कर सकें । केन्द्र निदेशक डॉ.साहू ने विशेषकर ऊँटनी के दूध एवं इससे निर्मित मूल्य संवर्धित उत्पादों एवं दूध की विभिन्न मानवीय रोगों के प्रबंधन में औषधीय उपयोगिता का जिक्र करते हुए कहा कि प्रदेश में ऊँटों की संख्या को ध्यान में रखते हुए ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय में उद्यमिता की संभावनाएं व्याप्त है। साथ ही उन्होंने प्रदेश में पर्यटन की दृष्टि से ऊँटों के महत्व एवं नूतन आयामों में इसकी उपयोगिता के संबंध में भी प्रकाश डाला तथा पशुपालकों के लिए इसे आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया बताया । इस अवसर पर उन्होंने पशुपालकों को सरकारी योजनाओं के भरपूर लाभ उठाने की भी बात कही।
केन्द्र की एससीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने जानकारी दी कि शिविरों में वैज्ञानिक और पशु पालकों के मध्य वार्ता में पशु पालन व्यवसाय में आ रही बाधाओं व चुनौतियों जैसे- पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन, उनके लिए पर्याप्त चरागाह व्यवस्था, प्रजनन हेतु उत्तम नस्ल के नर ऊँट की उपलब्धता आदि पर बात रखी गई साथ ही क्षेत्र के पशुओं में पाए जाने वाले विशेषकर सर्रा रोग के बारे में वैज्ञानिकों ने विस्तार से जानकारी दी। महिला पशुपालकों को पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन प्राप्त करने हेतु थनों की अच्छी तरह साफ-सफाई एवं स्वच्छ दूध उत्पादन प्राप्त हेतु जानकारी दी गई ।
किसानों से बातचीत करते हुए केन्द्र वैज्ञानिक डॉ.शान्तनु रक्षित ने एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी । डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने शिविर में पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बताया कि अधिकतर पशुओं में चीचड़, भूख कम लगना, पेट में कीड़े पड़ने आदि रोग देखे गए, इनके उपचार के लिए दवा दी गई । साथ ही पशु आहार के रूप में केन्द्र द्वारा निर्मित करभ पशु आहार भी वितरित किया गया। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार व आहार वितरण आदि जैसे कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी द्वारा अनुसूचित उप-योजना तहत पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक संवाद आयोजित
बीकानेर 18.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के तहत आज पूगल तहसील के अमरपुरा गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें इस गांव एवं आस-पास क्षेत्र के 75 पशुपालक सम्मिलित हुए। शिविर में कुल 1470 पशुओं (जिनमें ऊँट 140, गाय 80, भेड़ व बकरी 1250) को दवाइयां, उपचार एवं उचित समाधान देकर लाभान्वित किया गया।
इस दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने भारत सरकार की एस.सी.एस.पी. उप-योजना के महत्व पर बोलते हुए कहा कि पशुओं के बेहतर रखरखाव एवं प्रबन्धन हेतु पशुपालक भाई, ऐसे जागरूकता कार्यक्रमों का अधिकाधिक लाभ उठाएं ताकि पशुपालन व्यवसाय से अधिक आमदनी प्राप्त कर सकें। उन्होंने बदलते परिवेश में कृषि एवं पशुधन क्षेत्र की नूतन प्रौद्योगिकी से जुड़ने, पर्याप्त चरागाह हेतु क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों एवं भूमि के संरक्षण, एनआरसीसी में ऊँट संबद्ध पारंपरिक पद्धतियों एवं मान्यताओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने, ऊँटनी के औषधीय महत्व, इसका बाजार मूल्य बढ़ने, कैमल-इको टूरिज्म के बदलते स्वरूप को जानने तथा उष्ट्र उद्यमिता संबंधी संभावनाओं आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला ।
केन्द्र के एस.सी.एस.पी.उप-योजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल ने बताया कि पशुपालकों की कैम्प एवं संवाद कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता के साथ उन्होंने, वैज्ञानिकों से खुलकर अपनी समस्याएं साझा कीं। पशुपालकों को शीत ऋतुओं में पशुओं की देखभाल, पशुओं के लिए आहार चारे की पौष्टिकता एवं स्वच्छ एवं श्रेष्ठ दूध उत्पादन संबंधी जानकारी देने के अलावा केन्द्र में निर्मित पशुओं के खनिज मिश्रण का भी वितरण किया गया।
केन्द्र के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.काशी नाथ ने शिविर में लाए गए पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पशुओं में खाज-खुजली (मेंज) एवं तिबरसा रोगों से ग्रसित ऊँटों का उपचार किया गया तथा भेड़ व बकरी आदि में अंन्त: एवं बाह्य परजीवी रोग नाशक दवा लगाई गई। साथ ही ऊँटों के 25 रक्त, 10 मींगणी व 3 दूध के नमूनें लिए गए। उरमूल सीमांत समिति बज्जू की ओर से श्री मोतीलाल ने केन्द्र के इस कार्यक्रम में समन्वयक के रूप में महत्ती सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी में प्रौद्योगिकी एवं व्यवसायीकरण पर कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 14.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आज दिनांक को ‘प्रौद्योगिकी प्रबन्धन, बाजार विश्लेषण एवं व्यवसायीकरण‘ विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें एनआरसीसी सहित बीकानेर में स्थित आईसीएआर के संस्थानों/केन्द्रों के विभागाध्यक्ष एवं वैज्ञानिकों ने सहभागिता निभाई ।
एनआरसीसी में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि डा. प्रवीण मल्लिक, चीफ चीफ एग्जीक्युटिव ऑफिसर, एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली ने विषयगत बाते रखते हुए कहा कि वैज्ञानिक विकसित प्रौद्योगिकी को किसी इंडस्ट्री आदि को जारी करने की प्रक्रिया पूर्ण करने से पूर्व, संबंधित सभी पहलुओं के आधार पर समग्र लागत का आकलन जरूर करें, वह इंडस्ट्री के साथ पारस्परिक समन्वय स्थापित करें ताकि बाजार की संभावनाओं के आधार पर प्रौद्योगिकी में अपेक्षित सुधार लाते हुए यह आम किसान को भी स्वीकार्य हो सकें। डा.मलिक ने बेहतर तकनीकी प्रबन्धन हेतु इसे नियन्त्रित किए जाने एवं क्षेत्रानुसार प्रौद्योगिकी उपयुक्तता परखने की आवश्यकता जताई। उन्होंने, वैज्ञानिकों को अपनी विशेषज्ञता का बेहतर इस्तेमाल करने, सैद्धान्तिक के साथ-साथ स्वयं की धारणा जाहिर करने तथा फील्ड स्तर पर जमीनी हकीकत जानने हेतु प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर कार्यशाला के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डा.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी द्वारा उष्ट्र उत्पादन, स्वास्थ्य एवं ऊँटनी के दूध से निर्मित उत्पादों के व्यावसायीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों जैसे विकसित प्रौद्योगिकी के पेटेंट एवं निजी प्रतिष्ठानों को जारी लाईसेंस, जरूरतमंद पशु पालकों के इसके लाभ आदि के बारे में जानकारी दी। डा.साहू ने कहा कि ऊँटनी का दूध स्वाद में नमकीन होने के कारण इसका भण्डारण एवं प्रसंस्करण कर विभिन्न मूल्य सवंर्धित दुग्ध उत्पादन तैयार किए गए हैं। इन उत्पादों की सामाजिक स्वीकार्यता केन्द्र के लिए उत्साहवर्धक है।
इस अवसर पर डा. जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि गत वर्षों में विकसित तकनीकी के पेटेंट एवं इनके लाईसेंस आदि की दिषा में बढ़ोत्तरी हुई है परंतु प्रयोगषाला में तैयार प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण से पूर्ण यह किसान का हित साधने वाली होनी चाहिए।
केन्द्र के आईटीएमयू के प्रभारी एवं आयोजन सचिव डा. योगेश कुमार ने कार्यशाला का संचालन किया तथा धन्यवाद प्रस्ताव सह आयोजन सचिव डा. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने ज्ञापित किया
एनआरसीसी में पशुधन फिनोम डाटा विश्लेषण एवं व्याख्या पर 10 दिवसीय पाठ्यक्रम का समापन
बीकानेर 12.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा ‘जीनोमिक्स के युग में पशुधन फिनोम डेटा रिकॉर्डिंग विश्लेषण एवं व्याख्या में नूतन विकास’ विषयक 10 दिवसीय लघु पाठ्यक्रम का आज समापन हुआ। इस लघु पाठ्यक्रम में देश के अलग-2 राज्यों - असम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएमआर, एनडीडीबी, बीएचयू के सह एवं सहायक आचार्य, अनुसंधानकर्त्ता तथा विषय-विशेषज्ञों सहित कुल 26 प्रतिभागियों ने सहभागिता निभाईं ।
पाठ्यक्रम के समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.पी.के.राउत, वैज्ञानिक सलाहकार, महानिदेशक (आईसीएआर) कार्यालय, नई दिल्ली ने कहा कि हमारा देश बड़े सपने व लक्ष्य के साथ विकसित भारत की ओर तेजी से अग्रसर है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमें उत्पादन को 2047 तक 4 गुणा बढ़ाने की जरूरत है तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए हमें नूतन फीनोटाइप के आधार पर पशुओं का चयन करना होगा। डॉ.राउत ने ऊँट को अनुकूलनीयता की दृष्टि से श्रेष्ठ पशु प्रजाति बताते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य हेतु इसकी औषधीयता उपयोगिता के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु पशु हितधारकों की भूमिका को अहम बताया। मुख्य अतिथि ने जीनोमिक प्रोडेक्शन को नीति निर्माण हेतु मुख्य पहलू बताते हुए फिनोम, जीनोम की उपयोगिता, नए फीनोटाइप का संग्रहण तथा उसके विश्लेषण के महत्वपूर्ण होने की बात कही।
समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित इस 10 दिवसीय पाठ्यक्रम में व्याख्यानों एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण के माध्यम संप्रेषित विषयगत जानकारी को एक अच्छा अवसर बताया। केन्द्र निदेशक ने इस पाठ्यक्रम को प्रायोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा इसके अधीन कार्यरत कृषि शिक्षा विभाग के प्रति आभार व्यक्त किया । उन्होंने पाठ्यक्रम में प्रदत्त ज्ञान को अनुसंधान कार्यक्षेत्र के लिए अनुकूल बताया तथा आशा व्यक्त की कि प्रतिभागी अर्जित ज्ञान से अपने शिक्षण अनुसंधान को और अधिक बेहतर कर सकेंगे। डॉ. साहू ने ऊँट के अनूठे फीनोटाइप के आधार पर विशिष्ट पशु के रूप में पहचान दिलाने की आवश्यकता पर बल दिया । उन्होंने ऊँट को ‘औषधी-भण्डार’ तथा विशेष खूबियों से युक्त पशु बताया तथा इस पर गहन अनुसंधान की आवश्यकता जताई ।
इस अवसर पर प्रतिभागियों ने पाठ्यक्रम के संबंध में अपनी सकारात्मक फीड बैक देते हुए ऐसे पाठ्यक्रमों की महत्ती आवश्यकता जताई। अतिथियों द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए । पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने पाठ्यक्रम की अवधि के दौरान किए गए कार्यों संबंधी प्रतिवेदन प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि कोर्स के दौरान जीनोम तथा फीनोम डाटा के संकलन, विश्लेषण तथा व्याख्या के क्षेत्र में नए अनुसंधान पर आधारित व्याख्यान तथा प्रायोगिक सत्र आयोजित किए गए। जिनमें पशु उत्पादन, बायो मार्कर, जलवायु अनुकूलता इत्यादि सम्बन्धित डाटा संकलन करने की तकनीक तथा विश्लेषण विधियों को विस्तार रूप से बताया गया। कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.सागर अशोक खुलापे, वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी द्वारा जीनोमिक्स युग में पशुधन फिनोम विश्लेषण संबंधी 10 दिवसीय पाठ्यक्रम शुरू
बीकानेर 03.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में ‘जीनोमिक्स के युग में पशुधन फिनोम डेटा रिकॉर्डिंग विश्लेषण एवं व्याख्या में नूतन विकास’ विषयक 10 दिवसीय लघु पाठ्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। इस लघु पाठ्यक्रम में देश के 8 राज्यों यथा- असम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएमआर, एनडीडीबी, बीएचयू के सह एवं सहायक आचार्य, अनुसंधानकर्त्ता तथा विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.टी.के.भट्टाचार्य, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार ने कहा कि किसी भी परियोजना कार्य में वैज्ञानिक की सृजनात्मकता पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है तदुपरांत वैज्ञानिकता के आधार पर संबद्ध प्रकाशन आदि महत्व महत्वपूर्ण है। पाठ्यक्रम विषयगत बात रखते हुए उन्होंने पशु संवर्धन हेतु प्रजनन और जेनेटिक्स के बेहतर ज्ञान तथा पशुधन हितार्थ इसे प्रयोग में लिए जाने की आवश्यकता बताई। डॉ.भट्टाचार्य ने माइक्रोबायोलॉजी, व्यापक डेटा संग्रहण तथा जीनोमिक्स चयन,पशुओं के फिनोटाइप संग्रहण आदि पहलुओं पर अपनी बात रखीं।
इस दौरान केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस 10 दिवसीय पाठ्यक्रम को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि प्रशिक्षणार्थी, विषयगत व्याख्यानों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान द्वारा अपने कार्यक्षेत्र में और अधिक बेहतर कर सकेंगे। डॉ.साहू ने डाटा विश्लेषण को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कैसे, पशु का जन्म भार और उसकी दूध छुड़वाने की आयु भार ( वीनिंग वेट) के आधार पर पशु की उत्पादकता का पता लगाया जा सकता है।
पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद वर्ष 1967 से ऐसे लघु पाठ्यक्रम का आयोजन, प्रायोजित कर रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएआर संस्थान में कार्यरत शिक्षिकों, शोध कर्त्ताओं को उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में नवीनतम ज्ञान और तकनीकों से अध्यतित (अपडेट) करना है । कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.सागर अशोक खुलापे, वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी को मिला राजभाषा पुरस्कार
बीकानेर 01 जनवरी 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) को भारत सरकार गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग की ओर से राजभाषा में श्रेष्ठ कार्य-निष्पादन के लिए क्षेत्रीय राजभाषा पुरस्कार से नवाजा गया है। यह पुरस्कार केन्द्र को हाल ही में आई.आई.टी., जोधपुर में आयोजित उत्तर क्षेत्र -1 तथा उत्तर क्षेत्र-2 के ‘संयुक्त् क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं पुरस्कार समारोह’ में श्रीमान कलराज मिश्र, माननीय राज्यपाल, राजस्थान के कर कमलों से एवं केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीमान अजय कुमार मिश्रा की उपस्थिति में केन्द्र को शील्ड प्रदान की गई ।
आज दिनांक को नव वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित स्नेह मिलन कार्यक्रम में केन्द्र के निदेशक महोदय डॉ.आर्तबन्धु साहू को यह शील्ड नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.आर.के.सावल द्वारा सौंपी गई। डॉ.साहू ने सभी वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को इस शील्ड प्राप्ति हेतु बधाई संप्रेषित करते हुए कहा कि राजभाषा ने कहा कि हमारा केन्द्र ‘क’ क्षेत्र में स्थित होने के कारण राजभाषा हिन्दी में कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध है और इसी के तहत कार्यालयीन कार्यों में अधिकाधिक राजभाषा हिन्दी का प्रयोग करते हुए इसे बढ़ावा दिया जा रहा है साथ ही यह केन्द्र ऊँट पालकों एवं किसानों को ऊँटों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी राजभाषा पत्रिका ‘करभ’, वार्षिक प्रतिवेदन, लघु पुस्तिकाओं, विस्तार पत्रकों, किसान गोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि के माध्यम से हिन्दी में उपलब्ध करवाई जाती है ताकि उनको केन्द्र के अनुसंधानों का अधिकाधिक लाभ मिल सकें।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.राजेश कुमार सावल ने कहा कि राजभाषा विभाग द्वारा भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र को ‘क’ क्षेत्र में कार्यालय का (50 से अधिक स्टाफ संख्या वाले ) की श्रेणी में तृतीय पुरस्कार एवं एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया जो कि केन्द्र के लिए एक गौरव का विषय है तथा इससे अधिकाधिक राजभाषा हिन्दी में कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी ।
एनआरसीसी द्वारा स्वच्छता अभियान तहत प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन
बीकानेर 31.12.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा भारत सरकार के निर्देशानुसार स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत दिनांक 16 से 31 दिसम्बर 2023 की अवधि में मनाए जा रहे स्वच्छता पखवाड़ा में स्वच्छता संबंधी संदेश को व्यापक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देश्य से केन्द्र द्वारा आज प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
प्रेस वार्ता के दौरान केन्द्र निदेशक डा. आर्तबन्धु साहू ने स्वच्छता के महत्व एवं इसके प्रति जागरूकता पर बोलते हुए कहा कि स्वच्छता का हम सभी के जीवन में विशेष महत्व है, भारत सरकार द्वारा स्वच्छता के प्रति जागरूकता का यह अभियान, जनमानस में अब तेजी से प्रभावी तौर पर प्रचारित-प्रसारित हो रहा है तथा स्वच्छता को लेकर आमजीवन की मानसिकता में अब परिवर्तन आने से हमारे सार्वजनिक स्थल, विद्यालय, अस्पताल तथा पर्यटन स्थलों आदि की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह केन्द्र, अनुसंधान के अलावा एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विश्व प्रसिद्ध है, इसे दृष्टिगत रखते हुए केन्द्र स्वच्छता संबंधी अभियान से जुड़ी गतिविधियों को संजीदा तौर पर लेता है, ऐसे अभियान केन्द्र में पर्यटनीय दृष्टिकोण से महत्ती रूप से सहायक सिद्ध हो रहे हैं तथा इस दर्शनीय स्थल को देखने हेतु सैलानी, ऊँट पालक, किसान, विद्यार्थी गण आदि हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष आते हैं। उन्होंने कैमल इको-टूरिज्म को उद्यमिता से जुड़ते हुए ऊँट पालकों को लाभ पहुंचाने की भी बात कही।
केन्द्र के नोडल अधिकारी (स्वच्छता) डा.राजेश कुमार सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने केन्द्र में 15 दिन तक चले इस पखवाड़ा गतिविधियों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि इस दौरान स्वच्छता शपथ, विशेष किसान दिवस के उपलक्ष्य पर पशु स्वास्थ्य शिविर व किसान गोष्ठी, ऊंट पालकों के समक्ष स्वच्छ दूध उत्पादन का प्रदर्शन, बालक-बालिकाओं हेतु प्रतियोगिता, सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई एवं पर्यटन विकास को बढ़ावा देने स्वच्छता संबंधी गतिविधियों संचालित की गई।
इस अवसर पर स्वच्छता गतिविधियों, ऊँटों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु केन्द्र के अनुसंधानिक प्रयास, ऊँटनी के दूध का औषधीय महत्व एवं विभिन्न मानवीय रोगों में इसकी उपयोगिता तथा एनआरसीसी द्वारा कैमल इको-टूरिज्म की दिशा में किए जा रहे प्रयासों आदि कई बिन्दुओं पर भी बातचीत की गई।
एनआरसीसी द्वारा किसान दिवस के उपलक्ष्य पर पशु स्वास्थ्य शिविर आयोजित
बीकानेर । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में स्वच्छ भारत अभियान के तहत दिनांक 16 दिसम्बर से 31 दिसम्बर 2023 के दौरान मनाए जा रहे स्वच्छता पखवाड़े के विशेष दिवस उत्सव-किसान दिवस के उपलक्ष्य में नगासर सुगनी गांव में अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अंतर्गत इस पशु स्वास्थ्य शिविर व किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें इस गांव के 32 महिला एवं पुरुष किसानों के 404 पशुओं (गाय, भैंस, ऊँट, भेड़ व बकरी) की स्वास्थ्य जांच व उनका उपचार किया गया साथ ही बीमार पशुओं के लिए पशुपालकों को नि:शुल्क दवाइयां वितरित की गई।
केन्द्र के डॉ.आर.के.सावल, नोडल अधिकारी, एससीएसपी ने पशु पालकों से उनकी समस्याओं के बारे में जानकारी लेते हुए कहा कि पशुओं से पर्याप्त उत्पादन लेने के लिए उनका आहार चारा व खनिज लवण आदि आवश्यकताओं का ध्यान रखना बहुत जरूरी है क्योंकि अक्सर देखने में आता है कि पशु के शरीर में कैल्शियम आदि खनिज की कमी होने पर वह कंकड़/पत्थर खाने लगता है, इसके लिए उन्हें खनिज मिश्रण, लवण व दवाई आदि पशु चिकित्सक की सलाह से दी जानी चाहिए। डॉ.सावल ने दूध की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन कैसे लिए जाए ? के संबंध में प्रदर्शन करते हुए इसकी जानकारी दीं ।
इस अवसर पर केन्द्र के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. काथी नाथ ने पशुओं के स्वास्थ्य की दृष्टि से उनका रखरखाव तथा भरपूर उत्पादन के लिए पशुओं की देखभाल व उचित खुराक आदि पहलुओं के बारे में जानकारी दी साथ ही सर्दी के दौरान पशुओं में होने वाली श्वसन आदि समस्याओं से बचाव/निराकरण के उपाय सुझाए ।
केन्द्र द्वारा नगासर सुगनी गांव में आयोजित इस शिविर के बारे में केन्द्र दल से जानकारी लेते हुए केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि किसानों/पशुपालकों की आजीविका में पशुधन का विशेष योगदान है, अत: इस दृष्टि से उनके स्वास्थ्य एवं स्वच्छता के प्रति विशेष एहतियात बरती जानी चाहिए और एनआरसीसी, केन्द्र सरकार की इस एससीएसपी उप योजना के तहत किसानों को अधिकाधिक लाभ पहुंचाने हेतु सतत प्रयत्नशील है।
एनआरसीसी में ‘लैंगिक उत्पीड़न मुक्त कार्यस्थल सप्ताह' तहत जागरूकता कार्यशाला
गुजरात के किसानों ने जानी उष्ट्र दुग्ध की औषधीय उपयोगिता
बीकानेर 04.12.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में आज दिनांक को सेंन्टर फॉर एग्रीकल्चर एक्सटेंशन एंड फार्मर्स डेवेलपमेंट (कैफेड) के तहत गुजरात राज्य से 50 किसानों का एक दल शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम हेतु पहुंचा ।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु ने गुजरात से आए इन किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि यह संस्थान, ऊँट प्रजाति के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध है तथा इस प्रजाति की सीमित होती पारंपरिक उपयोगिता एवं संख्या को दृष्टिगत रखते हुए इसके विविध पहलुओं पर गहन अनुसंधान के साथ-साथ ऊँटनी के दूध एवं कैमल इको-टूरिज्म के क्षेत्र में उद्यमिता की संभावनाओं को लेकर जागरूकता बढा़ रहा है ताकि ऊँट पालकों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार लाया जा सकें। डॉ. साहू ने किसानों को इस प्रजाति की शारीरिक विशेषताओं की विस्तृत जानकारी दीं तथा बताया कि ऊँटनी के दूध में औषधीय गुणधर्मों की भरमार है, इसी कारण से यह मधुमेह, क्षय रोग, आटिज्म आदि मानवीय रोगों में लाभप्रद पाया गया है, यह एलर्जी रहित, सुपाच्य, कम वसा आदि के कारण अपनी एक विशिष्ट पहचान रखता है। उन्होंने किसानों को ऊँटनी के लम्बे दुग्धकाल का जिक्र करते हुए प्रोत्साहित किया कि गुजरात देश का ऐसा पहला राज्य है जहां के अमूल आदि के माध्यम से ऊँटनी के दूध के व्यवसाय व विपणन के बारे में पहल की गई, यही कारण है कि राजस्थान के बनिस्पत गुजरात में ऊँटों की संख्या बहुत कम घटी है और देश भर में राजस्थान के बाद गुजरात दोनों राज्य में ही ऊँटों की आबादी अधिक होने के कारण इसके दुग्ध व्यवसाय की प्रबल संभावनाएँ देखी जा सकती है।
इस अवसर पर गुजरात के किसानों ने ऊँटों से जुड़े विभिन्न रौचक प्रश्नों यथा-ऊँट के जलग्रहण क्षमता, कूबड़ की विशेषता, ऊँटनी के दूध से बनाए जाने वाले उत्पाद आदि बारे में अपनी उत्सुकता जाहिर की, इस पर उन्हें वैज्ञानिक स्वरूप में समझाया गया।
एनआरसीसी में डॉ.सी.एम.सिंह की 101 वीं जयंती पर वेबीनार आयोजित
बीकानेर 30.11.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में आज दिनांक को राष्ट्रीय वेबीनार सह डॉ.सी.एम.सिंह 11 वीं स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। एनआरसीसी एवं डॉ.सी.एम.सिंह एन्डाउमेंट ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में हाईब्रीड मोड में आयोजित ‘इनोवेशन्स् इन एनीमल हैल्थ : करेंट चैलेन्जेज एण्ड फ्युचर प्रोस्पेक्टस् ’ विषयक इस वेबीनार में डॉ.के.एम.एल.पाठक, पूर्व डीडीजी, आईसीएआर, नई दिल्ली, सीएमएसईटी के सचिव डॉ.आर.सोमवन्शी एवं अध्यक्ष डॉ.एम.एल.महरोत्रा, डॉ. आर्तबन्धु साहू, निदेशक, एनआरसीसी, डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक आदि कई गणमान्य जनों, एनआरसीसी वैज्ञानिकों तथा अपोलो वेटरनरी कॉलेज, जयपुर एवं अरावली वेटरनरी कॉलेज सीकर के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर ऑनलाईन रूप से जुड़े मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. के.एम.एल.पाठक ने डॉ.सी.एम.सिंह की 101 वीं जयंती पर उन्हें नमन करते हुए कहा कि वे कर्मयोगी तथा जमीन से जुड़े अनुपम व्यक्तित्व के धनी थे । उन्होंने वेबीनार के तहत ‘इनोवेशन्स् इन एनीमल हैल्थ’ विषयक अपने व्याख्यान में भारत एवं वैश्विक स्तर पर कृषि एवं पशुधन के क्षेत्र में वस्तुस्थिति को सामने रखते हुए कहा कि पशु स्वास्थ्य एवं उत्पादकता संबंधी महत्वपूर्ण चुनौतियां को देखते हुए हमें पशुधन के माध्यम बेहतर मानव जीवन की तलाश जारी रखनी होगी। डॉ.पाठक ने युवा उद्यमियों के लिए पशुधन के क्षेत्र को सुनहरा अवसर बताया।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक एवं वेबीनार के समन्वयक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने ‘करंट ट्रेन्डस् इन कैमल प्रोडेक्शन एण्ड हैल्थ रिसर्च इन इंडिया’ विषय पर अपने व्याख्यान में कहा कि ऊँट को एक भविष्य के पशु के रूप में देखा जाना चाहिए क्योंकि इस प्रजाति की बहुआयामी उपयोगिता विविध पहलुओं के रूप में आज भी प्रासंगिकता को सिद्ध कर रही है। डॉ.साहू ने ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों तथा विभिन्न मानवीय रोगों यथा-मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि में इसे लाभकारी बताते हुए ऊँट प्रजाति को ‘रेगिस्तान से दुधारू पशु’ के रूप में परिवर्तित किए जाने की आवश्यकता जताई ।
वेबीनार के दौरान डॉ.सी.एम.सिंह एन्डाउमेंट ट्रस्ट की ओर से अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने पर डॉ.के.एम.एल.पाठक को ‘डॉ.सी.एम.सिंह सम्मान’ एवं डॉ.आर्तबन्धु साहू को ‘डॉ.सी.एम.सिंह-सालीहोत्रा सम्मान’ से पुरस्कृत किया गया तथा केन्द्र के वैज्ञानिकों जिनमें डॉ.राकेश रंजन, डॉ.अशोक सागर खुलापे, डॉ.श्याम सुन्दर चौधरी एवं डॉ.शान्तनु रक्षित को प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया ।
आयोजन सहायक समन्वयक डॉ.राकेश रंजन ने कार्यक्रम के अंत में डॉ.सी.एम.सिंह ट्रस्ट द्वारा प्रायोजित इस कार्यक्रम की महत्ता बताते हुए कहा कि यह आयोजन, नई पीढ़ी के वैज्ञानिकों एवं पशु-चिकित्सकों को उनके कार्यक्षेत्र संबंधी भावी रूपरेखा तैयार करने की दिशा में महत्ती सहयोग प्रदान कर सकेगा ।
एनआरसीसी एवं सीसीएमबी हैदराबाद के बीच हुआ एमओयू
3.11.2023 । भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) एवं कोशिकीय एवं आणविक जीवविज्ञान केन्द्र (सीसीएमबी) हैदराबाद के बीच ऊँटों के नैनोएंटीबॉडीज् के द्वारा कोशिकीय रिसेप्टरों के अध्ययन हेतु एक एमओयू पर आज दिनांक को हैदराबाद में एक एमओयू किया गया । एनआरसीसी निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू एवं सीसीएमबी के निदेशक डॉ. विनय के. नंदीकूरी ने इस महत्वपूर्ण एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर सीसीएमबी के वैज्ञानिक डॉ.जनेश कुमार और बिजनेस डवलप्मेंट ग्रुप की डॉ.दिव्या भी मौजूद थीं ।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस एमओयू को लेकर जानकारी देते हुए कहा कि दोनों संस्थानों के विषय-विशेषज्ञों द्वारा इस समन्वित अनुसंधान कार्य के तहत ऊँट के रक्त में पाए जाने वाले अनूठे नैनो-एंटीबॉडीज की सहायता से शरीर की कोशिकाओं में पाए जाने वाले आइनोट्रॉपिक ग्लोटामेट रिसेप्टर की संरचना का सूक्ष्म अध्ययन किया जाएगा। डॉ.साहू ने कहा कि ऊँटों के रक्त में पाए जाने वाले एंटीबॉडीज विलक्षणताओं युक्त होते हैं जिनकी उपयोगिता बायोमेडिकल अनुसंधान कार्यों में प्रबल संभावनाएं हैं।
सीसीएमबी के निदेशक डॉ. विनय के. नंदीकूरी ने इस एमओयू को लेकर आशा जताई कि भविष्य में दोनों संस्थान के लिए कई अन्य क्षेत्रों में सहयोगात्मक अनुसंधान की संभावनाएं के द्वार खुलेंगे ।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं पीएमई के प्रभारी डॉ.राकेश रंजन ने बताया कि सीसीएमबी एवं एनआरसीसी के विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिकों के मध्य जल्दी ही एक परिचर्चा का आयोजन प्रस्तावित है ताकि उष्ट्र प्रजाति के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यों के अन्य आयामों को तलाशा जा सके ।
एनआरसीसी में अपेक्स हॉस्पीटल द्वारा स्वास्थ्य शिविर का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में दिनांक 20 अक्टूबर 2023 को एक स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। अपेक्स हॉस्पीटल, बीकानेर के सौजन्य से केन्द्र के अतिथि गृह में आयोजित इस शिविर में अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं का लाभ उठाया गया ।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने शिविर के अवसर पर कहा कि बदलते परिवेश में अधिकांशत: एक व्यस्त जीवन शैली के कारण हर एक व्यक्ति किसी न किसी बीमारी से ग्रसित होता जा रहा है क्योंकि वह अपने स्वास्थ्य पर जाने-अनजानें पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाता है। इसी को दृष्टिगत रखते हुए एनआरसीसी परिवार की सुविधार्थ केन्द्र परिसर में यह स्वास्थ्य शिविर लगाया गया है ताकि वे अपने तथा परिवार के स्वास्थ्य को लेकर सजग रहें और एक खुशहाल जीवन जिएं। डॉ. साहू ने बताया कि जब हम व हमारा परिवार स्वस्थ रहेगा तभी हम अन्य दायित्वों को बखूबी पूरा कर सकते हैं।
इस अवसर पर अपेक्स हॉस्पीटल के डॉ.विश्वजीत सिंह एवं श्री तेजपाल शर्मा द्वारा हृदयघात (हार्ट अटैक) जैसी आपात स्थिति में पीडि़त व्यक्ति की तुरंत सीपीआर पद्धति से जान बचाने के बारे में अधिकारियों एवं कर्मचारियों को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया साथ ही संबंधित विभिन्न पहलुओं संबंधी जानकारी प्रदान की गई । उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति अपने खान-पान, टहलने, अधिक वसा वाली खाद्य वस्तुओं से परहेज करने एवं अपना मेडिकल चैकअप नियमित अंतराल पर करवाने की सलाह दी।
कार्यक्रम समन्वयक श्री दिनेश मुंजाल, मुख्य तकनीकी अधिकारी ने बताया कि शिविर में बीपी, मधुमेह व ईसीजी की नि:शुल्क जांच की सुविधा प्रदान की गई। केन्द्र के डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने जन कल्याणकारी इस पुनीत कार्य के लिए अपेक्स हॉस्पीटल के चिकित्सकों, नर्सिंग स्टाफ व समन्वयक श्री योगेश कुमार आदि के प्रति आभार व्यक्त किया गया।
एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध की क्षय रोग उपचार में उपयोगिता परखने हेतु सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के साथ अनुसन्धान शुरू
दिनांक 05.10.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर द्वारा सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज, बीकानेर के टी.बी.एवं चेस्ट विभाग के सहयोग से क्षय रोग के उपचार में ऊँटनी के दूध की उपयोगिता परखने के लिए अनुसन्धान कार्य शुरू किया गया है ।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने बताया कि इस अनुसन्धान परियोजना में ऊँटनी के दूध की क्षय रोग के उपचार में अनुपूरक औषधि के रूप में इसकी प्रभाविता की परख की जाएगी। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा पूर्व में किए गए प्रारम्भिक अनुसंधानों में यह पाया गया कि ऊँटनी का दूध पीने वाले मरीज, दूध का सेवन नहीं करने वालों की अपेक्षा जल्दी स्वस्थ हुए। वर्तमान अनुसन्धान परियोजना का उद्देश्य ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों की और अधिक प्रमाणिकता सिद्ध कर उसे आमजन के समक्ष लाना है ।
एनआरसीसी में काव्य पाठ दौरान गूंजी स्वर लहरियां
बीकानेर 05.10.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर में मनाए जा रहे हिन्दी चेतना मास के तहत आज दिनांक को कविता पाठ कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें कवियों के रूप में श्री बुनियाद हुसैन ‘जहीन’ ने अपनी गजल गायकी से समां बांध दीं वहीं मायड़ भाषा के कवि श्री शंकरसिंह राजपुरोहित ने ‘ऊंट मिठाई इस्त्री सोनो गेणों साह पांच चीज पिरथी सिरै वाह बीकाणा वाह’ व ‘खेजड़ी की ख्यात’ रचना सुनाते हुए सभी का दिल जीत लिया । श्री श्याम ‘निर्मोही की ‘मेरे प्यारे रविवार, ‘पिताजी’ व ‘बचपन की घडि़यां’ रचनाएं सुनकर श्रोतागण भाव विभोर हो उठे।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक व कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि केन्द्र में हिन्दी चेतना मास तहत हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के प्रयोजनार्थ आयोज्य ऐसे कार्यक्रम इसे सार्थकता प्रदान कर रहे हैं। उन्होंने ऊँट प्रजाति पर रचे-बसे लोक गीतों, कथाओं, कहानियों, मुहावरों आदि के महत्व एवं इनकी उपयोगिता की सराहना करते हुए केन्द्र प्रकाशनों में इन्हें प्राथमिकता प्रदान किए जाने पर जोर दिया।
कविता पाठ में केन्द्र की ओर से डॉ.आर.के.सावल, डॉ. बसंती ज्योत्सना, डॉ.सागर खुलापे ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत की वहीं कार्यक्रम संचालन में डॉ.राकेश कुमार पूनियां, डॉ.विनोद कुमार यादव एवं श्री मोहनीश पंचारिया ने सहयोग प्रदान किया। राजभाषा नोडल अधिकारी डॉ.राजेश कुमार सावल ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
एनआरसीसी द्वारा कोटड़ी गांव में पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक संवाद
बीकानेर 29 सितम्बर 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के तहत आज बीकानेर के कोटड़ी गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। केन्द्र की अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत आयोजित इस गतिविधि में कोटड़ी एवं आस-पास क्षेत्र के करीब 101 महिला-पुरूष पशुपालक सम्मिलित हुए। आयोजित पशु शिविर में पशुपालकों ने अपने पशुओं सहित उत्साही सहभागिता रही साथ ही उन्होंने संवाद कार्यक्रम में वैज्ञानिकों को खुलकर अपनी समस्याएं बताई। शिविर में कुल 248 पशुओं (जिनमें ऊँट, गाय, भैंस, भेड़ व बकरी) को दवाइयां, उपचार एवं उचित समाधान देकर लाभान्वित किया गया।
इस दौरान केन्द्र के एससीएसपी उप योजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल ने कहा कि भारत सरकार की अनुसूचित जाति के कल्याणार्थ इस उप-योजना का उद्देश्य ढांचागत विकास के तहत समुदाय विशेष के लोगों को विभिन्न स्वरूपों में संबल प्रदान करना हैं। डॉ. सावल ने पशुपालकों को पशुओं से अधिक उत्पादन प्राप्ति के लिए जागरूकता के साथ अपने व्यवसाय से जुड़ी उपयोगी जानकारी रखने हेतु विशेष रूप से प्रोत्साहित किया। उन्होंने क्षेत्र के पशुओं के रखरखाव, उनके आहार-चारे, पोषण तथा उनसे होने वाली आमदनी के बारे में भी पशुपालकों से पालकों से चर्चा की। डॉ. सावल ने केन्द्र में चल रहे स्वच्छता अभियान तहत इस गतिविधि को जोड़ते हुए खासकर महिला पशुपालकों को ‘स्वच्छ दूध उत्पादन‘ संबंधी जानकारी देते हुए पशु बाड़ों की साफ-सफाई, स्वच्छ दूध उत्पादन के अन्य पहलुओं के साथ स्वयं को स्वच्छ रखने हेतु प्रेरित किया। साथ ही दूध उत्पादन की व्यावसायिक गतिविधि के लिए संगठित होकर इस उत्पादन पर जोर दिया ताकि अधिक मुनाफा हो सकें।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस वैज्ञानिक दल से कोटड़ी में गतिविधि संबंधी जानकारी लेते हुए कहा कि पशुपालक भाई, वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का प्रबंधन करें साथ ही पशुओं संबद्ध उद्यमिता की संभावनाओं जो जाने-पहचानें ताकि उनके समाजार्थिक स्तर में महत्वपूर्ण बदलाव आ सकें, उन्होंने दल के माध्यम से अपने विचार ग्रामीणों को साझा करते हुए कहा कि पशुपालक, कभी भी एन.आर.सी.सी. में समूह के रूप में भ्रमण/प्रशिक्षण हेतु सम्पर्क कर सकते हैं। यह केन्द्र उनके कल्याण हेतु तत्परता से कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध है।
केन्द्र के डॉ.काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि बदलते परिवेश में पशुओं में विभिन्न रोग यथा लम्पी जैसे आकस्मिक बीमारियों में पशुपालक भाई, नजदीकी पशु चिकित्सालय या पशु चिकित्सकों से तुरंत सलाह लेकर पशुधन हानि से बचें साथ ही अपने अन्य पशुओं की स्वास्थ्य सुरक्षा का भी विशेष ख्याल रखें। उन्होंने पशुपालकों को पशुओं के लिए आहार चारे की पौष्टिकता संबंधी जानकारी संप्रेषित की गई। श्री मनजीत सिंह, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी ने बताया कि कैम्प में आए पशुपालकों को केन्द्र में निर्मित पशुओं के खनिज मिश्रण एवं संतुलित पशु आहार ‘करभ’ का भी वितरण किया गया।
एनआरसीसी द्वारा उष्ट्र दुग्ध उपयोगिता पर डॉ.डी.वाई.पाटिल विद्यापीठ पुणे में चर्चा
बीकानेर 24.08.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में उपयोगिता पर डॉ. डी. वाई. पाटिल मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर,पुणे में एक परिचर्चा आयोजित की गई । परिचर्चा में कॉलेज के विभिन्न संकाय के विषय-विशेषज्ञों, अनुसंधानकर्ताओं, विद्यार्थियों ने सक्रिय रूप से भाग लिया। परिचर्चा के दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने ‘कैमल मिल्क एज ए न्यूट्रास्यूटिकल ऐजवन्ट इन ह्यूमन हैल्थ’ विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि ऊँटनी का दूध अपने विशिष्ट औषधीय गुणधर्मों के कारण मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि मानवीय रोगों में उपयोगी पाया गया है, मानव के बेहतर स्वास्थ्य हेतु इस दूध पर और अधिक गहन अनुसंधान किया जाना समय की मांग है। ऐसे में एनआरसीसी सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यों पर जोर दे रहा है ताकि दूध की उपयोगिता को लेकर त्वरित परिणाम प्राप्त किए जा सकें और इस प्रजाति के दूध का लाभ पूरे मानव समाज को मिल सकें। डॉ.साहू ने भारत सहित विश्व के उष्ट्र बाहुल्य देशों में ऊँटों की स्थिति, उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे अनुसंधान कार्यों, ऊँटनी के दूध से विकसित दुग्ध उत्पाद, उष्ट्र पालन व्यवसाय चुनौतियों एवं संभावनाओं पर विस्तृत जानकारी दीं।
इस दौरान डॉ. साहू द्वारा डॉ.डी.वाई.पाटिल विद्यापीठ के अधिष्ठाता डॉ. जे. एस. भवाळकर के साथ ऊँटनी के दूध की औषधीय गुणधर्मों एवं इनकी विभिन्न मानव रोगों में लाभकारिता एवं अन्य संभावनाओं पर विशेष वार्ता की गई। साथ ही एनआरसीसी द्वारा डॉ.डी.वाई. कॉलेज के साथ गत वर्ष किए गए एमओयू का भौतिक विनिमय भी किया गया। डॉ. जे. एस. भवाळकर ने एनआरसीसी के साथ हुए एमओयू के उद्देश्य का जिक्र करते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध एवं दूध उत्पादों का मानव स्वास्थ्य यथा- श्वसन एवं गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं की रोकथाम, उनमें मधुमेह प्रबंधन हेतु एक सहायक चिकित्सा के रूप में सहयोगात्मक अनुसंधान कार्य के उद्देशार्थ किया गया है, इसी क्रम में आयोजित परिचर्चा संबद्ध चिकित्सकों एवं विषय-विशेषज्ञों के लिए महत्ती रूप से सहायक सिद्ध हो सकेगी।
अधिष्ठाता के साथ हुई इस वार्ता के दौरान एनआरसीसी द्वारा नव निर्मित फ्रीजड्राइड कैमल मिल्क उत्पाद को प्रदर्शित किया गया तथा इस उत्पाद के वैज्ञानिक विश्लेषण पर चर्चा हुई। बैठक में मेडिकल कॉलेज की डॉ. शैलजा माने, प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ पीडीऐट्रिक्स, तथा फिजियोलॉजिस्ट, बॉयोटैक्नोलॉजिस्ट, न्यूरोसाइकोलॉजिस्ट आदि के विषय-विशेषज्ञों ने सहभागिता निभाई वहीं डॉ.साहू ने मेडिकल कॉलेज पुणे के ह्युमन मिल्क कलेक्शन, प्रयोगशालाओं एवं एनिमल शैड आदि का अवलोकन करवाया गया।
तत्पश्चात् डॉ.साहू ने प्रो.एन.जे.पवार, कुलपति डॉ.डी.वाई.पाटिल विद्यापीठ से भी एनआरसीसी गतिविधियों एवं ऊँटनी के दूध पर हो रहे अनुसंधान कार्यों को लेकर मुलाकात कीं । प्रो.एन.जे.पवार ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध का मानव स्वास्थ्य में महत्व हेतु अनुसंधानिक शुरूआत की गई है, अब डी. वाई. पाटिल मेडिकल कॉलेज की तरह अन्य अनुसंधान एवं चिकित्सा संबद्ध संस्थान भी इस दिशा में दूरगामी परिणाम हेतु सहयोगात्मक अनुसंधान कार्यों को आगे बढ़ाने हेतु आगे आएं। सहयोगात्मक अनुसंधान से विषय-विशेषज्ञों के ज्ञान-अनुभव का आदान-प्रदान न केवल संबद्ध संस्थानों के महत्व को बढ़ाने में सहायक होगा अपितु इससे देश में उष्ट्र पजाति के संरक्षण एवं विकास को भी बल मिल सकेगा।
लेह-लद्दाख के दो कुबड़ीय ऊँटों का गहन वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर लौटा एनआरसीसी वैज्ञानिक दल
बीकानेर 21.08.2023 । दो कुबड़ीय ऊँटों की स्थिति के सर्वेक्षण, उनके स्वास्थ्य, पोषण, जनन, एवं प्रजनन संबंधी समस्याओं पर विचार-विमर्श तथा क्षेत्र के पशु पालकों को उष्ट्र पालन व्यवसाय हेतु प्रोत्साहित करने के लिए लद्दाख के नुब्रा घाटी में केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा दिनांक 16 से 18 अगस्त के दौरान स्वास्थ्य एवं प्रसार शिविरों तथा कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किए गए। वैज्ञानिकों द्वारा लेह में आयोजित परिचर्चा में 25 से अधिक पशुपालन एवं पर्यटन विभाग से जुड़े विषय-विशेषज्ञों एवं गणमान्यों ने शिरकत कीं। वहीं नुब्रा घाटी में पशु स्वास्थ्य शिविर व कृषक-वैज्ञानिक पशुपालक संवाद कार्यक्रमों में लगभग 50 ऊँट पालकों ने कुल 176 दो कूबड़ीय ऊँटों के साथ अपनी सहभागिता निभाई।
लेह में ‘डबल-हम्प कैमल फार लाइलीहुड सिक्युर्टी इन लद्दाख‘ विषयक परिचर्चा के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. राजेश रंजन, कुलपति, सेन्ट्रल इंस्टिटयूट फॉर बुद्विष्ठ स्टडीज, लेह ने कहा कि दो कूबड़ीय ऊँटों की संख्या बढ़ना, पर्यटनीय एवं इसके संरक्षण की दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण तो है ही, साथ ही इस क्षेत्र के लोगों की आजीविका में भी यह सहायक सिद्ध होगा। इस दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि नर ऊँटों को पर्यटन हेतु तथा मादा ऊँटों को दूध उत्पादन के लिए प्रयोग में लिया जाना चाहिए जिससे कि पूरे वर्ष के दौरान इस प्रजाति का समुचित उपयोग होता रहे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऊँटनी के दूध को सामान्य दूध के बजाय औषधी के रूप में इस्तेमाल करने से ऊँट पालकों को इसके दूध की ज्यादा कीमत मिल सकेगी और उष्ट्र पालन व्यवसाय फायदेमंद साबित होगा। उन्होंने यह बताया कि हाल में हुए अनुसंधानों से यह सिद्ध हो चुका है कि ऊँटनी के दूध का सेवन मधुमेह, आटिज्म एवं ट्यूबरक्लोसिस में उपयोगी है। पर्यटक, इसके दूध से निर्मित अनूठे चाय, कॉफी आदि उत्पादों का लुत्फ उठा सकेंगे, साथ ही उष्ट्र बच्चों की भी सुरक्षित देखभाल की जा सकेंगी। डॉ. साहू ने इन ऊँटों से प्राप्त ऊन की संभावनाओं पर बात करते हुए बताया कि ऊँटों की उत्तम गुणवत्तायुक्त ऊन के इस्तेमाल से इस प्रजाति का बहुआयामी उपयोग लेते हुए पशु पालकों की आमदनी में आशातीत वृद्धि लाई जा सकती हैं।
परिचर्चा के दौरान विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ओमप्रकाश चोरसिया, निदेशक, डी.आर.डी.ओ. ने स्थानीय उपलब्ध घासों एवं झाडि़यों के संरक्षण पर जोर दिया। डॉ. मो. इकबाल, निदेशक, पशुपालन विभाग, लद्दाख ने ऊँटों के विकास हेतु एनआरसीसी से और अधिक अध्ययन की आवश्यकता जताई।
इस अवसर पर एनआरसीसी की ओर से ‘फ्रीज ड्राइड कैमल मिल्क पाउडर‘ प्रदर्शित किया गया वहीं केन्द्र द्वारा निर्मित ‘ऊँटतेजक‘ उत्पाद भी लॉन्च किया गया। ऊँटतेजक उत्पाद के संबंध में केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के. सावल ने बताया कि 2 ग्राम प्रति पशु को इसे देने पर पशु की जनन, कार्यक्षमता आदि में महत्वपूर्ण रूप से बढ़ोत्तरी की जा सकेगी। वहीं केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन ने एनआरसीसी में ऊँटों के स्वास्थ्य देखभाल व वैज्ञानिक अनुसंधान कार्यों पर संक्षिप्त में प्रकाश डाला। केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा रक्षा अनुसन्धान एवं विकास संगठन के दीहार संस्थान, लेह का भ्रमण किया गया तथा उच्च ऊँचाई पर जानवरों में विशेषकर दो कुबड़ वाले ऊँटों पर सहयोगात्मक अनुसंधान की सम्भावनाओं पर चर्चा की गई |
केन्द्र वैज्ञानिकों द्वारा दिनांक 17 से 18 अगस्त के दौरान नुब्रा घाटी में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा कार्यक्रम आयोजित किए गए । शिविर में लाए गए बीमार दो कूबड़ीय ऊँटों का इलाज किया गया व पशुओं के विभिन्न रोगों हेतु दवा वितरित की गई। इस दौरान संवाद कार्यक्रमों में पशुओं के संरक्षण उनकी स्वास्थ देखभाल तथा पोषकीय प्रबन्धन संबंधी विभिन्न पहलुओं संबंधी जानकारी दी गई ।
‘नुब्रा घाटी में आजीविका के लिए ऊँट आधारित पर्यटन की भूमिका‘ विषयक वैज्ञानिक पशुपालक परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने पशुपालकों की समस्याओं से मुखातिब होते हुए कहा कि भारत सरकार की क्षेत्र में जनजातीय उप-योजना के माध्यम से आयोजित ऐसे अवसरों का पशुपालक भाई भरपूर लाभ उठाएं । उन्होंने पशुपालकों को आश्वस्त किया कि भविष्य में लद्दाख में उष्ट्र पालन की ओर प्रोत्साहित करने हेतु और अधिक जमीनी प्रयास किए जाएंगे जैसे कि पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल तथा पोषकीय प्रबन्धन, पहचान चिन्ह की विधियां, प्रजनन हेतु नर एवं मादा का चयन, उष्ट्र दुग्ध से निर्मित मूल्य संवर्धित उत्पादों व अन्य विविध पहलुओं पर प्रशिक्षण दिया जाएगा।
बैक्ट्रियन कैमल एसोसिएशन के अध्यक्ष श्री अब्दुल हकीम ने दो कूबड़ीय ऊँटों की समस्याओं को वैज्ञानिकों से साझा करते हुए ऊँटों के चरने के लिए स्थान सीमित चरागाह होने, पशुओं की स्वास्थ्य देखभाल हेतु नजदीकी डिस्पेंसरी सुविधा की कमी, अधिक सर्दी के मौसम में पशुओं के लिए अनुपूरक आहार की कमी आदि समस्याओं के समाधान की आवश्यकता जताई।
एनआरसीसी वैज्ञानिकों द्वारा दो कूबड़ीय ऊँटों के परीक्षण के अलावा उनके मींगणी (40) एवं बालों (09) के नमूनें जांच हेतु लिए गए। वहीं ऊन गुणवत्ता की जांच कर पशुपालकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण उत्पाद तैयार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा । साथ ही डॉ. सावल ने चरागाह क्षेत्र में उपलब्ध घासों व झाड़ियों खासकर ‘सीबकथोर्न’ पर अध्ययन हेतु सामग्री एकत्रित की एवं जंगल में ऊँटों की आहार ग्रहण पद्धति का भी गहन अवलोकन किया। वैज्ञानिकों ने पशुपालकों को क्षेत्र में पर्यटकों की बढ़ती संख्या को दृष्टिगत रखते हुए स्वच्छता प्रबंधन हेतु जागरूक किया ताकि इस अनूठे उष्ट्र पर्यटन क्षेत्र के सौन्दर्य को बनाया रखा जा सकें।
एनआरसीसी में ऊँटों को लेकर विद्यार्थियों ने रखी अपनी बात
बीकानेर 11.08.2023 । भाकृअनुपराष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर में आज दिनांक को स्कूली विद्यार्थियों हेतु ‘मानव जीवन में ऊँट’ विषयक हिन्दी भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। कक्षा 9 व 10 तथा 11 व 12 वीं कक्षा तक के दो समूहों में आयोजित इस प्रतियोगिता में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी, प्रार्थना शिक्षण समिति तथा हिमांशु बाल माध्यमिक विद्यालय के विद्यार्थियों ने भाग लिया ।
भाषण प्रतियोगिता कार्यक्रम में मुख्य अतिथि सुश्री तेजस्विनी गौतम, पुलिस अधीक्षक,बीकानेर ने केन्द्र के जमीनी स्तर के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा कि उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु सामाजिक जुड़ाव वाले ऐसे कार्यक्रम नितांत आवश्यक है ताकि भावी पीढ़ी द्वारा उष्ट्र प्रजाति की इस बदलते परिवेश में उपयोगिता को समझा जा सके। गौतम महोदया ने केन्द्र द्वारा उष्ट्र अनुसंधान की दिशा में किए जा रहे अनुसंधानिक एवं व्यावहारिक प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया । साथ ही उन्होंने विद्यार्थियों को जीवन में उपयोगी कई महत्वपूर्ण बातों की जानकारी देते हुए कहा कि आज प्रौद्योगिकी का दौर चल रहा है, हमें खासकर विद्यार्थियों को सोशल मीडिया के संबंध में विशेष सावधानी बरतते हुए इसका इस्तेमाल करना चाहिए । उन्होंने शिक्षा, समाज में महिलाओं की स्वीकार्यता एवं उन्हें समान अधिकार आदि कई पहलुओं पर प्रकाश डाला ।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि उष्ट्र प्रजाति की बहुआयामी उपयोगिता आज भी इसकी प्रासंगिकता को सिद्ध कर रही है । डॉ.साहू ने ऊँट की क्रमिक विकास यात्रा एवं पारंपरिक उपयोग के बारे में प्रकाश डाला तथा कहा कि ऊँट प्रजाति अब एक ‘दुधारू पशु’ के रूप में अपनी पहचान बनाने लगी है क्योंकि इसके दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्म विभिन्न मानव रोगों यथा-मधुमेह, टी.बी.ऑटिज्म आदि में लाभप्रद पाए गए हैं, नतीजतन अब ऊँट को मानव स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से देखा जाने लगा है । डॉ.साहू ने उष्ट्र पर्यटनीय विकास पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ऊँट के बाल (ऊन), हड्डी, चमड़ी आदि लघु उद्योग के रूप में पनप रहे हैं तथा लोगों की आमदनी का जरिया बना है वहीं उष्ट्र सवारी/सफारी के प्रति पर्यटकों में खासा रुझान देखा गया है । ऊँट हर दृष्टिकोण से लाभ देने वाला पशु है, अत: इस व्यवसाय को बढ़ावा देने से उष्ट्र प्रजाति व संबद्ध समुदायों दोनों को लाभ मिल सकेगा । डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी राजभाषा ने विद्यार्थियों को केन्द्र में चल रही अनुसंधान गतिविधियों की जानकारी देते हुए इस पशु की विशेषताओं, बहु आयामी उपयोगिताओं एवं बढ़ते उष्ट्र व्यवसाय के बारे में जानकारी संप्रेषित कीं ।
कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री नरेश कुमार शर्मा, प्रधानाचार्य, राजकीय पॉलिटेक्निक महाविद्यालय ने कहा कि निश्चित रूप से अपनी विशेषताओं के कारण ऊँट आज भी उपयोगी है, बशर्तें इससे लाभ लिया जाए। उन्होंने केन्द्र द्वारा स्कूली बच्चों हेतु भाषण प्रतियोगिता की भूरि-भूरि प्रशंसा कीं।
प्रतियोगिता में प्रथम वर्ग (कक्षा 9 व 10) में राहुल यादव प्रथम, अनिल कुमावत द्वितीय, सूरजदास गुप्ता एवं मोहित अठावनिय तृतीय स्थान पर रहे वहीं द्वितीय वर्ग (कक्षा 11 व 12) में सीटु चारण प्रथम, मुस्कान जूनवाल ने द्वितीय स्थान अर्जित किया । विजेताओं को अतिथियों द्वारा पुरस्कार एवं प्रमाणपत्र वितरित किए गए ।
एनआरसीसी द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक संवाद का आयोजन
जन-जातीय महिलाओं ने दिखाई खास रूचि
बीकानेर 09.08.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने जन-जातीय उपयोजना के अन्तर्गत आबू रोड़ सिरोही, के ग्राम टूका देलदर में पशुपालन विभाग, आबू रोड़ (सिरोही) के संयुक्त तत्वावधान में आज दिनांक को पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। भारत सरकार द्वारा जनजातीय क्षेत्रों में पर्याप्त संसाधनों, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसी सुविधाओं की सुनिश्चितता हेतु चलाई गई टीएसपी उपयोजना के तहत आयोजित केन्द्र की इस गतिविधि में 250 से अधिक जनजातीय किसान परिवारों ने सक्रिय सहभागिता निभाई। पशु स्वास्थ्य शिविर में लाए गए विभिन्न पशुओं यथा- 232 गाय/बैल, 397 भैंस सहित कुल 629 पशुओं की स्वास्थ्य जांच में गर्भ एवं प्रजनन, एवं अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से ग्रसित पशुओं की जांच एवं इलाज किया गया एवं पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई तथा केन्द्र द्वारा निर्मित 200 किलोग्राम मिनरल मिक्सर, 250 किलोग्राम लवण की ईंटें एवं 60 क्विंटल पौष्टिक ‘करभ पशु आहार‘ पशु पालकों को वितरित किया गया। विश्व आदिवासी दिवस के उपलक्ष्य पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
जनजातीय पशुपालकों से बातचीत करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि राजस्थान प्रदेश में पशुधन आधारित व्यवस्था के रहते भी यह देखा गया है कि जन जातीय क्षेत्रों में पशुधन संख्या अधिक होते हुए भी इनसे अपेक्षित उत्पादन प्राप्त नहीं हो रहा है, इसके पीछे उत्तम गुणवत्तायुक्त पशुधन तथा पशुधन व्यवस्था हेतु नूतन एवं उचित पशु पोषण प्रबंधन के ज्ञान का अभाव होना है। उन्होंने कहा कि सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में जन जातीय लोगों को देश की मुख्य धारा से जोडा जाना अब समय की मांग है। जरूरतमंद लोगों तक पशुपालन व्यवसाय सुनियोजित व सुव्यवस्थित रूप में पहुंचे तथा इसे अपनाकर पशुधन उत्पादन वृद्धि के लक्ष्य को पाना संपूर्ण देश के पशुधन विकास हेतु निहायत जरूरी है। डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध की औषधीय गुणवत्ता पर भी बात करते हुए कहा कि यह दूध मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि में लाभप्रद पाया गया है, ऐसे में क्षेत्र के लोगों में टी.बी.एवं मधुमेह रोगियों की संख्या को दृष्टिगत रखते हुए उष्ट्र पालन व्यवसाय को अपनाया जाना चाहिए ताकि जरूरतमंदों को इसका लाभ मिल सकेगा वहीं पशु पालकों की आर्थिक स्थिति में सुधार भी होगा।
केन्द्र के जन-जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि इस उपयोजना के तहत जन जातीय क्षेत्रों में केन्द्र में फील्ड स्तर पर सूचना प्रौद्योगिकी एवं नूतन शोध संबंधी संगोष्ठियों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों आदि के माध्यम से अद्यतन व प्रमाणिक जानकारी प्रदान की जाती है ताकि इन क्षेत्रों के किसानों को जागरूक एवं समक्ष बनाया जा सकें। नोडल अधिकारी ने बताया कि इस अवसर पर स्वच्छ दूध उत्पादन के संबंध में महिलाओं को व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया गया तथा इस हेतु प्रयुक्त संसाधन के रूप में छलनी व मलमली कपड़ा उपलब्ध कराया गया।
केन्द्र की इस गतिविधि में पशुपालन विभाग सिरोही के डॉ. शैलेष प्रजापति ने पशुधन के स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में आ समस्याओं एवं चुनौतियों पर प्रकाश डाला। केन्द्र के डॉ. शान्तनु रक्षित एवं डॉ. श्याम सुंदर चौधरी ने केन्द्र की प्रसार गतिविधियों, पशुधन प्रबंधन संबंधी जरूरी पहलुओं के बारे में जानकारी दीं वहीं डॉ. काशी नाथ, प.चि.अधिकारी ने पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए सावधानी बरतने की सलाह दीं। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह ने शिविर से जुड़ी विविध गतिविधियों में सहयोग प्रदान किया। श्री सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने पशुधन को लेकर अपनी बात रखीं तथा इस गतिविधि के आयोजन हेतु केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया।
एनआरसीसी ने इशरा गांव में लगाया पशु स्वास्थ्य शिविर
बीकानेर 08 अगस्त 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा जन जातीय उप-योजना तहत आज दिनांक को आबू रोड़ (सिरोही) के इशरा गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस कैम्प में 121 पशुपालकों (महिला व पुरुष) द्वारा लाए गए कुल 917 पशुओं जिनमें 409 ऊँट, 62 गाय, 155 भैंस, 291 बकरी व भेड़ शामिल रहे, का उपचार, दवाइयां व उचित सलाह देकर लाभ पहुंचाया गया।
केन्द्र में जन-जातीय उपयोजना के नोडल अधिकारी एवं प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर. के. सावल ने कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में किसानों से पशुधन व खेती के विभिन्न पहलुओं पर बातचीत के दौरान कहा कि कृषि एवं पशुपालन के बीच उचित समन्वय तथा खासकर पशुओं के रखरखाव, स्वास्थ्य, स्वच्छता, भरपूर पोषण हेतु संतुलित आहार आदि की आवश्यकताओं को वैज्ञानिक ढंग से पूर्ण कर पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन लिया जा सकता है तथा इससे जनजातीय क्षेत्रों के समाजार्थिक स्तर में अपेक्षित सुधार संभव हैं । डॉ.सावल ने कैम्प में पहुंची महिलाओं को स्वच्छ दूध उत्पादन के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी तथा इस हेतु उन्हें छलनी व मलमली कपड़ा भी वितरित किया गया।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी द्वारा गांव इशरा में आयोजित इस महत्वपूर्ण गतिविधि की समय-समय पर जानकारी लेते हुए केन्द्र सरकार की टीएसपी उप-योजना तहत फील्ड स्तर पर इस गतिविधि के सार्थक आयोजन हेतु पूरी टीम की सराहना की तथा कहा कि उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु गहन अनुसंधान के अलावा उष्ट्र पालन व्यवसाय में जमीनी व सकारात्मक बदलाव लाने हेतु विशेषत: ऊँटनी के दूध व उष्ट्र पर्यटनीय विकास की दिशा में केन्द्र सतत प्रयत्नशील है ताकि ऊँट पालकों की आमदनी में बढ़ोत्तरी लाई जा सके।
इस अवसर पर डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक ने केन्द्र की प्रसार गतिविधियों पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया कि पशुपालन से जुड़ी प्रत्येक गतिविधि में केन्द्र की सक्रिय सहभागिता के पीछे मूल ध्येय वैज्ञानिक ज्ञान की भलीभांति जानकारी उष्ट्र पालकों तक पहुंचाया जाना है। वहीं वेज्ञानिक डॉ. श्याम सुंदर चौधरी ने पशुधन से श्रेष्ठ उत्पादन लेने हेतु पशुओं के रखरखाव, आहार व्यवस्था, पोषण, जनन आदि के साथ उसके स्वास्थ्य पहलू के संबंध में विशेष ध्यान देने की बात कही। केन्द्र के डॉ. काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि शिविर में लाए गए ऊँटों में तिबरसा (सर्रा) रोग के बचाव हेतु टीकाकरण किया गया । साथ ही पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई और बाह्य परजीवियों के बचाव हेतु दवा वितरित की गई। इस दौरान कुछ पशुओं के खून व मिंगनी के नमूने जाँच हेतु लिए गए। पशु पालकों को केन्द्र में निर्मित ‘करभ’ पशु आहार व खनिज मिश्रण भी वितरित किए गए ।
एनआरसीसी द्वारा आयोजित इस गतिविधि में संयुक्त निदेशक पशुपालन विभाग सिरोही की ओर से डॉ. सुरेन्द्र सिंह, पशु चिकित्सा अधिकारी एवं पशुधन सहायकों ने सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया। वहीं पिंडवाड़ा आबूरोड़ के विधायक श्री समाराम गरासिया एवं महिला सरपंच श्रीमती सुंदर देवी ने भी इस महत्वपूर्ण गतिविधि के लिए केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया। श्री सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने पशुधन को लेकर अपनी बात रखीं। केंद्र के मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी ने शिविर में पंजीयन, दाना-आहार वितरण आदि कार्यों में सहयोग दिया।
एनआरसीसी में ‘ऊँट पालन एवं उसका प्रबंधन’ पर सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा ‘ऊँट पालन एवं उसका प्रबंधन’ विषय पर दिनांक 01.08.2023 से 07.08.2023 के दौरान सात दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में राजस्थान राधास्वामी सत्संग एसोसिएशन संबद्ध सदस्यों को ऊँटों के विभिन्न पहलुओं पर सैद्धान्तिक व व्यवहारिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया।
प्रशिक्षण के समापन कार्यक्रम में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबनधु साहू ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी को एक ‘दुधारू पशु’ के रूप में स्थापित करने की कवायद पिछले डेढ़ दशक से सतत जारी है। केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध की औषधीयता को वैज्ञानिक कसौटी पर परखने पर पाया कि यह दूध मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि मानवीय रोगों में लाभप्रद है। ऊँटनी के दूध की लोकप्रियता एवं ऊँट पालकों द्वारा इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने की दिशा में प्रोत्साहन स्वरूप केन्द्र द्वारा उष्ट्र दुग्ध पार्लर व उष्ट्र डेयरी की स्थापना स्थापना की गई तथा वैज्ञानिकों द्वारा ऊँटनी के दूध से विभिन्न स्वादिष्ट व स्वास्थ्यवर्धक उत्पाद विकसित किए गए और उत्पादों की स्वीकार्यता के आधार पर आज केन्द्र 25 से अधिक उत्पादों का निर्माण कर चुका है। उन्होंने उष्ट्र डेयरी प्रयोजनार्थ आयोजित इस प्रशिक्षण को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध का फायदा देशभर में आमजन तक पहुंचाया जाना चाहिए। उन्होंने सामाजिक मिथकों को भ्रामक बताते हुए सामान्य तापमान पर लम्बी दुग्धावधि की भी जानकारी दीं।
मानव संसाधन विकास के नोडल अधिकारी एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने ऊँट प्रजाति के संरक्षण एवं विकास के क्षेत्र में प्रशिक्षण को महत्वपूर्ण बताया तथा कहा कि प्रशिक्षण में ऊँटों के प्रबंधन, बीमारियों से बचाव एवं शारीरिक विशेषताओं एवं स्वभावगत आदतों, पशु को नियन्त्रित करने, स्वच्छ दूध उत्पादन एवं इसका संग्रहण आदि विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण प्रदान किया गया। डॉ.वेद ने कहा कि इस प्रशिक्षण की खासियत यह रही कि विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिको के साथ ऊँटों की देखभाल, प्रबंधन, नियंत्रण, दुग्ध दोहन इत्यादि से जुड़े कार्मिकों के द्वारा व्यवहारिक प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया ।
प्रशिक्षणार्थी श्री सी.राधामोहन राव ने आयोजित प्रशिक्षण के संबंध में अपनी फीडबैक देते हुए कहा कि प्रशिक्षण के दौरान ऊँटों से जुड़े प्रत्येक पहलुओं यथा- उनके प्रबंधन, स्वास्थ्य आदि पर भलीभांति जानकारी प्रदान की गई। उन्होंने बताया कि एसोसिएशन की शीर्ष इकाई राधास्वामी सत्संग सभा आगरा में ऊँटों की डेयरी प्रबंधन की दृष्टि से शुरूआत की जा रही है तथा संस्था रोजमर्रा गतिविधियों में ऊँटनी के दूध को शामिल करेंगी। प्रशिक्षण संबंधी प्रमाण-पत्र वितरण कार्यक्रम पश्चात कार्यक्रम सह समन्वयक डॉ.सुमनिल मारवाह, वरि. तकनीकी अधिकारी (वेटरनरी) द्वारा सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
एनआरसीसी द्वारा पंडुरी गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर व कृषक संवाद का आयोजन
दिनांक 25.07.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा गांव पंडुरी, आबू रोड़ (सिरोही) में जन जातीय उपयोजना के अंतर्गत आयोजित पशु स्वास्थ्य शिविर में 13 ऊँट, 59 गाय, 124 भैंस, 82 बकरी व भेड़ सहित कुल 278 पशुओं का उपचार किया गया वहीं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में 114 किसान परिवारों ने सक्रिय सहभागिता निभाई । किसानों को उनके पशुओं की जरूरत अनुसार दवाइयॉं व उचित सलाह देकर लाभान्वित किया गया।
कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में पशुपालकों से बातचीत करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि पशुओं के प्रबंधन में स्वच्छता का विशेष महत्व है तथा इसके अभाव में पशु का स्वास्थ्य व उत्पादन दोनों प्रभावित होते हैं, इसके तहत स्वच्छ दूध उत्पादन से वे अपनी आय में आशातीत बढ़ोत्तरी ला सकते हैं । डॉ.साहू ने पशुपालकों के समक्ष ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों एवं देश में इस दूध की बढ़ती मांग का उल्लेख करते हुए उन्हें उष्ट्र पालन व्यवसाय के प्रति रूझान बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया। साथ ही उन्होंने किसानों को केन्द्र सरकार की योजनाओं का भरपूर लाभ उठाने की बात कही ।
एनआरसीसी के वैज्ञानिकों में डॉ. शान्तनु रक्षित एवं डॉ.श्याम सुंदर चौधरी ने जानकारी देते हुए कहा कि केन्द्र द्वारा पशुपालकों के लाभार्थ समय-2 पर टीएसपी आदि योजनाओं के माध्यम से केन्द्र तथा फील्ड स्तर पर विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं गतिविधियां संचालित की जाती है ताकि पशुपालकों को पशुधन के रखरखाव, उनका स्वास्थ्य, श्रेष्ठ उत्पादन, आहार व्यवस्था, पोषण, जनन आदि पहलुओं से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी प्रदान की जा सके। केन्द्र के डॉ. काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि शिविर में ऊँटों में तिबरसा (सर्रा) रोग के बचाव हेतु टीकाकरण किया गया, पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई और बाह्य व अंत: परजीवी रोगों से बचाव हेतु कृमिनाशक व कीटनाशक दवा तथा केन्द्र निर्मित ‘करभ’ पशु आहार व खनिज मिश्रण वितरित किए गए ।
प्रगतिशील किसान श्री सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने पशुधन को लेकर आ रही चुनौतियों के बारे में अपनी बात रखीं। केंद्र के मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी ने शिविर में पंजीयन, दाना-आहार वितरण के अलावा पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन प्रदर्शन गतिविधि में वैज्ञानिकों को सहयोग दिया।
एनआरसीसी ने लगाया जन जातीय उप-योजना तहत देलदर गांव में पशु शिविर
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा दिनांक 24.07.2023 को आबू रोड़ (सिरोही) के देलदर गांव में जन जातीय उपयोजना तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कैम्प में 139 पशुपालकों द्वारा लाए गए 626 पशुओं जिनमें ऊँट 222, गाय 95, भैंस 150, बकरी व भेड़ 159 शामिल रहे, को उपचार, दवाइयों व उचित सलाह द्वारा लाभान्वित किया गया।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में ऊँटनी के दूध की उपयोगिता पर विशेष प्रकाश डाला तथा कहा कि यह दूध के साथ-साथ औषधि का स्रोत है तथा पशुपालक भाई उसी अनुरूप दूध को बढ़ावा देते हुए इसका बाजारभाव तय कर अच्छा खासा लाभ कमा सकते हैं । अच्छे लाभ की स्थिति में वे उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़े रहेंगे और उष्ट्र संरक्षण को भी बढ़ावा मिल सकेगा। डॉ. साहू ने उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़े विभिन्न जरूरी पहलुओं पर राज्य सरकार से अनुरोध का भी जिक्र किया । उन्होंने पशुपालकों को वैज्ञानिक जानकारी एवं उनसे जुड़ी प्रौद्योगिकियों के लाभ उठाने की भी बात कही ।
केन्द्र के डॉ. शान्तनु रक्षित, एवं डॉ.श्याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिकों द्वारा केन्द्र की प्रसार एवं अन्य संबद्ध गतिविधियों की जानकारी देते हुए पशुधन से श्रेष्ठ उत्पादन लेने हेतु उसके रखरखाव, आहार व्यवस्था, पोषण, जनन आदि के साथ उसके स्वास्थ्य पहलू के संबंध में विशेष ध्यान देने की बात कही। डॉ. काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि शिविर में लाए गए ऊँटों में तिबरसा (सर्रा) रोग के बचाव हेतु टीकाकरण किया गया । साथ ही पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई और बाह्य व अंत: परजीवी रोगों से बचाव हेतु कृमिनाशक व कीटनाशक दवा वितरित की गई। पशु पालकों को केन्द्र में निर्मित करभ पशु आहार व खनिज मिश्रण भी वितरित किए गए ।
शिविर के इस संवाद कार्यक्रम में ऊँट पालकों ने ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता से जुड़े अनुभव साझा किएा इस कैम्प में पशुपालन विभाग आबूरोड के प्रभारी डॉ. सावंरिया एवं शैलेष प्रजापति आदि ने भी सक्रिय सहयोग प्रदान किया । वहीं श्री सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने इस अवसर पर एनआरसीसी के प्रति इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया तथा पशुधन को लेकर अपनी बात रखीं। केंद्र के मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी ने शिविर में पंजीयन, दाना-आहार वितरण आदि कार्यों में सहयोग दिया।
एनआरसीसी में चार दिवसीय एक्यूप्रेशर शिविर का हुआ समापन
बीकानेर 21.07.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में दिनांक 18.07.2023 से चल रहे चार दिवसीय एक्यूप्रेशर चिकित्सा शिविर का आज समापन किया गया। केन्द्र द्वारा एक्यूप्रेशर रिसर्च एंड ट्रीटमेंट इंस्टिट्यूट, जोधपुर के सौजन्य से आयोजित इस शिविर में एनआरसीसी परिवार एवं भाकृअनुप परिषद स्थित संस्थानों/केन्द्रों आदि के 50 से अधिक अधिकारियों/ कर्मचारियों ने लाभ उठाया।
समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डॉ.एम.एस.साहनी, पूर्व निदेशक,एनआरसीसी ने कहा कि भारत के प्राचीन ग्रन्थों में एक्यूप्रेशर के एक स्वरूप के तौर पर विभिन्न मुद्राओं आदि का उल्लेख मिलता है जिससे लोग स्वस्थ एवं निरोग रहते थे, वहीं वैश्विक परिदृश्य में चीन, जापान आदि में इसे एक्यूपंचर के तौर पर अपनाया गया। डॉ.साहनी ने एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति को अत्यंत लाभकारी बताते हुए इसे लोकप्रिय बनाने की आवश्यकता पर बल दिया क्योंकि इसके माध्यम से व्यक्ति स्वयं का उपचार कर सकता है।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यक्ति थकावट, अनिद्रा, तनाव आदि से ग्रस्त रहता है, ऐसे में अनचाहे रोगों से मुकाबले और दवाइयों की निर्भरता को कम करने में एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति लाभदायक है। डॉ.साहू ने ग्रामीण से शहरी परिवेश में जीवन शैली में आए बदलाव तथा एक्यूप्रेशर पद्धति से स्वयं का स्वयं द्वारा इलाज संभव होने की बात कही।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ.कपिल गोम्बर, निदेशक एवं मुख्य फिजियो थैरेपिस्ट, बीकानेर ने फिजियो थैरेपी पर व्याख्यान प्रस्तुति के दौरान कहा कि इस मशीनी युग में प्रैक्टिकल ट्रीटमेंट के लिए फिजियो थैरेपी एक बढ़िया विकल्प माना जा सकता है, इसका लाभ लिया जाना चाहिए।
इस अवसर पर एक्यूप्रेशर रिसर्च एंड ट्रीटमेंट इंस्टिट्यूट, जोधपुर के डॉ.नरपत सिंह एवं डॉ.भौम सिंह ने सदन को इस पद्धति द्वारा उपचार के विभिन्न सरल तरीके बताए। इस दौरान केन्द्र के डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने भी अपने विचार साझा किए। समापन के इस अवसर पर डॉ.आर.ए.लेघा, डॉ.सुधीर कुमार, डॉ.बीरबल आदि गणमान्य जन भी मौजूद रहे। डॉ.वेद प्रकाश, प्रभारी स्टाफ वेलफेयर क्लब ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया।
एनआरसीसी ने मनाया अपना 40वां स्थापना दिवस
बीकानेर । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर ने अपना 40वां स्थापना दिवस 5 जुलाई 2023 को समारोहपूर्वक मनाया। इस अवसर पर ‘ऊँट डेयरी एवं इकोटूरिज्म में उद्यमिता के अवसर’ विषयक कृषक-वैज्ञानिक-हितधारक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। प्रथम सत्र में आयोजित स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो.के.एम.एल.पाठक, पूर्व डीडीजी, आईसीएआर एवं वीसी, दुवासु, विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. ए.के.तोमर, निदेशक ,सीएसडब्ल्युआरआई, अविकानगर, सम्माननीय अतिथि श्री गोपाल सिंह भाटी, एग्जेक्युटिव डायरेक्टर, केन्द्रीय ऊन विकास बोर्ड, जोधपुर व डॉ. नवीन मिश्रा, अतिरिक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, राज. ने शिरकत कीं। वहीं इस कार्यक्रम में बीकानेर स्थित आईसीएआर संस्थानों के प्रभागाध्यक्ष, किसानों, उद्यमियों आदि मौजूद रहे।
मुख्य अतिथि प्रो.के.एम.एल.पाठक ने अपने अभिभाषण में कहा कि ऊँटनी का दूध मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है, अतः इसे बढ़ावा देने हेतु ऊँट पालक दुग्ध व्यवसाय के तौर पर इसे अपनाएं। उन्होंने उष्ट्र इकोटूरिज्म में प्रबल संभावनाएं, उष्ट्र पालन में आ रही चुनौतियों खासकर चरागाह की कमी, दूध को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों, पशुपालकों को षिक्षित/जागरूक करने, युवाओं का रूझान बढ़ाने, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ऊँट का महत्व प्रतिपादित करने आदि विभिन्न पहुलओं पर अपनी बात रखीं।
डॉ. ए.के.तोमर ने ऊँटनी के दूध को ‘रामबाण की संज्ञा देते हुए एनआरसीसी में विकसित मूल्य संवर्धित दुग्ध उत्पादों का हवाला दिया तथा कहा कि ऊँट पालक इस व्यवसाय के रूप में अपनाकर अपनी आमदनी बढ़ाएं। डॉ. .तोमर ने किसानों को नवाचार करने, नई तकनीकियों को अपनाने व मिश्रित पशुपालन हेतु प्रोत्साहित किया।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने विगत वर्षों में एनआरसीसी के अनुसंधान कार्यों एवं प्राप्त वैज्ञानिक उपलब्धियों की जानकारी दीं तथा कहा कि इस प्रजाति में विद्यमान विलक्षणताएं को देखते हुए ऊँट को ‘औषधि का भण्डार‘ कहा जाए तो कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। डाॅ.साहू ने कहा कि ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय के साथ-2 इसे विभिन्न आयामों यथा-ऊन, चमड़ी, पर्यटन आदि उपयोग में लिया जाना चाहिए ताकि ऊँट पालकों की आमदनी बढ़ सकें। डाॅ.साहू ने प्रदेष में ऊँट पालकों हेतु चलाई गई उष्ट्र संरक्षण योजना हेतु राषि बढ़ाने की भी बात कही।
डॉ. नवीन मिश्रा ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उजागर किया गया है, अतः इस सामूहिक से सकारात्मक सोच के साथ ऊँट पालकों को आगे आना होगा।
दूसरे सत्र में तकनीकी व्याख्यानों में डॉ. आर.पी.अग्रवाल द्वारा मधुमेह में ऊँटनी के दूध के महत्व को उजागर किया। डॉ. कौशल शर्मा ने मंदबुद्धि बच्चों में ऑटिज्म प्रबंधन के लिए ऊँटनी के दूध का महत्व बताया। सरहद डेयरी, गुजरात के प्रतिनिधि श्याम भटनागर ने ऊँटनी के दूध से जुड़े अमूल के प्रयासों के बारे में जानकारी दी। कोयम्बटुर, तमिलनाडू से आए श्री मणिकंडन ने दक्षिण भारत में शुरू की गई ऊँटनी के दूध की डेयरी के बारे में बताया। सारिका राईका दूध भण्डार, जयपुर के श्री नरेश, सिरोही के श्री सेवाराम तथा जैसलमेर के श्री सुमेर सिंह भाटी ने ऊँटनी के दुग्ध विपणन के बारे में चर्चा की। उरमूल सीमांत समिति के श्री हर्ष ने समिति द्वारा किए गए प्रयासों के बारे में बताया। अन्य उद्यमियों ने भी अपने कार्यों के बारे में चर्चा कीं। केन्द्र के निदेशक डॉ. साहू ने दूध से जुड़ी उद्यमिता, डॉ. सावल ने पर्यटन से जुड़ी उद्यमिता के बारे में व्याख्यान दिया।
अतिथियों द्वारा केन्द्र से प्रकाषित ‘ऊँटों के साथ मानवीय व्यवहार का विमोचन किया गया वहीं उन्होंने ‘ऊँटनी के दूध से निर्मित फ्रीज ड्राइड पाउडर‘ आमजन के लिए जारी किया। इस अवसर पर उत्कृष्ट कार्यों के लिए कार्मिकों को तथा खेलकूद प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। डॉ. वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक, डॉ. बसंती ज्योत्सना, डॉ. एस.एस.चौधरी तथा टीम के सदस्यों ने कार्यक्रम का समन्वय किया।
एनआरसीसी में डॉ. महापात्र ने वैज्ञानिक परिचर्चा को संबोधित किया
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर में दिनांक 26 जून, 2023 को एक वैज्ञानिक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें एनआरसीसी सहित बीकानेर में स्थित भा.कृ.अनु.प. के संस्थानों यथा-राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केन्द्र, केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान, तथा भारतीय दलहन अनुसन्धान संस्थान के प्रभागाध्यक्षों एवं वैज्ञानिकों ने शिरकत कीं।
वैज्ञानिक परिचर्चा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.त्रिलोचन महापात्र, पूर्व सचिव, कृषि अनुसन्धान और शिक्षा विभाग (डेयर) एवं महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली एवं चैयरपर्सन, प्रोटेक्शन ऑफ प्लांट वैराइटीज एण्ड फार्मर्स राइटस ऑथॉरिटी (पीपीवीएफआरए), भारत सरकार ने उपस्थित वैज्ञानिकों से अनुसन्धान एवं विकास सम्बन्धित जानकारी लेते हुए अपने महत्वपूर्ण सुझाव संप्रेषित किए। डॉ.महापात्र ने परिचर्चा को संबोधित करते हुए कहा कि देश में पशुपालन, कृषि व बागवानी आदि के क्षेत्र में अनुसंधान की असीम संभावनाएं विद्यमान हैं, वैज्ञानिक नूतन आयामों पर बुद्धिमत्तापूर्ण अनुसंधान कर देश को किसी खास क्षेत्र में वैज्ञानिक पहचान दिला सकते हैं। उन्होंने उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण के साथ-2 इसकी श्रेष्ठ उपयोगिता तलाशने हेतु एनआरसीसी के वैज्ञानिकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया तथा ऊँटों की घटती संख्या के कारणों पर समाजार्थिक दृष्टिकोण से एक अध्ययन की आवश्यकता जताई। साथ ही उन्होंने उष्ट्र पालन को व्यवसायिक रूप प्रदान करने हेतु इसके विविध स्रोतों जैसे-दूध, पर्यटन आदि के रूप में भरपूर इस्तेमाल किए जाने की बात कहीं।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने संस्थान के अनुसंधान कार्यों एवं अद्यतन प्रयासों को सदन के समक्ष रखा तथा कहा कि वैश्विक परिदृश्य में ऊँटों की संख्या बढ़ी है जबकि भारत में इस प्रजाति की संख्या में कमी हुई हैं, केन्द्र ने अनुसंधान द्वारा इसके दूध को मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि कई मानवीय रोगों के प्रबंधन में लाभकारी पाया है, इसी क्रम में कई सामयिक बीमारियों में दूध आदि की उपयोगिता को लेकर समन्वयात्मक अनुसंधान जारी है। डॉ. साहू ने उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय को गति प्रदान करने हेतु कई निजी एजेंसियों को तकनीकी हस्तांतरण की जानकारी दी तथा कहा कि इससे देशभर में दूध की पाउडर आदि स्वरूप में सुलभता हो सकेगी, आमजन जहां इससे स्वास्थ्य लाभ ले सकेगा वहीं ऊँट पालकों को उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय से रोजगार मिलेगा और उनकी आजीविका में सुधार हो सकेगा।
इस अवसर पर अश्व अनुसंधान केन्द्र के प्रभागाध्यक्ष डॉ.एस.सी.मेहता, केन्द्रीय भेड़ व ऊन अनुसंधान संस्थान के प्रभागाध्यक्ष डॉ.आर.ए.लेघा तथा भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के प्रभारी डॉ.बनवारी लाल ने अपने संस्थान/केन्द्र की अनुसंधान गतिविधियों को प्रस्तुत करते हुए अपने-2 विचार साझा किए।
परिचर्चा कार्यक्रम से पूर्व, डॉ.त्रिलोचन महापात्र के कर कमलों से पौधारोपण किया गया। इस दौरान डॉ.शैलेन्द्र नाथ सक्सेना, निदेशक, राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र, अजमेर, एनआरसीसी सहित बीकानेर के आईसीएआर संस्थानों/केन्द्रों के वैज्ञानिक गण मौजूद रहे।
एनआरसीसी ने मनाया विश्व ऊँट दिवस
बीकानेर 22.06.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा आज दिनांक 22 जून, 2023 को ‘विश्व ऊँट दिवस’ समारोहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर केन्द्र द्वारा ऊँट दौड प्रतियोगिता़, ऊँट सजावट प्रतियोगिता, तकनीकी प्रौद्योगिकी प्रदर्शनी एवं ऊँट उद्यमी बैठक का आयोजन किया गया जिसमें ऊँट पालकों, किसानों, उद्यमियों, विद्यार्थियों, आमजन ने षिरकत करते हुए इन गतिविधियों का लाभ/लुत्फ उठाया।
सुबह 9.00 बजे उष्ट्र खेल परिसर में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मंडल रेल प्रबंधक श्री राजीव श्रीवास्तव ने प्रतियोगिता स्थल पर प्रतिभागियों का जोश व आमजन का इस प्रजाति के प्रति रुझान देखते हुए कहा कि ऊँट हमारे राजस्थान की शान है, और ऐसे आयोजनों के माध्यम से ऊँट पालकों को सीधे तौर पर लाभ पहुंचता है। पर्यटन विभाग के श्री अनिल राठौड़, उप निदेशक ने अपनी बात ढोला-मारु के ऐतिहासिक प्रसंग से शुरू करते हुए इसकी याददाश्त की तारिफ की। केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धू साहू ने प्रतियोगिताओं को लेकर कहा कि ऊँट पालकों की उत्साही सहभागिता पर खुशी जताते हुए भावी समय में इसे और वृहद स्तर पर आयोजित किए जाने की बात कहीं।
केन्द्र के खेल परिसर में सुबह आयोजित ऊँट सजावट प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर उष्ट्र धावक इमरान, द्वितीय रिजवान व तृतीय स्थान पर शाबिर खान रहे वहीं ऊँट दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम साजिद, द्वितीय इमरान व तृतीय मोहिद्दीन रहे। दोनों प्रतियोगितों के सभी विजेताओं को प्रमाण-पत्र व ईनाम राशि के रूप में प्रथम स्थान हेतु रूपये 10,000, द्वितीय स्थान हेतु 8,000 तथा तृतीय स्थान हेतु 5,000 दिए गए।
द्वितीय सत्र में केन्द्र द्वारा प्रदेश के उद्यमियों के साथ एक परिचर्चा में मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) टी.के.गहलोत, पूर्व प्रोफेसर एवं हैड, वेटरनरी सर्जरी एवं रेडियालॉजी विभाग, सीवीएएस,बीकानेर ने ऊँट को सस्ता परिवहन का साधन बताते हुए ऊँटों की आज भी उपयोगिता बनी हुई है, परंतु इनका संरक्षण जरूरी है, प्रो.गहलोत ने ऊँटों की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए मानव स्वास्थ्य के लिए ऊँटनी के दूध को लोकप्रिय बनाने पर जोर दिया।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि प्रो.(डॉ.) राजेश कुमार धूड़िया, निदेशक (प्रसार), राजुवास, बीकानेर ने ऊँट पालन के साथ समन्वित खेती की आवश्यकता जताई तथा एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध आदि क्षेत्र में किए जा रहे प्रयासों की सराहना कीं। विशिष्ट अतिथि श्री देवांश, प्रबंधक, परियोजना प्रबंध एजेंसी, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, भारत सरकार ने पशुपालकों व उद्यमियों के समक्ष विभिन्न सरकारी योजनाओं की जानकारी संप्रेषित करते हुए इनका भरपूर लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित किया।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ आर्तबन्धु साहू ने कहा कि उद्यमी व पशुपालक लाभदायक उद्यम को चुनें तथा इस हेतु मिश्रित पशुधन खेती से लाभ की संभावना कहीं अधिक रहती है। उन्होंने कहा कि ऊँटनी के दूध में औषधीय गुणों की भरमार हैं, जहां मधुमेह, टीबी, ऑटिज्म आदि में यह कारगर है वहीं कैमल इको-टूरिज्म में भी आमदनी की प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं, यह प्रजाति पर्यावरण पर्यटन व संस्कृति से जुड़ी है तथा ऐसे अनेक नवाचार, ग्रामीण अंचल तक पहुंचने चाहिए ताकि ऊँटों की संख्या बढ़े व इसके पालकों के लिए जीविका निर्वाह का माध्यम बन सकें। डॉ .साहू ने उष्ट्र व्यवसाय से जुड़े विविध पहलुओं से लाभ कमाने हेतु समूह बनाने की आवश्यकता जताई।
इस अवसर पर केन्द्र एवं ऊँट से सम्बन्धित उद्यमियों ने अपने उत्पाद प्रदर्शित किए। केन्द्र ने इस दौरान अपनी तकनीकी हस्तांतरण हेतु दो अलग-अलग उद्यमियों-रुद्र शिवम डेरी एवं एग्रो रिसर्च प्रा.लि. एवं पर्ल लेक्टो के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर कई गणमान्य जिनमें उरमूल सीमांत समिति बज्जू के श्री आर.पी. हर्ष, पर्यटन विभाग के श्री कृष्णकांत व श्री पवन शर्मा, जिला परिषद के श्री गोपाल जोशी, एसबीआई के श्री विकास कामरा, मुख्य प्रबंधक आदि मौजूद रहे। आयोजन सचिव डॉ. आर.के.सावल ने विश्व ऊँट दिवस पर एनआरसीसी द्वारा आयोजित गतिविधियों को सफल बनाने हेतु सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। केन्द्र द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में पशुपालन विभाग, नई दिल्ली व भारतीय स्टैट बैंक सहयोगी रहे।
एनआरसीसी में विश्व ऊँट दिवस पर होंगी ऊँट दौड़ व ऊँट सजावट प्रतियोगिताएं
बीकानेर 20.06.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा दिनांक 22 जून, 2023 को ‘विश्व ऊँट दिवस’ के उपलक्ष्य पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं जिनमें मुख्यतौर पर उष्ट्र दौड़ प्रतियोगिता, ऊँट साज-सजावट प्रतियोगिता आकर्षण का केन्द्र रहेंगे वहीं इस अवसर पर केन्द्र द्वारा स्टेक होल्डर्स के साथ एक परिचर्चा व प्रदर्शनी कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे ।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू के अनुसार एनआरसीसी ‘कैमल इको-टूरिज्म’ की अवधारणा को लेकर ऊँट दौड़, ऊँट सजावट आदि गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, क्योंकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऊँट को पर्यटन-मनोरंजन आदि से जुड़े ऐसे अनेकानेक नए आयामों के रूप में भी स्थापित करना होगा तथा एनआरसीसी में देशी-विदेशी सैलानियों व आमजन की भारी तादाद में आवाजाही तथा अंतर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव आदि आयोजनों के दौरान जनमानस में उष्ट्र प्रजाति के प्रति जबरदस्त रूझान को देखते हुए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस अनूठी प्रजाति में इसकी प्रबल संभावनाएँ विद्यमान हैं। डॉ.साहू ने आगे कहा कि खासकर प्रदेश में पर्यटन उद्योग को ध्यान में रखते हुए ऊँट पालक भाई इसे अपनाए जाने हेतु अपनी सोच विकसित करें ताकि उनकी आजीविका में महत्वपूर्ण सुधार लाया जा सके साथ ही उष्ट्र प्रजाति के विकास एवं संरक्षण हेतु भी ऐसे नूतन प्रयास का प्रचलन बढ़ने से ऊँटों की घटती संख्या पर विराम लगाने में सहायक होंगे ।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव डॉ.आर.के.सावल ने जानकारी दी कि एनआरसीसी, इस कार्यक्रम को केन्द्रीय पशुपालन विभाग व भारतीय स्टैट बैंक के सौजन्य से आयोजित कर रहा है, ऊँट दौड़ व साज-सजावट प्रतियोगिताएं, एनआरसीसी के खेल परिसर में 22 जून को सुबह 8.30 बजे से प्रारम्भ होकर प्रात: 10.30 तक सम्पन्न होंगी, इस हेतु पर्यटन विभाग बीकानेर के माध्यम से भी प्रतियोगिताओं में सहभागिता हेतु ऊँट पालकों से सम्पर्क साधा गया है, परंतु अन्य इच्छुक ऊँट पालक भाई भी इस हेतु 9828261373, 0151-2230183 पर अपनी सहभागिता की सूचना दे सकते हैं अथवा प्रतियोगिता स्थल पर समय से पूर्व पहुंच कर भाग ले सकेंगे । वहीं आमजन इन प्रतियोगिताओं का लुत्फ उठा सकेंगे। प्रतियोगिताओं के बाद स्टेक होल्डर्स के साथ परिचर्चा आयोजित की जाएगी ।
सर! आप सादर आमंत्रित हैं
माननीय सांसद श्रीमान राजकुमार चाहर द्वारा एनआरसीसी का भ्रमण
दिनांक 19.06.2023 श्रीमान राजकुमार जी चाहर, माननीय सांसद, फतेहपुर सिकरी, आगरा द्वारा भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर का भ्रमण किया गया। इस दौरान उन्होंने केन्द्र की अनुसन्धान गतिविधियों के साथ-साथ पशुपालकों एवं किसानों द्वारा किए जा रहे व्यावहारिक प्रयासों से जुड़ी गतिविधियों यथा- उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, उष्ट्र डेयरी प्रौद्योगिकी एवं प्रसंस्करण इकाई आदि का अवलोकन भी किया। उन्होंने डेयरी इकाई में प्रदर्शित ऊँटनी के दूध एवं इससे निर्मित उत्पादों का रसास्वादन करते हुए खुशी व्यक्त करते हुए उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु ऐसे प्रयासों की महत्ती आवश्यकता जताईं। इस अवसर पर श्री शैलाराम जी सारण आदि कई गणमान्य भी मौजूद रहे।
इस दौरान केन्द्र के डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने उन्हें एनआरसीसी वैज्ञानिकों द्वारा ऊँटों के विभिन्न पहलू से जुड़े गहन अनुसंधान कार्यों, ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता, तथा मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में इसकी उपयोगिता, ऊँटनी के दूध से विकसित विभिन्न उत्पादों की जानकारी दीं।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने माननीय सांसद महोदय के भ्रमण संबंधी जानकारी लेते हुए खुशी जताई तथा कहा कि एनआरसीसी में अनुसंधान कार्यों का अवलोकन तथा प्रोत्साहन से वैज्ञानिकों को उनके कार्यक्षेत्र में और अधिक श्रेष्ठ करने की प्रेरणा मिलेगी। डॉ.साहू ने बताया कि केन्द्र, ऊँटों से जुड़े विभिन्न अनुसंधान कार्यों के अलावा इस प्रजाति के संरक्षण एवं विकास हेतु विशेषकर उष्ट्र दुग्ध एवं कैमल इको-टूरिज्म की व्यावसायीकरण पहल की अवधारणा को लेकर आगे बढ़ रहा है ताकि ऊँट पालकों एवं किसानों की आजीविका में महत्वपूर्ण सकारात्मक बदलाव लाया जा सके।
एनआरसीसी द्वारा स्वैच्छिक रक्तदान शिविर आयोजित
बीकानेर 14.06.2023 । आज विश्व रक्तदाता दिवस के उपलक्ष्य पर भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) एवं रक्त केन्द्र पी.बी.एम. अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। एनआरसीसी परिसर में आयोजित इस शिविर में एन.आर.सी.सी. स्टाफ आदि सहित कुल 22 व्यक्तियों ने रक्तदान किया तथा रक्त केन्द्र एवं संस्थान स्टाफ द्वारा सक्रिय सहयोग देकर इसे सफल बनाया गया। इस दौरान एक परिचर्चा भी आयोजित की गई ।
परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एन.एल.महावार, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष (ट्रांसफ्युजन मेडिसिन), एस.पी.मेडिकल कॉलेज ने एन.आर.सी.सी. संस्थान को रक्तदान षिविर हेतु बधाई देते हुए कहा कि समाज में रक्तदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु विशेष प्रयत्न किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि अब मोलिक्युलर एवं सेल्युलर स्तर की ब्लड ट्रांसफ्युजन थैरेपी शुरू हो चुकी है तथा लगभग 20 हजार युनिट रक्त प्रतिवर्ष डोनेट होता है, इसे जरूरतमंद रोगियों हेतु विभिन्न स्तरों जैसे-संपूर्ण रक्त, प्लाज्मा, प्लेटलेटस इत्यादि रूपों में उपयोग किया जाता है ।
परिचर्चा की अध्यक्षता करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि रक्तदान कभी भी आपको क्षति नहीं पहुंचाता। यह मानव समाज के कल्याण के साथ-साथ आपकी सेहत से जुड़ा एक महत्वपूर्ण पहलू भी है। डॉ. साहू ने रक्तदान को एक ‘उपचार‘ बताते हुए संपूर्ण मानवता के कल्याण की दिषा में सोचने हेतु इसे विशेष महत्व का बताया। उन्होंने शिविर में शामिल सभी रक्तदाताओं को कार्यक्रम की सार्थकता हेतु प्रशंसा व्यक्त कीं ।
डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी ने इसे एक स्वैच्छा से जुड़ी पवित्र पहल बताया वहीं पी.बी.एम.हॉस्पिटल ब्लड बैंक के डॉ. विकास ने ऐसे शिविरों की महत्ती आवश्यकता जताई। इस अवसर पर डॉ. सोनम, ब्लड बैंक, पी.बी.एम. द्वारा प्रजेंटेशन के रूप में रक्तदान के बारे में सामान्य जानकारियाँ दी गई ।
इस दौरान अतिथियों द्वारा सभी रक्तदाताओं को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए। डॉ. श्याम सुन्दर चौधरी, वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया ।
एनआरसीसी की आईआरसी बैठक आयोजित
बीकानेर 07.06.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) की आज दिनांक को वार्षिक संस्थान अनुसंधान समिति (आई.आर.सी.) बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में बतौर ऑब्जर्वर डॉ.रजनीश राणा, प्रधान वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद नई दिल्ली ने कहा कि आई.आर.सी.बैठक एक वैज्ञानिक उत्सव की भांति है जिसमें वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे कार्यों के गहन चिंतन व मनन का समय होता है, निश्चित तौर पर विषयगत वैज्ञानिक प्रगति इसके साथ जुड़ी होती है। हमें अपने अनुसन्धान कार्यों के निष्पादन में एक उद्देश्य के साथ हमेशा यह ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने पशुपालकों एवं समाज को दीर्घावधि व अल्पावधि में किस प्रकार लक्ष्यबद्ध बेहतर सेवाएं दे सकते हैं। डॉ.राणा ने एनआरसीसी में चल रही भिन्न-2 परियोजनागत कार्यों को महत्वपूर्ण बताते हुए वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि ऊँट, एक अनूठी प्रजाति है अतः उपयोगिता की दृष्टि से इसे और अधिक बेहतर स्वरूप में सामने लाने का प्रयास किया जाए।
केन्द्र निदेशक एवं आई.आर.सी. बैठक के अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने अवसर को महत्वपूर्ण बताते हुए स्पष्ट किया कि गत वर्षों में एनआरसीसी द्वारा प्राप्त उपलब्धियों पर प्रतिपुष्टि (फीडबैक) अनुसार इस बैठक का कार्यवृत्त तैयार किया जाएगा। डॉ.साहू ने केन्द्र के अधिदेशों, विजन, मुख्य कार्यक्षेत्रों आदि को सदन के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि एनआरसीसी ऊँटों की बहु आयामी उपयोगिताओं यथा- डेरी पशु, बायोमेडिकल अनुसंधान, इको-टूरिज्म आदि पर अपना अधिकाधिक ध्यान केन्द्रित कर रहा है ताकि इस प्रजाति के महत्व एवं संख्या में बढ़ोत्तरी संभव हो सके एवं उष्ट्र पालन व्यवसाय के माध्यम से ऊँट पालकों की आमदनी में बढ़ोत्तरी की जा सकें।
पूरे दिन चली इस बैठक कार्रवाई में सभी वैज्ञानिकों ने बारी-बारी से अपनी परियोजनाओं में गत वर्ष के दौरान किए गए कार्यों एवं भविष्य में होने वाले अनुसंधान परीक्षणों का ब्यौरा प्रस्तुत किया जिनकी समिति द्वारा विवेचना की गई एवं परियोजनाओं के बेहतर कार्यान्वयन तथा उद्देष्य पूर्ण लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अपने सुझाव भी संप्रेषित किए। डॉ.राकेश रंजन, सदस्य सचिव द्वारा आई.आर.सी. की गत बैठक के निर्णयों संबंधी प्रतिवेदन प्रस्तुत की गई। बैठक के इस अवसर पर ऊँटनी के दूध से बने दुग्ध उत्पादों-पेड़ा एवं छाछ का रसास्वादन करवाया गया जिनके स्वाद की प्रशंसा की गई।
एनआरसीसी ने मनाया विश्व पर्यावरण दिवस
बीकानेर 05 जून 2023 l भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर आज विश्व पर्यावरण दिवस समारोहपूर्वक मनाया गया । पर्यावरण दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.जगदीश राणे, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि 34 करोड़ टन प्लास्टिक उत्पादन प्रतिवर्ष हो रहा है जिसमें 50 प्रतिशत सिंगल यूज प्लास्टिक एवं केवल 10 प्रतिशत ही पुनर्नवीनीकरण किया जाता है तथा शेष समुद्र एवं मृदा में फेंक दिया जाता है । उन्होंने कहा कि कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन किसी देश की सीमा तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसका प्रभाव सीमाओं से परे भी होगा । उन्होंने वैश्विक तापवृद्धि, ग्रीन हाऊस गैस तथा जानवरों द्वारा उत्सर्जित मीथेन गैस, प्लास्टिक के उचित प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण के प्रति आमजन प्रेरित नीति निर्माण आदि विभिन्न पहलुओं पर सदन का ध्यान खींचते हुए कहा कि मौजूदा पर्यावरण जो कि हमारा नहीं है, भावी पीढ़ी के लिए इसे सुरक्षित पहुंचाना होगा ।
पर्यावरण दिवस के इस मौके पर केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम संयोजक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विश्व पर्यावरण दिवस 2023 की विषय-वस्तु (थीम) ‘’प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान’’ का उल्लेख करते हुए कहा कि प्लास्टिक से दूर रहने का मतलब हमें इसका विकल्प तलाशना है जो कि पृथ्वी के वातावरण एवं इसकी स्वस्थता के लिए महत्वपूर्ण है । उन्होंने प्लास्टिक से बचाव के लिए रिड्यूस, रियूज एवं रिसाईकल नीति को अपनाया जाना जरूरी बताया क्योंकि प्लास्टिक से जलीय जीवन एवं समस्त पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान होता है । डॉ.साहू ने ऊँट को जलवायु को अनुकूलित करने वाली एक खास पशु प्रजाति बताया एवं कहा कि एनआरसीसी द्वारा पौधों के साथ प्लास्टिक यूज के स्थान पर ऊँट-भेड़ की अपशिष्ट ऊन (वेस्ट वूल) निर्मित सेपलिंग बैग काम में लिए जा रहे हैं, ये बैग पर्यावरण-मैत्री होने के साथ साथ नमी के रूप में पौधों की बढ़ोत्तरी हेतु सहायक बन खाद का भी काम करते हैं , इनका प्रचलन बढ़ना चाहिए ।
विशिष्ट अतिथि डॉ. एस.सी.मेहता, प्रभागाध्यक्ष, भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर ने पर्यावरण दिवस की बधाई देते हुए कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के समाधान के लिए, हमें इसे एक मिशन के रूप में लेना होगा साथ ही इसके समाधान के लिए शिक्षा एवं जागरूकता आवश्यक है इसके अलावा नागरिकों को पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझना होगा । विशिष्ट अतिथि डॉ.आर.ए.लेघा, प्रभागाध्यक्ष, भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान, बीकानेर ने प्लास्टिक के उपयोग से होने वाले दुष्प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा कि सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग सख्तीपूर्वक बंद होना चाहिए ।
एनआरसीसी ने इस पर्यावरण दिवस पर नवाचार के तौर पर अतिथियों को वूल वेस्ट निर्मित सेपलिंग बैग में पौधे वितरित किए गए । कार्यक्रम की रूपरेखा डॉ.प्रियंका गौतम, वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव द्वारा तैयार की गई एवं धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. श्याम सुन्दर चौधरी, वैज्ञानिक एवं सह आयोजन सचिव द्वारा प्रस्तुत किया गया
Union Minister of Fisheries, Animal Husbandry and Dairying, GOI, Rupala Ji's Visit to NRC Camel , Bikaner
एनआरसीसी में वैज्ञानिक वार्ता का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर द्वारा दिनांक 19.05.2023 को एक वैज्ञानिक वार्ता का आयोजन किया गया। ऊँटों के संरक्षण व विकास पर आधारित इस वार्ता में अतिथियों के रूप में प्रो. सतीश के. गर्ग, कुलपति, राजुवास, बीकानेर, प्रोफेसर सुरेश मित्तल, परडु युनिवर्सिटी, यू.एस.ए. व डॉ.पूनम मित्तल ने शिरकत कीं। वार्ता कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कीं तथा एनआरसीसी के सभी वैज्ञानिक गणों एवं पशु चिकित्सकों ने अपनी सहभागिता निभाई।
इस अवसर पर कुलपति महोदय प्रो.सतीश गर्ग ने कहा कि भारत में हम ऊँट को एक भारवाहक पशु के रूप में उपयोग में लेते आए हैं परंतु परिवर्तित परिदृश्य में इस पशु की उपयोगिता सीमित हुई है, अत: ऊँट प्रजाति के संरक्षण एवं इस व्यवसाय को ठोस स्वरूप में लाने के लिए ऊँटनी के दूध को एक बेहतर विकल्प के रूप में देखा जा रहा है । उन्होंने केन्द्र द्वारा ऊँटनी को एक दुधारू पशु के रूप में स्थापित करने एवं दूध के औषधीय महत्व को उजागर करने संबंधी प्रयासों की प्रशंसा करते हुए कहा कि जब कई विकसित देशों द्वारा अपनी पशु नस्लों को संरक्षित किया जा रहा है तो हमें देशी नस्लों के संरक्षण एवं उनसे मिलने वाले दूध उत्पादन की तरफ ध्यान देना होगा ।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस अवसर पर संस्थान की स्थापना, इसके अधिदेशों एवं प्राप्त वैज्ञानिक अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उष्ट्र प्रजाति अपनी शारीरिक संरचना एवं विलक्षण विशेषताओं के कारण आज भी विविध आयामों में अपनी प्रासंगिकता को सिद्ध कर रही है । डॉ.साहू ने भारत में ऊँटों की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त कीं जबकि अन्य देशों में यह संख्या बढ़ने की बात कहीं । उन्होंने इस प्रजाति के दूध में औषधीय गुणों की भरमार की ओर सदन का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि एन.आर.सी.सी. द्वारा मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि माननीय रोगों के प्रबंधन में दूध के महत्व को उजागर किया गया है साथ ही डेंगू आदि सामयिक रोगों में चिकित्सकीय दृष्टिकोण से इसके उपयोग हेतु समन्वयात्मक अनुसंधान के प्रयास किए जा रहे हैं । साथ ही यह केन्द्र ‘कैमल इको टूरिज्म’ के क्षेत्र में संजीदा रूप में आगे बढ़ रहा है ताकि दूध के साथ साथ उष्ट्र-पर्यटन भी ऊँट पालकों एवं किसानों की आय का एक जरिया बन सकें।
इस अवसर पर पधारें प्रोफेसर सुरेश मित्तल ने केन्द्र की अनुसंधान गतिविधियों पर प्रसन्नता व्यक्त कीं तथा उन्होंने वैज्ञानिकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित करते हुए कहा कि वे अनुसंधान कार्यों को पूरे जुनून से करें, चुनौतियां आना स्वाभाविक है। प्रो.मित्तल ने कहा कि बदलते समय में यदि ऊँट की उपयोगिता प्रभावित हुई हैं तो हमारी सोच को नवाचारी रूप में आगे लाना होगा । उन्होंने प्रजाति के संरक्षण हेतु इसके दूध व पर्यटन आदि से जुड़े महत्व को आमजन के अधिकाधिक सामने लाने पर जोर दिया तथा इस दिशा में विपणन (मार्केटिंग) आदि पहलुओं को समझने की आवश्यकता जताई ताकि इन्हें पुख्ता तौर पर व्यवसाय के रूप में परिणत किया जा सकें।
एनआरसीसी ने मनाया विश्व बौद्धिक संपदा दिवस
बीकानेर 26 अप्रैल 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा आज विश्व बौद्धिक संपदा दिवस (World Intellectual Property Day) मनाया गया। इस अवसर पर आयोजित कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में पधारीं डॉ. अदिति माथुर, सहायक प्रोफेसर, कृषि व्यवसाय संस्थान, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर ने कहा कि आमतौर पर सभी सृजक होते हैं परंतु कुछ खास लोग अपनी सृजनात्मकता को सबके सामने उजागर कर पाते हैं। मानव सभ्यता के क्रमिक व सकारात्मक विकास के लिए रचनात्मकता की सोच को बढ़ावा दिया जाना जाना चाहिए। इस दिवस की थीम पर बाते करते हुए डॉ. माथुर ने कहा कि यद्यपि महिलाओं को इंटरप्रेन्योर के रूप में उभरने हेतु समाज में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है परंतु यह बात तय है कि जिस किसी क्षेत्र में महिलाएं अग्रणी हैं, उनकी कार्य निष्पादकता बेहतरीन हैं, अत: समाज में महिलाओं को रचनात्मक गतिविधियों हेतु सहयोग कर प्रोत्साहित किया जाए। वक्ता ने महिलाओं द्वारा विविध क्षेत्रों में नवाचारी प्रयासों की सफलता की कहानियां भी साझा कीं साथ ही सृजनात्मकता हेतु रोजमर्रा की शैली में बदलाव की बात कहीं।
कार्यशाला कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि जीवन में बौद्धिक संपदा के महत्व को दर्शाने के लिए विश्व बौद्धिक दिवस मनाया जाता है तथा 2023 में यह दिवस “महिला और आईपी: त्वरित नवाचार और रचनात्मकता” (“वुमन एण्ड आईपी : ऐक्सेलरैटिंग इनोवेशन एण्ड क्रियटिविटी”) की थीम को लेकर मनाया जा रहा है जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण है। डॉ.साहू ने कहा कि किसी भी इंटरप्रेन्योर के द्वारा की गई पहल महत्वपूर्ण होती है। एनआरसीसी द्वारा पश्चिमी राजस्थान में उत्पादित किए जाने वाले मोटे अनाजों के महत्व को उजागर करने के दृष्टिकोण से ऊँटनी के दूध व बाजरा आधारित मिश्रित उत्पाद विकसित किए गए है, इन उत्पादों के व्यवसायीकरण से मानव स्वास्थ्य को लाभ मिलेगा व किसानों की आय में भी बढ़ोत्तरी की जा सकेगी। डॉ.साहू ने मुख्य वक्ता के व्याख्यान का जिक्र करते हुए विविध रूपों में ऊँट की उपादेयता को अधिकाधिक उजागर के लिए वैज्ञानिकों को विशेष सोच के साथ अनुसंधान करने हेतु प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर डॉ्. रीमा राठौड़, उद्यमी,बेजिक फूड, बेवस्ट फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, बीकानेर ने संस्था द्वारा विकसित विभिन्न मिलेट उत्पादों का प्रदर्शन करते हुए महिला नवाचार एवं रचनात्मकता पर अपने विचार रखें। वहीं केन्द्र के डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा नवाचार अनुसंधान गतिविधियों पर प्रकाश डाला गया, सीआईएएच के डॉ.मुकेश बेरवाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने भी अपने विचार साझा किए। केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक डॉ. योगेश कुमार ने कार्यक्रम के उद्देश्य एवं महत्व की जानकारी देते हुए कहा कि एनआरसीसी द्वारा हाल ही में ऊँटनी के दूध पाउडर के साथ बाजरा आधारित विभिन्न उत्पाद, कैमल मिल्क चॉकलेट आदि विकसित किए गए, इनके व्यावसायीकरण हेतु ऊँट पालकों को प्रशिक्षण के अलावा दूध की सुलभता हेतु लाईसेंस जारी किए गए हैं। एनआरसीसी के सभी वैज्ञानिक गणों ने विश्व बौद्धिक दिवस पर आयोजित गतिविधि में सक्रिय सहभागिता निभाईं।
एनआरसीसी व डीएफएमडी संस्थान की अनुसंधान दिशा में ऊँट बनेगा कल्याणकारी
बीकानेर 22 अप्रेल 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर (एनआरसीसी) एवं भाकृअनुप-खुरपका और मुंहपका रोग निदेशालय के मध्य समन्वयात्मक अनुसंधान को लेकर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया। एनआरसीसी के निदेशक डा.आर्तबन्धु साहू ने आईसीएफएमडी संस्थान, भुवनेश्वर का अवलोकन करते हुए वैज्ञानिकों से समन्वयात्मक अनुसंधान विषयक गहन चर्चा करते हुए बीएसएल थ्री प्लस सुविधा के संबंध में जानकारी लीं।
इस दौरान एनआरसीसी के निदेशक डा.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि पशुओं में मुंहपका-खुरपका (एफएमडी) एक बहुत बड़ी इकोनोमिक डीजिज है जिस पर दोनों संस्थान परस्पर अनुसंधान करेंगे। उन्होंने इस संबंध में एक थीसिस के माध्यम से हुए कार्य का जिक्र करते हुए बताया कि एफएमडी व कैमल इम्यूनोलाजी पर पहले कार्य हुआ है, इसी अनुसंधान की जानकारी को आधार बनाते हुए इस संस्थान के विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिकों से एफएमडी वैक्सीन, डायग्नोस्टिक एवं डिजिज केयर में कैमल इम्यूनोलाजी की भूमिका आदि पहलुओं पर बैठक में खास चर्चा की गई। उल्लेखनीय है कि कैमल इम्युनोग्लोबुलिन को नैनोबॉडीज भी कहा जाता है जो वैक्सीन डायग्नोसिस की दिशा में एक नवाचार (एनोवेटिव अप्रोच ) माना जा सकता है ।
खुरपका व मुंहपका रोग निदेशालय के निदेशक डा.आर.पी.सिंह ने बैठक के दौरान आशा जताई कि एफएमडी निराकरण को लेकर दोनों संस्थानों के समन्वयात्मक अनुसंधान द्वारा सकारात्मक परिणाम मिलने की संभावनाएं हैं। बैठक के दौरान एनआरसीसी के निदेशक डॉ. साहू के आगे बढ़कर इस दिशा में अनुसन्धान सहयोग की इच्छा को डीएफएमडी के निदेशक डॉ. सिंह ने सराहा व एनआरसीसी के साथ अंतर संस्थानीय परियोजना की अनुशंसा पर नए वैज्ञानिकों को प्रेरणा मिलने की बात भी कहीं ।
एनआरसीसी की क्यूआरटी टीम ने उष्ट्र हितधारकों से की खास चर्चा
बीकानेर 14 अप्रेल 2023 । भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा आज दिनांक को उरमूल सीमांत समिति बज्जू के साथ ‘पश्चिमी राजस्थान में आजीविका सुरक्षा और उद्यमिता के लिए ऊँटनी के दूध की संभावनाएं’ विषयक एक परिचर्चा आयोजित की गई जिसमें एनआरसीसी के पंचवर्षीय पुनर्विलोकन दल (क्यू.आर.टी.) ने उरमूल सीमांत समिति की गतिविधियों से रू-ब-रू होते हुए इससे जुड़े उष्ट्र हितधारकों की समस्याओं व व्यवसाय संबंधी चुनौतियों को जाना। परिचर्चा में एनआरसीसी वैज्ञानिकों, समिति पदाधिकारियों एवं उष्ट्र हितधारकों सहित लगभग 60 प्रतिभागियों ने शिरकत कीं।
परिचर्चा के दौरान क्यूआरटी चैयरमैन प्रो.एम.पी.यादव, पूर्व निदेशक, आई.वी.आर.आई एवं पूर्व कुलपति सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मेरठ ने कहा कि ऊँट आज भी एक प्रासंगिक पशु है क्योंकि पशु से जुड़े प्रत्येक उत्पाद(भाग) को आमदनी का अच्छा स्रोत बनाए जाने की प्रबल संभावनाएं विद्यमान हैं, बशर्ते एकाग्रता से इस दिशा में आगे बढ़ा जाए, इससे उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास को भी बल मिल सकेगा। प्रो.यादव ने ऊँटों की घटती संख्या, कम होती पारम्परिक उपयोगिता, परिवर्तित परिदृश्य के साथ इस व्यवसाय में आने वाली समस्याओं व चुनौतियों आदि के संबंध में स्टेक होल्डर्स के साथ खुलकर चर्चा तथा प्रोत्साहित करते हुए नए विकल्पों के साथ उद्यमिता से जुड़ने की बात कहीं।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू परिचर्चा में सहभागी उष्ट्र हितधारकों को संबोधित करते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध में औषधीय गुणों की भरमार हैं तथा एनआरसीसी एवं वैश्विक अनुसंधानों से यह इसकी कारगरता जगजाहिर है, अत: इसी आधार पर उसका बाजार भाव तय करने की सोच बनानी होगी साथ ही उपभोक्ताओं को दूध की समुचित आपूर्ति हेतु ऊँटनी के दूध का अधिकाधिक संग्रहण किया जाए, इससे पशुपालकों की आजीविका में अपेक्षित सुधार हो सकेगा । उन्होंने पशुओं की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के निराकरण हेतु केन्द्र से सम्पर्क साधने की बात कहीं । डॉ.साहू ने कहा कि ऊँट से प्राप्त उत्पादों खासकर इसकी ऊन इस्तेमाल पर पशुपालकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, इससे अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है।
क्यूआरटी टीम के सदस्यों के रूप में डॉ. जी.एस.राम, पूर्व विभागाध्यक्ष, इम्यूनोलॉजी डिवीजन, आई.वी.आर.आई., इज्जतनगर ने उष्ट्र हितधारकों को पशुओं के स्वास्थ्य आदि से जुड़ी अद्यतन जानकारी एवं निराकरण के लिए उरमूल के माध्यम से एनआरसीसी वैज्ञानिकों से वार्ता कर इन्हें सुलझाने की बात कही। इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल एवं डॉ. राकेश रंजन एवं डॉ.काशीनाथ, पशु चिकित्सक ने पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन, उनमें स्वच्छता के महत्व, बेहतर प्रबंधन आदि पर अपने विचार रखें।
उरमूल सीमांत समिति कार्यकर्ता श्री रोमल व सुश्री प्रेरणा ने संस्था की कार्यप्रणाली से क्यूआरटी टीम को अवगत करवाया हुए कहा कि समिति, पशुपालकों के लाभार्थ ऊँटनी के दूध संग्रहण का कार्य कर रही है। उन्होंने एनआरसीसी के माध्यम से ऊँटों के स्वास्थ्य एवं रखरखाव आदि हेतु मिलने वाले महत्वपूर्ण सहयोग एवं आयोजित परिचर्चा के महत्व के संबंध में कहा कि ऐसी गतिविधियों के माध्यम से ऊँट प्रजाति व ऊँट से जुड़े एन्टरप्रेन्योर को गति प्रदान की जा सकेगी। ।
इस दौरान उष्ट्र हितधारकों ने चैयरमैन के समक्ष अपनी दूध विपणन एवं व्यवसाय, स्वास्थ्य समस्याओं एवं चरागाह से जुड़ी समस्याओं के बारे में अवगत करवाया। एनआरसीसी क्यूआरटी टीम के समक्ष समिति ने ऊँट/भेड़ के मिश्रित बालों से बने उत्पाद भी प्रदर्शित किए। ऊँट मिंगणी खेतो में इस्तेमाल करने की बात कही गई। धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. सुमन्त व्यास, प्रधान वैज्ञानिक ने ज्ञापित किया।
दोपहर पश्चात् केन्द्र में क्यूआरटी बैठक के दूसरे दिन की कार्रवाई पूर्ण की गई तथा इस अवसर पर केन्द्र की आईटीएमयू द्वारा तैयार प्रकाशन कैमल मिल्क प्रोसेसिंग एवं प्रोडेक्टस-2023’ (लेखक गण- डॉ. योगेश कुमार, डॉ.आर्तबन्धु साहू, डॉ.आर.के.सावल) का विमोचन चैयरमैन प्रो.एम.पी.यादव के कर कमलों से किया गया।
औद्योगिक भ्रमण में छात्रों ने एनआरसीसी के अनुसन्धान कार्यों एवं उपलब्धियों को जाना
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में राजकीय नेत्रहीन छात्रावासित उच्च माध्यमिक विद्यालय, बीकानेर के 09 छात्रों के एक दल ने व्यावसायिक शिक्षा योजनान्तर्गत (IT/ITeS ट्रेड) दिनांक 28.03.2023 को औद्योगिक भ्रमण कर एन.आर.सी.सी. की अनुसंधान गतिविधियों, पर्यटनीय सुविधाओं एवं ऊँटों के व्यावहारिक उपयोगों का जाना। विद्यार्थियों में उष्ट्र प्रजाति के प्रति रूझान बढ़ाने एवं उनके ज्ञान में अभिवृद्धि हेतु इस दौरान एक संवाद कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
संवाद कार्यक्रम में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को संस्थान के उष्ट्र प्रजाति संबद्ध अनुसंधान कार्यों एवं उपलब्धियों की जानकारी दीं तथा कहा कि ऊँट एक बहुपयोगी पशु है जिसका न केवल परंपरागत उपयोग है बल्कि इसका दूध, ऊन, हड्डी, त्वचा आदि ऊँट पालकों के लिए आमदनी का एक अच्छा जरिया बन सकता है। डॉ.साहू ने विद्यार्थियों में जिज्ञासा का भाव जगाने हेतु उष्ट्र प्रजाति से जुड़े विभिन्न प्रश्न पूछे तथा कहा कि ऊँटनी के दूध में औषधीय गुण विद्यमान होने के कारण यह मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि कई मानवीय रोगों के प्रबंधन में लाभदायक पाया गया है, अत: उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय को अपनाने, इसका बाजार भाव तय करने के साथ-2 दूध की गुणकारिता का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार कर आमजन को इसका लाभ पहुंचाया जाना चाहिए।
डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने विद्यार्थियों के समक्ष केन्द्र के पर्यटनीय महत्व को उजागर करते हुए संचालित गतिविधियों यथा- उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र दुग्ध प्रसंस्करण इकाई, कैमल मिल्क पॉर्लर, ऊँट उत्सव, उष्ट्र नस्लों आदि से जुड़ी जानकारी दीं।
विद्यार्थियों ने ऊँटनी के ताजा दूध की उपलब्धता, दूध, बाल, हड्डी आदि से तैयार किए जाने वाले उत्पादों एवं इनका व्यावसायिक स्वरूप, रेगिस्तानी जहाज-ऊँट की विशेषताएं एवं इसकी कार्यक्षमता आदि पहलुओं के संबंध में गहरी रूचि दिखाते हुए अपनी जिज्ञासाओं को सदन के समक्ष रखा जिनका उचित निराकरण किया गया। विद्यार्थियों को केन्द्र द्वारा विकसित सुगन्धित दूध उत्पाद भी पिलाया गया जिसे बच्चों ने बेहद पसंद किया। अंत में विद्यालय के श्री अमित मोदी, व्यवस्थापक प्रशिक्षक ने इस औद्योगिक भ्रमण को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया।
एनआरसीसी द्वारा कोटड़ी में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम
बीकानेर 27 मार्च 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा आज गांव कोटड़ी में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। 81 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- गाय-84, भेड़-132, बकरी-204 व ऊँट 06 सहित केन्द्र की इस गतिविधि का लाभ उठाया ।
पशु पालकों से बातचीत करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि भारत सरकार की यह योजना महत्वपूर्ण है, तथा योजना के तहत समुदायों के समाजार्थिक स्तर में अपेक्षित सुधार लाने हेतु केन्द्र, प्रशिक्षण, पशु स्वास्थ्य शिविर, किसान परिचर्चा आदि का आयोजन करता है। उन्होंने संस्थान के साथ निरन्तर जुड़े रहने एवं उपलब्धियों का अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु पशुपालकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया।
उप योजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने पशु पालकों को संतुलित आहार के महत्व व स्वच्छ दूध उत्पादन संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि क्षेत्र में पशु पौष्टिक आहार के रूप में खेजड़ी, नीम, बेरी आदि की पत्तियां खिलाने पर स्वस्थ रहते हैं अपितु उनसे श्रेष्ठ उत्पादन हेतु लिया जा सकता है।
केन्द्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य एवं अधिक उत्पादन हेतु पशुओं में अंतः एवं बाह्य परजीवियों से बचाव एवं उपचार हेतु दवा एवं खनिज मिश्रण के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाला। श्री मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, पशु आहार वितरण आदि कार्यों में सहयोग किया। शिविर में लाए गए पशुओं में कृमि नाशक दवा, केन्द्र में निर्मित पशुओं के पौष्टिक आहार (संतुलित पशु आहार) व खनिज मिश्रण का वितरण किया गया। इस शिविर के दौरान केन्द्र की ऊँट उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग और प्रशिक्षण इकाई से कोटड़ी गांव की जुड़ी महिलाओं द्वारा ऊँट व भेड़ की ऊन से बने उत्पाद (धागे) नमूने के तौर पर केन्द्र को सौंपे गए ।
तिलवाड़ा पशु मेला में एनआरसीसी की ऊँटनी का दूध-बाजरा दलिया मिश्रित उत्पाद प्रौद्योगिकी लान्च
बीकानेर 23 मार्च 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) ने 21-22 मार्च के दौरान श्री मल्लीनाथ पशु मेला तिलवाड़ा, बाड़मेर में कृषि प्रदर्शनी, कृषि एवं पशु मेला में सक्रिय सहभागिता निभाईं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री परशोत्तम रुपाला, माननीय केन्द्रीय पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्री एवं विशिष्ट अतिथि श्री कैलाश चौधरी, केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री के कर कमलों से एनआरसीसी द्वारा विकसित ऊँटनी का दूध-बाजरा दलिया मिश्रित उत्पाद प्रौद्योगिकी को जारी (लान्च) किया गया। इस अवसर पर भाकृअनुप, नई दिल्ली के डा.बी.एन.त्रिपाठी, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) एवं केन्द्र निदेशक डा.आर्तबन्धु साहू भी उपस्थित थे। श्रीमान परशोत्तम रुपाला ने कहा कि इंटरनेशनल मिलेट ईयर-2023 का उद्देश्य देश में मोटे अनाज के उत्पादन को बढ़ावा देना है तथा इस दृष्टि से एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध की उपयोगिता के साथ-2 मोटे अनाजों के महत्व को उजागर करने हेतु तैयार प्रौद्योगिकी अत्यंत महत्वपूर्ण एवं एक सराहनीय प्रयास है। वहीं श्रीमान कैलाश चौधरी ने कहा कि राजस्थान के शुष्क क्षेत्र में बाजरा इत्यादि मोटे अनाज के मुख्य उत्पादन क्षेत्र है तथा ऐसे में एनआरसीसी द्वारा ऊँटनी के दूध व बाजरा दलिया मिश्रित उत्पाद, न केवल ऊँटनी के दूध को बढ़ावा देने में मददगार होगा बल्कि इसमें मोटे अनाज का मिश्रण करना किसानों-पशुपालकों के लिए लाभदायक हो सकेगा। डा.बी.एन.त्रिपाठी ने एनआरसीसी के नूतन प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में इस पहल की सराहना करते हुए कहा कि इससे व्यावहारिक तौर पर ऊँटनी के दूध की उपयोगिता बढ़ेंगी तथा सीधे तौर पर ऊँट पालकों को लाभ मिल
केन्द्र निदेशक डा. आर्तबन्धु साहू ने नूतन प्रौद्योगिकी के लान्च होने पर उत्साह व्यक्त करते हुए कहा कि बदलते परिवेश में उष्ट्र प्रजाति के संवर्धन तथा ऊँट पालन व्यवसाय को व्यावहारिक तौर पर ऊँट पालकों के लिए लाभकारी बनाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है, इस हेतु केन्द्र द्वारा उष्ट्र डेयरी तकनीकी एवं प्रसंस्करण इकाई, कैमल मिल्क पार्लर में ऊँटनी के दूध आदि से निर्मित मूल्य सवंर्धित उत्पादों की बिक्री, उष्ट्र ऊन बिक्री केन्द्र के अलावा विभिन्न पर्यटनीय सुविधाएं विकसित इनका संचालन किया जा रहा है, तथा प्रतिवर्ष सैंकड़ों देसी-विदेशी सैलानियों के भ्रमण से अच्छे राजस्व की प्राप्ति हो रही है। डा.साहू ने कहा कि ऊँटनी के दूध से जुड़ी नूतन प्रौद्योगिकियों के पीछे केन्द्र की मंशा ऊँट पालकों को प्रेरित करना है जैसा कि हाल ही में केन्द्र द्वारा देशभर में ऊँटनी के दूध की सुलभता हेतु निजी एजेंसियों को पाउडर तकनीकी का हस्तांतरण किया गया है, इस दिशा में बाजारवाद के पनपने पर दूध की मांग बढ़ेगी और इसका सीधा लाभ उष्ट्र पालकों को मिल सकेगा।
केन्द्र के डा.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि इस दो दिवसीय मेले में राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश से आए सैंकड़ों पशुपालकों, किसानों और व्यवसायकों के समक्ष केन्द्र की स्टाल के माध्यम से विकसित नूतन प्रौद्योगिकी एवं ऊँटनी के दूध, ऊन आदि से निर्मित मूल्य सवंर्धित उत्पादों को प्रदर्शित कर उन्हें व्यावहारिक जानकारी प्रदान की गई।
केन्द्र के डा.शांतनु रक्षित, वैज्ञानिक (प्रसार) ने जानकारी दीं कि मेले के दौरान ऊँट दौड़ प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें एनआरसीसी द्वारा प्रतियोगिता के संचालन में सहयोग के साथ प्रतिभागियों को अधिकाधिक सहभागिता हेतु प्रेरित कर विजेताओं को सम्मानित किया गया। केन्द्र के तकनीकी अधिकारी डा.राकेश पूनियां एवं श्री राधाकृष्ण ने स्टाल आदि के सुचारू निष्पादन में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
पद्मश्री डॉ.मदन ने एनआरसीसी की अनुसंधान प्रगति को सराहा
बीकानेर 22 मार्च 2023 । पद्मश्री डॉ.एम.एल.मदन, पूर्व उप महानिदेशक, भाकृअनुप, पूर्व कुलपति एमएएफएसयू, नागपुर एवं दुवासु, मथुरा द्वारा आज भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) की अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया गया। इस अवसर पर आयोजित वैज्ञानिक वार्ता में उन्होंने एनआरसीसी वैज्ञानिकों के साथ अपने अनुसंधान कार्यों से जुड़े अनुभव साझा किए।
वैज्ञानिक वार्ता में डॉ.मदन ने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि अनुसंधान कार्य एक सतत प्रक्रिया है तथा इस दौरान असफल प्रयासों, आधारभूत संसाधनों की कमी आदि विभिन्न चुनौतियां आपको हतोत्साहित करेंगी परंतु इन्हें स्वीकारते हुए दृढ़ संकल्पित, जुनून एवं लक्ष्यबद्ध रूप में आपकी कार्यशैली आपकी विशिष्ट पहचान का द्योतक सिद्ध हो सकेगी। उन्होंने वैश्विक स्तर पर देश की ओर से श्रेष्ठ अनुसंधान का उदाहरण प्रस्तुत करने, जीवन में अनुशासन के महत्व, कार्यों में पारदर्शिता, समन्वयात्मक व व्यावहारिक तरीके से कार्य करने, लक्ष्य निर्धारित करने आदि विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर उन्होंने केन्द्र की ओर से ऊँटनी के दूध से विकसित विभिन्न नूतन उत्पादों यथा-चॉकलेट एवं प्रायोगिक दुग्ध उत्पादों का रसास्वादन करते हुए प्रशंसा कीं। उन्होंने उष्ट्र संग्रहालय का भ्रमण एवं पौधारोपण भी किया।
डॉ.एस.के.घौरूई, प्रधान वैज्ञानिक ने स्वागत उद्बोधन में एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे अनुसंधान कार्यों की प्रगति को सदन के समक्ष रखा तथा कहा कि उष्ट्र प्रजाति को नूतन आयामों में परिभाषित करने के लिए केन्द्र ऊँटनी के दूध एवं उष्ट्र पर्यावरणीय पर्यटन की दिशा में आगे बढ़ रहा है ताकि ऊँट पालकों का इस ओर रुझान बढ़ाते हुए उनकी आमदनी में वृद्धि लाई जा सकें।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने डॉ.एम.एल.मदन द्वारा केन्द्र भ्रमण के दौरान दूरभाष पर वैज्ञानिक गतिविधि संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि पद्मश्री डॉ.मदन द्वारा संप्रेषित अनुभूत अनुसंधानिक विचार, एनआरसीसी वैज्ञानिकों को उनके कार्यक्षेत्र में और अधिक श्रेष्ठ कार्य निष्पादन हेतु प्रेरित करेंगे। वैज्ञानिक वार्ता का संचालन केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.सुमंत व्यास द्वारा किया गया।
‘वन साइंटिस्ट वन प्रोडेक्ट‘ का लक्ष्य निर्धारित कर वैज्ञानिक आगे बढ़ें: डा.त्रिपाठी
एनआरसीसी में वैज्ञानिक वार्ता का आयोजन
बीकानेर 20 मार्च, 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में आज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली से डॉ. भूपेन्द्र नाथ त्रिपाठी, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) पधारें। इस अवसर पर केन्द्र में एक वैज्ञानिक वार्ता आयोजित की गई जिसमें एनआरसीसी सहित परिषद के बीकानेर स्थित पशु संबद्ध संस्थानों यथा-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान एवं राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने शिरकत कीं।
वार्ता को संबोधित करते हुए डॉ.भूपेन्द्र नाथ त्रिपाठी जी ने कहा कि परिषद के माध्यम से देश के किसानों एवं पशुपालकों तक बेहतरीन प्रौद्योगिकी पहुंचाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा ‘वन साइंटिस्ट वन प्रोडेक्ट‘ का लक्ष्य निर्धारत कर अनुंसंधान के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया जाए ताकि किसान खुशहाल व देश समृद्ध बनें। उन्होंने पशुधन आदि क्षेत्र में वैश्विक प्रभाविता, वैज्ञानिकों को अपने शोध कार्यों को जर्नल्स् आदि के माध्यम से सभी के सामने उजागर करने पर जोर दिया। डॉ. त्रिपाठी ने ऊँट को एक अनूठी प्रजाति बताते हुए ऊँटनी के दूध व अन्य स्वरूपों में मानव स्वास्थ्य में इसकी उपादेयता, परिवर्तित वातावरण में इसकी अनुकूलनता, ऊँटों की घटती संख्या एवं व्यवसाय संबंधी चुनौतियाँ, उष्ट्र विकास एवं संरक्षण हेतु लक्ष्यबद्ध तरीके से कार्य करने हेतु वैज्ञानिकों को निर्देशित किया।
वार्ता के दौरान डॉ. त्रिपाठी को एनआरसीसी द्वारा प्राप्त दो ट्रेड मार्क व आईएसओ प्रमाण-पत्र का विमोचन किया गया। इस कार्यक्रम के दौरान एक एमओयू पर भी हस्ताक्षर किए गए। नामफार्मर्स के साथ केन्द्र के हुए इस एमओयू के जरिए संस्थान की उपलब्धियों को किसानों तक पहुंचाने के लिए एक वर्चुअल प्लेटफार्म तैयार किया जाएगा। डॉ. त्रिपाठी द्वारा केन्द्र के नव निर्मित मुख्य प्रवेष द्वार का उद्घाटन भी किया गया साथ ही पौधारोपण कार्यक्रम में भी भाग लिया।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने संस्थान की विभिन्न अनुसंधान एवं प्रसार गतिविधियों संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि संस्थान के वैज्ञानिक, ऊँट को बहुआयामी पशु के रूप में विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि ऊँट पालकों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ की जा सके।
वैज्ञानिक वार्ता में केन्द्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र एवं केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान के प्रभागाध्यक्ष (क्रमश:) डॉ. एस.सी. मेहता एवं डॉ.निर्मला सैनी ने अपने संस्थान के कार्यों के बारे में संक्षिप्त जानकारी दीं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने किया एवं धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. सुमंत व्यास, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा ज्ञापित किया गया।
ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में उपयोगिता को लेकर एनआरसीसी एवं सुमनदीप विद्यापीठ गुजरात के मध्य हुआ एमओयू
बीकानेर 18.03.2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर एवं एसबीकेएस मेडिकल इस्टीटयुट एण्ड रिसर्च सेंटर, सुमनदीप विद्यापीठ, वड़ोदरा के मध्य रिसर्च एवं नॉलेज प्रोग्राम के तहत एक एमओयू किया गया। इस एमओयू के अवसर पर एन.आर.सी.सी. के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू एवं सुमनदीप विद्यापीठ, समतुल्य विश्वविद्यालय के कुलपति एवं रजिस्ट्रार की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए। इस महत्वपूर्ण एमओयू के दौरान डॉ.नीरज देशपांडे, डॉ.सुरेश राठी, डॉ. पूनाचा, डॉ.लवलेश कुमार, डॉ.नवनीत सिंह, डॉ.मनसुख के शाह, डॉ. दीक्षित एम शाह, डॉ.राजेश पी. बारानय, प्रो.बाकुल जावड़ेकर, डॉ.विजय सिंह, डॉ.शीतल छाया, मेघना पटेल, डॉ. जया पांडेयन आदि थे। इस दौरान एक बैठक भी आयोजित की गई जिसमें दोनों पक्षों ने संबंधित पहलुओं पर अपने-2 विचार परस्पर साझा किए।
इस एमओयू के संबंध में जानकारी देते हुए डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि एमओयू के तहत एनआरसीसी अब एसबीकेएस मेडिकल इस्टीटयुट एण्ड रिसर्च सेंटर, सुमनदीप विद्यापीठ वड़ोदरा के साथ उष्ट्र दुग्ध की महत्ता एवं उपयोगिता पर समन्वित अनुसंधान कार्य कर सकेगा। डॉ.साहू ने कहा कि एमओयू के तहत उष्ट्र दुग्ध की मधुमेह एवं ह्दय रोगों में उपयोगिता की वैज्ञानिक परख की जाएगी तथा सकारात्मक परिणाम मिलने पर मधुमेह रोगियों (टाइप-1 व टाइप-2) के प्रबंधन हेतु उष्ट्र दुग्ध की और अधिक मांग बढ़ने से ऊँट पालन व्यवसाय को बढ़ावा मिलेगा और इस रोग के उपचार व प्रबंधन में एक नया आयाम जुड़ेगा।
डॉ. साहू ने विद्यापीठ के पदाधिकारियों के साथ विभिन्न अनुभागों का भ्रमण करते हुए विषय-विशेषज्ञों से उनके कार्यों आदि के संबंध में परस्पर चर्चा भी कीं।
एनआरसीसी में दो दिवसीय राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह का हुआ समापन
बीकानेर। 14 मार्च, 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, बीकानेर के सहयोग से आयोजित दो दिवस राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आज समापन हुआ। पुरस्कार वितरण एवं समापन समारोह के पूर्व, स्कूली विद्यार्थियों हेतु आयोजित वैज्ञानिक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता एवं विज्ञान प्रदर्शनी में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी, बीकानेर के कक्षा 8, 9 एवं 11 के कुल 59 विद्यार्थियों ने इसमें उत्साही सहभागिता निभाईं। विज्ञान प्रदर्शनी के तहत विद्यार्थियों को संस्थान के विभिन्न विभागों का भ्रमण करवाते हुए अनुसंधान कार्यों की व्यावहारिक जानकारी प्रदान की गई।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. विजय चलाना, प्रबंधक, चलाना हॉस्पिटल,बीकानेर ने विज्ञान दिवस के प्रयोजन को दृष्टिगत रखते हुए कहा कि संपूर्ण विश्व पटल पर मूलभूत परिवर्तन की बात करें तो वैज्ञानिकों का इसमें अकल्पनीय योगदान रहा है। उन्होंने शिक्षा, मानव चिकित्सा आदि में प्रौद्योगिकी के प्रभाव एवं विज्ञान में अपार संभावनाओं का उल्लेख करते हुए विद्यार्थियों को एनआरसीसी में अनुसंधान गतिविधियों से प्रेरणा लेने हेतु प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने अनुसंधान के महत्व को समझाते हुए कहा कि विज्ञान के कारण ही हम, यह जान पाए है कि ऊँट-‘औषधि का भण्डार‘ है और इसका बहुआयामी उपयोग है, तथा कैसे अनुसंधान के द्वारा आज भी हम ऊँट की उपयोगिता को प्रासंगिक बनाए रख सकते हैं ? डॉ. साहू ने विद्यार्थियों को विज्ञान विषय में कॅरियर निर्माण की संभावनाओं के बारे में जानकारी दीं।
इस अवसर पर श्रीमती उर्वशी, प्रधानाध्यापिका, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी ने एनआरसीसी द्वारा राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के तहत आयोजित गतिविधियों की सराहना कीं। कार्यक्रम समन्वयक डॉ. वेदप्रकाश द्वारा समारोह के तहत की गई गतिविधियों की विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत कीं। साथ ही विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, बीकानेर को कार्यक्रम प्रायोजन हेतु आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम सह-समन्वयक ने किया। इस अवसर पर विज्ञान प्रश्नोत्तरी के विजेता विद्यार्थियों को पुरस्कार एवं प्रमाण-पत्र वितरित किए गए।
एनआरसीसी में दो दिवसीय राष्ट्रीय विज्ञान दिवस समारोह का शुभारम्भ
बीकानेर। 13 मार्च, 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, बीकानेर के सहयोग से आयोजित किए जा रहे दो दिवसीय राष्ट्रीय विज्ञान दिवस का आज केन्द्र-सभागार में शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर वैज्ञानिक वार्ता एवं वैज्ञानिक प्रदर्शनी कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया जिसमें सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज, बीकानेर, राजुवास, बीकानेर तथा अन्य कॉलेजों के विज्ञान संकाय से जुड़े लगभग 50 से अधिक विद्यार्थियों, अनुसंधानकर्ताओं, अध्यापकों, वैज्ञानिकों आदि ने सक्रिय सहभागिता निभाईं।
उद्घाटन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पधारे श्री ओमप्रकाश, अतिरिक्त जिला कलक्टर, बीकानेर ने कहा कि विज्ञान का जीवन में विशेष महत्व है क्योंकि यह विषय वस्तु को अन्धविश्वास आदि से परे रखते हुए उसे प्रमाणिकता प्रदान कराता है। उन्होंने कहा कि विज्ञान के क्षेत्र में हमारे देश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है, इसके फलस्वरूप आज से लगभग 92 वर्ष पूर्व हमारे देश के ‘सर‘ सी.वी.रमन को नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया साथ ही वैज्ञानिक सोच विकसित करना, हमारे देश के संविधान के मौलिक कर्त्तव्यों के रूप में भी उल्लेखित है। अतः देश की उतरोत्तर प्रगति हेतु न केवल विद्यार्थियों अपितु देश के प्रत्येक नागरिक को एक तार्किक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। उन्होंने दैनंदिन जीवन में विज्ञान के महत्व एवं उपलब्धियों के साथ विकसित तकनीकी के दूरगामी परिणामों आदि पहलुओं पर भी बात कहीं। उन्होंने एन.आर.सी.सी. को उष्ट्र प्रजाति संबद्ध देश का उत्कृष्ट संस्थान के रूप में इसकी अनुसंधान उपलब्धियों एवं संस्थान की प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा कि उष्ट्र पालन व्यवसाय को लोकप्रिय, सरल एवं लाभप्रद बनाने के लिए ऊँटनी के दूध आदि उत्पादों की मार्किट मांग को बढ़ाना होगा।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि विज्ञान के साथ हमारे जीवन की प्रत्येक प्रक्रिया जुड़ी हुई हैं । डॉ.साहू ने कहा कि परिवर्तित परिदृष्य में इस धरती पर जीवन यापन के दौरान अनेक प्रकार की समस्याएं एवं चुनौतियां सामने आ रही हैं परंतु मानव जीवन की श्रेष्ठता को आधार मानते हुए यहां विचरण करने वाले सभी जीव-जंतुओं आदि को साथ लेकर चलना होगा। उन्होंने कहा कि हमें विज्ञान एवं विकास के तहत प्रकृति प्रदत्त संसाधनों के दोहन को रोकने के बारे में विचार करना चाहिए। विज्ञान दिवस मनाए जाने के अवसर को डॉ.सी.वी.रमन की वैज्ञानिक उपलब्धियों से जोड़ते हुए उन्होंने सभी विषयों में विशेष ज्ञान रूपी विषय ‘विज्ञान‘ के विद्यमान (समाहित) होने की बात कहीं।
समारोह में अतिथि के रूप में डॉ.जी.पी.सिंह, प्राचार्य, राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर ने कहा कि महान वैज्ञानिक डॉ.सी.वी.रमन द्वारा विकसित ‘रमन प्रभाव‘ के कारण विश्व पटल पर भारत का नाम उभर कर सामने आया। उन्होंने ग्लोबल वार्मिंग, पश्चिमी राजस्थान में मानव सभ्यता के विकास में ऊँट की उपयोगिता एवं इसके द्वारा समाजार्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना आदि के संबंध में अपने विचार रखें।
वैज्ञानिक वार्ता के तहत निदेशक डॉ.साहू ने ‘ऊँटनी के दूध के चिकित्सीय गुण‘ तथा डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने ‘दवा और निदानिकी के स्रोत के रूप में ऊँट‘ विषयक व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए इस प्रजाति की वैज्ञानिक उपादेयता को विद्यार्थियों के समक्ष रखा। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने विज्ञान दिवस समारोह मनाने के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डाला साथ ही इस दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत कीं। कार्यक्रम का संचालन, कार्यक्रम सह-समन्वयक डॉ.श्याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक ने किया। इस अवसर पर वैज्ञानिक वार्ता में भाग लेने वाले सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए।
घुमन्तू पशुपालक विपणन के क्षेत्र में आगे बढ़ें: श्रीमान रुपाला
केन्द्रीय मंत्री श्री परशोत्तम रुपाला जी ने एनआरसीसी में घुमन्तू पशुपालकों से की चर्चा
बीकानेर 05 मार्च, 2023 । ‘‘पशुओं में केवल अधिक मात्रा में दूध प्राप्त होने वाले पशुओं खासकर गाय व भैंस पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया जाता है, परंतु अब ऊँटनी तथा बकरी के दूध की औषधीय उपयोगिता के आधार पर मांग बढ़ रही हैं, ऐसे में कोसों दूर चलकर यात्रा करने वाले घुमन्तु पशुपालक, इन पशुओं के दूध का भी महत्व समझते हुए विपणन (मार्केटिंग) के क्षेत्र में पुख्ता तौर पर पदार्पण करें।‘‘-ये विचार श्रीमान परशोत्तम रुपाला जी, माननीय केन्द्रीय मंत्री, मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी, भारत सरकार ने आज दिनांक को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर में एनआरसीसी, उरमूल सीमांत समिति तथा सहजीवन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित घुमन्तू पशुपालकों एवं संबद्ध समुदाय के साथ परिचर्चा कार्यक्रम के दौरान कहें। श्रीमान रुपाला ने कहा कि ऊँटनी के दूध संकलन, प्रसंस्करण आदि को योजनाबद्ध रूप में अपनाते हुए दूध व इससे निर्मित स्वादिष्ट व्यंजन आदि की ऑनलाइन आधार पर बिक्री प्रारम्भ की जानी चाहिए। मंत्री महोदय ने चर्चा के दौरान घुमन्तु पशुपालकों से रू-ब-रू होते हुए उनको जमीनी स्तर पर आ रही समस्याओं एवं चुनौतियों पर बातचीत पर विशेष ध्यान देते हुए कहा कि भारत सरकार द्वारा घुमन्तू पशुपालकों के लिए पशुपालन मंत्रालय में एक विशेष अनुभाग को योजनाबद्ध किया जा रहा है, क्योंकि भारत सरकार, इनसे जुड़ी समुदायों की समस्याओं आदि को लेकर विशेष गंभीर हैं। श्रीमान रुपाला जी ने ‘वेस्ट टू वेल्थ‘ के तहत अनुपयोगी चारा व खाद्य आदि द्वारा श्रेष्ठ उत्पादन तैयार करने की बात कहीं। उन्होंने माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा पशुपालन व्यवसाय के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए अलग से मंत्रालय बनाए जाने का जिक्र करते हुए भारत सरकार की योजनाओं को पशुपालकों तक भलीभांति जानकारी पहुंचाने के लिए शिविरों आदि आयोजित किए जाने हेतु प्रोत्साहित किया जिसमें गैर सरकारी संगठन आदि भी जुड़ते हुए पशु व मानव हितार्थ आगे आएं, ताकि इनसे, उन्होंने पशुपालकों को डेयरी उद्यम हेतु प्रोत्साहित करते हुए सरकार द्वारा इसके लिए बुनियादी सुविधाओं आदि के रूप में हर संभव मदद करने की बात कही। श्री रुपाला जी ने पशुपालकों से जुड़े कई मुद्दों पशु चारण भूमि आदि को राज्य सरकार के साथ गंभीरता से रखने की भी बात कही।
श्री रूपाला जी ने बीकानेर में अपना यात्रा का प्रयोजन स्पष्ट करते हुए कहा कि बीकानेर प्रवास का मूल उद्देष्य संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित ‘‘राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव‘‘ में शामिल होना था तथापि हमने तय किया है कि जहां भी जाएंगे और जितना संभव हो सकेगा हम पशुपालन के क्षेत्र में सबसे निचले पायदान पर खड़े घुमंतू पशुपालक भाई-बहनों से सीधा संवाद करेंगे। जनकेन्द्रित सुशासन का प्रधानमंत्री जी का उद्घोष हमारी इस प्रतिबद्धता का प्राण तत्व है।
इस अवसर पर मंत्री महोदय श्री रुपाला जी के कर कमलों से केन्द्र द्वारा उष्ट्र संबंधी प्रकाशनों का विमोचन किया गया तथा ऊँटनी के दूध से बनी चॉकलेट लॉन्च की गई। साथ ही उन्होंने केन्द्र की ‘ऊँट उत्पाद प्रसंस्करण उपयोग और प्रशिक्षण इकाई‘ का भी उद्घाटन किया।
केन्द्र में आयोजित इस महत्वपूर्ण परिचर्चा के दौरान श्रीमान अर्जुन राम जी मेघवाल, माननीय संसदीय कार्य और संस्कृति राज्यमंत्री, भारत सरकार ने घुमन्तु पशुपालकों की समस्याओं पर बात करते हुए ऊँट पालकों को समाजार्थिक रूप से सक्षम बनाने के लिए योजनाओं का निर्माण व नीति बनाई जानी की आवश्यकता जताई। श्रीमान मेघवाल जी ने इस अवसर पर जोड़बीड़ आदि आस-पास के क्षेत्रों में पशुओं के लिए चराई क्षेत्र की व्यवस्था हेतु पहल करने पर जोर दिया ताकि ऊँट व भेड़ आदि घुमन्तू पशुओं का निर्वाह हो सकें व पशुपालकों को सहायता मिल सके। साथ ही उन्होंने जोड़बीड़ क्षेत्र में पक्षियों के संरक्षण एवं महत्व को दृष्टिगत रखते हुए इस क्षेत्र को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक स्थल (इन्टरनेशनल बर्ड वॉचिंग सेंटर) के रूप में विकसित करने पर जोर दिया ताकि आस-पास क्षेत्रों के पशुपालकों को इसका लाभ सके।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि यह केन्द्र ऊँट प्रजाति से संबद्ध है तथा अनुसंधान के साथ-साथ उष्ट्र प्रजाति से जुड़े प्रत्येक समुदाय के लिए हर संभव व्यावहारिक प्रयास हेतु सतत प्रयत्नषील रहता है, घुमन्तु पशुपालकों के लिए आयोजित परिचर्चा भी इन सुमदाय से जुड़ी समस्याओं के निराकरण की दिशा में एक प्रयास है। डॉ. साहू ने जानकारी दी कि मंत्री महोदय जी ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि उष्ट्र संरक्षण की दिशा में काम किया जाएगा क्योंकि ‘ऊँट‘ पशु में एक मोहकता समाहित है तथा वे दुनिया को भी आकर्षित कर सकती है, इसलिए इस व्यवसाय को बढ़ावा देने पर काम किया जाएगा।
इस अवसर पर श्री पुष्पेन्द्र सिंह राठौड़, डीआईजी, बीएसएफ, बीकानेर, श्री सुनील लहरी, सचिव, उरमूल सीमांत समिति, श्री जोराराम जी ज्यानी, अध्यक्ष, पश्चिमी राजस्थान ऊँट पालक फैडरेशन, श्रीमती पाना देवी, अध्यक्ष, नया उजाला, एफ.पी.ओ. जायल ने भी उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़े व्यावसायिक पहलुओं की चर्चा की.
मंत्री महोदय जी से खुली चर्चा के दौरान पशु पालकों ने पशुपालन से जुड़ी विभिन्न समस्याओं यथा-पशु चरागाह क्षेत्र की कमी, ऊँट के निकास पर प्रतिबंध, विभिन्न स्वास्थ्य रोगों एवं सुविधाएं आदि की जानकारी दीं। इस अवसर सहजीवन के श्री अनुराग कुशवाहा, स्टैट कॉर्डिनेटर ने घुमन्तू पशुपालकों हेतु चल रहे कार्यों के बारे में अद्यतन जानकारी दी। इस दौरान केन्द्र परिसर में एक प्रदर्शनी कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया जिसमें एन.आर.सी.सी. सहित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, उरमूल, नाबार्ड आदि द्वारा अपनी अभिनव प्रौद्योगिकी को विभिन्न स्टॉल्स के माध्यम से मंत्री महोदय व घुमन्तू पशुपालकों के समक्ष प्रदर्शित किया गया।
जैसलमेर (राजस्थान) में 25.02.2023 को संसदीय राजभाषा समिति ने भा.कृ.अनु प. - राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र, बीकानेर के साथ निरीक्षण बैठक की | इस दौरान समिति ने मत्रालय एवं विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की उपस्थिति में हो रहे राजभाषा हिंदी के कार्यों का अवलोकन किया |
एनआरसीसी ने लगाया जन जातीय उप-योजना तहत ओर गांव में पशु शिविर
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा दिनांक 25.02.2023 को आबू रोड़ (सिरोही) के ओर गांव में जन जातीय उपयोजना तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कैम्प में 171 पशुपालकों द्वारा लाए गए 210 ऊँटों सहित गाय 148 भैंस 189, बकरी 70 पशुओं को उपचार, दवाइयां व उचित सलाह देकर लाभान्वित किया गया।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर के सावल ने कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम में कहा कि देश की आबादी, उपलब्ध संसाधनों एवं पोषण जरूरतों की दृष्टि से खेती, पशुपालन इत्यादि संसाधनों में समन्वय साधते हुए इन्हें आवश्यकता अनुरूप तैयार करना होगा। इसके लिए पशुपालकों/किसानों में जागरूकता के साथ-2 उन्हें वैज्ञानिक ज्ञान की ओर भी रूख करना चाहिए ताकि वे देश की मुख्यधारा से जुड़ सके। डॉ.सावल ने केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धू साहू के नेतृत्व में एनआरसीसी टीम द्वारा उष्ट्र विकास एवं संरक्षण के तहत बहुआयामी अनुसंधान कार्यों खासकर ऊँटनी के दूध व उष्ट्र पर्यटन पर प्रकाश डालते हुए पशुपालकों को इन्हें अपनाने हेतु प्रेरित किया ।
इस अवसर पर केन्द्र के डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक द्वारा केन्द्र की प्रसार से जुड़ी गतिविधियों की जानकारी दी गई। उन्होंने पशुधन से श्रेष्ठ उत्पादन लेने हेतु उसके रखरखाव, आहार व्यवस्था, पोषण, जनन आदि के साथ उसके स्वास्थ्य पहलू के संबंध में विशेष ध्यान देने की बात कही। केन्द्र के डॉ. काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि शिविर में लाए गए ऊँटों में तिबरसा (सर्रा) रोग के बचाव हेतु टीकाकरण किया गया । साथ ही पशुओं को कृमिनाशक दवा पिलाई गई और बाह्य परजीवियों के बचाव हेतु दवा वितरित की गई। इस दौरान कुछ पशुओं के खून व मिंगनी के नमूने जाँच हेतु लिए गए। पशु पालकों को केन्द्र में निर्मित करभ पशु आहार व खनिज मिश्रण भी वितरित किए गए ।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी द्वारा गांव ओर में आयोजित इस महत्वपूर्ण गतिविधि की समय-समय पर जानकारी लेते हुए फील्ड स्तर पर आयोजित कार्यक्रम की सार्थकता हेतु पूरी टीम की सराहना की तथा कहा कि हमें पशुपालकों तक वैज्ञानिक जानकारी एवं उनसे जुड़ी प्रौद्योगिकियों को पहुंचाने हेतु महत्ती प्रयास करने होंगे ताकि पशुपालकों को इनका भरपूर लाभ मिले व उनकी आमदनी में बढ़ोतरी की जा सके ।
इस कैम्प में पशुपालन विभाग आबूरोड के डॉ.सावरिया, पशु चिकित्सा अधिकारी आदि ने भी सक्रिय सहयोग प्रदान किया । वहीं श्री सेवाराम, सदस्य, पशुधन विकास कमेटी, सिरोही ने इस अवसर पर एनआरसीसी के प्रति इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया तथा पशुधन को लेकर अपनी बात रखीं। केंद्र के मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी ने शिविर में पंजीयन, दाना-आहार वितरण आदि कार्यों में सहयोग दिया।
एनआरसीसी ने जन जातीय उपयोजना तहत मोरडु गांव में लगाया शिविर
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र द्वारा 24 फरवरी 2023 को आबू रोड़ के गांव मोरडु में जन जातीय उपयोजना के तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस शिविर में 176 पशुपालकों द्वारा लाए गए 222 गाय, 184 भैंस, 10 ऊँट, 427 भेड़-बकरी कुल 843 पशुओं को उपचार, दवाइयां व उचित सलाह देकर लाभान्वित किया गया।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने संवाद कार्यक्रम में कहा कि पशुपालकों को खेती, पशुपालन इत्यादि संसाधनों में समन्वय की सोच तथा वैज्ञानिक तरीकों से आगे बढ़ाना होगा ताकि कृषि मिश्रित पशुपालन से अच्छा लाभ कमा सकें। डॉ.सावल ने कहा कि पशुपालन व्यवसाय में पशुओं के पोषण, प्रबंधन, आश्रय स्थल, स्वच्छता, उनके थनों की जांच, मिश्रित आहार तथा लवण आदि की मात्रा का विशेष ध्यान रखना चाहिए ताकि पशुपालक भाई पशुओं से भरपूर उत्पादन ले सकें। उन्होंने शिविर में आए जनजातीय पशुपालकों को केन्द्र के "ऊंटां री बातां‘ रेडियो कार्यक्रम से जुडृने की बात कही ताकि वे विषय-विशेषज्ञों के माध्यम संप्रेषित जानकारी को सुनकर उसका घर बैठे लाभ ले सके।
केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ..शांतनु रक्षित ने संस्थान की प्रसार गतिविधियों एवं नवाचारी प्रयासों की जानकारी देते हुए प्रौद्योगिकियों से जुड़ने हेतु पशुपालकों को प्रेरित किया। इस अवसर पर केन्द्र के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ..काशीनाथ ने बताया कि शिविर में लाए गए पशुओं में अंतः एवं बाह़य परजीवी रोगों के बचाव हेतु कृमिनाशक दवा पिलाई गई तथा उनमें विभिन्न रोगों की रोकथाम हेतु उचित सलाह प्रदान की गई। साथ ही ऊँटों में सर्रा रोग के बचाव एवं उपचार हेतु टीकाकरण किया गया।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने आबू रोड़ गई एनआरसीसी की इस टीम से समय-समय पर आयोजित गतिविधि संबंधी जानकारी लेते हुए उनका उत्साहवर्धन किया। साथ ही टीम द्वारा सफल कार्य निष्पादन हेतु सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि भारत सरकार की योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने हेतु वैज्ञानिकों द्वारा हरसंभव प्रयास किए जाए ताकि इन योजनाओं की सार्थकता सिद्ध की जा सके।
इस अवसर पर केन्द्र की वैज्ञानिक टीम द्वारा पशुओं के खून व मिंगनी के नमूने जांच हेतु लिए गए। पशुपालकों को केन्द्र में निर्मित "करभ पशु आहार' व खनिज मिश्रण भी वितरित किए गए। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी ने शिविर में पंजीयन, दाना-आहर वितरण आदि कार्या में सहयोग दिया। वहीं केन्द्र के इस कैम्प में आबू रोड़ पशुपालन विभाग के पशुधन सहायकों ने भी सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी, बीकानेर द्वारा एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड को नूतन तकनीक हस्तांतरित
बीकानेर 22.02.2023। भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र और एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बीकानेर के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन किया गया है। यह समझौता ज्ञापन एनआरसीसी के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित ऊँटनी के दूध पाउडर बनाने की उन्नत तकनीक के लाइसेंस के संबंध में है। समझौते पर केंद्र के निदेशक डॉ आर्तबन्धु साहू और एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लि. के निदेशक श्री सुनील कुमार शर्मा ने हस्ताक्षर किए। अब इस नवीन प्रौद्योगिकी के उपयोग के माध्यम से, ऊँटनी का दूध पाउडर, पूरे देश में उपलब्ध हो सकेगा तथा गुणवत्ता युक्त पाउडर बाहरी देशों को भी निर्यात किया जा सकेगा ।
केंद्र के निदेशक डॉ आर्तबंधु साहू ने इस प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के संबंध में प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि केंद्र, नवाचार और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में मदद कर रहा है, जो निजी क्षेत्र को ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण से सम्बंधित नवीनतम प्रक्रिया, प्रौद्योगिकी और उत्पादों तक पहुंच प्रदान करता है। यह तकनीकी हस्तांतरण निजी क्षेत्र के लिए अनुसंधान और विकास की लागत को कम करने में भी मदद करेगा, क्योंकि वे अब उन नवाचारों का उपयोग कर सकते हैं जो केंद्र द्वारा पहले ही विकसित किए जा चुके हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एनआरसीसी द्वारा निजी फर्मों को नवीन प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण आर्थिक विकास को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने, नए अवसर पैदा करने और बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में मदद करेगा।
डॉ. साहू ने फिर जोर देकर कहा कि ऊँटनी का दूध उन लोगों के लिए फायदेमंद पाया गया है जो मधुमेह, एलर्जी और अन्य ऑटोइम्यून बीमारियों से पीड़ित हैं। यह पाचन, जोड़ों के स्वास्थ्य और त्वचा की स्थिति में मदद करने के लिए भी उपयोगी पाया गया है। राष्ट्रीय और वैश्विक अध्ययनों से यह भी पता चला है कि ऊँटनी के दूध में शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-एजिंग गुण होते हैं, और यह उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करने में भी मदद कर सकता है। हालांकि, यह एक चिंता का विषय है कि ऊँट के दूध के अत्यधिक ताप प्रसंस्करण के दौरान कार्यात्मक और औषधीय गुण नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. योगेश कुमार और उनकी टीम ने नवीन तकनीकों का उपयोग कर गुणवत्तापूर्ण उत्पाद बनाने की एक विधि विकसित की है, ताकि ऊँटनी के दूध में मौजूद कार्यात्मक और औषधीय गुणधर्म काफी हद तक बरकरार रहें।
डॉ. साहू ने कहा कि मानव विकारों के प्रबंधन में ऊँटनी के दूध का महत्व अब स्पष्ट है और देश विदेश में ऊँटनी के दूध और इसके उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है जो कि आगे आने वाले वर्षों में और तेजी से बढ़ने की संभावना है। डॉ. साहू ने ऊँट की बहुआयामी उपयोगिता तलाशने की दिशा में केंद्र द्वारा की गई इस नई पहल (एमओए) के बारे में बताते हुए कहा कि इससे ऊँट पालकों को भी लाभ मिल सकेगा तथा उन्हें दूध का अधिक मूल्य प्राप्त हो सकेगा। इस मौके पर डॉ. साहू ने अपील की कि अब ऊँट पालकों को ऊँटनी के दूध के व्यवसाय की अवधारणा को पूरी तरह से अपनाकर इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए ताकि ऊँटनी के दूध के बाजार को संगठित खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में बदला जा सके ।
डॉ. योगेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक और इस तकनीक के प्रमुख आविष्कारक ने कहा कि ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण के लिए पारंपरिक दूध प्रसंस्करण विधियों का सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसकी अलग विशेषताएं हैं, इसलिए वे ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण के लिए नवीन तकनीकों के विकास पर काम कर रहे हैं ताकि ऊँटनी के दूध से गुणवत्ता वाले विभिन्न उत्पाद बनाये जा सकें। वर्तमान प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि यह नवाचार तकनीक अत्यधिक स्वीकार्य है क्योंकि अच्छी तरह से स्थापित निजी फर्मों द्वारा इसका दूसरी बार लाइसेंस लिया गया है |
इस अवसर पर एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड के निदेशक श्री सुनील कुमार शर्मा ने बताया कि कंपनी वर्तमान में मुख्य रूप से ऊँटनी के दूध के उत्पादों के कारोबार में लगी हुई है और विभिन्न देशों को ऊँटनी के दूध के उत्पादों का निर्यात भी कर रही है। कंपनी का इरादा ऊँटनी के दूध के गुणवत्तापूर्ण उत्पादों को बाजार में लाना है ताकि जरूरतमंद और आम लोगों को इसका लाभ मिल सके और उत्पाद की कम गुणवत्ता होने से निर्यात के अवसर छूट न जाएं। श्री शर्मा ने एनआरसीसी के निदेशक और वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया जिन्होंने उनकी कंपनी को इस अभिनव पाउडर बनाने की तकनीक प्राप्त करने में मदद की।
डॉ योगेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक, प्रभारी, डेयरी प्रौद्योगिकी और प्रसंस्करण इकाई तथा प्रभारी, संस्थान प्रौद्योगिकी प्रबंधन इकाई, ने इस तकनीक के हस्तांतरण में मदद की । डॉ. आर.के. सावल, प्रधान वैज्ञानिक, डॉ. वेद प्रकाश (प्रभारी, पीएमई सेल), और एएसडी राजस्थानी डेयरी प्रोडक्ट्स प्रा. लिमिटेड के प्रतिनिधि भी इस अवसर पर उपस्थित थे।
एनआरसीसी में इम्यूनोलाजी संबद्ध दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यषाला का आयोजन
बीकानेर 16 फरवरी, 2023 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर एवं इंडियन इंस्टियूट आॅफ साइंस, बेगलूरू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित की जा रही ‘इम्यूनोलाजी एण्ड इट्स एप्लीकेशन्स्‘ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आज एनआरसीसी में शुभारम्भ किया गया। जिसमें एनआरसीसी एवं आईआईएससी बेंगलूरू सहित बीकानेर के परिषद अधीनस्थ संस्थानों/केन्द्रों के वैज्ञानिकों, विषय-विशेषज्ञों, विषय संबद्ध अनुसंधान कर्ताओं, प्रतिभागियों के रूप में राजुवास, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, एसपी मेडिकल काॅलेज, राजकीय डूँगर महाविद्यालय, बेसिक काॅलेज के साइंस संकाय के छात्र-छात्राओं ने सहभागिता निभाईं।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि डाॅ. अशोक कुमार मोहंती, संयुक्त निदेशक, आईवीआरआई, मुक्तेश्वर ने कहा कि ऊँटों का बायोमेडिकल अनुसंधानों एवं विकास कार्याें में उपयोग हेतु देश एवं विदेश में कई कार्य चल रहे हैं। ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय एवं पोषक गुणधर्माें के कारण मानव उपयोग बहुत यह फायदेमेंद सिद्ध हो रहा है। उन्होंने भारत में ऊँटों की घटती संख्या पर चिंता जाहिर करते हुए इस प्रजाति के संरक्षण की महत्ती आवश्यकता जताई तथा कहा कि पशुओं के दूध में करीब 6000 से ज्यादा प्रकार के प्रोटीन पाए जाते हैं जिनके विविध रूप में उपयोग की संभावना पर अनुसंधान की आवश्यकता है। इस क्रम में एंटीस्नेक विनम तैयार करने हेतु नई आणविक तकनीकों के माध्यम से प्रोटीन की विविधता व उपयोगिता को तलाशा जाना चाहिए ताकि भावी समय में एंटीस्नेक विनम तैयार किया जा सके।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम संयोजक डाॅ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि हमारे लिए अत्यंत हर्ष एवं महत्व का विषय है कि उष्ट्र प्रजाति से प्राप्त नैनो एंटिबाडिज की उपयोगिता हाल के अनुसंधान कार्याें एवं प्राप्त परिणामों से सिद्ध हुई है और देश-विदेश में कई वैज्ञानिक एवं संस्थाएँ एनआरसीसी के साथ समन्वयात्मक अनुसंधान हेतु आगे आए हैं। डाॅ.साहू ने कहा कि वर्तमान समय में उष्ट्र प्रजाति का मानव एवं पशुओं के विभिन्न रोगों के निदान एवं उपचार में अनेकानेक उपयोगिताएँ सामने आ रही है। केन्द्र ने पूर्व में भी इस दिशा में कई अनुसंधान कार्य किए भी हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा उष्ट्र की उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए एंटी-स्नेक (बांडी) वेनम के उत्पादन हेतु बड़े स्तर पर इसके उपयोग की संभावना को तलाशा जा रहा है। डाॅ.साहू ने आशा जताई कि इस दिशा में और बेहतर परिणाम आने पर ऊँट का उपयोग और इस प्रजाति की मांग बढ़ेगी जिसके फलस्वरूप प्रजाति के संरक्षण एवं विकास को बल मिल सकेगा।
सत्र के दौरान डाॅ.कार्तिक सुनागर, असिस्टेंट प्रोफेसर एवं कार्यक्रम संयोजक ने ‘वाई इंडिया नीड्स ए मच-इम्प्रूव्ड स्नैकबाईट थैरेपी‘ विषयक व्याख्यान में बताया कि देश में सांप प्रजाति के संबंध में विशिष्ट जानकारी जुटाने की महत्ती आवश्यकता है क्योंकि एक ही सांप के जहर का प्रभाव भी अलग-2 जगहों के अनुसार भिन्न-2 होता है। आईआईएससी में एक अलग अनुसंधान केन्द्र की स्थापना प्रस्तावित है जिसमें विभिन्न प्रजातियों के सर्पाें को रखा जाएगा एवं इसके विष का संग्रहण, विश्लेषण एवं अनुसंधान किया जाएगा। साथ ही इससे बेहतर एंटीस्नैक विनम की दिशा प्रशस्त होगी।
केन्द्र के डाॅ.एस.के.घौरूई, प्रधान वैज्ञानिक एवं आयोजन सचिव ने एनआरसीसी द्वारा विषयगत अनुसंधान की व्याख्यान के माध्यम से जानकारी देते हुए कहा कि केन्द्र में हुए ऊँटों से जुड़े अनुसंधान के फलस्वरूप एंटीस्नेक (बांडी) विनम तैयार करने की दिशा में उल्लेखनीय अनुसंधान कार्य किया गया है तथा स्वदेशी थायरोग्लोबुलीन परिमापण किट का विकास, विभिन्न मानवीय रोगों के निदान हेतु नई तकनीकों में विकसित करना, बैक्टिरिया में एंटिबायोटिक रोधी गुणों के विकास को रोकने एवं उनसे होने वाले रोगों के बेहतर ईलाज की संभावनाएँ जागी है।
चर्चा सत्र के दौरान के डाॅ.पी.डी.तॅंवर, जे.एस., एस.पी.मेडिकल काॅलेज, डाॅ.एस.पी.मेहता, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीई, डाॅ.आर.के.सावल, डाॅ.सुमन्त व्यास, डाॅ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी आदि ने विषयगत गहन चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया। वहीं प्रथम दिवस के दोपहर से राजकीय डूंगर महाविद्यालय में चले तकनीकी सत्रों में आईआईएससी बेंगलूरू के डाॅ.कार्तिक सुनागर, श्री अजिंक्या उनावने, सुश्री सेनजी लक्ष्मी ने अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए।
विश्व हिन्दी दिवस पर उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा कार्यशाला आयोजित
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा विश्व हिन्दी दिवस के अवसर पर दिनांक 10.01.2023 को राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। दीप प्रज्वलन के साथ प्रारम्भ हुई इस कार्यशाला में अतिथि वक्ता के रूप में श्री राजेन्द्र जोशी, वरिष्ठ साहित्यकार, बीकानेर ने ‘‘हिन्दी भाषा : वैश्विक परिदृश्य में’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि भाषा संस्कृति को लेकर आगे बढ़ती है और यदि भारतीयता की बात की जाए तो यहां का व्यक्ति विश्व में कहीं पर भी जाएगा तो उसके साथ प्रांतीय भाषाओं के साथ हिन्दी भाषा अवश्य जाती है तभी विश्व के अनेकानेक देशों में हिन्दी निरंतर फल-फूल रही है। उन्होंने भाषा को गर्व के साथ अपनाने की बात कही। श्री जोशी ने समय के साथ भाषा बदलाव की बात करते हुए कहा कि हिन्दी की शब्द संपदा समृद्ध है, इसमें एक ही शब्द के अनेक पर्यायवाची शब्द उपलब्ध है तथा उनके वाक्यों में प्रयोग भी भिन्न-भिन्न स्वरूपों में होते हैं। अतिथि वक्ता ने हिन्दी भाषा के इतिहास, व्याकरण, हिन्दी के वैश्विक प्रसार, जन जीवन के साथ हिन्दी भाषा के जुड़ाव के अलावा केन्द्र के कार्यक्षेत्र- ‘ऊँट’ एवं परंपरागत रीति-रिवाजों के संबंध में भी अपने विचार रखें।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि विश्व हिन्दी दिवस का मुख्य प्रयोजन यह रहा कि हम, देश के भीतर तो हिन्दी भाषा में बात करते हैं परंतु विश्व स्तर पर भी इसमें संवाद स्थापित किया जाना चाहिए ताकि भाषा का प्रचार-प्रसार हो सके। डॉ.साहू ने कहा कि यह सर्वाधिक लोगों द्वारा बोली जाने वाली विश्व की तीसरी बड़ी भाषा है, यह समृद्ध भाषा है, अत: इसे बढ़ावा दिया जाना हम सभी का नैतिक दायित्व हैं । इस दौरान डॉ.साहू ने संस्थान की राजभाषा कार्यों एवं गतिविधियों पर प्रकाश डाला तथा ऊँटों के विविध पहलुओं पर राजभाषा पत्रिका ‘करभ’ एवं हिन्दी में प्रकाशित वैज्ञानिक साहित्य की जानकारी दी साथ ही यह मंशा जताई कि साहित्य विधा से जुड़े विद्वानों से ऊँटों संबंधी विविध विषय वर्गीय साहित्यिक जानकारी का संकलन किया जाए ताकि अधिकाधिक लोग ऊँट एवं इसकी विशेषताओं को जान सकें। उन्होंने संस्थान की ‘ ऊँट इको-टूरिज्म’ अवधारणा पर भी अपनी बात रखीं।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राजेश कुमार सावल ने राजभाषा कार्यशाला के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी के बढ़ते कदम संबंधी अपने विचार रखे।
एनआरसीसी में ‘श्रम सुविधा पोर्टल’ और ‘समाधान पोर्टल’ जागरूकता कार्यशाला आयोजित
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में दिनांक 08.12.2022 को ‘श्रम सुविधा पोर्टल’ और ‘समाधान पोर्टल’ जागरूकता कार्यशाला का आयोजन केन्द्र के समिति कक्ष में सायं 4.00 बजे किया गया। इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में सुश्री रीगा जयसिंह चौहान, रिजनल लेबर कमिशनर (सेन्ट्रल), जयपुर ने उपर्युक्त पोर्टलों संबंधी अपना व्याख्यान दिया। कार्यशाला की अध्यक्षता केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने की। इस अवसर पर श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के बीकानेर स्थित कार्यालय के पदाधिकारियों, केन्द्र के श्रम कार्यक्षेत्र से जुड़े अधिकारियों/कर्मचारियों, संबद्ध ठेकेदारों तथा संविदा/अनुबंधित श्रमिकों सहित लगभग 50 प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया।
अपने व्याख्यान के दौरान सुश्री रीगा जयसिंह ने कहा कि भारत सरकार के श्रम एवं रोजगार मंत्रालय का इन पोर्टल के माध्यम से मुख्य प्रयोजन है कि देश में रोजगार प्रदाता कंपनी/संस्थान/संगठन आदि और उनमें कार्यरत श्रमिकों के मध्य पारदर्शिता बनाए रखने के साथ श्रमिकों की आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा उनकी शिकायतों के प्रति अपेक्षित ध्यान दिया जा सके। उन्होंने कहा कि मंत्रालय इन्हें गंभीरता से लेता है। उन्होंने ‘श्रम सुविधा पोर्टल’ और ‘समाधान पोर्टल’ पर लेबर आईडेंटिफिकेशन नम्बर, लाईसेंस संबंधित सर्विसेज, यूनिफाइड रिटर्न्स, श्रमिकों के अधिकार, स्वास्थ्य सुविधाओं/कार्ड, ग्रेच्युटी सुविधा आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि अब इस ऑनलाइन सुविधा से काम काफी आसान हो गया है, अत: इनके प्रति अद्यतन होने के साथ-साथ जागरूकता लाई जानी चाहिए ।
इस अवसर पर बैठक की अध्यक्षता करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू द्वारा केन्द्र के अधिदेशों, अनुसन्धान गतिविधियों एवं उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास से जुड़े विविध कार्यों एवं अद्यतन व्यावहारिक प्रयासों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी गई । डॉ.साहू ने कहा कि एन.आर.सी.सी. एक उत्कृष्ट अनुसन्धान संस्थान होने के साथ-साथ पर्यटनीय स्थल के रूप में भी अपनी वैश्विक छवि को संजोए है, इन सब के पीछे एक व्यवस्थित कार्यप्रणाली काम करती है। डॉ.साहू ने कहा कि यह केन्द्र, कार्यरत अनुबंधित श्रमिकों के हितों के प्रति विशेष जागरूकता तथा सदाशयता बरतता है जो कि संस्थान का महत्वपूर्ण दायित्व भी है । उन्होंने मुख्य वक्ता द्वारा प्रस्तुत व्याख्यान को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया तथा आशा व्यक्त की कि इससे निश्चित रूप से जरूरतमंदों को लाभ मिल सकेगा।
इस अवसर पर केन्द्र के प्रशासनिक अधिकारी श्री अखिल ठुकराल ने केन्द्र तथा कार्यालय परिसर में कार्यरत अनुबंधित श्रमिकों के संबंध में वस्तुस्थिति की जानकारी दी वहीं इस अवसर पर श्री अशोक मित्तल, श्रम प्रवर्तन अधिकारी, बीकानेर द्वारा भी श्रमिकों के हितार्थ भारत सरकार के प्रावधानों की जानकारी दी गई। केन्द्र के पूल अधिकारी (अनुबंधित श्रमिक सर्विसेज) ने कार्य आंवटन के बारे में बताया तथा इस अवसर बीकानेर के श्रम विभाग (केन्द्रीय) के श्री सुधीर मीणा भी मौजूद रहे।
एनआरसीसी द्वारा विशेष स्वच्छता अभियान तहत प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन
बीकानेर 31.10.2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा भारत सरकार के निर्देशानुसार स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत दिनांक 02 अक्टूबर से 31 अक्टूबर 2022 की अवधि में विशेष स्वच्छता (लंबित मामलों के निस्तारण के लिए) अभियान के तहत स्वच्छता संबंधी संदेश को व्यापक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित करने के उद्देष्य से केन्द्र द्वारा आज प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया।
प्रेस वार्ता के दौरान केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने संवाददाताओं/पत्रकारों से मुखातिब होते हुए कहा कि केन्द्र द्वारा इस विशेष स्वच्छता अभियान के तहत निर्धारित गतिविधियाँ पूरे मनोयोग से संचालित की गई। डॉ.साहू ने स्वच्छता के महत्व एवं इसके प्रति जागरूकता पर बात करते हुए कहा कि महात्मा गांधी के अलावा माननीय प्रधानमंत्री द्वारा स्वच्छता के प्रति जागरूकता का यह अभियान अब धीरे-धीरे हम भारतीयों की आदत में शामिल हो रहा है, स्वच्छता को लेकर आमजीवन की मानसिकता में परिवर्तन आने से हमारे सार्वजनिक स्थल, विद्यालय, अस्पताल तथा पर्यटन स्थलों आदि की स्थिति में महत्वपूर्ण सुधार देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र की अनुसंधान के अलावा पर्यटन स्थल के रूप में भी एक विशिष्ट वैश्विक छवि है, इसे बनाए रखने में स्वच्छता संबंधी अभियान महत्ती रूप से सहायक सिद्ध हो रहे हैं, इस दर्शनीय स्थल को देखने आमजन दिन-ब-दिन अधिकाधिक आकर्षित हो रहे हैं तथा केन्द्र को पर्यटनीय सुविधाओं के माध्यम से एक अच्छी खासी आय भी प्राप्त हो रही है जिन्हें देख ऊँट पालकों को भी इसे उद्यमिता से जुड़ते हुए लाभ कमाना चाहिए। डॉ.साहू ने वार्ता में ऊँटनी के दूध के महत्व एवं केन्द्र द्वारा विकसित विभिन्न स्वादिष्ट दुग्ध उत्पादों का स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभ संबंधी जानकारी भी दीं।
केन्द्र के नोडल अधिकारी (स्वच्छता) श्री अखिल ठुकराल, प्रशासनिक अधिकारी ने केन्द्र में एक माह तक चली स्वच्छता गतिविधियों को प्रस्तुत करते हुए बताया कि अभियान में कार्यालयीन गतिविधियों के अलावा अन्य कार्यक्रमों यथा-पशु स्वास्थ्य शिविर, बालक-बालिकाओं हेतु प्रतियोगिता, सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई एवं पर्यटन विकास को बढ़ावा देने स्वच्छता संबंधी गतिविधियों संचालित की गई।
इस अवसर पर स्वच्छता गतिविधियों, केन्द्र के अनुसंधान खासकर ऊँटनी के दूध एवं पर्यटन विकास के कई मुद्दों पर भी बातचीत की गई। वार्ता के दौरान ऊँटनी के दूध के नूतन उत्पादों का रसास्वादन भी करवाया गया। अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
बीकानेर 17.09.2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में ‘ओजोन लेयर, इट्स डिप्लीशन एण्ड इम्पेक्ट ऑन लिविंग बींगस् - OZONE LAYER, ITS DEPLETION AND IMPACT ON LIVING BEINGS’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आज समापन हुआ । नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली द्वारा एनआरसीसी सहित अन्य विभिन्न संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न प्रान्तों दृ जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, नई दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों के प्रतिभागियों ने इस आयोजन के माध्यम से अपने अनुसंधान को प्रस्तुत किया ।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो.जीत सिंह सन्धु, कुलपति, श्री कर्ण नरेन्द्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर ने कहा कि ओजोन परत के क्षरण एवं इसके प्रभावों पर गहन वैज्ञानिक चिंतन आज के समय की मांग है । क्योंकि अभी भी इस संबंध में पर्याप्त अनुसंधान साहित्य की कमी है । उन्होंने कहा कि सम्मेलन में विभिन्न पहलुओं पर मंथन तथा प्राप्त होने वाले निष्कर्षों एवं सुझावों के आधार पर ओजोन परत के क्षरण को रोकने एवं आमजन में इसके प्रति जागरूकता लाने की दिशा में यह निश्चित रूप से मददगार साबित हो सकेगा ।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू, निदेशक, एनआरसीसी,बीकानेर ने कहा कि अल्ट्रावाईलेंट किरणें जीव जगत के लिए अत्यधिक हानिकारक है । अत: इन्हें रोकने के लिए ओजोन परत क्षरण को प्राथमिकता पर रोका जाना चाहिए। इसके लिए हमें व्यापक सोच के साथ एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में पर्यावरणीय दायित्व निर्वहन करना होगा । डॉ.साहू ने कहा कि ऊँट, ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन अन्य रूमीनेंटस् से कम करता है, यह बात सिद्ध भी हो चुकी है । इसलिए ऊँट को एक एनवॉयरमेंट फ्रेंडली पशु मानते हुए इसका पालन समग्र मानवता के हित में किया जाना चाहिए ।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ.एन.डी.यादव, अध्यक्ष, काजरी, बीकानेर ने कहा कि ओजोन परत के क्षरण को रोकने के लिए एक कानूनी नीति तैयार की जानी चाहिए जिसमें वातावरण को प्रदूषित करने पर जिम्मेदारी तय की जाए । इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ.ए.के.वर्मा, सचिव, एशियन बायोलोजिकल रिसर्च फाउंडेशन (एबीआरएफ) ने कहा कि ओजोन परत के क्षरण से वैश्विक स्तर पर जो चिंता की लकीरें उभरी थीं, विगत वर्षों में सबके सकारात्मक प्रयासों से उसकी मोटाई में वृद्धि हुई है जो कि इस दिशा में और अधिक प्रयास हेतु प्रेरित कर रही है ।
समापन कार्यक्रम से पूर्व आमंत्रित विषय विशेषज्ञों द्वारा पशुधन सत्र के दौरान अपने लीड पेपर प्रस्तुत किए । तत्पश्चात राउंड टेबल डिस्कशन में ओजोन परत के प्रबंधन एवं पुनःस्थापन ( रेमेडिएशन) पर गहन विचार किया गया तथा इस आधार पर एक अनुशंसा नोट तैयार किया गया । समापन कार्यक्रम में बेस्ट ऑरल प्रजेंटेशन एवं बेस्ट पोस्टर प्रजेंटेशन के विजेताओं को अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया । आयोजन सचिव डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी ने आयोजन संबंधी विस्तृत में जानकारी देते हुए आयोजन में पधारे सभी गणमान्य जनों, शोधकर्त्ताओं, प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।
एनआरसीसी व एसपी मेडिकल कॉलेज के मध्य एमओयू पर हस्ताक्षर
बीकानेर 14 सितम्बर, 2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) बीकानेर एवं सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज, बीकानेर के बीच आज एक महत्वपूर्ण एमओयू किया गया है।
इस द्विपक्षीय समझौते (एमओयू) पर भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू एवं सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मोहम्मद सलीम ने हस्ताक्षर किए।
इस महत्वपूर्ण एमओयू पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि इस एमओयू के माध्यम से हम मिलकर कैमल मिल्क व इससे निर्मित दुग्ध उत्पादों की मानव के विभिन्न रोगों यथा-क्षय रोग, डेंगू, मधुमेह व अन्य रोगों में सहायक थैरेपी के रूप में शोध कार्य करेंगे। डॉ. साहू ने कहा कि ऊँटनी के दूध व उत्पादों का सदियों से परपंरागत औषधीय उपयोग होता रहा है। इन्हीं गुणों को वैज्ञानिक तरीके से मानव रोगों में क्लिनिकल शोध के द्वारा प्रमाणित करने हेतु अनेकों योजनाएं आने वाले समय में क्रियान्वित की जाएगी । उन्होंने कहा कि शोध के सकारात्मक परिणाम प्राप्त होने पर उष्ट्र विकास एवं संरक्षण को भरपूर बल मिलेगा। साथ ही इससे मरुस्थल के जहाज की ‘औषधीय भण्डार’ के रूप में उपादेयता को भी सिद्ध करने में महत्ती सहायता मिल सकेगी।
एसपी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. मोहम्मद सलीम ने एनआरसीसी से इस एमओयू के माध्यम से जुड़ने पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि एनआरसीसी एक उत्कृष्ट अनुसन्धान संस्थान है तथा ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता को दृष्टिगत रखते हुए विभिन्न मानव रोगों के उपचार हेतु शोध कार्य किया जाएगा। इस एमओयू के तहत आने वाले समय में अनेकों शोध कार्य समन्वयात्मक रूप से क्रियान्वित किए जा सकेंगे।
इस एमओयू पर अन्य हस्ताक्षरी के रूप में एसपी मेडिकल कॉलेज की ओर से डॉ. बालकिशन गुप्ता, वरिष्ठ प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष (मेडिसिन), डॉ. सुरेन्द्र कुमार, अतिरिक्त प्रिंसिपल, डॉ..संजय कुमार कोचर, डॉ. अंजली गुप्ता एवं डॉ. परमिन्द्र सिरोही थे, वहीं एनआरसीसी की तरफ से डॉ. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक एवं डॉ. श्याम सुन्दर चौधरी, वैज्ञानिक मौजूद थे।
अनुसूचित जनजाति उपयोजना के किसानों का एन.आर.सी.सी. में भ्रमण कार्यक्रम
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के अन्तर्गत बीकानेर स्थित केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम तहत गुड़ामनाली व बायतु, जिला बाड़मेर के 40 पशुपालकों/किसानों ने दिनांक 30 अगस्त, 2022 को भ्रमण किया । इस दौरान पशुपालकों/किसानों के पास एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया एवं उन्हें केन्द्र द्वारा फील्ड स्तर पर किए जा रहे कार्यों की व्यावहारिक जानकारी भी गई ।
किसानों से संवाद के दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने अनुसन्धान कार्यों एवं उपलब्धियों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह केन्द्र, परिवर्तित परिदृश्य में उष्ट्र पालन व्यवसाय के संरक्षण एवं विकास हेतु विविध रूपों में सतत प्रयत्नशील है तथा विशेषकर उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय एवं उष्ट्र पर्यटन विकास को नूतन आयामों में बढ़ावा देने हेतु यह केन्द्र दृढ़संकल्पित है क्यांकि इनमें उद्यमिता विकास की प्रबल संभावनाएं विद्यमान है तथा प्रदेश का पशुपालक/किसान आय स्रोत के रूप में अपनाकर इनसे अच्छी खासी आमदनी प्राप्त कर सकता है । डॉ.साहू ने ऊँटनी के दूध उत्पादन, इसके संग्रहण, बाजार एवं विपणन आदि विभिन्न मुद्दों को किसानों के समक्ष रखा तथा इस संबंध में खुलकर बातचीत हुई ।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने इस दल को बताया कि पशुपालक/किसान मौसमी चारे को एक एकत्रित कर पशु आहार चारे की कमी को दूर कर सकते हैं, ऐसे कई प्रोटीनयुक्त चारे यथा- नागफनी, नीम, सहजन, शहतूत आदि को खेतों की मेड़ पर लगाकर तथा कीकर, सिरस, विलायती बबूल की पत्तियों से पशु के आहार प्रबंधन को पौष्टिक व सस्ता बना सकते हैं ।
केन्द्र वैज्ञानिकों में – श्रीमती प्रियंका गौतम एवं डॉ.शान्तनु रक्षित द्वारा इस दल को उष्ट्र डेयरी, उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, पशु चारा उत्पादन इकाई, कैमल मिल्क पार्लर, हर्बल गार्डन तथा उष्ट्र पर्यटनीय विकास की दिशा में केन्द्र द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों संबंधी व्यावहारिक जानकारी दी गई । वहीं वैज्ञानिकों द्वारा बाड़मेर क्षेत्र में उपलब्ध वनस्पति खासकर वर्तमान में अनार आदि के रस (जूस), बीज, तेल, पत्ते/अनार छिलके आदि प्राकृतिक संसाधनों के प्रति जागरूकता बनाए रखने हेतु भी प्रोत्साहित किया गया । बाड़मेर गुड़ामनाली के प्रगतिशील किसान प्रतिनिधि ने केन्द्र वैज्ञानिकों से चर्चा के दौरान कृषि विज्ञान केन्द्र, गुडा मनाली में केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के कुशल मार्गदर्शन में किसानों के हितार्थ की जा रही प्रसार गतिविधियों की जानकारी दी तथा उष्ट्र पालन उद्यमिता से जुड़ी जानकारी के लिए निदेशक डॉ.साहू एवं केन्द्र वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया ।
स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय वैज्ञानिकों के योगदान पर एनआरसीसी में राजभाषा कार्यशाला आयोजित
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में आज ‘स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय वैज्ञानिकों का योगदान’ विषयक राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य पर स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित इस कार्यशाला में मुख्य वक्ता के रूप में प्रो.पुरुषोत्तम परांजपे, सेवानिवृत्त आचार्य, डी, ए.वी.कॉलेज, अजमेर ने कहा कि देश की आजादी में वैज्ञानिकों का महत्वपूर्ण योगदान रहा जिन्होंने जन मानस में स्वाभिमान की भावना को जगाया । अतिथि वक्ता ने प्रमुख रूप से तीन वैज्ञानिकों- जगदीश चन्द्र बसु, सी.वी.रमन, तथा प्रफुल्लचन्द्र राय की जीवनी एवं स्वतंत्रता में इनके महत्वपूर्ण योगदान का विस्तृत उल्लेख करते हुए कहा कि उस दौर में जब वैश्विक स्तर पर यूरोप के आविष्कार एवं ज्ञान की तूती बजती थी तो इन वैज्ञानिकों ने भारतीय प्राचीन वैज्ञानिक ज्ञान को संपूर्ण विश्व के समक्ष रखा जिससे भारत के प्रति वैश्विक स्तर पर एक आदर का भाव उत्पन्न हुआ। प्रो.परांजपे ने साहित्यकारों के रूप में बंकिमचन्द्र चटर्जी, मुंशी प्रेमचन्द, दिनकर आदि के योगदान की सराहना की। अंत में उन्होंने कहा कि किसी भी देश समाज का वैज्ञानिक जब जागता है तो कोई भी लड़ाई जीतीं जा सकती हैं।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विषयगत व्याख्यान पर बोलते हुए कहा कि स्वतंत्रता आंदोलन एवं इसमें विविध विधा से जुड़े विद्वानों के योगदान, किताबों में भी कई बार भलीभांति रूप से सामने नहीं आ पाता । उन्होंने मुख्य वक्ता की प्रशंसा करते हुए कहा कि व्याख्यान में जिस प्रकार से स्वतंत्रता में वैज्ञानिकों के योगदान का विश्लेषण किया गया है, इसकी दरकार है । डॉ.साहू ने कहा कि भारत के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान की विकास यात्रा को देखें तो कई रौचक बाते सामने आएंगे । उन्होंने कहा कि यदि हम चिंतन करें तो यह महसूस होगा कि भारत किसी से कम नहीं था, हमें भारतीयता पर गर्व करना चाहिए । डॉ.साहू ने इस मौके पर वैज्ञानिक लेखन को हिन्दी भाषा में अधिकाधिक बढ़ावा देने की बात भी कही।
केन्द्र के डॉ.सुमन्त व्यास, प्रधान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी, राजभाषा ने कार्यशाला के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रतिभागियों को प्रस्तुत व्याख्यान से प्रेरित होकर नए तरीके से विश्लेषण करने हेतु प्रोत्साहित किया। कार्यशाला में डॉ. एम.डी.शर्मा, विभागाध्यक्ष (भौतिक), राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर ने भी शिरकत की।
एनआरसीसी ने सीमा सुरक्षा बल के उष्ट्र प्रबंधकों को दिया प्रशिक्षण
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) में दिनांक 20.08.2022 को आए सीमा सुरक्षा बल (बीएसएस), बीकानेर के 74 उष्ट्र प्रबंधकों (हैन्डलर्स) को ऊँटों के रखरखाव, स्वास्थ्य एवं आहार प्रबंधन आदि के सम्बन्ध में वैज्ञानिक प्रशिक्षण प्रदान किया गया। साथ ही इन कैमल हैन्डलर्स को केन्द्र के महत्वपूर्ण स्थलों यथा- उष्ट्र डेयरी, उष्ट्र बाड़ों, उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र दौड़ ट्रेक, बुल एक्सरसाइजर आदि का भ्रमण करवाते हुए संबंधित व्यावहारिक जानकारी भी दी गई ।
इस दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू द्वारा जवानों को एन.आर.सी.सी. द्वारा प्राप्त वैज्ञानिक उपलब्धियों एवं गतिविधियों के बारे में संक्षिप्त में जानकारी देते हुए ऊँटों के वैज्ञानिक तरीकों से प्रबंधन एवं आहार आवश्यकताओं संबंधी पहलुओं पर विशेष ध्यान दिए जाने की बात कही। डॉ.साहू ने कहा कि यह केन्द्र ऊँटों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु इस प्रजाति के जनन, प्रजनन, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य, आनुवांशिकी, दूध आदि विविध पहलुओं पर प्रतिबद्धता से कार्य कर रहा है तथा इस संबंध में किसी भी प्रकार की आवश्यकता होने पर केन्द्र अपनी सेवाएं देने हेतु तत्पर रहेगा।
केन्द्र के डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने बीएसएफ के इस दल को ऊँटों के लिए प्रयुक्त किए जाने वाले आहार चारे की पहचान करवाने के साथ इनकी पौष्टिक आवश्यकताओं, आरामदायक आवास (सेल्टर) व्यवस्था, पशुओं हेतु स्वच्छता आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में बताया वहीं केन्द्र के डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी द्वारा ऊँटों की स्वास्थ्य देखभाल को जरूरी बताते हुए उनमें पाए जाने वाले गंभीर रोगों की लक्षणों के आधार पर पहचान कर उनका समय पर उपचार करवाने एवं उचित समाधान हेतु पशु चिकित्सकीय परामर्श का सुझाव दिया।
उल्लेखनीय है कि बीएसएफ द्वारा प्रथम बार कैमल हैंडलिंग और मैनेजमेंट का यह कोर्स प्रारम्भ किया गया जिसमें 74 जवानों को इस छ: सप्ताह की ट्रेनिंग के बाद प्रशिक्षित जवान ऊँटों पर अपनी बटालियन में बॉर्डर की सुरक्षा का कार्य करेंगे। ऊँटों के स्वास्थ्य एवं प्रबंधन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ही बीएसएस द्वारा केन्द्र के माध्यम से यह प्रशिक्षण दिलवाया गया । अंत में दल के प्रतिनिधि डॉ.सावरमल बिश्नोई, वेटरनरी कमान्डेंट ने एन.आर.सी.सी. में प्राप्त प्रशिक्षण को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए इस हेतु केन्द्र निदेशक डॉ.साहू एवं वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
एनआरसीसी ने मनाई आजादी का अमृत महोत्सव तहत 75वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य पर भारत की स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ- 15 अगस्त, 2022 को केन्द्र-परिवार सहित एक स्मरणोत्सव के रूप में मनाया गया । सुबह झण्डारोहण कार्यक्रम में राष्ट्र गान के साथ ही एनआरसीसी का संपूर्ण परिसर ‘भारत माता की जय’ के नारों से गूंज उठा।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने 75 वीं स्वतंत्रता वर्षगांठ पर झण्डारोहण करते हुए सर्वप्रथम इस पावन दिवस की सभी को बधाई संप्रेषित की तथा कहा कि देश की आजादी में हमारे महापुरुषों, वीर जवानों, ऋषियों, माताओं-बहनों, आमजन के त्यागमयी योगदान के कारण ही आज हम आजाद भारत की 75 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, अत: इसे ध्यान में रखते हुए हमें देश हित को सदैव सर्वोपरि रखना होगा । इस प्रकार की भावना हमारे राष्ट्र को उत्तरोत्तर विकास के पथ की ओर अग्रसर करेंगी ।
इस अवसर पर जिला पर्यावरण समिति, बीकानेर की ओर से केन्द्र को प्राप्त ‘हरित बिकाणा पुरस्कार 2022’ केन्द्र निदेशक डॉ.साहू को सौंपा गया । साथ ही उन्होंने केन्द्र के समाचार-पत्र व अनुसन्धान उपलब्धियों संबंधी पुस्तिका का भी विमोचन किया ।
आजादी के अमृत महोत्सव की वर्षगांठ पर केन्द्र द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. नीरज के. पवन, संभागीय आयुक्त, बीकानेर ने एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों हेतु डॉ. साहू को बधाई देते हुए कहा कि हम सभी को राष्ट्र के प्रति अपने दायित्व का बखूबी निवर्हन करना चाहिए ताकि अनुसन्धान व प्रौद्योगिकी आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में हमारा देश तीव्र गति से आगे बढ़ सके ।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने संस्थागत विकास का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी संस्थान की प्रगति में सभी का समन्वित योगदान अत्यंत महत्व रखता है । उन्होंने केन्द्र अधिकारियों द्वारा किए गए नवाचारी प्रयासों को सदन के समक्ष रखते हुए इसकी सराहना की तथा सभी को मिल-जुलकर एनआरसीसी को आगे बढ़ाने हेतु प्रोत्साहित किया ।
कार्यक्रम के विशिष्टि अतिथि श्री एन.राम, महाप्रबंधक, भारत संचार निगम लिमिटेड, बीकानेर ने देश विकास के साथ एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे उल्लेखनीय कार्यों की भूरि-भूरि प्रशंसा की ।
इस अवसर पर संभागीय आयुक्त महोदय के कर कमलों से केन्द्र में लगे बीएसएनएल टॉवर, महाराजा गंगासिंह उष्ट्र सेना कोर तथा उष्ट्र आहार/चारा पोस्टरों, केन्द्र-गीत का विमोचन (लॉन्च) किया गया । सांस्कृतिक कार्यक्रम में प्रतिभागी बालक-बालिकाओं को पारितोषिक वितरित किए गए । साथ ही केन्द्र-गीत के रचयिता श्री श्याम ‘निर्मोही एवं गायक।/कम्पोजर श्री सुजीत कुमार को सम्मानित किया गया। अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी द्वारा वित्त विषयक परिचर्चा का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के तहत आयोज्य कार्यक्रमों की श्रँखला में कार्यालयीन कार्यों के बेहतर प्रबन्धन एवं सम्बन्धित अद्यतन जानकारी संप्रेषित करने के प्रयोजनार्थ दिनांक 10 अगस्त, 2022 को एक वित्त परिचर्चा का आयोजन किया गया।
केन्द्र द्वारा आयोजित इस परिचर्चा में मुख्य अतिथि के रूप में श्रीमान जी.पी.शर्मा, संयुक्त सचिव (वित्त), भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद, नई दिल्ली ने केन्द्र के अधिकारियों/कर्मचारियों से उनके कार्यक्षेत्र संबंधी विभिन्न पहलुओं/मुद्दों पर बातचीत की। श्री शर्मा ने कहा कि हम सभी सिस्टम का एक हिस्सा है तथा नियम संगत एवं निर्धारित प्रावधान के अनुसार अद्यतन जानकारी व इनमें कुशलता, कार्य निष्पादन को न केवल सहज व सरल बनाती है अपितु इससे समय व ऊर्जा की भी बचत होती है। उन्होंने परिचर्चा के दौरान वित्त संबंधी प्रावधानों एवं इनकी प्रक्रिया, पीएफएमएस (टीएसए), सीएनए तथा बाह्य अंशादित योजनाओं संबंधी आदि के संबंध में विस्तृत जानकारी दी साथ ही जीएसटी, आईटीआर, कैमिकल्स रेट कॉन्ट्रेक्ट आदि से जुड़ी जिज्ञासाओं का निराकरण भी किया ।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कौशल अभिवृद्धि से जुड़ी इस परिचर्चा को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कार्मिकों को नियम संगत अद्यतन एवं पूरी जानकारी होने से उनके द्वारा निष्पादित कार्यों में न केवल समयबद्ध कार्य करने में सहायता मिलती है अपितु इससे पारदर्शिता भी बनी रहती है । डॉ.साहू ने विविध कार्यक्षेत्रों के तहत कार्य कुशलता को संस्थान की समग्र प्रगति में भी महत्ती रूप से सहायक बताया ।
परिचर्चा में एन.आर.सी.सी. के वैज्ञानिक, प्रशासनिक वर्ग के अधिकारी एवं कर्मचारी गणों के अलावा भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के बीकानेर स्थित भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केन्द्र एवं भाकृअनुप-केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसन्धान संस्थान के अध्यक्षों, वैज्ञानिकों/संबंधित अधिकारियों, भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान के वित्त एवं लेखाधिकारी आदि सहित करीब 40 ने शिरकत की । अंत में श्री अखिल ठुकराल, प्रशासनिक अधिकारी ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
एनआरसीसी को मिला ‘हरित बिकाणा पुरस्कार-2022’
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर को जिला पर्यावरण समिति बीकानेर की ओर से ‘’हरित बिकाणा पुरस्कार 2022’’ से नवाजा गया । जिला पर्यावरण समिति एवं वन विभाग, बीकानेर के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 09.08.2022 को आयोजित इस 73 वें जिला स्तरीय वन महोत्सव के अवसर पर संभागीय आयुक्त डॉ. नीरज के. पवन एवं जिलाधीश श्री भगवती प्रसाद कलाल के कर कमलों से केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू को यह पुरस्कार प्रदान किया गया । उल्लेखनीय है कि बीकानेर जिले में ‘’हरितमा’’ को बढ़ावा देने हेतु किए गए संस्थागत श्रेणी के तहत राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र को प्रथम पुरस्कार स्वरूप प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया ।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि डॉ. नीरज के. पवन ने आमजन को अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाने हेतु प्रोत्साहित किया वहीं विशिष्ट अतिथि श्री भगवती प्रसाद कलाल ने कम पानी की आवश्यकता वाली स्थानीय वनस्पतियों यथा- जाल, खेजड़ी, बेर, सहजन आदि लगाने की बात कहीं ।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने पुरस्कार प्राप्ति पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इसके पीछे केन्द्र के सभी अधिकारियों/कर्मचारियों के अथक व समन्वित प्रयास निहित है । उन्होंने जिला स्तर पर केन्द्र को इस पुरस्कार से नवाजा जाने को गौरव का विषय बताते हुए पूरे केन्द्र परिवार को बधाई संप्रेषित की । डॉ.साहू ने विषयगत बात रखते हुए आस-पास के क्षेत्रों को हरा-भरा बनाने की अपील की ताकि पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ पशुओं के लिए पर्याप्त चारा उत्पादित हो सके तथा पशुपालकों को उनकी आमदनी में लाभ भी मिल सकेगा।
वन महोत्सव के इस अवसर पर केन्द्र के डॉ.आर. के. सावल, प्रधान वैज्ञानिक, श्रीमती प्रियंका गौतम, प्रभारी चरागाह एवं चारा इकाई, श्री महेन्द्र कुमार राव आदि के साथ-साथ वन विभाग, बीकानेर, सीमा सुरक्षा बल, एवं विभिन्न जिला कार्यालयों के अधिकारियों/कर्मचारियों एवं स्कूली बच्चों ने भी शिरकत की।
एन.आर.सी.सी. द्वारा मानसून पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के तहत आयोज्य कार्यक्रमों की श्रृँखला में दिनांक 05.08.2022 को मानसून पौधारोपण कार्यक्रम का आयोजन किया गया । केन्द्र के सामुदायिक भवन के परिसर में आयोजित इस पौधारोपण कार्यक्रम के तहत खेजड़ी (40) एवं अरडू (160) के कुल 200 पौधे लगाए गए ।
केन्द्र के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री वी.एस. जोरा, उप वन संरक्षक, वन विभाग, बीकानेर ने केन्द्र परिसर तथा इसके कृषि परिक्षेत्र में स्थानीय वनस्पतियों/पेड़ों युक्त आच्छादित हरियाली का अवलोकन करते हुए प्रसन्नता व्यक्त की तथा कहा कि एन.आर.सी.सी. द्वारा सूक्ष्म जलवायु क्षेत्र (माइक्रो-क्लाइमेट) का बेहतरीन स्वरूप में विकास किया गया है जो कि इस परिवर्तित परिदृश्य में पर्यावरण संरक्षण एवं विकास की दिशा में एक महत्ती आवश्यकता है । उन्होंने केन्द्र निदेशक डॉ. साहू को इस हेतु बधाई संप्रेषित करते हुए इस दिशा में अधिकाधिक कार्य करने हेतु एनआरसीसी परिवार का विशेष रूप से उत्साहवर्धन भी किया ।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि एक अनुसन्धान संस्थान होने के साथ-साथ एनआरसीसी वैश्विक स्तर पर अपनी पर्यटनीय छवि के लिए भी जाना जाता है तथा प्रतिवर्ष हजारों सैलानी इस केन्द्र का भ्रमण करने आते हैं, ऐसे में यह केन्द्र उष्ट्र प्रजाति के विकास एवं संरक्षण के उद्देश्य से कैमल-इको टूरिज्म के विकास पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित कर रहा है । साथ ही घने पेड़ों, सुंदर उद्यानों तथा स्वच्छ वातावरण युक्त एक पर्यटन स्थल होने के कारण भी आमजन में दिन-ब-दिन केन्द्र के प्रति आकर्षण खासा बढ़ रहा है । इसे परिलक्षित करते हुए पर्यावरण को लेकर हमारा केन्द्र संजीदा है ।
केन्द्र की श्रीमती प्रियंका गौतम, वैज्ञानिक एवं प्रभारी चरागाह एवं चारा इकाई (जी.एफ.यू.) ने पौधारोपण कार्यक्रम के संबंध में प्रकाश डालते हुए इसे सार्थक बनाने हेतु सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया ।
एनआरसीसी द्वारा हुसंगसर गाँव में पशु शिविर का आयोजन
बीकानेर 30 जुलाई 2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा अनुसूचित जाति उप-योजना (एससीएसपी) के तहत बीकानेर के हुसंगसर गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। केन्द्र की इस गतिविधि में गाँव के 94 पशुपालकों एवं किसानों ने 884 पशुओं- गाय-539, भैंस-18, ऊँट-03, बकरी-224 एवं भेड़-100 सहित भाग लिया।
इस अवसर पर पशुपालकों को सम्बोधित करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि परिवर्तित जलवायु में पशुपालन व्यवसाय के संरक्षण एवं विकास में अद्यतन ज्ञान का विशेष महत्व है। परम्परागत पद्धति के साथ-साथ वैज्ञानिक तरीके से भी पशुओं के प्रबन्धन से व्यवसाय सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं का उन्मूलन होने में सहायता मिलती है तथा इससे भरपूर उत्पादन द्वारा अधिक आमदनी प्राप्त की जा सकती है। डॉ. साहू ने भारत सरकार की पशुपालकों के कल्याणार्थ विभिन्न योजनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करवाते हुए इनके माध्यम से होने वाले प्रदत्त लाभों के प्रति जागरूकता रखने हेतु प्रोत्साहित किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिविर के माध्यम से वितरित दवाइयों को उचित उपयोग में लाया जाना चाहिए ताकि योजनाओं की सार्थकता सिद्ध हो सके। पशुपालकों को हाल में चल रही लम्पी बीमारी सम्बन्धी जिज्ञासाओं के बारे में डॉ. साहू ने कहा कि रोगग्रस्त पशुओं का दूध उबाल कर उपयोग में लाया जाए तथा बाड़ों आदि की उचित साफ-सफाई की जाए ताकि अन्य पशुओं में बीमारी के प्रसार को रोका जा सके।
केन्द्र की अनुसूचित जाति उप-योजना के नोडल अधिकारी प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल, ने कहा कि कृषक-वैज्ञानिक संवाद के दौरान पशुपालकों की समस्याओं/जिज्ञासाओं का उचित निराकरण करते हुए उन्हें ऋतुओं के अनुसार पशुओं की उचित देखभाल करने, उनके लिए पर्याप्त आहार एवं पौष्टिक चारे आदि की पूर्ति, स्वास्थ्य प्रबंधन आदि के प्रति जागरूक किया गया। इस अवसर पर पशु पालकों को केन्द्र में निर्मित पशुओं के पौष्टिक आहार (संतुलित पशु आहार) व खनिज मिश्रण का भी वितरण किया गया तथा केन्द्र उत्पादित पौष्टिक नेपियर घास के बारे में भी जानकारी दी तथा घास के करीब 500 पौध (कटिंग) पशुपालकों में वितरित की गई ताकि पशुपालक वर्षभर चारा ले सके।
इस अवसर पर केन्द्र की पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुमनिल ने शिविर में लाए गए पशुओं में होने वाली बीमारियों संबंधी चर्चा की तथा पाई गई बीमारियों के उपचार हेतु दवा दी गई तथा उचित समाधान बताया गया।
हुसंगसर गांव के श्री शिवजी, सरपंच ने केन्द्र सरकार की इस योजना के महत्व का जिक्र करते हुए इसके सफल क्रियान्वयन में एनआरसीसी की सक्रियता को सराहा। इस पशु स्वास्थ्य कैम्प में केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार, दवा व पशु आहार वितरण जैसे विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग दिया।
A team of travel agents/ tour operators from different states of India visited NRCC on 26 July 2022. They explored tourism facilities available at NRCC and interacted with the Director and Scientists of the institute.
ऊँट की अपशिष्ट ऊन निर्मित थैलियों युक्त नर्सरी (पौधशाला) का शुभारम्भ
28.07.2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य पर शँखलाबद्ध कार्यक्रमों के तहत ऊँट-भेड़ की अपशिष्ट ऊन (वेस्ट-वूल) निर्मित थैलियों युक्त नर्सरी (पौधशाला) का शुभारम्भ किया गया। केन्द्र द्वारा इन ऊन निर्मित थैलियों में स्थानीय वनस्पतियों- जाल, खेजड़ी, रोहिड़ा, अरडू आदि की पौध तैयार की गई है।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने इस नर्सरी के शुभारम्भ के अवसर पर कहा कि ऊँट-भेड़ की अपशिष्ट ऊन (वेस्ट-वूल) निर्मित थैलियों में स्थानीय वनस्पतियों की पौध तैयार करने के पीछे मुख्य ध्येय केन्द्र की कृषि परिक्षेत्र स्थित चरागाह भूमि को उपजाऊ बनाना है, साथ ही इसमें प्लास्टिक के स्थान पर प्रयुक्त थैलियाँ, पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी लाभदायक है। यह सेपलिंग बैग, पौधों की बढ़ोत्तरी हेतु सहायक बन, खाद का काम करेंगे। डा. साहू ने कहा कि जाल, रोहिड़ा, खेजड़ी आदि सर्वोच्च (एपेक्स) वनस्पतियों की श्रेणी में आते हैं तथा इनकी कमी से संपूर्ण पर्यावरण प्रभावित होता है। इन वनस्पतियों की उपलब्धता के साथ-2 ऊँटों को आहार चारे के रूप में खास पसन्द का पौष्टिक चारा मिल सकेगा बल्कि इनसे पर्यावरण को भी लाभ पहुंचेगा।
केन्द्र वैज्ञानिक श्रीमती प्रियंका गौतम ने नर्सरी के संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि अभी तक इन सेपलिंग बैग में स्थानीय वनस्पतियों की 500 पौध तैयार की गई है तथा कृषि वानिकी अधिकाधिक पौध तैयार कर उपलब्ध करवाएगा। इस अवसर पर केन्द्र स्टाफ द्वारा पौष्टिक घास ‘नेपियर‘ के करीब 250 से अधिक पौधे भी लगाए गए।
एनआरसीसी ने खींचिया में किया पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा का आयोजन
बीकानेर 20 जुलाई 2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के तहत आज जामसर के पास गांव खींचिया में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें खींचिया एवं आस-पास क्षेत्र के 46 पशुपालकों एवं किसानों ने 197 पशुओं सहित (जिनमें गाय-95, भैंस-14, भेड़-12 व बकरी-76 शामिल) केन्द्र के इस कार्यक्रम में अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई।
परिचर्चा में केन्द्र के निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत भारत सरकार अनुसूचित जाति के कल्याणार्थ देश के ग्रामीण अंचलों में जरूरतमंदों को बुनियादी सुविधाओं की पूर्ति कर उन्हें समाजार्थिक दृष्टिकोण से खुशहाल बनाने हेतु सतत प्रयत्नशील हैं। डॉ.साहू ने वर्तमान में चल रही लम्पी स्किन डीजिज में पशुओं के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि पशुपालक, सावधानी बरतते हुए इस बीमारी से अपने पशुओं का बचाव कर सकते हैं, बचाव ही इसका श्रेष्ठ उपाय है। उन्होंने उत्तम पशु आहार के माध्यम से पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हुए इस बीमारी से उभरने में सहायता मिलने की बात कही। डॉ. साहू ने कहा कि बदलते दौर में पशुधन व्यवसाय संबंधी परंपरागत ज्ञान के साथ-साथ अद्यतन जानकारी किसान के पास होने पर वे श्रेष्ठ उत्पादन द्वारा अपनी आजीविका को और अधिक बेहतर ढंग से चला सकेंगे। डॉ.साहू ने केन्द्र द्वारा ऊँट विकास एवं संरक्षण हेतु किए जा रहे नूतन आयामों एवं प्रसार गतिविधियों की जानकारी देते हुए पशुपालकों को एन.आर.सी.सी. के भ्रमण एवं प्रशिक्षण हेतु भी विशेष रूप से प्रोत्साहित किया।
भाकृअनुप-एन.आर.सी.सी. में चल रही इस एससीएसपी उप-योजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने कहा कि कार्यक्रम में पशुपालकों के साथ पशुपालन व्यवसाय सम्बन्धी विभिन्न पहलुओं एवं समस्याओं पर खुलकर चर्चा की गई। साथ ही पशुओं के लिए आहार चारे के रूप में पौष्टिक नेपियर घास के बारे में भी जानकारी देते हुए इस घास के पशुपालकों को सैम्पल बांटे गए। साथ ही केन्द्र में निर्मित पशुओं के पौष्टिक आहार (संतुलित पशु आहार) व खनिज मिश्रण का भी वितरण किया गया।
इस दौरान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक ने पशुओं की शारीरिक क्रियाओं एवं विद्यमान क्षमताओं के संबंध में कहा कि पशुओं की धीमी शारीरिक वृद्धि एवं कम दुग्ध-उत्पादन क्षमता की ओर पशुपालकों द्वारा विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। वहीं पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.काशी नाथ एवं डॉ. सुमनिल ने शिविर में लाए गए पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पशुओं में ज्यादात्तर चींचड़, भूख कम लगना, पेट में कीड़े पड़ने आदि रोग देखे गए जिनके उपचार हेतु पशुओं को दवा दी गई तथा उचित समाधान बताया गया।
खींचिया गांव के श्री केशुराम, वार्ड मेम्बर ने भारत सरकार की इस योजना के महत्व का जिक्र करते हुए इसके सफल क्रियान्वयन में एनआरसीसी की सक्रियता को सराहा। इस पशु स्वास्थ्य कैम्प में केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, वरिष्ठ तकनीकी अधिकारी ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार, दवा व पशु आहार वितरण जैसे विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया।
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में पौधारोपण का कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें कृषि वानिकी परिक्षेत्र एवं अतिथि गृह परिसर के पास शहतूत (100) व खजूर (50) के पौधे लगाए गए।
ग्रान्धी गाँव में बीमार ऊँटों की सुध लेने पहुँचा एनआरसीसी दल
बीकानेर 11 जुलाई 2022 l हाल ही में ग्रान्धी गांव मे ऊँटों के टोले की बीमारी संबंधी प्रकाशित समाचार सूचना के आधार पर भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) के वैज्ञानिकों का दल आज ऊँटों की सुध लेने ग्रान्धी गांव पहुंचा.
एनआरसीसी के दल में प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आर.के.सांवल ने बताया कि ग्रान्धी गांव के ज्ञानाराम के इस टोले से लगभग 110 के करीब ऊँटों की जांच की गई तथा इनके खून एवं मिंगनी के नमूने एकत्रित किए गए. इस दौरान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. शांतनु रक्षित ने पशु उत्पादन, स्वास्थ्य व स्वच्छता, पोषण आदि विभिन्न पहलुओं की पशुपालक को जानकारी होना अपेक्षित बताया. वहीं केंद्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि इस टोले में तिबरसा रोग के बचाव हेतु टीकाकरण भी किया गया. कमजोर जानवरों को पेट की दवा तथा बाह्य परजीवी चीचड़ से बचाव हेतु परजीवी नाशक दवा व मिनरल मिक्सचर वितरित किया गया.
एनआरसीसी के निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने दल से दूरभाष पर संपर्क कर स्पष्ट जानकारी लेते हुए बताया कि केंद्र, उष्ट्र विकास व संरक्षण हेतु प्रतिबद्ध है. प्रकाशित समाचार और उरमूल सीमांत संस्था बज्जू से संपर्क कर इस दल को तुरंत वहां भेजा गया तथा जांच हेतु बीमार ऊँटों की सेंपलिंग की गई है. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पशुधन आधारित आजीविका को देखते हुए पशुओं के स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी आपात स्थिति को प्रमुखता से लिया जाता है. केंद्र समय-समय पर पशु स्वास्थ्य शिविर आदि के माध्यम से ऊँटों के स्वास्थ्य व श्रेष्ठ प्रबंधन के अलावा इस प्रजाति के दूध के औषधीय महत्त्व व पर्यटनीय संभावनाओं की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है ताकि बदलते दौर में ऊँट को एक उद्यम के रूप में अपनाकर ऊँट पालक भाई अपनी आजीविका आराम से चला सकें.
उरमूल सीमांत संस्था बज्जू के मोतीलाल व केंद्र के दल में शामिल अमित कुमार द्वारा ऊँटों की सैंपलिंग आदि कार्यों में सहायता प्रदान की गई. एनआरसीसी के इस दल के प्रति ऊँटों के टोले के स्वामी ज्ञानाराम ने आभार व्यक्त किया व आशा जताई कि उनके बीमार पशुओं को शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिल सकेगा.
एनआरसीसी ने मनाया ‘वर्ल्ड जूनोसिस डे‘
बीकानेर 06 जुलाई 2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र द्वारा आज ‘‘वर्ल्ड जूनोसिस डे (विश्व पशुजन्यरोग दिवस)’’ के अवसर पर ‘परजीवी जूनोसिस : एक कठिन चुनौती‘ (पैरासाईट जूनोसिस : एन अपहिल चैलेंजेज्)‘ विषय पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें एनआरसीसी वैज्ञानिकों ने विषयगत गहन विचार-विमर्श किया।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने सेमीनार से जुड़ते हुए कहा कि इस संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य पशुजन्य रोगों के संबंध में पशु पालकों, पशु हित धारकों, पशु चिकित्सकों, अनुसंधानकर्ताओं एवं संबद्ध स्वास्थ्य कर्मियों को उपयोगी एवं अद्यतन जानकारी संप्रेषित करना है। उन्होंने कहा कि फील्ड क्षेत्र में जूनोटिक बीमारियों संबंधी संक्रमण के प्रति अधिकाधिक जागरूकता लाई जानी चाहिए, पशुपालकों एवं किसानों को प्रेरित किया जाए ताकि उन्हें एवं उनके पशुओं को इन संक्रमणों के प्रति सुरक्षा प्रदान की जा सके। डॉ.साहू ने जूनोटिक बीमारियों से बचाव एवं रोकथाम हेतु समन्वित प्रयासों पर भी बल दिया।
इस वेबिनार में विषय-विशेषज्ञ के रूप में केन्द्र के डॉ. एस.के.घौरूई, प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक ने विषयगत व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए कहा कि अधिकांश मानवीय बीमारियां पालतू व जंगली पशुओं से प्रसारित होती है। उन्होंने जूनोटिक बीमारियों की रोकथाम व नियंत्रण को अत्यंत जरूरी बताते हुए कहा कि भारत देश में जूनोटिक बीमारियों जैसे रेबीज, ब्रुसेलोसिस, टोक्सोप्लाजमोसिस, ट्रिपेनोसोमियसिस आदि प्रमुख रूप से देखी जा सकती है। उन्होंने इन बीमारियों की रोकथाम हेतु पशुओं के बेहतर प्रबंधन, नियमित निगरानी, आमजन में रोगों के प्रति जागरूता बढ़ाने तथा पशुओं एवं मनुष्यों में उभरते रोगाणुरोधी प्रतिरोध (एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस) की नियमित निगरानी करने की आवश्यकता पर भी बल दिया। वक्ता डॉ. घौरूई ने चेताया कि एनसीडीसी के अनुसार 75 प्रतिशत उभरते एवं पुन: उभरने वाले वाले संक्रमण जूनोटिक है।
केन्द्र द्वारा जूनोसिस डे पर आयोजित इस राष्ट्रीय वेबिनार में देशभर के करीब 52 से अधिक अनुसंधान कर्ता, विद्यार्थी गण आदि ने सहभागिता निभाई तथा प्रश्न-सत्र में अपनी जिज्ञासाओं को रखा जिनका विषय-विशेषज्ञों द्वारा उचित निराकरण प्रस्तुत किया गया।
इस वेबिनार कार्यक्रम में डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक द्वारा जूनोसिस डे मनाए जाने के उद्देश्य एवं महत्व पर प्रकाश डाला गया।
एनआरसीसी ने मनाया विश्व ऊँट दिवस
ऊँट पालक ऊँटनी के दूध का अधिकाधिक उत्पादन करें : प्रो.गर्ग
बीकानेर 22 जून 2022 । भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र तथा वैश्विक अनुसंधानों से अब यह साबित हो चुका है कि ऊँटनी के दूध में भरपूर औषधीय गुण विद्यमान हैं, ऐसे में ऊँट पालकों को चाहिए कि वे अधिक से अधिक ऊँटनी के दूध का उत्पादन करें और इस हेतु एक बाजार/मार्केट तैयार किया जाए ताकि उन्हें अच्छी -खासी आमदनी प्राप्त हो सके। ये विचार आज भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा आयोजित विश्व ऊँट दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) एस.के.गर्ग, माननीय कुलपति, राजुवास, बीकानेर ने व्यक्त किए।प्रो.गर्ग ने एनआरसीसी परिवार को ‘विश्व ऊँट दिवस’ की बधाई संप्रेषित करते हुए कहा कि प्रदेश में ऊँटों की लगातार घटती संख्या एवं सामयिक परिदृश्य में इसकी उपादेयता को बनाए रखने के लिए चिंतन आवश्यक है, इस हेतु राजकीय पशु ‘ऊँट’ पर राज्य से अन्यत्र ले जाने के नियमों में भी शिथिलता बरती जानी अपेक्षित है। केन्द्र के उष्ट्र संरक्षण एवं विकास में महत्ती योगदान का उल्लेख करते हुए कुलपति महोदय ने इस प्रजाति की संख्या व उपयोगिता में आए समग्र बदलाव (कारण) संबंधी नीतिगत प्रस्ताव, सरकार को प्रस्तुत किए जाने की भी मंशा जताई। प्रो.गर्ग ने इस दौरान ऊँट पालकों से पारस्परिक वार्ता भी की।
केन्द्र निदेशक एवं कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में ऊँटों की निरंतर बढ़ती संख्या (प्रतिशत) एवं इसकी उपयोगिता, दूसरी ओर भारत में इसकी घटती संख्या एवं कम होता महत्व चिंता का विषय है। डॉ. साहू ने कहा कि यह प्रजाति न केवल प्राचीन समय से बल्कि आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, और अगर ऊँट को ‘औषधि भण्डार’ कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वैज्ञानिक अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि ऊँटनी का दूध, विभिन्न मानव रोगों यथा-मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि में कारगर है। लेकिन इसकी औषधीय महत्व का लाभ आमजन तक पहुंचाने के लिए ऊँट पालकों को सीधे तौर पर एवं सामूहिक रूप से आगे आना होगा। डॉ.साहू ने उपस्थित ऊँट पालकों का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध का उत्पादन, उसका संग्रहण तथा आमजन तक उपलब्धता हेतु इसका वितरण आदि की सुगम व्यवस्था की जानी होगी जिससे दुग्ध व्यवसाय से वे भरपूर मुनाफा कमा सके। उन्होंने ‘कैमल इको टूरिज्म’ की बात रखते हुए केन्द्र द्वारा इस क्षेत्र में पर्यटनीय सुविधाओं के विकास संबंधी पहल से पर्यटकों का आकर्षण बढ़ने एवं इनसे लाभ मिलने की भी बात कहीं।
इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि श्री भानुप्रताप ढाका, उप निदेशक, पर्यटन विभाग ने कहा कि प्रदेश की संस्कृति में अपने महत्ती योगदान के कारण ‘ऊँट’ की गहरी पेठ है। उन्होंने ऊँट की जीव्यता बनाए रखने के लिए जैविक खेती में इसके उपयोग पर जोर दिया साथ ही उष्ट्र प्रजाति को नए राज्यों में बढ़ावा दिए जाने हेतु ‘उष्ट्र डेयरी’ या ‘पर्यटनीय-सजावटी ऊँट’ जैसे मॉडल तैयार करने की अपेक्षा जताई। इस दौरान विशिष्ट अतिथि डॉ.दिलीप कुमार समादिया, निदेशक, भाकृअनुप-केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने एनआरसीसी को उष्ट्र दिवस की बधाई देते हुए कहा कि विज्ञान का काम नव निर्माण करना है तथा इस हेतु वैज्ञानिक, बागवानी खेती (चारा फसल आदि सहित) से पशुपालन व्यवसाय को अधिकाधिक लाभ पहुंचाने हेतु प्रयासरत है ताकि ऊँट, भेड़, बकरी आदि पशुपालन में संबंल प्राप्त हो सके। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ. आर.के.सिंह, अधिष्ठाता, सी.वी.ए.एस., राजुवास, बीकानेर ने ऊँटनी के दूध की विभिन्न मानव बीमारियों में औषधीय उपयोगिता पर अपनी बात रखी। इस अवसर पर किसान प्रतिनिधि के रूप में श्री श्रीगोपाल उपाध्याय, पूर्व सरपंच, मेघासर ने एनआरसीसी द्वारा उष्ट्र प्रजाति के विकास में किए जा रहे प्रयासों की सराहना की वहीं ऊँट पालक सबीर खां ने ऊँट पर्यटन व्यवसाय से जुड़ी आवश्यकताओं का उल्लेख किया।
विश्व ऊँट दिवस के उपलक्ष्य पर एनआरसीसी द्वारा मुख्य तौर पर उष्ट्र प्रदर्शनी एवं पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया जिसमें बीकानेर सहित जिले के विभिन्न गांवों यथा- सुजानेदसर, करमीसर, गड़सीसर, भोजूसर, बछासर, श्रीरामसर, उदयरामसर, शिवबाड़ी, कोटड़ी, जैतासर, गाढवाला, केशरदेसर आदि के ऊँट पालकों ने अपने पशुओं सहित शिरकत की। ऊँट पालकों को केन्द्र द्वारा विकसित मिश्रित पशु आहार व दाना आहार भी वितरित किया गया। वहीं इस अवसर पर आयोजित सर्वश्रेष्ठ नर ऊँट प्रतियोगिता में इमरान खान ने प्रथम, रफीक खान ने द्वितीय, नैनूराम ने तृतीय तथा मुरली गहलोत व महमूद खान ने सांत्वना पुरस्कार अर्जित किया वहीं सजावटी ऊॅट प्रतियोगिता में संजय खान ने प्रथम, इमरान ने द्वितीय, महमूद ने तृतीय तथा सांत्वना पुरस्कार नैनूराम प्राप्त किया। सभी विजेताओं को प्रशस्ति पत्र व नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। डॉ. वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक द्वारा सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया।
भाकृअनुप-उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस में सहभागिता
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.), बीकानेर ने अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य पर
स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय, बीकानेर के प्रांगण में 21 जून, 2022 को आयोजित सामूहिक
मुख्य कार्यक्रम में उत्साहपूर्वक भाग लिया। विश्वविद्यालय के निदेशालय छात्र कल्याण तथा योग एवं
प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में निर्धारित प्रोटोकॉल के तहत आयोजित सामूहिक योग दिवस
के इस कार्यक्रम में एन.आर.सी.सी.सहित केन्द्र एवं राज्य सरकार के अन्य विभिन्न
संस्थानों/केन्द्रों/बैंक/संस्थाओं आदि ने इसमें सक्रिय सहभागिता निभाते हुए इसे सफल बनाया।
योगाभ्यास से पूर्व सामूहिक कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.आई.पी.सिंह, अधिष्ठाता, स्वा.के.राज.कृ.वि.,
बीकानेर ने अपने अभिभाषण में कहा कि जीवन की समग्र स्वस्थता हेतु शारीरिक व आध्यात्मिक बल दोनों
आवश्यक है और खासकर आध्यात्मिक बल के होने पर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी जूझ सकते हैं। डॉ.सिंह ने
योग विधा को प्राचीन भारत की अमूल्य धरोहर बताते हुए इसके माध्यम से मानसिक व शारीरिक संतुलन बनाए
रखने की बात कही।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने अपने संबोधन में भारत के नेतृत्व में वैश्विक
स्तर पर मनाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गौरव के रूप में लेने की बात कही। डॉ.साहू ने योग के महत्व
एवं इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ संबंधी विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हम, अपनी जीवन शैली
में योग को अपनाकर पूर्णतया स्वस्थ शरीर प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने सभी को भारतीय परम्पराओं एवं
जीवन मूल्यों से जुड़ते हुए सकारात्मक भाव से कार्य करने हेतु प्रोत्साहित किया तथा रोजमर्रा की दिनचर्या में
योग को शामिल किए जाने का आह्वान किया।
इस दौरान अन्य संस्थानों/केन्द्रों आदि के प्रमुखों ने भी अपने-अपने विचार रखे। तत्पश्चात्
अंतर्राष्ट्रीय कॉमन योगा प्रोटोकॉल के तहत योग संबंधी विभिन्न क्रियाओं जैसे कि – ताड़ासन, वज्रासन, उष्ट्रासन,
शलभासन, शवासन, अनुलोम-विलोम, भ्रामरी, कपालभाति आदि का व्यावहारिक अभ्यास करवाया गया।
सामूहिक योग प्रदर्शन के मुख्य कार्यक्रम में सहभागिता के उपलक्ष्य पर आयोजकों की ओर से
एन.आर.सी.सी. सहित सहभागी सभी सस्थानों/केन्द्रों को प्रशस्ति-पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। अंत में
डॉ. देवाराम काकड़, निदेशक, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केन्द्र, स्वा.के.राज.कृ.वि.कैम्पस, बीकानेर ने सभी के
प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। केन्द्र के नोडल अधिकारी (अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस) डॉ. सुमन्त व्यास, प्रधान
वैज्ञानिक ने केन्द्र परिवार के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आभार व्यक्त किया।
आई सी ए आर कृषि प्रोद्योगिकियों का मेगा शो व किसान मेला - 31 मई 2022
गरीब कल्याण सम्मलेन शत प्रतिशत सशक्तिकरण
एनआरसीसी द्वारा जन जातीय पशुपालकों का तीन दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित
बीकानेर 28.05.2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा जन जातीय उपयोजना के अंतर्गत ‘उष्ट्र पालन : व्यावसायिक चुनौतियां एवं आजीविका सुरक्षा’ विषयक तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम (26 से 28 मई, 2022) का आयोजन किया गया । इस कार्यक्रम में सिरोही जिले के माउंट आबू रोड़ तहसील के 20 पशु पालकों ने इसमें भाग लिया।
प्रशिक्षण के दौरान डॉ.बी.एन.त्रिपाठी, उप महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश के किसानों के लिए पशुधन, बतौर संपत्ति के रूप में साबित हुआ है क्योंकि यहां के किसान/पशुपालक के लिए किसी भी प्रकार की आपदा व आर्थिक तंगी में भी, यह संबल प्रदान करते हैं। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की कार्यप्रणाली एवं किसानों के लिए निर्धारित बजट प्रावधान से भी प्रशिक्षणार्थियों को अवगत करवाया तथा कहा कि यद्यपि परिषद अधीनस्थ सभी संस्थानों के वैज्ञानिक गण प्रतिबद्ध भाव से देश के किसानों के लिए कार्य कर रहे हैं तथापि उन्हें सतत प्रेरित भी किया जाता है कि वे फील्ड में जाकर किसानों व पशुपालकों की समस्याओं से रू-ब-रू हों, उनकी जिज्ञासाओं का उचित निराकरण करें। क्योंकि अपनी खेती व पशुधन को लेकर जब देश का किसान खुशहाल होगा, तो देश और अधिक समृद्ध बन सकेगा। डॉ.त्रिपाठी ने किसानों के साथ उष्ट्र व्यवसाय को लेकर भी चर्चा की तथा खासकर क्षेत्र में ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय की स्थिति को भी जाना तथा कहा कि एनआरसीसी इस हेतु श्रेष्ठ दुग्ध उत्पादन करने वाली ऊँटनियों का वितरण कर सीधे तौर पर दुग्ध व्यवसाय से जुड़े पशुपालकों को लाभ पहुंचा सकता है ।
इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने पशुपालकों के हितार्थ की जा रही गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि केन्द्र द्वारा जन जातीय उपयोजना के तहत माउंट आबू के क्षेत्र में पशुपालकों को प्रशिक्षण और उनके साथ संवाद के माध्यम से पशुधन से जुड़ी नूतन प्रौद्योगिकियों की जानकारी दी जाती है साथ ही इस क्षेत्र में केन्द्र द्वारा ‘ऊंटां री बातां’ कार्यक्रम को आकाशवाणी के माध्यम से प्रसारित करवाया जा रहा है ताकि पशुपालकों के बीच उचित जानकारी पहुंच सके।
इस दौरान उप महानिदेशक महोदय का पशुपालकों द्वारा राजस्थानी पगड़ी पहनाकर सम्मान किया गया। किसानों के प्रतिनिधि के तौर पर श्री सेवाराम ने पशु उत्पादन में विपणन संबंधी समस्याओं के बारे में वस्तुस्थिति से अवगत कराया । साथ ही उन्होंने जन जातीय उपयोजना तहत एनआरसीसी द्वारा उपलब्ध करवाई जा रही पशु स्वास्थ्य सुविधाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि पशुओं के स्वास्थ्य तथा बीमारियों के इलाज हेतु उचित दवाइयां व इंजेक्शन आदि की सुविधाएं मिलने से पशु व्यवसाय में लाभ प्राप्त हुआ है।
कार्यक्रम समन्वयक डॉ.आर.के.सावल ने कहा कि ऊँट की उपयोगिता, मांगलिक अवसरों, राष्ट्रीय राजमार्ग से जुड़े हॉटल व्यवसाय में पर्यटन प्रयोजनार्थ बढ़ रही है, इस दृष्टिकोण से पशुपालक रूचि लेते हुए अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। डॉ.सावल ने ऊँटनी के दूध के प्रसंस्करण व आकर्षक पैकेजिंग आदि के बारे में भी प्रशिक्षणार्थियों से चर्चा की ताकि विपणन के क्षेत्र में ऊँटनी के दूध को और अधिक बढ़ाया जा सके। तीन दिवसीय प्रशिक्षण में उष्ट्र पालन एवं इस व्यवसाय से जुड़ी चुनौतियों के बारे में व्ध्यान आकर्षित किया गया
पशुपालकों को ऊँटनी के दूध एवं पर्यटन से संबंधित केन्द्र के प्रयासों के बारे में व्यावहारिक जानकारी देने हेतु उन्हें केन्द्र की उष्ट्र डेयरी, उष्ट्र बाड़ों एवं पर्यटनीय स्थलों का भ्रमण भी करवाया। पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता को बढ़ाने हेतु उन्हें फीड उत्पादन इकाई का भ्रमण करवाते हुए उन्हें पैलेट फीड व मिनरल मिक्स्चर भी वितरित किया गया।
नए एमओयू तहत एनआरसीसी देगा उष्ट्र उत्पादों संबंधी लघु उद्योग विकास हेतु किसानों एवं उद्यमियों को प्रोत्साहन एवं प्रशिक्षण
बीकानेर 12 मई 2022 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) एवं ए-आइडिया-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी (नार्म), हैदराबाद के बीच एक नया एमओयू हुआ है। एनआरसीसी के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू एवं नार्म, हैदराबाद के निदेशक डॉ. श्रीनिवास राव ने नार्म संस्थान में इस महत्वपूर्ण एमओयू पर हस्ताक्षर किए हैं।
डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस संबंध में जानकारी देते हुए कहा कि एनआरसीसी तथा ए-आइडिया के इस एमओयू के तहत यह केन्द्र, ऊँट के विभिन्न पहलुओं से जुड़े उत्पादों के उत्पादन, प्रसंस्करण एवं उद्योग में रूचि रखने वाले किसानों एवं उद्यमियों को अपना लघु उद्योग लगाने एवं इसे विकसित करने में सहयोग प्रदान कर सकेगा । वहीं इन दोनों संस्थानों के तकनीकी विशेषज्ञ पारस्परिक समन्वय के द्वारा इस क्षेत्र में रूचि रखने वाले युवाओं, उद्यमियों को तकनीकी व बुनियादी जानकारी एवं कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण उपलब्ध करवाएंगे। डॉ.साहू ने कहा कि संस्थानों से जुड़े नवोन्मेषी उष्ट्र उत्पादों एवं सह उत्पादों का समग्र तौर एवं विविध स्तर-स्थिति पर आकलन (इन्क्यूबेशन) करेंगे तथा उष्ट्र पालन व्यवसाय से जुड़े उद्यमियों के लिए नई संभावनाएं जन्म ले सकेगी तथा इसे, एक महत्वपूर्ण पहल के रूप में देखा जा सकता है। डॉ. साहू ने इको-टूरिज्म (पारिस्थितिक पर्यटन) के तहत उद्यमिता के अवसर के रूप में आशा व्यक्त करते हुए कहा कि इससे पर्यटनीय विकास, नए आयामों के रूप में मुखरित करने में महत्ती सहायता मिल सकेगी।
उल्लेखनीय है कि एनआरसीसी से एमओयू तहत जुड़े ए-आइडिया (एसोशियशन ऑफ इनोवेशन डवलपमेंट फॉर एन्टरप्रन्योरशिप इन एग्रीकल्चर) एक नॉन प्रोफिट संगठन है जो नव उद्यमियों को क्षमता संवर्द्धन, इन्क्यूबेशन सर्विसेज, बिजनेस सपोर्ट सर्विसेज एवं टैक्नोलॉजी पोर्टफोलियों मैनेजमेंट में सहायता प्रदान करता है। इस संस्थान का मुख्य उद्देश्य एग्री इन्टरप्रेन्योर को इन्क्यूबेशन एवं बिजनेस के स्थापना एवं विकास में सहयोग प्रदान करना है।
Kisan Bhagidari, Prathamikta Hamari campaign under Azadi Ka Amrit Mahotsav
ICAR-NRCC, Bikaner organized an ‘Animal health cum awareness development camp for livestock farmers’ (पशुपालकों के लिए पशुस्वास्थ्य एवं जागरूकता विकास शिविर) at Anaj Mandi, Bikaner under Kisan Bhagidari, Prathamikta HamariCampaign as a part of Azadi Ka Amrit Mahotsav. 52 camel farmers/ camel cart owners along with their camel cart participated in this event. In animal health camp diseased camels were treated and prophylaxis /vaccination against trypnosomiasis was given to camels. A medicine kit containing dewormer, ectoparasitic drug, appetizer, and an antiseptic cream was also distributed to camel cart owners of Bikaner city and adjoining areas.
A scientist farmer interaction meet was organized on the occasion to get feedback about problems encountered during carting, management of camels used for carting, and educate the farmers about appropriate nutritional and clinical management for better health. Calendar activities for profitable camel farming, road safety measures for camel cart. Detailed information about ongoing government schemes and programmes for the benefit of camel farmers was shared with the participants.
केन्द्र द्वारा गाजर घास - जागरूकता सप्ताह (16-22 अगस्त, 2021) का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र द्वारा भाकृअनुप-खरपतवार अनुसंधान निदेशालय, जबलपुर से प्राप्त पत्र पीएडब्ल्यु/2021 दिनांक 03.08.2021 एवं इस संबंध में डॉ.त्रिलोचन महापात्र, माननीय सचिव, कृषि अनुसंधान और शिक्षा विभाग एवं महानिदेशक, भा.कृ.अनु.प. की अपील की अनुपालना के तहत कार्यालयों में अति हानिकारक गाजर घास (चटक चांदनी/गंदी घास) के उन्मूलन एवं स्वच्छता अभियान हेतु दिनांक 16-22 अगस्त, 2021 के दौरान जागरूकता सप्ताह मनाया गया। इस जागरूकता सप्ताह के तहत केन्द्र द्वारा विभिन्न गतिविधियां आयोजित की गई। कार्यालयों, गलियारों और परिसर के आस-पास के क्षेत्रों के साथ-साथ केन्द्र परिसर के बाहर आवासीय कॉलोनियों/गार्डन/सामुदायिक भवन इत्यादि स्थलों पर उगी हानिकारक खरपतवार गाजर घास से इस क्षेत्रों को मुक्त किया गया।
केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने गाजर घास उन्मूलन संबंधी केन्द्र की आयोजित गतिविधियों के दौरान इस खरपतवार से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति केन्द्र अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विशेष रूप से जागरूक किया। डॉ. साहू ने कहा कि हमारे देश में एक बहुत बड़े क्षेत्र में इस अप्रिय खरपतवार का निरंतर प्रसार हो रहा है जो कि एक चिंता एवं चिंतन का विषय है। चूंकि यह मानव एवं पशुओं दोनों के लिए अत्यंत नुकसानदायक है। अत: एक उष्ट्र (पशु) प्रजाति आधारित संस्थान होने के कारण हमें इस विषाक्त घास के उन्मूलन एवं प्रबंधन हेतु प्रयास करने होंगे।
केन्द्र द्वारा इस सप्ताह के दौरान मेरा गांव मेरा गौरव परियोजना क्षेत्र के अंगीकृत गांवबीकानेर के उत्तर–पश्चिम स्थित चाक गरबी रूरल में गाजर घास के उन्मूलन हेतु एक कार्यक्रम आयोजित किया गया साथ ही ग्रामीणों को इस घास से होने वाले दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक किया गया ताकि इस खरपतवार घास के तीव्र प्रसार पर विराम लगाते हुए अन्य उपयोगी वनस्पतियों को बचाया जा सके।
इस जागरूकता सप्ताह के दौरान केन्द्र के डॉ. आर.के. सावल, प्रधान वैज्ञानिक,डॉ. शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक (कृषि विस्तार), श्री एम.के.राव, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी द्वारा संबंधित कृषकों में गाजर घास से होने वाले दुष्प्रभावों संबंधी जानकारी का प्रचार-प्रसार किया गया।
केन्द्र द्वारा खरपतवार उन्मूलन हेतु चलाए गए सप्ताह को सफल बनाने में केन्द्र के सभी वैज्ञानिकों, अधिकारियों, कर्मचारियों एवं अनुबंध कार्मिकों ने सक्रिय योगदान दिया।
_______________________________________________________________
स्वरोजगारी युवाओं से ऊँटनी के दूध की बिक्री हेतु आवेदन
NRCC 13/04/21 - भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा ऊँटनी के औषधीय दूध का अधिकाधिक प्रचार-प्रसार किए जाने एवं आमजन के मध्य इसकी सुलभ उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए स्वरोजगारी व्यक्तियों से निर्धारित प्रपत्र में आवेदन आमन्त्रित करते हुए इसे क्रियान्वित किया जाएगा।
इस संबंध में केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय के प्रति स्वरोजगारी युवाओं (सेल्फ एम्प्लॉयड यूथ) को प्रोत्साहित करने एवं रूझान बढ़ाने हेतु केन्द्र द्वारा यह नूतन पहल प्रारम्भ की जा रही है ताकि युवाओं को इस आजीविका से जोड़ा जा सके। डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध की बिक्री के संबंध में गत प्रयासों का हवाला देते हुए कहा कि एनआरसीसी द्वारा अपने सीमित संसाधनों के आधार पर बीकानेर शहर के वरिष्ठ नागरिक भ्रमण पथ पर पूर्व में भी दो बार बिक्री की पहल की गई तथा आमजन द्वारा ऊँटनी के दूध का उपभोग तथा इसकी स्वीकार्यता को लेकर सुखद परिणाम देखने को मिले। उपर्युक्त महत्वपूर्ण प्रयासों के फलस्वरूप आमजन में ऊँटनी के दूध के प्रति जागरूकता निश्चित रूप से बढ़ी है तथा दिन-ब-दिन इसकी मांग भी बढ़ रही है। अत: केन्द्र की यह मंशा है कि औषधीय गुणधर्मों युक्त इस दूध को स्वरोजगारी युवाओं के माध्यम से आमजन तक सुलभ व सतत रूप से पहुंचाया जा सके ताकि इससे वे लाभान्वित हो सके।
डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने जानकारी दी कि केन्द्र द्वारा उत्पादित ऊँटनी के दूध की अपने स्तर पर विपणन करने एवं दूध की उपलब्धता के आधार पर अपनी सहमति हेतु इच्छुक स्वरोजगारी युवा (सेल्फ एम्प्लॉयड यूथ) केन्द्र से सम्पर्क कर निर्धारित प्रपत्र में अपना आवेदन जमा करवा सकते हैं ताकि इस संबंध में अपेक्षित कार्रवाई प्रारम्भ की जा सके।
केन्द्र द्वारा तीन दिवसीय ई-ऑफिस प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र,बीकानेर द्वारा वैज्ञानिकों,अधिकारियों एवं कर्मचारियों को ई-ऑफिस प्रणाली के प्रति सहजता एवं कुशलता प्रदान करने के उद्देश्य से ‘विभागीय स्तर पर ई-ऑफिस कार्यान्वयन’ विषयक तीन दिवसीय (08-10 फरवरी, 2021) प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।
दिनांक 08.02.2021 से प्रारम्भ हुए ई-ऑफिस संबंधी इस आंतरिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू द्वारा विधिवत् शुभारम्भ किया गया। डॉ.साहू ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली के बेहतर निष्पादन एवं इसे पारदर्शी बनाने हेतु ई-ऑफिस प्रणाली को शीघ्र एवं प्राथमिकता से अपनाया जाए। उन्होंने इस प्रणाली को अधिक सुगम बताते हुए प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण-सत्रों के दौरान सक्रियता एवं अधिकाधिक अभ्यास हेतु विशेष रूप से प्रोत्साहित किया। केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. राकेश रंजन, नोडल अधिकारी (एच.आर.डी.) ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के संबंध में विस्तृत रूप से सदन को जानकारी दी।
प्रथम दिवस के प्रशिक्षण सत्र में केन्द्र के श्री दिनेश मुंजाल, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी (कम्प्यूटर) ने ई-ऑफिस हेतु अपेक्षित सुविधाओं यथा- हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर आदि के बारे में प्रतिभागियों को विस्तारपूर्वक बताया। प्रशिक्षण के द्वितीय सत्र के दौरान केन्द्र के ई-ऑफिस एडमिनिस्ट्रेटर श्री हरपाल सिंह कौंडल, वैयक्तिक सहायक ने सैद्धान्तिक तौर पर ई-ऑफिस प्रणाली को समझाते हुए इसके विभिन्न पहलुओं पर बात की। साथ ही केन्द्र में ई-ऑफिस कार्य व्यवस्था के बारे में अवगत करवाया। दिनांक 09.02.2021 को प्रशिक्षण कार्यक्रम के द्वितीय दिवस पर श्री मोहनीश पंचारिया, कनिष्ठ लिपिक ने ई-ऑफिस संबंधी व्यावहारिक आधार पर प्रतिभागियों को प्रशिक्षण सम्बद्ध विभिन्न पहलुओं एवं इनकी निर्धारित प्रक्रियाओं के संबंध में जानकारी देते हुए इन्हें उदाहरण सहित समझाया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत तृतीय दिवस पर आयोजित अभ्यास सत्र में प्रतिभागियों की विशेष रूचि देखी गई। इस दौरान प्रतिभागियों से प्रशिक्षण संबंधी प्रतिपुष्टि (फीडबैक) भी ली गई। इसके पश्चात् समापन सत्र का आयोजन किया गया।
दिनांक 10.02.2021 को कार्यक्रम समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.एस.के.अग्रवाल, पूर्व निदेशक, केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा ने केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू एवं समस्त स्टाफ को प्रशिक्षण की सफलता पर बधाई संप्रेषित करते हुए कहा कि पूरे देश में ई-ऑफिस का प्रचलन बढ़ रहा है तथा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा भी इस पर विशेष जोर दिया जा रहा है, ऐसे में संबंधित प्रशिक्षण का महत्व एवं उपयोगिता और अधिक बढ़ जाती है। डॉ.अग्रवाल ने कहा कि हम तेजी से उच्च प्रौद्योगिकी (हाई-टैक) की तरफ बढ़ रहे हैं। विभागीय कार्यों के सुचारू प्रबंधन, पारदर्शिता तथा संस्थान द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों का लाभ, ऊँट पालकों तक पहुंचाने के दृष्टिकोण से भी यह प्रणाली महत्वपूर्ण रूप से सहायक सिद्ध होगी।
अध्यक्षीय उद्बोधन में केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने सभी प्रतिभागियों को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि प्रशिक्षण के दौरान प्रदत्त जानकारी एवं अनुभूत ज्ञान को सभी द्वारा अपने-2 कार्यक्षेत्र में क्रियान्वित किए जाने पर ही इस प्रशिक्षण की सार्थकता निहित है। अत: सकारात्मक सोच के साथ इस ओर आगे बढ़े एवं संस्थान के विकास में सभी समन्वित रूप से अपना महत्ती योगदान दें। अंत में मुख्य अतिथि डॉ.एस.के.अग्रवाल एवं केन्द्र निदेशक डॉ.ए.साहू के कर कमलों से प्रशिक्षणार्थियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए। तत्पश्चात् धन्यवाद प्रस्ताव के साथ इस तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन किया गया।
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र ने मनाया गणतन्त्र दिवस
बीकानेर 26 जनवरी 2021 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द, बीकानेर में 72वां गणतन्त्र दिवस समारोह पूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डा. आर्तबन्धु साहू ने झण्डारोहण कर सभी वैज्ञानिकों/अधिकारियों/कर्मचारियों को गणतन्त्र के 72वें वर्ष में प्रवेश करने की बधाई व शुभ कामनाएं दीं।
डा. साहू ने कहा कि भारत की आजादी का दिन देखने के लिए हमारे पूर्वजों ने असंख्य बलिदान दिया है तथा इसी के फलस्वरूप हमें परतंत्रता से निजात मिली है। हमारे देश के संविधान में प्रत्येक नागरिक के कत्र्तव्य एवं अधिकार बताए गए हंै। अतः देश की प्रगति के लिए हमें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता के साथ-साथ अपने कत्र्तव्यों को सर्वाेपरि रूप में लेते हुए उनकी पालना किए जाने की महत्ती आवश्कता है।
डा.साहू ने अपने संबोधन में उष्ट्र प्रजाति व ऊँट पालकों का जिक्र करते हुए कहा कि इस संस्थान का कार्यक्षेत्र पूर्णतया इन्हीं से जुड़ा हुआ है अतः हमें भावी परिदश्य में ऊँट उत्पादन, ऊँटनी के दूध का प्रचलन, बालों की उपयोगिता, उष्ट्र पर्यटन-उष्ट्र दौड़ एवं इस व्यवसाय से सम्बद्ध विविध क्षेत्रों में उपयोगिता के साथ-साथ इनमें गुणवत्तापूर्ण सुधार लाने हेतु सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ना होगा। डाॅ.साहू ने उष्ट्र अनुसंधान के अनुछुए पहलुओं हेतु वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया तथा कहा कि हमें रेगिस्तान के जहाज ‘ऊँट‘ की औषधीय उपयोगिता को उभारते हुए इसे जन-जन तक प्रसारित करना होगा।
उन्होंने केन्द्र की अन्तर्राष्ट्रीय छवि में निरन्तरता बनाए रखने के लिए सभी को अपने-2 कार्यक्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ व सकारात्मक योगदान देने की बात कहीं।
इस अवसर पर नवाचार के तहत एनआरसीसी परिवार को अपनी गौरवपूर्ण 25 वर्ष सेवा देने वाले वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों के अलावा सतर्कता सप्ताह के तहत आयोजित निबंध प्रतियोगिता के विजेताओं को निदेशक महोदय के कर कमलों से सम्मानित किया गया।
केन्द्र में आयोजित गणतंत्र दिवस कार्यक्रम का संचालन श्री हरपाल सिंह कौण्डल द्वारा किया गया एवं धन्यवाद प्रस्ताव श्री आर.ए.साहू द्वारा ज्ञापित किया गया।
एनआरसीसी द्वारा एससीएसपी तहत गांव हिमतासर में पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा भारत सरकार की अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत गांव हिमतासर में पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। दिनांक 5 दिसम्बर, 2020 को आयोजित इस पशु स्वास्थ्य शिविर में 807 विविध पशुओं जिनमें ऊँट 34, गाय 64, भैंस 16, 414 बकरी एवं 279 भेड़ के साथ आए 64 महिला एवं पुरुष पशुपालक लाभान्वित हुए।
पशु स्वास्थ्य शिविर के दौरान आयोजित संवाद कार्यक्रम में केन्द्र के वैज्ञानिकों ने पशुओं के रखरखाव, पशु उत्पादन, उनके स्वास्थ्य एवं पशु व्यवसाय में आने वाले समस्याओं पर पशुपालकों के साथ गहन चर्चा भी कीं। केन्द्र निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने इस अवसर पर कहा कि बदलते परिवेश में पशुओं का रखरखाव भी उसी अनुरूप किया जाना चाहिए। इस हेतु पशुपालक भाई वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का प्रबंधन करें ताकि पशुओं के उत्पादन एवं पशुपालकों की आमदनी पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़े। डॉ.सावल ने भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही अनुसूचित जाति उपयोजना को महत्वपूर्ण बताते हुए इसका अधिकाधिक लाभ लिए जाने की बात कहीं।
एससीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ.काशीनाथ ने शिविर में लाए गए पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी दीं। उन्होंने बताया कि पशुओं में ज्यादात्तर थनैला, फिरना (रिपीट ब्रिडिंग), चीचड़, खाज-खुजली, भूख कम लगना, दस्त लगना, मिट्टी खाना आदि रोग पाए गए जिनके उपचार हेतु पशुओं को दवा दी गई। शिविर में पशुओं के बेहतर स्वास्थ्य हेतु पेट के कीड़े मारने की दवा एवं ऊँटों में सर्रा रोग से बचाव हेतु प्रोफालेक्टिक टीके लगाए गए साथ ही केन्द्र में निर्मित पशुओं के पौष्टिक आहार (संतुलित पशु आहार) व खनिज मिश्रण का वितरण किया गया।
इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन ने पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों से बचाव हेतु टीकाकरण का महत्व बताया एवं टीकाकरण की उचित समायवधि के बारे में पशपालकों को जानकारी दी। केन्द्र द्वारा हिमतासर में आयोजित इस पशु स्वास्थ्य कैम्प में श्री मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार, दवा व पशु आहार वितरण जैसे विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया।
एनआरसीसी ने ग्रामीण अंचल में मनाया महिला किसान दिवस : 15 अक्टूबर, 2020
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा दिनांक 15 अक्टूबर, 2020 को ग्रामीण अंचल में महिला किसान दिवस मनाया गया। बीकानेर जिले के गांव नापासर में आयोजित इस महिला दिवस कार्यक्रम के अवसर पर ‘पशुपालन में महिला कृषक की सहभागिता‘ विषयक एक परिचर्चा भी आयोजित की गई जिसमें गांव की लगभग 50 महिलाओं ने केन्द्र के वैज्ञानिक एवं अधिकारी गणों के साथ इस चर्चा में सक्रिय रूप से भाग लिया। केन्द्र द्वारा इस अवसर पर कोविड-19 से बचाव हेतु सैनेटाईजिंग एवं मास्क वितरित किए गए। साथ ही महिला प्रतिभागियों को ऊँटनी के दूध से बनी खीर भी वितरित की गई।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के.सावल ने महिला कृषकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश के सकल घरेलू उत्पाद में इस प्रदेश के पशुधन का महत्वपूर्ण योगदान है तथा पशु व्यवसाय को पुष्ट बनाने में महिलाओं की विशेष भूमिका देखी जा सकती है। डॉ. सावल ने महिलाओं को पशुओं के रखरखाव, दुग्ध उत्पादन, आहार-दाना, स्वास्थ्य, खाद आदि विभिन्न पहलुओं से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दीं। साथ ही उन्हें सामूहिक प्रशिक्षण हेतु प्रोत्साहित करते हुए पारंपरिक कृषि उत्पाद बनाने के अलावा आधुनिक तकनीकी जानकारी प्राप्त करने हेतु भारत सरकार द्वारा चलाए जा रहे कृषि दर्शन जैसे महत्वपूर्ण ज्ञानवर्धक कार्यक्रम को नियमित तौर पर देखने की अपील कीं ताकि महिला किसान इनमें प्रदत्त जानकारी से पशुओं का भलीभांति रखरखाव कर पशुओं से अधिक उत्पादन व आमदनी प्राप्त कर सके।
इस अवसर पर केन्द्र के पशु चिकित्सक डॉ. काशीनाथ ने पशुओं में होने वाले विभिन्न रोगों यथा-गलाघोंटू, पशु के फिरने (रीपिट ब्रीडिंग), मुंहपका-खुरपका के साथ विशेष तौर पर थनैला रोग पर विस्तृत जानकारी दीं।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि के तौर पर नापासर गांव की संरपच श्रीमती सरला देवी ने केन्द्र द्वारा महिला दिवस पर आयोजित गोष्ठी को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए भावी समय में भी कृषि एवं पशुधन से जुड़े ऐसे कार्यक्रम आयोजित करने की केन्द्र से अपेक्षा जताईं। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि उप सरपंच श्रीमती मंजू देवी ने आयोजन हेतु एनआरसीसी का आभार व्यक्त किया।
इसके अलावा महिला दिवस के इस कार्यक्रम में वार्ड पंच श्री विमल लद्दड़, पूर्व वार्ड पंच श्रीमती पुष्पा देवी एवं श्रीमती भगवती देवी एवं नापासर गांव के विभिन्न गणमान्य जनों से शिरकत कीं। कार्यक्रम का संचालन श्री हरपाल सिंह, वैयक्तिक सहायक ने किया तथा श्री नेमीचंद बारासा ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता विकास हेतु मार्केट चेन जरूरी: डॉ. सावल
एनआरसीसी ने मनाया स्थापना दिवस
बीकानेर 6 जुलाई, 2020 । बदलते परिवेश में ऊँट पालन व्यवसाय प्रमुख तौर पर ऊँटनी के दूध एवं पर्यटन विकास की ओर तेजी से अग्रसर हो रहा है। अब ऊँटनी का दूध राजस्थान के जालौर, सिरोही, जैसलमेर, उदयपुर आदि जिलों के अलावा गुजरात, हैदराबाद आदि राज्यों में भी पनप रहा है। वहीं देशभर में आदविक फूड के अलावा 15 एन्टरप्रेन्योर सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं जो ऊँटनी के दूध उद्यमिता की प्रबल संभावनाओं को दर्शाता है परंतु इस उद्यमिता को ठोस आधार देने हेतु मार्केट चेन विकसित करनी होगी ताकि ऊँट पालकों, किसान भाइयों की आमदनी में आशातीत वृद्धि की जा सके। ये विचार आज दिनांक को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र के 37वें स्थापना दिवस पर केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के. सावल ने कही। उन्होंने केन्द्र की पर्यटन गतिविधियों संबंधी प्रगति को सदन के समक्ष रखते हुए कहा कि देश-विदेश से गत वर्ष केन्द्र में करीब 45000 पर्यटक भ्रमणार्थ आए साथ ही राजस्थान व गुजरात तथा समुद्र किनारे स्थित विभिन्न क्षेत्रों में उष्ट्र संबंधी पर्यटन गतिविधियाँ अत्यधिक पसंद की जाती है, इससे देखकर यह कहा जा सकता है कि ऊँट आज भी प्रासंगिक है।
इस अवसर पर ‘उष्ट्र आधारित पर्यटन विकास के नए आयाम: उद्यमिता की प्रबल संभावनाएँ‘ विषयक आयोजित गोष्ठी में सहभागी श्री रमेश ताम्बिया, जिला विकास प्रबंधक, नाबार्ड, बीकानेर ने केन्द्र को 37वें स्थापना दिवस की बधाई देते हुए कहा कि यह केन्द्र ऊँट पालकों एवं किसानों के लिए संवाद का अच्छा मंच उपलब्ध करवाता है। अतः नए आयामों में ऊँट पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने हेतु अधिक से अधिक चर्चा की जानी चाहिए। उन्होंने भारत सरकार की योजनाओं का लाभ लेने हेतु केन्द्र के माध्यम से किसान उत्पादन संगठन बनाए जाने हेतु प्रोत्साहित किया तथा ऊँटनी के दूध के विपणन को और बढ़ाने, इसके प्रति जागरूकता लाने तथा उष्ट्र पर्यटन क्षेत्रों में दूध को भी जोड़ने की बात कही।
गोष्ठी में ऊँटनी के दूध से जुड़े आदविक फूडस उद्यम के श्री हितेश राठी ने कहा कि आदविक फूड द्वारा ‘आदविक’ ब्रांड के नाम से ऊँटनी के दूध से चॉकलेट, दुग्ध पाउडर, साबुन, त्वचा देखभाल संबंधी उत्पाद तैयार कर विश्वभर में बिक्री की जाती है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऊँट पालक, किसान भाइयों के साथ-साथ आमजन इस दूध के औषधीय गुणों, इसकी उपयोगिता व महत्व को समझें। उन्होंने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि यह दूध उपभोक्ता को लाभ पहुंचाने के अलावा किसी प्रकार की एलर्जी नहीं करता है जो कि इस दूध की विशेषता कही जा सकती है। उन्होंने विपणन हेतु और अधिक अनुसंधान द्वारा बेहतर तालमेल की अपेक्षा जताते हुए ऊँटनी के दूध उद्यम हेतु केन्द्र द्वारा प्राप्त प्रेरणा व प्रोत्साहन हेतु सराहना भी की।
गोष्ठी में प्रगतिशील ऊँट पालक श्री जेठाराम, लाखुसर, बीकानेर ने स्थापना दिवस पर केन्द्र की सराहना करते हुए कहा कि यह केन्द्र लघुतम किसान व पशुपालकों से भी जुड़ाव रखता है जिससे केन्द्र से प्राप्त ज्ञान, गांव की चैपाल कर सहज रूप से पहुंच रहा है। उन्होंने केन्द्र वैज्ञानिकों से यह अपेक्षा जताई कि संचार आदि माध्यमों से ऊँट पालकों एवं किसानों के परिवार को भी जोड़ा जाए। इस पर केन्द्र निदेशक डॉ. सावल ने उन्हें आश्वस्त किया कि यह केन्द्र पूर्व की तरह प्रसारित ‘ऊंटां री बातां‘ रेडियो कार्यक्रम को नवीन कलेवर के साथ पुनः शुरू करने जा रहा है। गोष्ठी में सहभागी बने श्री तेजू सिंह भाटी, गांव रायसर, बीकानेर ने उष्ट्र पर्यटन के तहत अपने अनुभव साझा करते हुए इसमें आमदनी बढ़ाने की संभावनाओं को व्यक्त किया।
स्थापना दिवस के महत्वपूर्ण अवसर पर केन्द्र द्वारा प्रसार गतिविधियों के तहत ऊँट स्वास्थ्य शिविर का भी आयोजन किया गया जिसे केन्द्र के पशुचिकित्सक डॉ. काशीनाथ ने संचालित किया। वहीं पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए पौधरोपण भी किया गया। वहीं ‘शुष्क पारिस्थितिकी: वनस्पतियां व ऊँटों का पोषण‘ विषयक विस्तार पत्रक का भी विमोचन किया गया। कोविड-19 के संबंध में भारत सरकार तथा राज्य सरकार की ओर से जारी दिशा-निर्देशों की अनुपालना को ध्यान में रखते हुए स्थापना दिवस के इस कार्यक्रम में धन्यवाद प्रस्ताव केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सुमन्त व्यास ने दिया।
एनआरसीसी ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
भा.कृ.अनु.प-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र, बीकानेर में दिनांक 8 मार्च, 2020 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया | इस अवसर पर देशी एवं विदेशी महिला सैलानियों को निःशुल्क प्रवेश एवं उष्ट्र सवारी की सुविधा प्रदान की गई इसके पश्चात चर्चा सत्र में उन्हें केंद्र की अनुसंधान गतिविधियों व उपलब्धियों, उष्ट्र पालन व्यवसाय तथा ऊँटनी के दूध के औषधीय गुण, स्वच्छ दूध उत्पादन, दुग्ध अवधिकाल आदि के बारे में विस्तार से वैज्ञानिक जानकारी संप्रेषित की गई व ग्रामीण स्तर पर महिलाओं द्वारा बनाये गये उष्ट्र दूध आधारित व्यंजनों के बारे में जानकारी दी गई | इस विशेष दिवस पर पधारीं महिलाओं ने उष्ट्र सवारी का आनंद लिया साथ ही उन्हें केंद्र द्वारा ऊँटनी के दूध से निर्मित कुल्फी, आइसक्रीम आदि स्वादिष्ट उत्पादों का सेवन किया जिनकी उन्होंने सराहना की | इस अवसर पर उष्ट्र प्रजाति के प्रति जागरूकता बढ़ाने हेतु महिला पर्यटकों को उष्ट्र से सम्बंधित प्रसार पत्र भी वितरित किए गए | विशेष चर्चा स्तर में महिलाओं की वैश्विक स्थिति, स्वास्थ्य इत्यादि पर चर्चा की गई व उपस्थित महिला पर्यटकों ने केंद्र द्वारा किये गए प्रयासों को सराहा | केंद्र की ओर से महिला प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ.बसंती ज्योत्सना, वैज्ञानिक के नेतृत्व में इस गतिविधि को संचालित किया गया तथा उन्हें उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, उष्ट्र डेयरी आदि का भ्रमण करवाया गया |
केन्द्र निदेशक डॉ.आर.के.सावल के निर्देशानुसार आयोजित इस कार्यक्रम में 30 महिलाओं की सक्रिय सहभागिता को देखते हुए उन्होंने प्रशंसा व्यक्त की तथा कहा कि बदलते परिवेश में आज महिलाओं की लगभग सभी क्षेत्रों में सहभागिता देखी जा सकती है विशेषकर कृषि एवं पशुपालन में उनका बेहद योगदान रहता है, अत: महिला दिवस आदि अवसरों पर उन्हें क्षेत्र से जुड़ा अद्यतन ज्ञान दिया जाना अपेक्षित है, क्योंकि जब उनके ज्ञान में अभिवृद्धि होगी तो निश्चित रूप से देश की सकल घरेलू उत्पाद दर में और अधिक वृद्धि लाई जा सकती है। डॉ.सावल ने महिला प्रकोष्ठ प्रभारी डॉ.ज्योत्सना व उनकी टीम द्वारा इस महत्वपूर्ण गतिविधि के सफल निष्पादन हेतु बधाई भी संप्रेषित की।
अनुसूचित जाति उपयोजना तहत केन्द्र-विशेषज्ञ पशुपालकों से हुए रू-ब-रू
जैसलमेर ग्रामीण इलाकों में पशु स्वास्थ्य शिविरों एवं किसान गोष्ठियों का आयोजन : 2-3 मार्च, 2020
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत जैसलमेर जिले के गांव दबड़ी एवं सम में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं किसान गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस उपयोजना के तहत केन्द्र के वैज्ञानिकों, पशु चिकित्सकों, तकनीकी व प्रशासनिक अधिकारियों के दल द्वारा 2 मार्च, 2020 को गांव दबड़ी में आयोजित इस पशु स्वास्थ्य शिविर में 109 पशुपालक अपने पशुओं जिनमें ऊँट ( 48), गाय (264), भेड़ व बकरी (1827) के साथ सम्मिलित हुए। शिविर में लाए गए बीमार पशुओं का इलाज व उचित निदान किया गया। इसी दल द्वारा 3 मार्च को जैसलमेर जिले के सम में भी पशु शिविर व किसान गोष्ठी आयोजित की गई। इस दौरान इलाके के 69 पशुपालकों ने विभिन्न रोगों से ग्रसित पशुओं यथा- ऊँट (205), गाय (215), भेड़ व बकरी (980) के शिरकत की तथा इलाज, निदान व चिकित्सीय परामर्श प्राप्त कर इन गतिविधियों का लाभ लिया।
उपर्युक्त अवसरों पर पशुपालकों से बातचीत करते हुए केन्द्र निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने ग्रामीणों को भारत सरकार की इस योजना की जानकारी दी तथा प्रोत्साहित किया कि ऐसे अवसरों का भरपूर लाभ लिया जाना चाहिए क्योंकि पशु विशेषज्ञ आपके द्वार आते हैं। उन्होंने पशुओं से बेहतर उत्पादन लेने हेतु वैज्ञानिक तरीके से पशुओं का रखरखाव, बीमारियों के इलाज के साथ -साथ उनके स्वास्थ्य हेतु उचित समाधान भी सुझाए।
केन्द्र के डॉ .काशीनाथ, नोडल अधिकारी (एससीएसपी योजना) ने जानकारी दी कि पशुओं में मुख्यत: चीचड़, पेट के कीड़े, खाज -खुजली, भूख कम लगना, दस्त लगना, मिट्टी खाना आदि के उपचार हेतु दवाइयां दी गई। कमजोर पशुओं को मल्टी विटामिनयुक्त इंजेक्शन तथा उनमें पौषकता वृद्धि हेतु केन्द्र निर्मित संतुलित पशु आहार व खनिज मिश्रण दिया गया।
इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ .राकेश रंजन ने रोगग्रस्त व कमजोर पशुओं के स्वास्थ्य सुधार हेतु समय पर इलाज व चिकित्सीय परामर्श को प्राथमिकता देने के प्रति पशुपालकों को जागरूक किया। डॉ.बी.एल.चिरानियां, पशु चिकित्सा अधिकारी ने पशुओं को स्वस्थ रखने हेतु पुरानी-गिली मिट्टी बदलने, गर्मी सर्दी मौसम अनुसार उचित बचाव करने तथा बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखने की सलाह दी।
आयोजित गतिविधियों के दौरान केन्द्र दल में सम्मिलित अन्य अधिकारियों श्री मनजीत सिंह, श्री अशोक यादव, श्री अनिल कुमार ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार, दवा व पशु आहार वितरण जैसे विभिन्न कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया गया।
एनआरसीसी ने उद्यम समागम-2020 में सहभागिता निभाई
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर ने (28-29 फरवरी,2020) उद्यम समागम-2020 में अपनी सक्रिय सहभागिता निभाई। एम.एस.एम.ई.-डी.आई उद्योग विभाग, जयपुर एवं जिला प्रशासन एवं जिला उद्योग केन्द्र,बीकानेर के संयुक्त तत्वावधान में बीकानेर जिले में स्थित ग्रामीण हाट में इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस उद्यम समागम के तहत सिरेमिक, वूलन व खाद्य प्रसंस्करण उद्यम के विकास हेतु दो दिवसीय प्रदर्शनी व कार्यशाला कार्यक्रम में केन्द्र ने उष्ट्र प्रजाति के विकास एवं संरक्षण हेतु अपनी अनुसंधान उपलब्धियों एवं बहुआयामी गतिविधियों को आमजन के समक्ष रखा। साथ ही ऊँटनी के दूध पर हुए अनुसंधान एवं इसकी औषधीय उपयोगिता संबंधी गतिविधियों को प्रदर्शित कर दूध एवं दूध उत्पादों के महत्व को प्रतिपादित करने के उद्देश्य से वैज्ञानिक जानकारी भी संप्रेषित की।
उद्यम समागम कार्यक्रम के अतिथियों डॉ.बी.डी.कल्ला,ऊर्जा एवं जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी मंत्री, वीरेन्द्र बेनीवाल, पूर्व मंत्री श्री कुमार पाल गौतम, जिला कलक्टर ने इस दौरान एनआरसीसी की स्टॉल का भी अवलोकन किया। उद्यम समागम में केन्द्र की वैज्ञानिक गतिविधियों को सराहा गया। केन्द्र निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने कहा कि उद्यम समागम जैसे आयोजित कार्यक्रमों के माध्यम से नूतन प्रौद्योगिकी व इनसे संबद्ध उद्यमों को व्यावहारिक तौर पर अपनाए जाने हेतु आमजन के समक्ष रखने में आसानी होती है। इसी उददेश्य से एनआरसीसी भी ऊँटनी के दूध को व्यवसाय के रूप में परिणत करने हेतु तत्पर रहता है। अत: रोजगारोन्मुखी ऐसे अवसरों का लाभ लिया जाना चाहिए। डॉ.बसंती ज्योत्सना, वैज्ञानिक एवं समन्वयक एवं केन्द्र के अन्य स्टाफ ने इस महत्वपूर्ण गतिविधि में सक्रिय योगदान दिया।