PRESS RELEASE
एनआरसीसी की अनुसंधान सलाहकार समिति की वार्षिक बैठक आयोजित
बीकानेर दिनांक 06.11.2024 । भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र की अनुसंधान सलाहकार समिति (आरएसी) की दो दिवसीय बैठक (5-6 नवम्बर) का आज डॉ.रामेश्वरसिंह, पूर्व कुलपति, बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना की अध्यक्षता में समापन हुआ । इस दो दिवसीय बैठक में समिति सदस्य के रूप में डॉ.त्रिभुवन शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता, राजूवास, बीकानेर, डॉ.प्रमोद कुमार राउत, प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार- डीजी, भाकृअनुप, नई दिल्ली, डॉ.रणधीर सिंह, पूर्व एडीजी, आईसीएआर, नई दिल्ली, श्री रणवीर सिंह भादू, किसान प्रतिनिधि, बाड़मेर तथा डॉ. अमरीश कुमार त्यागी, सहायक महानिदेशक (एएनपी), भाकृअनुप, नई दिल्ली, डॉ.एस. वैद्यनाथन, पूर्व निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय मांस अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद एवं डॉ.वी.पी.सिंह, पूर्व निदेशक, निशाद एवं अधिष्ठाता, वेटरनरी कॉलेज, झांसी भी इस बैठक से ऑनलाइन जुड़े । एनआरसीसी की ओर से इस बैठक में डॉ.आर.के.सावल, निदेशक, डॉ.राकेश रंजन, समिति सदस्य सचिव तथा सभी वैज्ञानिकों ने सहभागिता निभाई।
निदेशक डॉ.आर.के. सावल ने एनआरसीसी द्वारा प्राप्त अनुसंधान उपलब्धियों एवं चल रही गतिविधियों के संबंध में समिति को अवगत करवाते हुए अनुसंधान के क्षेत्र में केन्द्र के नवाचारों को सदन के समक्ष रखा तथा गतिशील अनुसंधानों के और अधिक बेहतर कार्यान्वयन, सही दिशा व अपेक्षित परिणाम के लिए समिति से उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा जताई ।
आरएसी समिति के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर सिंह ने कहा कि एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे अनुसंधान कार्य एवं व्यावहारिक प्रयास सराहनीय है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार अनुसंधान, कार्य योजना, मानकीकरण के लिए और अधिक सीखने की जरूरत है , वैज्ञानिक इस प्रजाति में विद्यमान विलक्षण संभावनाओं को अपनी अनुसंधान कार्य प्रणाली द्वारा उभारने का भरपूर प्रयास जारी रखें । समिति अध्यक्ष ने बदलते परिदृश्य में उष्ट्र पालन व्यवसाय के समक्ष आने वाली विविध चुनौतियों एवं इस पशु की देश में घटती व वैश्विक स्तर पर बढ़ती संख्या तथा इसकी प्रासंगिकता को दृष्टिगत रखते हुए ऊँटों संबद्ध विविध पहलुओं पर गहन व नवाचार अनुसंधान की आवश्यकता भी जताई तथा कहा कि उष्ट्र डेयरी व्यापार की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर ले जाने हेतु इन देशों की सहभागिता, आयात, मार्केटिंग डवलपमेंट आदि पहलुओं को नीतिगत लाते हुए ऊॅट को ‘डेयरी मॉडल के रूप में तैयार किया जा सकता है ।
समिति सदस्य डॉ.रणधीर सिंह ने कहा कि देश में उष्ट्र प्रजाति की स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु वैश्विक स्तर पर ऊँटों की बीमारियों के प्रति भी सचेत रहने होगा साथ ही इस पशु प्रजाति के लिए चरागाह विकसित करने हेतु उपयुक्त पौधे उपलब्धता होनी चाहिए । डॉ. प्रमोद कुमार राउत ने वैज्ञानिकों को परियोजना संबंधित अनुसंधान कार्यों के बेहतर परिणामों के लिए उपयोगी सुझाव दिए । डॉ. त्रिभुवन शर्मा ने अनुसंधान के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा किए वहीं श्री रणवीर सिंह भादू ने ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में लाभकारिता का प्रचार-प्रसार करने, अच्छी नस्ल ऊँट विकसित करने, व ऊँटों के बाल, हड्डी, त्वचा से निर्मित उत्पादों का लाभ पशुपालकों तक पहुंचाने की आवयकता जताई । इस बैठक में ऑनलाईन जुड़े डॉ. अमरीश त्यागी ने ऊँटनी के दूध से फार्मास्युटिकल, कॉस्मेटिक व मूल्य संवर्धित उत्पाद विकसित करने हेतु प्रोत्साहित किया ताकि इनके माध्यम से राजस्व उतपादन अधिक प्राप्त हो सकेगा । डॉ.वी.पी.सिंह ने परिवर्तित परिदृश्य में उष्ट्र पालन से जुड़ी कई चुनौतियों व समस्याओं को इंगित किया। डॉ.एस.वैद्यनाथन ने भी अनुसंधान कार्यों को वैज्ञानिक कसौटी पर खरा उतारने के लिए उपयोगी सुझाव दिए । बैठक के समापन पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन, समिति सदस्य सचिव ने अध्यक्ष व सभी समिति सदस्यों व वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया ।
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर
विशेष स्वच्छता अभियान (02 अक्टूबर से 31 अक्टूबर, 2024 )
(1) स्वच्छता आधारित स्कूली विद्यार्थियों हेतु प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) में चल रहे विशेष स्वच्छता अभियान के अंतर्गत आज दिनांक 21.10.2024 को प्रात: 11.00 बजे राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, शिवबाड़ी में स्वच्छता आधारित प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें इस विद्यालय के कक्षा 9-12 वीं तक के कुल 36 छात्र-छात्राओं ने उत्साही सहभागिता निभाई ।
(2) स्वच्छता आधारित व्याख्यान ‘’जीवन में स्वच्छता का महत्व’’
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, शिवबाड़ी में प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम के पश्चात् मध्यान्ह आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम में केन्द्र के निदेशक डॉ.आर.के.सावल द्वारा विद्यार्थियों को ‘’जीवन में स्वच्छता का महत्व’ विषयक व्याख्यान दिया गया । अपने व्याख्यान के दौरान निदेशक महोदय ने कहा कि विद्यार्थियों को अपने विद्यालयों में स्वच्छता के प्रति विशेष जागरूकता बरतनी चाहिए तथा वे इसे एक नैतिक दायित्व के रूप में लें । उन्होंने कहा कि विद्यालय में साफ़ पानी, सामूहिक हाथ धोना एवं शौचालय और साबुन आदि की सुव्यवस्था से स्कूलों में अच्छी प्रथाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए, स्वच्छता संबंधी ये सभी जरूरी पहलू पानी, सफाई और स्वच्छता से संबंधित बीमारियों को रोकने में मददगार होते हैं ।
डॉ.सावल ने अपने व्याख्यान में देश व समाज में स्वच्छता की आवश्यकता पर बोलते हुए कहा कि विद्यालय का प्रत्येक विद्यार्थी, विद्यालय स्तर पर ही शिक्षा के साथ-साथ साफ-सफाई के महत्व को भी जानें, तभी वह आगे जाकर एक जिम्मेदार नागरिक बन सकेगा और हमारा समाज व राष्ट्र और अधिक स्वस्थ व समृद्ध बन सकेगा । डॉ.सावल ने जीवन में स्वच्छता के महत्व के प्रति बच्चों को विशेष रूप से प्रोत्साहित करते हुए जानकारी दी कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधीनस्थ राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, वैश्विक स्तर पर अपने अनुसंधान कार्यों के साथ-साथ अपनी पर्यटनीय छवि के लिए भी विशेष तौर पर जाना जाता है, प्रतिवर्ष हजारों की तादाद में देसी-विदेशी सैलानी, विद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के अनुसंधानकर्त्ता एवं विद्यार्थी गण शैक्षणिक भ्रमणार्थ आते हैं, ऐसे में हम स्वच्छता गतिविधियों के प्रति विशेष अहतियात बरतते हैं तथा स्वच्छ भारत अभियान कार्यक्रम इनमें महत्ती भूमिका निभा रहे हैं ।
इस अवसर पर विद्यालय की उप प्राचार्या श्रीमती नीतू निरवाण ने कहा कि एन.आर.सी.सी. संस्थान द्वारा अपनी स्वच्छता गतिविधियों के माध्यम से साफ-सफाई के महत्व संबंधी दिए गए संदेश को छात्रा-छात्राओं द्वारा अपने जीवन में अमल में लाना चाहिए ताकि वे अपने में विद्यमान क्षमताओं को बेहतर तरीके से उभारते हुए अपने विद्यालय, समाज व देश का गौरव बढ़ाएं ।
विद्यालय में केन्द्र द्वारा आयोजित स्वच्छता संबंधी गतिविधियों के समन्वयक केन्द्र के श्री नेमीचंद बारासा, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी (राजभाषा) द्वारा राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, शिवबाड़ी की प्राचार्या श्रीमती उर्वशी शर्मा, उप प्राचार्या श्रीमती नीतू निरवाण, अध्यापिका श्रीमती प्रीति व सहयोगी स्टाफ के प्रति आभार व्यक्त किया गया ।
एनआरसीसी द्वारा गांव खींचिया में पशु स्वास्थ्य शिविर आयोजित
बीकानेर 17 अक्टूबर 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा आज दिनांक को खींचिया गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक गोष्ठी का आयोजन किया गया । केन्द्र की अनुसूचित जाति उप-योजना तथा केन्द्र में चल रहे विशेष स्वच्छता अभियान के तहत आयोजित इस गतिविधि में खींचिया व आस-पास क्षेत्र के 131 पशुपालकों ने सहभागिता निभाई । कैम्प के तहत 84 गाय, 36 ऊँट, 19 भैंस तथा भेड़-बकरी 207 का उपचार कर दवाओं का वितरण किया गया । पशुपालकों को स्वच्छता के महत्व के प्रति विशेष प्रोत्साहित किया गया ।
इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने पशुपालकों से बातचीत के दौरान कहा कि पशुपालन व्यवसाय को लाभदायक बनाने हेतु इसका भलीभांति प्रबंधन अत्यंत जरूरी पहलू है। इस हेतु संतुलित आहार, खनिज मिश्रण, लवण आदि का उचित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिए । इससे पशुओं का स्वास्थ्य ठीक रहेगा साथ ही दूध उत्पादन में वृद्धि होगी जिससे पशुपालन लाभदायक हो सकेगा ।
केन्द्र के डॉ.काशी नाथ, मुख्य पशु चिकित्सक ने पशुओं में अंत: व बाह्य परजीवी के प्रभावी नियंत्रण के बारे में विस्तृत जानकारी दी तथा कहा कि इन पर नियंत्रण से पशुओं का स्वास्थ्य व प्रजजन क्षमता में सुधार होगा जिससे पशुओं की उत्पादन क्षमता में बढ़ोत्तरी हो सकेगी । साथ ही शिविर के दौरान लाए गए पशुओं को परजीवी नाशक दवा पिलाई गई ।
खींचिया गांव के सरपंच प्रतिनिधि मो.लतीफ ने एनआरसीसी द्वारा आयोजित इस शिविर हेतु आभार व्यक्त किया तथा आशा जताई कि इससे पशुपालकों को अधिकाधिक लाभ पहुंचेगा ।
शिविर में पशुपालकों को करभ पशु आहार, खनिज लवण मिश्रण, लवण बट्टिका एवं पशुओं को पानी पिलाने हेतु बाल्टियों का वितरण किया गया । आयोजित गतिविधि में पशुपालकों के पंजीयन, पशुओं के उपचार, दवा व पशु आहार आदि के वितरण में केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी, श्री राजेश चौधरी, सहायक प्रशासनिक अधिकारी एवं श्री अमित कुमार ने सक्रिय रूप से सहयोग प्रदान किया ।
भाकृअनुप-एन.आर.सी.सी.बीकानेर द्वारा नेटवर्क परियोजना के तहत उष्ट्र नस्ल संवर्धन
एवं संरक्षण अभियान
भाकृअनुप- राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केंद्र (एन.आर.सी.सी.), बीकानेर (राजस्थान) द्वारा मेवाडी एवं मालवी ऊँट नस्ल की गिरती आबादी को ध्यान में रखते हुए इन नस्लों के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु चल रही नेटवर्क परियोजना के अंतर्गत मध्यप्रदेश के नीमच, मंदसौर जिले एवं राजस्थान के चित्तोडगढ़, राजसमंद जिलों में 24-27 सितंबर, 2024 तक ऊँट नस्ल संवर्धन तथा संरक्षण अभियान एवं स्वास्थ्य जांच कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम नीमच जिलें के टामोटी, मजीरिय, मंदसौर जिले के एरिया की ढाणी, किरता, चित्तौड़गढ़ जिले का सावता एवं राजसमंद जिले के अमेट तथा सेलगुड़ा गाँव में किया गया। ऊँट पालकों को निशुल्क टीकाकरण एवं दवा वितरण की गई। इस कैंप में बडी संख्या में मध्य प्रदेश एवं राजस्थान के ऊँट पालकों ने भाग लिया।
एनआरसीसी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वेद प्रकाश एवं उनकी टीम द्वारा ऊँटों की स्वास्थ्य संबंधी जानकारी और बीमारियों से बचाव के उपाय बताए गए । साथ ही वैज्ञानिकों द्वारा पशुपालकों को ऊँटों की नस्ल सुधार एवं नस्ल संरक्षण, ऊँटनी के दूध का औषधीय महत्व तथा दुग्ध उत्पादन की बढ़ोत्तरी हेतु ऊँट नस्ल संवर्धन की दिशा में केन्द्र के प्रयासों तथा अनुसंधान गतिविधियों संबंधी जानकारी देते हुए ऊँट पालकों को वर्तमान समय में ऊँट की घटती संख्या एवं चराई में आने वाली समस्याओं के बारे में पारस्परिक वार्ता की गई । ऊँटपालकों ने पुराने समय में ऊँटों के चराई के मार्ग, पशुओं की रोजमर्रा चराई से संबधिंत आने वाली समस्याओं तथा वन्य क्षेत्रों में ऊँटों की चराई हेतु लगने वाले शुल्क तथा वनों में चराई हेतु लगे प्रतिबन्ध को हटाने की मांग उठाते हुए एनआरसीसी वैज्ञानिकों से इनके समाधान के उपाय पर बातचीत कीं ।
नेटवर्क परियोजना के अंतर्गत ऊँट संरक्षण और स्वास्थ्य शिविर का आयोजन, एनआरसीसी के निदेशक डॉ. राजेश कुमार सावल के मार्गदर्शन में किया गया। फील्ड स्तर पर आयोजित इस संगोष्ठी में प्रगतिशील पशुपालकों - बालाराम, जयरामजी भाटी, जबरमल, प्रहलाद हीरालाल रेबारी, मूलाराम रेबारी इत्यादि का विशेष सहयोग रहा ।
एनआरसीसी एवं श्री खेतरपाल उद्योग के मध्य कैमल मिल्क आइसक्रीम की प्रौद्योगिकी को लेकर हुआ एमओयू
बीकानेर 18.09.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा ऊँटनी के दूध से निर्मित आइसक्रीम उत्पाद बनाने की प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण श्री खेतरपाल उद्योग, गांव मूंडसर, बीकानेर को किया गया । इस प्रयोजन हेतु एनआरसीसी एवं श्री खेतरपाल उद्योग के मध्य एक महत्वपूर्ण एमओयू किया गया है जिसमें केन्द्र के निदेशक डॉ. आर.के.सावल एवं इस कंपनी के प्रोपराइटर श्री मुन्नी राम चौधरी द्वारा हस्ताक्षर किए गए ।
केन्द्र के निदेशक डॉ. आर.के.सावल ने उत्साहित होते हुए कहा कि ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों से इसकी लोकप्रियता तथा सामाजिक स्वीकार्यता तेजी से बढ़ रही है, विभिन्न मानव रोगों यथा-मधुमेह, क्षय रोग, ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में दूध का महत्वपूर्ण योगदान है, फलस्वरूप ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय को अपनाने हेतु युवा उद्यमी, ऊँटनी के दूध से विकसित उत्पादों की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण हेतु आगे आ रहे हैं। डॉ. सावल ने कैमल मिल्क आइसक्रीम उत्पाद के तकनीकी हस्तांतरण पर कहा कि ऊँटनी के दूध से निर्मित आइसक्रीम का निर्माण करते समय, इसी दूध की क्रीम को प्रयुक्त करने पर इसमें विद्यमान आवश्यक वसीय अम्ल, मानव त्वचा, मांसपेशियों व हृदय को स्वस्थ्य बनाए रखने में काफी मददगार साबित हो सकेंगे।
एमओयू के अवसर पर श्री खेतरपाल उद्योग गांव मूंडसर, बीकानेर के प्रोपराइटर श्री मुन्नी राम चैधरी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि फर्म का गाय व भैंस के दूध का पारंपरिक व्यवसाय है, परंतु ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में उपयोगिता खासकर मधुमेह रोग में इसकी लाभकारिता को देखते हुए एनआरसीसी से आइसक्रीम उत्पाद बनाने की प्रौद्योगिकी ली गई है। श्री चौधरी ने शुगर फ्री आइसक्रीम उत्पाद तैयार कर सर्वप्रथम बीकानेर के गांवों तथा स्थानीय नगर स्तर पर इसकी लोकप्रियता व उपादेयता बढ़ाने हेतु अन्य गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर घर-घर सम्पर्क करने करने की बात कही ।
एनआरसीसी की उष्ट्र डेयरी प्रौद्योगिकी एवं प्रसंस्करण इकाई के प्रभारी डॉ.योगेश कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने कहा कि केन्द्र द्वारा ऊँटनी के दूध से नवीन तकनीक द्वारा उष्ट्र दुग्ध निर्मित आइसक्रीम बनाने की विधि तथा अन्य महत्वपूर्ण तकनीकी पहलू, कम्पनी को हस्तांतरित किए गए हैं व केन्द्र द्वारा संबंधित तकनीकी प्रशिक्षण भी प्रदान किया गया जिससे कंपनी कैमल मिल्क आइसक्रीम का उत्पादन कर सकेगी । उन्होंने इसे स्व-रोजगार का अच्छा अवसर बताते हुए कहा कि इच्छुक ऊँट पालक, किसान, गैर सरकारी संगठन उद्यमी, उत्पादक संगठन, डेयरी उद्यमी, एजेंसीज तथा बेरोजगार व्यक्ति आदि केन्द्र से सम्पर्क कर तकनीकी हस्तांतरण के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं तथा उभरने वाली इन प्रौद्योगिकियों का उद्यम के रूप में लाभ उठा सकते हैं ।
एमओयू के इस अवसर पर इस फर्म व विभिन्न स्वयं सहायता समूह से जुड़ी श्रीमती इंदुसिंह, श्रीमती भगवती देवी तथा केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, डॉ.राकेश पूनियां आदि भी मौजूद थे ।
एनआरसीसी में ओजोन परत पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन
बीकानेर 17.09.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में ‘ओजोन परत, इसका क्षरण, और जीवों पर प्रभाव (ओजोन लेयर, इट्स डिप्लीशन एण्ड इम्पेक्ट ऑन लिविंग बींगस् ) ’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का आज दिनांक को समापन हुआ । नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली द्वारा एनआरसीसी सहित अन्य विभिन्न संस्थानों के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन में देश के विभिन्न प्रान्तों – उत्तरप्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि राज्यों के प्रतिभागियों ने इस आयोजन के माध्यम से अपने अनुसंधान कार्यों को प्रस्तुत किया ।
समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो.राजेन्द्र पुरोहित, प्राचार्य, राजकीय डूंगर महाविद्यालय, बीकानेर ने कहा कि ओजोन परत, इसका क्षरण, और जीवों पर इससे पड़ने वाले प्रभाव पर गहन चिंतन व मनन नितांत आवश्यक है तथा ओजोन परत की सुरक्षा को एक नैतिक कार्य के रूप में लिया जाना चाहिए । प्रो.पुरोहित ने पर्यावरण संतुलन हेतु पौधरोपरण पर जोर देते हुए कहा कि देश में अनेकानेक औषधीय जड़ी बूटियां व पौधे है जो हमारी धरोहर है, इन पर शोध कार्य किया जाना चाहिए ।
कार्यक्रम संयोजक व केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के.सावल, निदेशक, एनआरसीसी,बीकानेर ने कहा कि ओजोन परत के दुष्प्रभाव से बचने के लिए हमें क्लाईमेंट रेसीलियंट उत्पादकता पर काम करना होगा । उन्होंने सतत कृषि उत्पादकता पर जोर देते हुए कहा कि सम्मेलन के माध्यम से विशेषज्ञों द्वारा कृषि, फसलों के उत्पादन, पर्याप्त वर्षो, प्राकृतिक आपदाएं तथा पर्यावरण संतुलन आदि विविध पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श किया गया, सम्मेलन के निष्कर्षों एवं सुझावों के आधार पर ओजोन परत के क्षरण को रोकने एवं आमजन में इसके प्रति जागरूकता लाने की दिशा में यह निश्चित रूप से मददगार साबित हो सकेगा । डॉ.सावल ने ऊँट को एक एनवॉयरमेंट फ्रेंडली पशु मानते हुए इसका पालन समग्र मानवता के हित में किए जाने की बात कही।
इस अवसर पर पधारें सम्माननीय अतिथि केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर के निदेशक डॉ.जगदीश राणे ने ओजोन परत के निर्माण, विघटन एवं उसके प्रभावों पर विस्तृत प्रकाश डाला और यह बताया कि अब ऐसे उपकरण उपलब्ध है जिनके माध्यम से हम अपने घरों में लघु रूप से ओजोन का निर्माण कर सकते हैं , जिनका उपयोग चिकित्सीय कार्यों में भी होता है ।
नेशनल एनवॉयरमेंटल साइंस अकादमी (नेसा), नई दिल्ली के प्रतिनिधि व कार्यक्रम विशिष्ट अतिथि डॉ. संदीप कुमार, कृषि वैज्ञानिक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने नेसा संस्था के उद्देश्य पर प्रकाश डाला तथा इस आयोजन को सार्थक बताया ।
समापन कार्यक्रम से पूर्व आमंत्रित विषय विशेषज्ञों द्वारा अपने लीड पेपर प्रस्तुत किए । साथ ही ओजोन परत के प्रबंधन एवं पुनःस्थापन ( रिमेडिएशन) पर गहन विचार किया गया तथा इस आधार पर एक अनुशंसा नोट तैयार किया गया । समापन कार्यक्रम में बेस्ट ऑरल प्रजेंटेशन एवं बेस्ट पोस्टर प्रजेंटेशन के विजेताओं को अतिथियों द्वारा पुरस्कृत किया गया ।
आयोजन सचिव डॉ.राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक, एनआरसीसी ने कार्यक्रम की विस्तारपूर्वक रूपरेखा तैयार की तथा केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ.मृणालिनी प्रेरणा द्वारा आयोजन में पधारे सभी गणमान्य जनों, शोधकर्त्ताओं, प्रतिभागियों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया गया ।
भाकृअनुप-एनआरसीसी द्वारा अनुसूचित जाति उप-योजना तहत महिला पशुपालकों हेतु कार्यशाला आयोजित
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एन.आर.सी.सी.) द्वारा अनुसूचित जाति उप-योजना के तहत बीकानेर के गांव सोनियासर मीठिया में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के सहयोग से दिनांक 17 अगस्त, 2024 को ‘पशु स्वास्थ्य प्रबंधन एवं स्वच्छ दूध उत्पादक’ विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें पशुपालन व्यवसाय से जुड़ी गांव की 50 से अधिक महिलाओं को विषयगत प्रशिक्षण दिया गया ।
केन्द्र निदेशक डॉ. आर.के.सावल ने महिला पशुपालकों को संबोधित करते हुए कहा कि देश के सकल घरेलू कृषि उत्पाद में पशुधन का योगदान सराहनीय है तथा पशुपालन व्यवसाय में ग्रामीण महिलाओं की मुख्य भूमिका देखी जा सकती हैं, ऐसे में उनके ज्ञान को समयानुसार अद्यतित किया जाना चाहिए ताकि इस व्यवसाय में आशातीत वृद्धि लाई जा सकें । डॉ.सावल ने अनुसूचित जाति की महिलाअें के सशक्तिकरण और कृषि उत्पादकता बढ़ाने में इस उप-योजना के महत्व पर प्रकाश डालते हुए पशुओं से स्वच्छ दुग्ध उत्पादन व उसका संग्रहण, ऊँटनी के दूध की औषधीय उपयोगिता व इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने, पशु आहार के रूप में लवण व खनिज मिश्रण की पर्याप्त पूर्ति, मौसमी चारों खासकर बारिश में उगने वाली सेवण व धामण घास तथा क्षेत्र विशेष वनस्पतियों आदि का आपात स्थिति हेतु संग्रहण आदि विभिन्न पहलुओं की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया ।
इस अवसर पर नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक श्री रमेश ताम्बिया ने महिलाओं के उत्थान और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने हेतु नाबार्ड की स्वयं रोजगार के लिए प्रेरित करने संबंधी विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी देते हुए इनका अधिकाधिक लाभ उठाने हेतु प्रोत्साहित किया । राजीविका मिशन डूंगरगढ़ के ब्लॉक परियोजना प्रबंधक श्री रघुनाथ डूडी ने कहा कि राजीविका मिशन का मुख्य कार्य, ग्रामीण क्षेत्र की जरूरतमंद महिलाओं को स्वयं सहायता समूह के रूप में जोड़ते हुए इन समूहों में व्यावसायिक कौशल विकसित करना है। उन्होंने एनआरसीसी एवं नाबार्ड के इस संयुक्त कार्यक्रम के लिए आभार व्यक्त किया ।
इस दौरान वैज्ञानिक डॉ.शान्तनु रक्षित ने प्रतिभागी महिलाओं को एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों की जानकारी देते हुए पशुओं का वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, उष्ट्र पर्यटन विकास व उष्ट्र डेयरी के सफल संचालन की व्यावहारिक जानकारी लेने हेतु केन्द्र में भ्रमण करने की बात कही । केन्द्र के डॉ.काशी नाथ, वरिष्ठ पशु चिकित्सक ने कहा कि पशुओं को बारिश के मौसम में अफारा, खुरपका और मुंहपका, थनैला, निमोनिया, चीचड़ तथा त्वचा रोगों से बचाने हेतु प्रभावित पशुओं की खास देखभाल, रोगों से बचाव व इनकी रोकथाम किया जाना जरूरी है ताकि पशु स्वामी को आर्थिक हानि से बच सकें । कार्यशाला में विषय विशेषज्ञों द्वारा पशुओं के थनों की जांच व उचित देखभाल की जानकारी भी दी गई ।
केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी, राजीविका मिशन व ‘ड्रोन दीदी’ से जुड़ी महिलाओं ने पंजीयन, पशु आहार तथा स्वच्छ दूध उत्पादन संबधित वस्तुओं यथा-मलमल का कपड़ा, छलनी, दवा किट वितरण आदि विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया ।
एनआरसीसी द्वारा आबुरोड़ सिरोही के जनजातीय क्षेत्र में पशु स्वास्थ्य शिविर आयोजित
30.07.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा जनजातीय उप-योजना तहत जिला सिरोही जनजातीय क्षेत्र के गांव मोरडु, आबु रोड़ में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया । केन्द्र द्वारा मोरडू, आबू रोड़ के राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय परिसर में लगाए गए इस पशु स्वास्थ्य शिविर में कुल 142 पशुपालकों द्वारा लाए गए 419 पशुओं यथा- गाय 65, भैंस 116, भेड़ 46, बकरी 192 की स्वास्थ्य जांच, उपचार व दवाओं आदि का वितरण किया गया तथा उन्हें उचित परामर्श दिया गया । जहां इस शिविर में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता रहीं वहीं स्कूली बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रोत्साहन स्वरूप केन्द्र की इस गतिविधि से जोड़ते हुए 230 बच्चों को स्कूली किट बैग का भी वितरण किया गया।
एनआरसीसी के निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने पशुपालकों से बातचीत के दौरान बताया कि पशुओं से भरपूर उत्पादन लेने हेतु उनके स्वास्थ्य, आहार-पोषण, स्वच्छ दूध उत्पादन, उचित आवास व्यवस्था आदि सभी पहलुओं पर ध्यान देने की महत्ती आवश्यकता है । उन्होंने कहा कि पारम्परिक रूप से पशुपालन व्यवसाय के साथ-2 वैज्ञानिक ढंग से भी पशुओं के प्रबन्धन को जानना व सीखना चाहिए ताकि पशुपालक अपनी आमदनी में आशातीत वृद्धि ला सकें। डॉ. सावल ने पशुपालकों को अपने ज्ञान में अभिवृद्धि लाने, स्वास्थ्य-स्वच्छता के प्रति जागरूकता, विशेषकर बच्चों में शिक्षा के प्रसार आदि हेतु अभिभावकों को प्रेरित किया ताकि वे समाजार्थिक रूप से सक्षम बन सकें ।
केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. शान्तनु रक्षित ने एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि पशुपालक भाइयों को पशुओं के वैज्ञानिक ढंग से रखरखाव की व्यावहारिक जानकारी व इसका लाभ लेने हेतु सामूहिक रूप से केन्द्र का भ्रमण करना चाहिए । डॉ.श्याम सुंदर चौधरी ने पशुपालकों को पशु प्रौद्योगिकी से जुड़ने हेतु प्रोत्साहित करते हुए पशुओं के स्वास्थ्य और पशुधन उत्पादन पर विस्तार से जानकारी दीं ।
केन्द्र की जन जातीय उप-योजना से जुड़े डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने जानकारी दीं कि शिविर में लाए गए पशुओं में चींचड़ व वर्षा ऋतु में अफारा आदि की समस्या अधिक देखी गई । वहीं पशुओं में खनिज आपूर्ति हेतु पशुपालकों को नमक की ईंटे व करभ पशु आहार का वितरण किया गया।
इस अवसर पर आबुरोड़ सिरोही के प्रगतिशील पशुपालक श्री सेवाराम ने इस गतिविधि के माध्यम से पशुपालकों की जिज्ञासाओं व समस्याओं के उचित समाधान हेतु केन्द्र के प्रति आभार व्यक्त किया वहीं स्कूल के प्रधानाध्यक श्री रूपाराम द्वारा स्कूली बच्चों को शिक्षा के प्रति प्रेरित करने व शिक्षा संबद्ध सामग्री वितरण हेतु आभार व्यक्त किया गया। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी व श्री रणवीर सिंह, तकनीशिएन ने शिविर में पशुओं के पंजीयन, दवा व पशु आहार वितरण आदि विभिन्न कार्यों में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया ।
एनअरसीसी ने मनाया 41वां स्थापना दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र ने अपना 41वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाया । इस समारोह में राजस्थान के जैसलमेर, जोधपुर, झालावाड़, बारां जिलों तथा बीकानेर से गाढ़वाला, भामटसर, मोरखाना आदि के ऊँट पालकों, महिला किसान, दुग्ध उद्यमिता से जुड़े युवा उद्यमियों, बीएसएफ के जवानों, स्कूली बच्चों, बीकानेर स्थित आईसीएआर के विभागाध्यक्षों व एनआरसीसी के सेवा निवृत्त तथा कार्यरत वैज्ञानिकों, अधिकारियों, कर्मचारियों सहित 200 से ज्यादा ने शिरकत दी ।
केन्द्र सभागार में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि डॉ.जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि यद्यपि ऊँटों की संख्या घट रही है परंतु उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण व विकास की दिशा में एनआरसीसी बेहतरीन कार्य कर रहा है तथा खास बात यह है कि यहां शोध को मानव समाज के स्वास्थ्य लाभ से जोड़कर उसे सिद्ध किया जा रहा है । उन्होंने वैज्ञानिकों को मार्केटिंग के हिसाब से उत्पाद तैयार कर इनके पेटेंट हेतु तथा युवा उद्यमियों को ऊँटनी के दूध आदि को लेकर स्टार्टअप खोलने हेतु भी प्रेरित किया ।
केन्द्र के निदेशक व कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर.के.सावल ने एनआरसीसी की विगत वर्षों में प्राप्त उपलब्धियों एवं उल्लेखनीय कार्यों से अवगत कराते हुए कहा कि केन्द्र द्वारा ऊँटों के जनन, प्रजनन, आनुवांशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य आदि को लेकर गहन शोध कार्य किए गए साथ ही बदलते परिवेश में ऊँटों की उपादेयता बढ़ाने के लिए शोध द्वारा ऊँटनी के औषधीय दूध का मानव रोगों यथा-मधुमेह, टी.बी., ऑटिज्म आदि के प्रबंधन में लाभदायक पाया है फलस्वरूप समाज में इसके प्रति जागरूकता व दूध की स्वीकार्यता भी तेजी से बढ़ी है साथ ही ऊँट पालकों की अतिरिक्त आमदनी बढ़ाने हेतु उष्ट्र पर्यावरणीय पर्यटन विकास कार्यों को बढ़ावा दिया जा रहा है । वर्तमान में संस्थान में भ्रमणार्थ पर्यटकों की सालाना संख्या लगभग 50 हजार से ऊपर पहुंच गई है।
विशिष्ट अतिथि डॉ.एस.एन.टंडन, पूर्व प्रधान वैज्ञानिक , एनआरसीसी ने विगत वर्षों में एनआरसीसी की प्रगति की सराहना करते हुए कहा कि ऊँटों की उपादेयता को समाजार्थिक आवश्यकता अनुसार तलाशे जाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि इस उष्ट्र प्रजाति व संबद्ध समुदायों को लाभ मिले ।
केन्द्र के स्थापना दिवस पर बीएसएफ के जवानों द्वारा उष्ट्र परेड, केन्द्र द्वारा सजावटी ऊँटों का प्रदर्शन, महिला पशुपालकों द्वारा उष्ट्र गाड़ा प्रदर्शन, ऊँट नृत्य, स्कूली विद्यार्थियों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कैमलिडस वर्ष थीम पर रंगोली प्रदर्शन कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। साथ ही उष्ट्र दुगध उत्पादों, उष्ट्र आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी लगाई गई। ऊँटों के लोक गीतों,फिल्मों, विज्ञापनों इत्यादि में उपयोग संबंधी चलचित्र की प्रस्तुति की गई । उष्ट्र पालन से जुड़े हितधारकों द्वारा उष्ट्र संरक्षण, पालन व उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता पर विचार साझा किए तथा उष्ट्र पालन को लेकर जमीनी स्तर पर आ रही चुनौतियों के समाधान की आवश्यकता जताई । इस अवसर पर केन्द्र के वैज्ञानिकों द्वारा संस्थान की गत 40 वर्षों की उपलब्धियों को प्रस्तुत किया गया । साथ ही दो कूबड़ ऊँट व शुष्क क्षेत्रों में पौधों की प्रजातियों की वर्तमान स्थिति संबंधित पुस्तकों का विमोचन किया गया । केन्द्र द्वारा उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता से जुड़े उष्ट्र पालकों को उनके उल्लेखनीय योगदान तथा बीएसएफ को ऊँटों की उपयोगिता को आज के दौर में बनाए रखने में महत्वपूएर्ण योगदान के लिए सम्मानित किया गया। उष्ट्र पालन के क्षेत्र में केन्द्र के उष्ट्र अनुचरों के महत्ती योगदान हेतु भी सम्मानित किया गया । कार्यक्रम का संयोजन डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने किया तथा डॉ.स्वागतिका प्रियदर्शिनी, वैज्ञानिक द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्याम सुंदर चौधरी, वैज्ञानिक ने किया ।
एनआरसीसी ने समारोहपूर्वक मनाया विश्व ऊँट दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर द्वारा ‘विश्व ऊँट दिवस’ दिनांक 22.06.2024 को समारोहपूर्वक मनाया गया। जिनमें 500 से अधिक सिरोही, गंगाशहर, देशनोक, बीकानेर के ऊँट पालकों, महिला किसान, आमजन के साथ-साथ परिषद के बीकानेर स्थित विभिन्न संस्थान/केन्द्र के वैज्ञानिकों, एनआरसीसी परिवार ने अपनी सहभागिता निभाई। केन्द्र द्वारा इस उपलक्ष्य पर ऊँट दौड़, ऊँट सजावट प्रतियोगिता, ऊँट व ऊँट गाड़ा प्रदर्शन प्रतियोगिता, स्कूली विद्यार्थियों हेतु चित्रकला प्रतियोगिता, ‘ऊँट के बिना जीवन‘ विषयक कार्यशाला एवं ऊँट: आज और कल‘ विषयक छायाचित्र प्रदर्शनी, पशु स्वास्थ्य शिविर व संवाद गतिविधियों का आयोजन किया गया। केन्द्र द्वारा आयोजित प्रतियोगिताओं के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया । कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.आर्तबन्धु साहू, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय पशु पोषण एवं शरीर क्रिया विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु ने कहा कि निश्चित तौर पर आज का दिवस एक विशेष उद्देश्य से प्रेरित है उसी अनुरूप संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2024 को अंतर्राष्ट्रीय कैमलिड्स वर्ष घोषित किया गया है। डॉ.साहू ने राजकीय पशु ऊँट की स्थिति, इसमें अपेक्षित बदलाव, ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणों के कारण इसे व्यवसाय के रूप में अपनाने, दूध का व्यवस्थित संग्रहण, इसमें गैर सरकारी संगठनों की भूमिका तथा इस प्रजाति के पर्यटनीय महत्व को बढ़ावा देने पर जोर दिया । इस अवसर पर एन.आर.सी.सी. के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर.के.सावल ने ऊँट को एक विशेष पशु बताते हुए कहा कि आज का यह दिवस, रेगिस्तान में उष्ट्र प्रजाति के अतुलनीय योगदान को उजागर करने का है क्योंकि मानव सभ्यता के विकास क्रम में ऊँट की बदौलत ही आज हम आधुनिकता के दौर में प्रवेश कर सके हैं। उन्होंने कहा कि एन.आर.सी.सी. उष्ट्र प्रजाति के सैद्धांतिक व व्यावहारिक पक्ष को लेकर आगे बढ़ रहा है ताकि ऊँट व इससे संबद्ध समुदायों की आमदनी में बढ़ोत्तरी हो सकें। विशिष्ट अतिथि डॉ.नितिन गोयल, निदेशक, राजस्थान राज्य अभिलेखागार, बीकानेर ने ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में ऊँटों के महत्व को उजागर करते हुए कहा कि रेगिस्तान में ग्रामीण संस्कृति के परिचायक ऊँट के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं थी । डॉ.गोयल ने ऊँटों की खरीद-फरोख्त, इसके दूध का प्राचीन समय से महत्व, आमजन में इसकी कीमत/ उपयोगिता से जुड़े ऐतिहासिक संदर्भों को प्रस्तुत किया । केन्द्र के डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने विश्व ऊँट दिवस के महत्व पर प्रकाश डाला । कार्यक्रम समन्वयक डॉ.शान्तनु रक्षित ने बताया कि इस दिवस के माध्यम से ऊँट से जुड़े हितधारकों को एक मंच पर लाने का प्रयास किया गया ताकि उष्ट्र के संरक्षण व इसके विकास को बढ़ावा मिल सकें । केन्द्र की वैज्ञानिक डॉ.स्वागतिका प्रियदर्शिनी द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया गया ।
एनआरसीसी ने योग दिवस पर सामूहिक योग अभ्यास कार्यक्रम में लिया भाग
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर दिनांक 21 जून 2024 को प्रात: 6 से 8 बजे तक स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय में निदेशालय छात्र कल्याण व योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र के तत्वावधान में सामूहिक योग अभ्यास कार्यक्रम का आयोजन विश्वविद्यालय परिसर में किया गया। योग दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) बीकानेर सहित बीकानेर स्थित आईसीएआर संस्थानों/केन्द्रों एवं अन्य विभिन्न संस्थानों के अधिकारियों/कर्मचारियों ने अपने परिवार सहित इसमें भाग लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए मुख्य अतिथि डॉ. अरुणकुमार, माननीय कुलपति, स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि योग से न केवल व्यक्ति का तनाव दूर होता है बल्कि यह मन और मस्तिष्क को भी शांति प्रदान करने के साथ-साथ हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है । नियमित योग, ध्यान, प्राणायाम, प्राकृतिक चिकित्सा आदि क्रियाओं का अभ्यास करने से हमे स्वस्थ जीवन मिलता है, इस लिए अपने जीवन को स्वस्थ व सुखी रखने के लिए नियमित योग का अभ्यास करते रहें।
इस अवसर पर भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसनधान केन्द्र के निदेशक डॉ.आर.के.सावल ने योग के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली योग की मांग करती है क्योंकि व्यक्तिगत प्रगति के आवरण में बंधा व्यक्ति अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज कर रहा है, इसलिए संतुलित जीवन हेतु स्वास्थ्य को भी उतना ही महत्व दिया जाना चाहिए और योग, इसके लिए सरल व सर्वोत्तम व्यवस्था उपलब्ध है ।
योग अभ्यास के कार्यक्रम में बाल आरोग्यम शिविर के विद्यार्थियों ने सामूहिक योग प्रदर्शन किया। यूजीसी के निर्देशानुसार योग दिवस कार्यक्रम में सभी को डॉ. उत्कर्ष गुप्ता द्वारा हृदय रोग से बचाव, सावधानी व प्रारंभिक उपचार की जानकारी दी गई। इसके साथ ही बी एल एफ तकनीकी एवं सी पी आर की भी जानकारी दी गई। कार्यक्रम में बाल आरोग्यम शिविर के प्रतिभागियों और एनआरसीसी सहित अन्य संस्थानों को उनके सक्रिय योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किए गए। योग दिवस कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. देवाराम काकड़ ने योग का महत्व बताते हुए सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. जयप्रकाश राजपुरोहित ने किया।
एनआरसीसीनेमनाया विश्व पर्यावरण दिवस
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी), बीकानेर दिनांक 5 जून, 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया । इस अवसर पर केन्द्र के सामुदायिक भवन परिसर में पौधारोपण किया गया जिसमें 14 अशोक के पौधे एवं 500 नर्सरी पौधे आगामी मानसून हेतु तैयार किए गए । पर्यावरण दिवस के इस अवसर पर केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने केन्द्र परिवार को पर्यावरण दिवस की बधाई देते हुए इसके संरक्षण के प्रति विशेष रूप से प्रोत्साहित किया । उन्होंने कहा कि इस वर्ष (2024) पर्यावरण दिवस की थीम (विषय वस्तु) ‘‘भूमि पुनर्स्थापन, मरुस्थलीकरण और सूखा सहनशीलता (लैण्ड रिसटोरेशन डेजर्टीफिकेशन एण्ड ड्रॉट रेजिलेंस)’’ रखी गई है । अत: पर्यावरण संरक्षण के तहत इस थीम को देखते हुए आस-पास के क्षेत्रों में अधिकाधिक वृक्षारोपण किया जाना चाहिए ताकि मरुस्थलीकरण व सूखा से निजात पाई जा सकें । इस अवसर पर भाकृअनुप- राष्ट्रीय अश्व अनुसन्धान केन्द्र, बीकानेर के विभागाध्यक्ष डॉ.शरत चन्द्र मेहता ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता आवश्यक है तथा हमें इसे एक मिशन के रूप में लेना होगा । केन्द्र की जी.एफ.यूनिट प्रभारी डॉ.प्रियंका गौतम ने कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला एवं केन्द्र परिवार व अतिथियों के प्रति पर्यावरण संरक्षण के इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता हेतु आभार व्यक्त किया ।
एनआरसीसी द्वारा गांव नगासर सुगनी में पशु स्वास्थ्य शिविर व किया पशुपालकों से संवाद
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा ग्रामीण पशुपालकों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए आज दिनांक 24 मई 2024 को गांव नगासर सुगनी में अनुसूचित जाति उपयोजना ( एससीएसपी) तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। जिसमें 133 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- गाय-133, , ऊँट 26, भैंस 23, भेड़ 99, बकरी-132 सहित इस शिविर का लाभ उठाया केन्द्र की इस गतिविधि का लाभ उठाया ।
इस अवसर पर आयोजित संवाद कार्यक्रम में केन्द्र में संचालित एससीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि अभी अत्यधिक गर्मी को देखते हुए पशुओं की देखभाल में विशेष सावधानी बरती जानी चाहिए साथ ही गर्मी के मौसम में पशुओं से पर्याप्त उत्पादन लेने हेतु उनके आहार-दाना, पानी व उचित रखरखाव संबंधी पहलुओं पर ध्यान दिया जाना जरूरी होता है । नोडल अधिकारी ने पशुओं के नवजात बच्चों की समुचित देखभाल तथा पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन लेने हेतु पशुपालकों को विशेष रूप से प्रोत्साहित किया ।
शिविर में केन्द्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने मौसम के अनुसार पशुओं में होने वाली बीमारियों के प्रति पशुपालकों को चेताया । उन्होंने ऊँटों में खाज-खुजली/पाव रोग से बचाव व उपचार अन्य पशुओं जैसे कि गाय, भेड़ व बकरी आदि में अन्त: व बाह्य परजीवियों से होने वाले दुष्परिणामों व उनके निदान आदि के बारे में पशुपालकों को विस्तृत रूप से जानकारी देते हुए पशुओं में खनिज लवण आदि के महत्व पर भी बात कीं।
गांव नगासर सुगनी में आयोजित केन्द्र की इस महत्वपूर्ण गतिविधि के बारे में नोडल अधिकारी से अद्यतन जानकारी लेते हुए कहा पशुपालकों के लिए पशुधन आजीविका का एक प्रमुख साधन है, अत: बदलते परिवेश में पशुपालन व्यवसाय से श्रेष्ठ उत्पादन लेने हेतु वैज्ञानिक तरीकों से पशुओं के रखरखाव की जानकारी पशुपालकों को होनी चाहिए तथा इस प्रयोजनार्थ यह केन्द्र अपनी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से सतत प्रयत्नशील है ताकि पशुपालकों की स्वास्थ्य स्थिति व पशुपालकों की आजीविका में अपेक्षित सुधार लाया जा सकें।
केन्द्र के श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी द्वारा शिविर में आए पशुपालकों के पंजीयन, उन्हें ‘करभ’ पशु आहार, खनिज लवण बट्टिका, सॉल्ट लिक आदि वितरण कार्यों में सहयोग प्रदान किया गया ।
एनआरसीसी ने कोटड़ी गांव में लगाया पशु स्वास्थ्य शिविर व पशुपालकों से किया संवाद
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर द्वारा ग्रामीण पशुपालकों की आवश्यकता को देखते हुए आज दिनांक 26 अप्रेल 2024 को गांव कोटड़ी में एससीएसपी तहत पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम आयोजित किया गया। 86 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- गाय-63, भैंस 26, ऊँट 41, भेड़-334, बकरी-352 सहित केन्द्र की इस गतिविधि का लाभ उठाया । कैम्प में महिलाओं की सक्रिय सहभागिता देखी गई। शिविर के दौरान एससीएसपी योजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल ने कहा कि गर्मी के मौसम में पशुओं से पर्याप्त उत्पादन लेने हेतु उनके आहार-दाना, पानी व उचित रखरखाव की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है । डॉ.सावल ने पशुपालकों को आर्थिक नुकसान से बचाने हेतु पशुओं के नवजात बच्चों की स्वास्थ्य देखभाल में बरती जाने वाली सावधानियों की जानकारी दीं वहीं उन्होंने स्वच्छ दूध उत्पादन के महत्व पर भी प्रकाश डाला। इस अवसर पर केन्द्र के डॉ. काशीनाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने पशुपालकों से बातचीत में ऊँटों में खाज-खुजली/पाव रोग से बचाव व उपचार के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी साथ ही अन्य पशुओं जैसे कि गाय, भेड़ व बकरी आदि में अन्त: व बाह्य परजीवियों से होने वाले दुष्परिणामों व उनके निदान के बारे में चर्चा कर विस्तृत में बताया । उन्होंने कहा कि शिविर में लाए गए पशुओं में भूख न लगना, दस्त, पेट के कीड़े, चीचड़ आदि हेतु दवा दी गई । केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू ने नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल से शिविर संबंधी जानकारी लेते हुए कहा पशुपालकों को पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन लेने एवं उनकी उचित देखभाल हेतु वैज्ञानिक जानकारी पहुंचाई जाए ताकि पशुपालकों व पशुधन के स्तर में सुधार लाया जा सकें। श्री मनजीत सिंह, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी एवं श्री राजेश चौधरी, सहायक प्रशासनिक अधिकारी ने पशुपालकों के पंजीयन, पशु आहार खनिज लवण बट्टिका आदि के वितरण में सहयोग किया। गर्मी के मौसम में पशुओं को निर्जलीकरण से बचाने हेतु पानी-टब भी वितरित किए गए ।
एनआरसीसी ने ऊँटनी के दूध व दुग्ध उत्पादों को लेकर बहुला फूड्स के साथ किया एमओयू
बीकानेर 16 अप्रैल, 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) एवं बहुला फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के मध्य आज दिनांक को एक एमओयू किया गया। ऊँटनी के दूध व दुग्ध उत्पादों से संबद्ध इस एमओयू पर एनआरसीसी की ओर से निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू तथा बहुला फूड्स प्रा. लि. की आकृति श्रीवास्तव, सीईओ ने हस्ताक्षर किए । इस अवसर पर केन्द्र के डॉ.राकेश रंजन व डॉ. वेद प्रकाश तथा बहुला फूड्स के श्री संजय विश्वा मौजद रहे ।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर एनआरसीसी में कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 12 अप्रैल 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) में ‘मानवीय व्यवहार में परिवर्तन : मानसिक स्वास्थ्य के विकार’ विषयक राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथि वक्ता डॉ.अच्युत त्रिवेदी, प्रबंध निदेशक, पण्डित कृष्णा चन्द्र मेमोरियल न्यूरोसाइंस सेंटर, बीकानेर ने कहा कि मनोविकार से जुड़ी समस्याओं के प्रति समाज में बहुत अधिक भ्रांतियां फैली हुई, इस अनभिज्ञता व अज्ञानता का उन्मूलन किया जाना अत्यंत जरूरी है, वहीं मनोविकार से ग्रस्त व्यक्तियों को संबल देने की भी महत्ती आवश्यकता है । डॉ. त्रिवेदी ने अपने व्याख्यान में कई प्रकार के मनोरोगों यथा-डिप्रेशन, ऐंगज़ाइटी, सिज़ोफ्रेनिया, डिमेंशिया को सउदाहरण समझाया तथा कहा कि आधुनिक चिकित्सा पद्धति के अनुसार इनका इलाज संभव है । इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने प्रस्तुत व्याख्यान को जनकल्याणकारी बताते हुए कहा कि हमें कार्यस्थल पर ऐसा नकारात्मक व्यवहार नहीं करना चाहिए जिससे दूसरे साथी प्रभावित हों । उन्होंने कहा कि यदि रोजमर्रा के कार्यों व अनुभवों आदि को लेकर आपका मन अच्छा अनुभव नहीं कर रहा है तो अपने हितैषी व सकारात्मक मित्रों से बात करनी चाहिए । उन्होंने आपात स्थिति में भी अपनी व्यवहार कुशलता का परिचय देने हेतु प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया । इस अवसर पर अतिथि के रूप में डॉ.जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को पूर्वाग्रह से ग्रसित नहीं होना चाहिए, यदि आपमें आत्मविश्वास की कमी है तो इस पर गंभीरता पूर्वक काम करना चाहिए। उन्होंने खेलों से जुड़ने की भी सलाह दीं। कार्यशाला में डॉ.एस.सी.मेहता, प्रभागाध्यक्ष, राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र , डॉ.आर.ए.लेघा, प्रभागाध्यक्ष, केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, बीकानेर तथा एनआरसीसी स्टाफ परिवार सहित बीकानेर में परिषद अधीनस्थ इन संस्थानों के अधिकारियों व कर्मचारियों ने भी भाग लिया। डॉ.आर.के.सावल, नोडल अधिकारी राजभाषा ने कार्यशाला के उद्देश्य व महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रस्तुत व्याख्यान को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। कार्यक्रम संचालन में श्री दिनेश मुंजाल, मुख्य तकनीकी अधिकारी ने सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी में उष्ट्र अनुसंधान के विविध आयामों को लेकर परिचर्चा आयोजित
बीकानेर । 07.04.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में परिचर्चा आयोजित की गई । ‘उष्ट्र अनुसंधान के विविध आयाम’ विषयक देर रात तक चली इस परिचर्चा कार्यक्रम में एनआरसीसी स्टाफ सहित परिषद के बीकानेर स्थित वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भी इसमें सक्रिय सहभागिता निभाई । डॉ. राघवेन्द्र भट्टा, उप महानिदेशक (पशु विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने इस अवसर पर कहा कि अनुसंधान की दिशा में टॉप 5 संस्थानों में एनआरसीसी द्वारा पहचाना बनाना निश्चित रूप से सराहनीय है परंतु बदलते परिवेश में उष्ट्र प्रजाति की घटती संख्या एवं सीमित होते उपयोग को वैज्ञानिक एक चुनौती के रूप में लें । उन्होंने अनूठी प्रजाति ‘ऊँट’ पर कार्य करने को गौरव का विषय बताते हुए अनुसंधान कार्यों में ठोस व त्वरित परिणाम हेतु अपने कार्यों में नवाचार लाते हुए समन्वयात्मक के रूप में आगे बढ्ने हेतु प्रोत्साहित किया । उप महानिदेशक महोदय ने कहा कि जिस किसी संस्थान में आप कार्यरत है, वहां समर्पित व सकारात्मक प्रवृत्ति से कार्य करेंगे तो न केवल उपयुक्त वातावरण का सृजन करने में सहायक बनेंगे बल्कि संस्थान के अनुसंधान कार्य भी अधिक तीव्र गति की ओर अग्रसर होते हुए लक्ष्य प्राप्ति की जा सकेगी। परिचर्चा में डॉ. शिव प्रसाद किमोथी, सदस्य,कृषि वैज्ञानिक चंयन मंडल, नई दिल्ली ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से देश के किसानों की खुशहाली हेतु योगदान देने को एक सुअवसर बताते हुए कहा कि अनुसंधान के विविध क्षेत्र में श्रेष्ठ वैज्ञानिकों के आगे आने तथा विकसित प्रौद्योगिकी से अंतिम छोर तक इसका लाभ पहुंचाने के ध्येय से मिलकर काम करना चाहिए ताकि देश और अधिक प्रगति कर सकें। उन्होंने ऊँटों की सीमित संख्या पर विवेचना व सतत कार्य की आवश्यकता जताई । केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी के कार्यक्षेत्र एवं अनुसंधान उपलब्धियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह संस्थान ‘ऊँट’ को ‘डेजर्ट टू मेडिसिन अप्रोच’ की नीति पर कार्य कर रहा है ताकि इस प्रजाति के औषधीय दूध को विविध माध्यम से मानव स्वास्थ्य लाभ हेतु पहुंचाया जा सकें । डॉ.साहू ने डेंगू, डायबिटीज, टीबी आदि सामयिक बीमारियों में ऊँटनी के दूध से लाभ पहुंचाने जैसे कई अनुसंधान कार्यों की भी जानकारी दीं । डॉ.ए.के.तोमर, निदेशक, केन्द्रीय भेड् एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानर ने वैज्ञानिक को प्रोत्साहित करते हुए संस्थान की कार्य प्रणाली, नई तकनीकी एवं इनसे जुड़े प्रशिक्षण आदि पर अपने विचार रखें ।
इस परिचर्चा की रूपरेखा प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राकेश रंजन ने तैयार की तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.आर.के.सावल ने ज्ञापित किया।
एनआरसीसी में दो दिवसीय संगोष्ठी का समापन
बीकानेर 15 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा आयोजित दो दिवसीय संगोष्ठी का आज दिनांक को समापन हुआ। ‘सफल उद्यमिता के लिए गैर-गोरवंशीय पशु उत्पादों का प्रसंस्करण, नवाचार और सुधार‘ विषयक इस संगोष्ठी में करीब 125 पशुपालकों, उद्यमियों, शोधकर्ताओं, एनआरसीसी तथा आईसीएआर के संस्थानों/केन्द्रों के वैज्ञानिकों ने भाग लिया। संगोष्ठी के समापन समारोह के मुख्य अतिथि प्रो. (डॉ.) मनोज दीक्षित, माननीय कुलपति, महाराजा गंगासिंह विश्विद्यालय, बीकानेर ने कहा कि ऊँट प्रजाति के दूध की औषधीयता को वैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय समन्वय कर प्रचारित-प्रसारित किया जाना चाहिए, साथ ही इसके गोबर, मूत्र, चमड़े आदि के वैकल्पिक उपयोग को भी समझना होगा ताकि ऊँट पालक इस पशु के बहुआयामी उपयोग को समझें, इससे ऊँटों की मांग स्वतः बढ़ने लगेगी। प्रो.दीक्षित ने किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने, उत्पादों के सुगम विपणन, समन्वयात्मक अनुसंधान आदि विभिन्न पहलुओं पर अपनी बात रखीं। एनआरसीसी के निदेशक तथा कार्यक्रम संयोजक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि गैर-गोवंशीय पशु उत्पादों के प्रति पशुपालकों को जागरूक कर उन्हें उद्यमी के रूप में आगे बढ़ाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि इन गोवंशीय पशु उत्पादों का लाभ आमजन तक पहुंचाया जा सकें। डॉ.साहू ने पशु उत्पादों की सामाजिक जागरूकता, इनकी सुलभता आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने हाल ही में सरस डेरी द्वारा उष्ट्र दूध की शुरू की गई बिक्री से भी पशुपालकों को अवगत करवाते हुए कहा कि इससे उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय को एक संबल मिलने के साथ-साथ किसानों की आय में आशातीत वृद्धि हो सकेगी। संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ.टी.के.गहलोत, एडिटर, जर्नल ऑफ कैमल प्रैक्टिस एण्ड रिसर्च, बीकानेर ने कहा कि ऊँट पालकों की समृद्धि हेतु सतत प्रयास जारी है, उन्होंने कहा कि ऊँटनी के दूध की वैश्विक स्तर पर उपयोगिता बढ़ रही है साथ ही उन्होंने दूध विपणन, मार्केटिंग, उष्ट्र संरक्षण तथा उष्ट्र पालन पर अनुदान की आवश्यकता जताई। विशिष्ट अतिथि डॉ.एस.पी.जोशी, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग राजस्थान ने किसानों को पशु गोबर को उन्नत खाद में परिवर्तित रसायनिक रहित अनाज उत्पाद बढ़ाने हेतु इसको उपयोग में लेने का महत्व बताया।समापन कार्यक्रम से पूर्व संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में विषय विशेषज्ञों ने किसानों एवं उद्यमियों से संवाद करते हुए फील्ड स्तर पर आ रही उनकी चुनौतियों के निराकरण के उपाय सुझाए। कार्यक्रम में प्रस्तुत पोस्टर व ओरल शोध पत्र, तकनीकी प्रदर्शनी के विजेताओं को सम्मानित किया गया। आयोजन सचिव डॉ.योगेश कुमार द्वारा इस दो दिवसीय कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई तथा धन्यवाद प्रस्ताव आयोजन सह समन्वयक डॉ.सागर अशोक खुलापे द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी द्वारा सूक्ष्मजीवीय पारिस्थतिकी पर गहन विचार गोष्ठी आयोजित
बीकानेर 12 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में रूमेन में सूक्ष्मजीवीय पारिस्थतिकी पर आज दिनांक को एक दिवसीय गहन विचार-विमर्श गोष्ठी (ब्रेन स्टोर्मिंग मीट) का आयोजन किया गया। ‘‘जुगाली करने वाले पशुओं के सतत उत्पादन हेतु उनके रूमेन सूक्ष्मजीवों का विश्लेषण: अतीत, वर्तमान और भविष्य‘‘ विषयक इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में करीब 50 से ज्यादा अधिकारियों, वैज्ञानिकों, विषय-विशेषज्ञों एवं स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने षिरकत कीं। साथ ही कई विषय विशेषज्ञ जिनमें डॉ. ए.के.पुनिया, प्रधान वैज्ञानिक, एन.डी.आर.आई., करनाल, डॉ. नीता अग्रवाल, डॉ. सचिन, डॉ. रविन्द्र श्रीवास्तव, विभागाध्यक्ष, सी.आई.आर.जी., मथुरा आदि ने वर्चुअल रूप से भी इस बैठक से जुड़े।गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. एन.वी.पाटिल, कुलपति, महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्व विद्यालय, नागपुर ने अपने निष्कर्षीय उद्बोधन में कहा कि पालतू जानवरों के पेट में पाए जाने वाले जीवाणुओं के बारे में गहन अध्ययन की आवश्यकता है। ये जीवाणु हमारे लिए बहुपयोगी सिद्ध हो सकते हैं और इस दिशा में सहयोगात्मक अनुसंधान के माध्यम से हम सफलता पा सकते हैं। केन्द्र के निदेशक एवं गोष्ठी कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने सभी विशेषज्ञों का अभिवादन करते हुए गहन विचार गोष्ठी के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा कि सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी जैसे महत्वपूर्ण विषय पशु पोषण एवं स्वास्थ्य में सुधार हेतु भविष्य में रूमेन सूक्ष्मजीवीय पारिस्थितिकी पर अंतर विषयक अनुसंधान की आवश्यकता है ताकि इन पशुओं में बेहतर पोषक तत्व उपयोग, पर्यावरणीय दुष्प्रभाव में कमी, तथा रूमिनेंट पशुपालन को समग्र रूप से लाभदायक बनाया जा सकें। उन्होंने रूमिनेंट उत्पादन संबंधी व्याख्यान भी प्रस्तुत किया। इस अवसर पर एक कम्पेंडियम का विमोचन किया गया साथ ही एनआरसीसी की ओर से केन्द्र निदेशक डॉ. आर्तबन्धु साहू एवं महाराष्ट्र पशु और मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय, नागपुर की ओर से डॉ. एन.पाटिल ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए वहीं एनआरसीसीएवं गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसन्धान केन्द्र के मध्य भी भी एक एमओयू किया गया।विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ. सी.जी.जोशी, निदेशक, गुजरात जैव प्रौद्योगिकी अनुसन्धान केन्द्र ने कहा कि रूमेन सूक्ष्मजीवों के विश्लेषण हेतु नियोजित तथा समन्वयात्मक रूप से आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि भारत मं जैव विविधता बहुत अधिक देखी जा सकती है। साथ ही पशुओं के पेट में पाए जाने वाले विषाणुओं (वायरस) एवं कवक (फंगस) के बारे में भी अध्ययन की आवश्यकता है। उपस्थित विशेषज्ञों में डॉ. संजय बरूआ, प्रभारी, एन.सी.वी.टी.सी.,हिसार, डॉ. आर.के. वैद्य, डॉ. राजेन्द्रन, प्रभारी, रूमेन माइक्रोरिपोजिटरी, बैंगलूरू द्वारा अपने व्याख्यान प्रस्तुत किए गए।केन्द्र द्वारा आयोजित इस महत्वपूर्ण गोष्ठी में विशेषज्ञों के रूप में डॉ. निर्मला सैनी, डॉ. स्रोबना सरकार, अविकानगर सहित केन्द्र के विषय-विशेषज्ञ वैज्ञानिक गण शामिल थे। गोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने कार्यक्रम की रूपरेखा को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने धन्यवाद प्रस्ताव ज्ञापित किया तथा संचालन डॉ. एस.एस.चैधरी, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी वैज्ञानिकों ने गुजरात में उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता को लेकर संगोष्ठी के साथ फील्ड क्षेत्रों का किया दौरा
बीकानेर 11 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने 9 और 10 मार्च को गुजरात (भुज) में फील्ड क्षेत्रों विजिट के दौरान घड़सीसा में उष्ट्र पालकों से उनके द्वार जाकर बातचीत की तथा अमूल द्वारा विकसित उष्ट्र दूध डेरी का दौरा किया । वहीं भुज में ही अमूल द्वारा एनआरसीसी आदि के साथ उष्ट्र दुग्ध उद्यमिता संबंधी आयोजित संगोष्ठी में उष्ट्र संबंध सभी पशुपालन विभाग, चिकित्सक, संबंधित समुदाय, घूमन्तू पशुओं से जुडी सहजीवन संस्था कामधेनु विश्व विद्यालय, सरहद डेरी, अमूल, इत्यादि के प्रतिनिधियों ने भाग लिया ।केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने संगोष्ठी व अलग-अलग अवसरों के दौरान कहा कि ऊँटनी के दूध में विद्यमान औषधीय गुणधर्मों को ध्यान में रखते हुए इस प्रजाति को दुग्ध व्यवसाय के रूप में बढ़ावा दिए जाने की महत्ती आवश्यकता है ताकि दूध को पुख्ता तौर पर उद्यमिता से जोड़ते हुए देशभर में आवश्यकता अनुसार उपभोक्ताओं की मांग को पूरा किया जा सकें। डॉ. साहू ने बताया कि गुजरात की अमूल संस्था द्वारा उष्ट्र ‘ दुग्ध संग्रहण बूथ’ संचालित किया जा रहा है जहां प्रतिदिन लगभग 1500 लीटर दूध, दुग्ध व्यवसायकों द्वारा पहुंचाया जाता है वहीं इसके अलग अलग बूथों में 4000-5000 लीटर दूध प्रतिदिन एकत्रित किया जाता है। उन्होंने ऊँटनी के दूध की मांग को देखते हुए गुजरात सरकार द्वारा उष्ट्र पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने हेतु किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा की वहीं इनमें गैर सरकारी संगठनों की अहम भूमिका को भी सराहा तथा कहा कि यदि राजस्थान में भी उष्ट्र दुग्ध व्यवसाय हेतु सभी इसी भांति आगे आए तो प्रदेश में ऊँटनी के दूध की लहर आ सकती है ।डॉ. साहू ने ऊँटनी के दूध को लेकर एनआरसीसी द्वारा किए जा रहे कार्यों की भी जानकारी देते हुए आहार व चरागाह विकास, नस्ल सुधार, उत्पादकता वृद्धि, ऊंटनी के दूध की गुणवत्ता में सुधार और आवश्यक औषधीय आवश्यकताओं के लिए प्रसंस्करण पर अनुप्रयोग अनुसंधान में अमूल उद्यम को सहयोग देने की बात कही, इन्हीं निहित उद्देश्यों के अंतर्गत ऊंटनी के दूध की उपयोगिता बढ़ाने और इसे जरूरतमंद उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए एनआरसीसी, अमूल और कामधेनु विश्वविद्यालय के बीच त्रिपक्षीय एमओयू किया जाएगा।
एनआरसीसी ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बीकानेर 07 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आज दिनांक को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सुश्री वंदना सिंघवी, संभागीय आयुक्त बीकानेर ने कहा कि आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें महिला सशक्तिकरण को वास्तविक रूप से परिभाषित करने हेतु अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए । सुश्री वंदना ने नशा प्रवृत्ति को रोकने, स्वच्छता का महत्व, अभिभावकों व गुरूजनों के प्रति आदर भाव रखने, अभावों के बावजूद सकारात्मक सोच के साथ उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करने, अवसर का लाभ लेने एवं कड़ी मेहनत द्वारा लक्ष्य प्राप्त करने आदि पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए संकल्प, श्रम और सफलता के साथ आगे बढ़ने हेतु महिलाओं का प्रोत्साहित किया ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि आज महिलाएं मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविल सर्विसेज आदि सभी जगह आनुपातिक रूप से प्रगति कर रही है जो कि परिवार, समाज व एक विकासशील राष्ट्र की पहचान है। डॉ.साहू ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम महिलाओं के विकास हेतु जितना अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे उसका परिणाम कई गुना मिलेगा, अत: सकारात्मक सोच के साथ महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने सभी को अपने-2 कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति हेतु सतत मेहनत के लिए प्रोत्साहित किया ।
इस अवसर पर महिलाओं के योगदान सम्बन्धी एक निबन्ध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी व सोफिया सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कुल 42 छात्राओं ने भाग लिया। शिवबाड़ी स्कूल की दिव्या भाटिया ने प्रथम, मुस्कान मौर्या ने द्वितीय व खूशबू रील ने तृतीय स्थान प्राप्त किया वहीं सोफिया स्कूल की अपेक्षा सारण प्रथम, तेजल सुथार द्वितीय व पलक व्यास तृतीय रहीं । सभी विजेता छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। साथ ही उद्यमिता एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों हेतु बहुला नैचुरल से सुश्री आकृति श्रीवास्तव, बीकानेर कशीदाकारी शिल्प कला हेतु श्रीमती सम्पत देवी व श्रीमती सीमा देवी व एनआरसीसी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.प्रियंका गौतम को सम्मानित किया गया ।
कार्यक्रम समन्वयक डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए तथा डॉ.बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं आयोज्य कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मृणालिनी प्रेरणा, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी ने मनाया अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस
बीकानेर 07 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में आज दिनांक को आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सुश्री वंदना सिंघवी, संभागीय आयुक्त बीकानेर ने कहा कि आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में दृढ़ आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही हैं। उन्हें महिला सशक्तिकरण को वास्तविक रूप से परिभाषित करने हेतु अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना चाहिए । सुश्री वंदना ने नशा प्रवृत्ति को रोकने, स्वच्छता का महत्व, अभिभावकों व गुरूजनों के प्रति आदर भाव रखने, अभावों के बावजूद सकारात्मक सोच के साथ उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग करने, अवसर का लाभ लेने एवं कड़ी मेहनत द्वारा लक्ष्य प्राप्त करने आदि पहलुओं पर अपने विचार रखते हुए संकल्प, श्रम और सफलता के साथ आगे बढ़ने हेतु महिलाओं का प्रोत्साहित किया । कार्यक्रम के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि आज महिलाएं मेडिकल, इंजीनियरिंग, सिविल सर्विसेज आदि सभी जगह आनुपातिक रूप से प्रगति कर रही है जो कि परिवार, समाज व एक विकासशील राष्ट्र की पहचान है। डॉ.साहू ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम को स्पष्ट करते हुए कहा कि हम महिलाओं के विकास हेतु जितना अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे उसका परिणाम कई गुना मिलेगा, अत: सकारात्मक सोच के साथ महिलाओं को आगे बढ़ना चाहिए। उन्होंने सभी को अपने-2 कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्ति हेतु सतत मेहनत के लिए प्रोत्साहित किया । इस अवसर पर महिलाओं के योगदान सम्बन्धी एक निबन्ध प्रतियोगिता का भी आयोजन किया गया जिसमें राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय शिवबाड़ी व सोफिया सीनियर सैकण्डरी स्कूल की कुल 42 छात्राओं ने भाग लिया। शिवबाड़ी स्कूल की दिव्या भाटिया ने प्रथम, मुस्कान मौर्या ने द्वितीय व खूशबू रील ने तृतीय स्थान प्राप्त किया वहीं सोफिया स्कूल की अपेक्षा सारण प्रथम, तेजल सुथार द्वितीय व पलक व्यास तृतीय रहीं । सभी विजेता छात्राओं को पुरस्कृत किया गया। साथ ही उद्यमिता एवं अनुसंधान के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों हेतु बहुला नैचुरल से सुश्री आकृति श्रीवास्तव, बीकानेर कशीदाकारी शिल्प कला हेतु श्रीमती सम्पत देवी व श्रीमती सीमा देवी व एनआरसीसी वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.प्रियंका गौतम को सम्मानित किया गया । कार्यक्रम समन्वयक डॉ.आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने भी इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त किए तथा डॉ.बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एवं आयोज्य कार्यक्रम के महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला गया । कार्यक्रम का संचालन डॉ. मृणालिनी प्रेरणा, वैज्ञानिक द्वारा किया गया।
एनआरसीसी में तनाव प्रबंधन पर राजभाषा कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 4 मार्च 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर में आज दिनांक को राजभाषा कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें आधुनिक जीवन शैली रू तनाव प्रबंधन विषय पर आचार्य अरविन्द मुनि जी ने अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया । उन्होंने अपने व्याख्यान के दौरान बताया कि आज के इस दौर में हर आयु का व्यक्ति तनाव से प्रभावित है, नकारात्मकता हावी है और इससे व्यक्ति के भीतर विकार पैदा हो रहे हैं । अतरू शरीर और मन को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हमें ध्यान (मेडिटेशन) साधना करनी चाहिए । उन्होंने ध्यान की कई क्रियाओं का अभ्यास करवाया तथा कहा कि इससे न केवल स्वयं के जीवन को अपितु परिवार, समाज व देश की समृद्धि बनाने में योगदान दे सकेंगे । इस अवसर पर केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. आर्तबन्धु साहू ने कहा कि हम सभी सभी को नैसर्गिक मानवीय गुणों की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करना होगा जैसे हंसी को इस भौतिक परिवेश में विस्मृत करते जा रहे हैं और तनाव को आमंत्रित कर रहे हैं जबकि मानव स्वभाव का यह (हंसी) एक अत्यंत अनिवार्य पहलू है । इससे जीवन में ऊर्जा का संचार होता है तथा हम अपनी कार्यक्षमता के अनुरूप अपने-अपने कार्यक्षेत्र में बेहतर कर सकते हैं। केन्द्र के नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.राजेश कुमार सावल ने कार्यशाला के उद्देश्य व महत्व पर प्रकाश डालते हुए इससे लाभ उठाने की बात कही। कार्यशाला कार्यक्रम का संचालन श्री मोहनीश पंचारिया ने किया ।
केन्द्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने ऊँटों को लेकर किए रौचक प्रश्न
पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2, बीकानेर के 80 विद्यार्थियों ने दिनांक 12.02.2024 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में शैक्षणिक भ्रमण किया । इस दौरान केन्द्र सभागार में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें उन्हें केन्द्र के अनुसंधान कार्यों एवं उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई । परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को केन्द्र की स्थापना एवं इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केन्द्र ऊँटों की प्रमुखत: चार नस्लों यथा-बीकानेरी, जैसलमेरी,कच्छी एवं मेवाड़ी पर अपना शोध कार्य कर रहा है। उन्होंने रेगिस्तानी जहाज-ऊँट की अनगिनत विशेषताओं को उजागर करते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में औषधीय लाभों के आधार पर इसे ‘औषधि का भण्डार’ की संज्ञा दीं । डॉ.साहू द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ऊँटों की स्थिति, उष्ट्र प्रजाति की विविध नस्लों, ऊँट की पारंपरिक व आधुनिक उपयोगिता, पशु का सांस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक कसौटी पर शारीरिक संरचना आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई । इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने स्कूली बच्चों को ऊँटों की मरुस्थल की विषम परिस्थितियों में शारीरिक अनुकूलनता, बदलते परिवेश में ऊँटों की बहुआयामी उपयोगिता यथा- ऊँट नृत्य, ऊँट दौड़, उष्ट्र साज-सजा, उष्ट्र सवारी आदि की जानकारी दी तथा अंतर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव पर इनका लुत्फ उठाने हेतु प्रोत्साहित भी किया। परिचर्चा के दौरान स्कूली विद्यार्थियों ने ऊँट का शारीरिक वजन, इसकी लम्बाई व औसत आयु, रंगों के आधार पर इसकी पहचान, पानी ग्रहण क्षमता व आहार प्रणाली आदि संबंधी अपनी जिज्ञासाओं को वैज्ञानिकों के समक्ष रखा जिनका उचित निराकरण किया गया । केन्द्रीय विद्यालय के अध्यापक श्री जय प्रकाश द्वारा केन्द्र निदेशक एवं एनआरसीसी वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया। तत्पश्चात केन्द्र के डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक (प्रसार) द्वारा इन विद्यार्थियों को उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, डेयरी इकाई, कैमल मिल्क पॉर्लर आदि स्थलों का व्यावहारिक भ्रमण करवाया गया व इस संबंध में जानकारी दी गई ।
अमेरिका से आए दल ने एनआरसीसी में ऊँटों के अनुसन्धान कार्यों को लेकर की खास बात
बीकानेर 18.02.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आज दिनांक को अमेरिका के नॉर्थ अमेरिकन कैमल रांच ऑनर्स एसोसिएशन के सात सदस्यीय दल ने भ्रमण कर केन्द्र की उष्ट्र से जुड़ी अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन किया । इस दौरान केन्द्र के निदेशक महोदय डॉ.साहू के नेतृत्व में वैज्ञानिकों द्वारा इस दल को ऊँटों प्रजाति हेतु किए जा रहे वैज्ञानिक कार्यों एवं व्यावहारिक प्रयासों के सम्बन्ध में बात की तथा एनआरसीसी द्वारा मधुमेह व ऑटिज्म बीमारियों के प्रबंधन की दिशा में ऊँटनी के दूध पर हुए अनुसन्धान कार्यों में गहरी रूचि दिखाते हुए इनकी सराहना की.
दल के साथ पारस्परिक परिचर्चा में डॉ. आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी के अनुसंधान एवं विकास कार्यों एवं प्राप्त उपलब्धियों के बारे में कहा कि ऊँट के विभिन्न पहलुओं यथा-जनन, प्रजनन, आनुवंशिकी, शरीर कार्यिकी, पोषण, स्वास्थ्य आदि पर गहन अनुसंधान किया जा रहा है साथ ही परिवर्तित परिदृश्य में ऊँटनी के दूध की औषधीय उपादेयता को उजागर किया जा रहा है ताकि इस प्रजाति के संरक्षण के अलावा ऊँट पालन व्यवसाय को लाभकारी बनाया जा सकें। अमेरिका से आए इस दल की सचिव वालेरी क्रिमशो ने एनआरसीसी द्वारा ऊँट प्रजाति के कल्याणार्थ किए जा रहे उल्लेखनीय अनुसंधान कार्यों, ऊँटों के स्वास्थ्य एवं इनके प्रबंधन एवं उष्ट्र- पर्यटनीय पहलुओं से जुड़े समग्र विकास कार्यों की प्रशंसा करते हुए अनूठी प्रजाति हेतु ऐसे प्रयासों को महत्वपूर्ण बताया ।
दल के अध्यक्ष डगलस ने बताया कि उनका समूह अमेरिका एवं भारत के ऊँटों की विविधता का अनुभव करना चाहता है, यहां एक कूबड़ीय ऊँटों पर अनुसंधान, उनकी नस्लों प्रजनन, ऊँटों का पारंपरिक उपयोग तथा उनकी स्वभावगत आदतों का पता लगाने आया है। दल में शामिल वेटरनरी चिकित्सक डॉ.किल्ली ने ऊँटों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। इस दौरान दल ने ऊँटनी के दूध से बनी ष्छाछश् तथा बीकानेरी मिठाई श्रसगुल्ला का स्वाद लिया साथ ही उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, उष्ट्र डेयरी आदि पर्यटनीय स्थलों का भ्रमण करवाया गया।
केन्द्रीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने ऊँटों को लेकर किए रौचक प्रश्न
पी एम श्री केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक 2, बीकानेर के 80 विद्यार्थियों ने दिनांक 12.02.2024 को भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र में शैक्षणिक भ्रमण किया । इस दौरान केन्द्र सभागार में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें उन्हें केन्द्र के अनुसंधान कार्यों एवं उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं विकास की दिशा में किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई ।
परिचर्चा में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने विद्यार्थियों को केन्द्र की स्थापना एवं इसके उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केन्द्र ऊँटों की प्रमुखत: चार नस्लों यथा-बीकानेरी, जैसलमेरी,कच्छी एवं मेवाड़ी पर अपना शोध कार्य कर रहा है। उन्होंने रेगिस्तानी जहाज-ऊँट की अनगिनत विशेषताओं को उजागर करते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य में औषधीय लाभों के आधार पर इसे ‘औषधि का भण्डार’ की संज्ञा दीं । डॉ.साहू द्वारा वैश्विक परिदृश्य में ऊँटों की स्थिति, उष्ट्र प्रजाति की विविध नस्लों, ऊँट की पारंपरिक व आधुनिक उपयोगिता, पशु का सांस्कृतिक महत्व, वैज्ञानिक कसौटी पर शारीरिक संरचना आदि विभिन्न पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई ।
इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक डॉ.आर.के.सावल ने स्कूली बच्चों को ऊँटों की मरुस्थल की विषम परिस्थितियों में शारीरिक अनुकूलनता, बदलते परिवेश में ऊँटों की बहुआयामी उपयोगिता यथा- ऊँट नृत्य, ऊँट दौड़, उष्ट्र साज-सजा, उष्ट्र सवारी आदि की जानकारी दी तथा अंतर्राष्ट्रीय ऊँट उत्सव पर इनका लुत्फ उठाने हेतु प्रोत्साहित भी किया।
परिचर्चा के दौरान स्कूली विद्यार्थियों ने ऊँट का शारीरिक वजन, इसकी लम्बाई व औसत आयु, रंगों के आधार पर इसकी पहचान, पानी ग्रहण क्षमता व आहार प्रणाली आदि संबंधी अपनी जिज्ञासाओं को वैज्ञानिकों के समक्ष रखा जिनका उचित निराकरण किया गया । केन्द्रीय विद्यालय के अध्यापक श्री जय प्रकाश द्वारा केन्द्र निदेशक एवं एनआरसीसी वैज्ञानिकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
तत्पश्चात केन्द्र के डॉ.शान्तनु रक्षित, वैज्ञानिक (प्रसार) द्वारा इन विद्यार्थियों को उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, डेयरी इकाई, कैमल मिल्क पॉर्लर आदि स्थलों का व्यावहारिक भ्रमण करवाया गया व इस संबंध में जानकारी दी गई ।
एनआरसीसी अपने कृषि परिक्षेत्र में जल प्रबन्धन की दिशा में आईआईडब्ल्युएम के साथ करेगा समन्वयात्मक अनुसंधान
भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, बीकानेर (एनआरसीसी) जल और कृषि उत्पादकता तथा बेहतर आजीविका के लिए जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों के सतत विकास संबंधी भाकृअनुप-भारतीय जल प्रबंधन संस्थान (आईआईडब्ल्युएम), भुवनेशवर के महत्वपूर्ण अनुसंधान कार्यों एवं इस दिशा में इस संस्थान के वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता को देखते हुए समन्वयात्मक अनुसंधान की दिशा में आगे बढ़ रहा है । हाल ही में केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस संस्थान का दौरा करते हुए जल प्रबंधन संबंधी प्रौद्योगिकियों का गहन अवलोकन किया तथा एनआरसीसी बीकानेर में जल प्रबंधन को लेकर विभिन्न मुद्दों यथा- वर्षा जल संचयन, रूफ वॉटर हार्वेस्टिंग, जल के किफायती प्रबंधन हेतु सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली, ड्रीप मैनेजमेंट सिस्टम, सेंसर बेस्ड इरिगेशऩ, एसटीपी वॉटर के उचित प्रयोग पर ध्यान केन्द्रित करते हुए इसे चरागाह विकास हेतु कैसे उपयुक्त बनाया जा सकें ? एवं टयूब वैल के पानी में पाए जाने वाली उच्च टीडीएस स्तर वाले पानी का बेहतर उपयोग तथा इस जल का उपयोग चरागाह विकास एवं पशुओं हेतु प्रयुक्त किया जाना आदि के संबंध में आईआईडब्ल्युएम के निदेशक डॉ.अरजमादत्त सारंगी एवं संस्थान के वैज्ञानिकों से विस्तृत चर्चा की ।
एनआरसीसी के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने कहा कि केन्द्र अपने क्षेत्र में बेहतर जल प्रबंधन को लेकर इस संस्थान के साथ समन्वयात्मक अनुसंधान को लेकर उत्साहित है । इस संस्थान की जल प्रबंधन रणनीति/स्ट्रेटजी हेतु विकसित प्रौद्योगिकियों का लाभ उष्ट्र प्रजाति के संरक्षण एवं संवर्धन की दिशा लेना चाहता है। उन्होंने समन्वयात्मक अनुसंधान की आवश्यकता एवं इसके उद्देश्यों को लेकर कहा कि :
· भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र, राजस्थान के अत्यधिक कम वर्षा वाले क्षेत्र बीकानेर जिले में स्थापित है । यद्यपि केन्द्र द्वारा वर्षा आधारित जल का उपयोग, अपने अनुसंधान कार्यों हेतु प्रयुक्त सैंकड़ों ऊँटों, इस पशु प्रजाति से जुड़े आहार संसाधनों, स्थानीय वनस्पतियों आदि के संरक्षण हेतु किया जाता है परंतु जल प्रबंधन के क्षेत्र में इस संस्थान वैज्ञानिकों की विशेषज्ञता का लाभ हम लेना चाहेंगे ।
· केन्द्र द्वारा उपलब्ध हार्ड वॉटर एवं वर्षा आधारित संचित जल का ऊँटों के लिए आहार एवं चारा संसाधनों के बेहतर विकास तथा क्षेत्र में उपलब्ध महत्वपूर्ण स्थानीय वनस्पतियों यथा- पेड़-पौधों, झाडियों-घासों आदि के संरक्षण हेतु किस प्रकार उपयोग किया जाए ताकि ऊँटों के लिए पौष्टिक आहार चारा उपलब्ध करवाया जा सकें जो कि इनके लिए सुरक्षित भी हों।
· केन्द्र द्वारा वर्षा आधारित जल संचयन का किस प्रकार प्रबंधन किया जाए ताकि इस जल का किफायती/ इकोनॉमिक उपयोग किया जा सकें जिसमें मृदा अपरदन (इरोजन) रोकना, ड्रिप सिस्टम को सिंक्रोनाईज करना, सेंसर आधारित सिंचाई से आवश्यकता अनुसार पानी या सिंचाई का नियंत्रण करना ।
आईआईडब्ल्युएम भुवनेश्वर के निदेशक डॉ.अरजमादत्त सारंगी ने जल प्रबंधन की दिशा में शुष्क प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार संस्थान की विकसित प्रौद्योगिकियों के सफल क्रियान्वयन की आशा व्यक्त करते हुए एनआरसीसी के साथ इस समन्वयात्मक अनुसंधान से दोनों संस्थानों के विशेषज्ञों का लाभ लेने की बात कही। एनआरसीसी के निदेशक महोदय के साथ आईआईडब्ल्युएम संस्थान में हुई इस परिचर्चा बैठक का संचालन डॉ.देबब्रत सेठ्ठी, वैज्ञानिक (प्रसार) ने किया ।
एनआरसीसी द्वारा गांव सांवता एवं सम में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन
जैसलमेर 12.02.2024 l भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केंद्र, बीकानेर द्वारा अनुसूचित जाति उप योजना के तहत जैसलमेर के गांव सांवता एवं सम गांव में दिनांक 09 से 10 फरवरी के दौरान पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रमों का आयोजन किया गया । आयोजित शिविर में गांव सांवता के 133 पशुपालकों ने अपने पशुओं यथा- ऊँट 350, गाय 273, भेड़ 1812 व बकरी 1070 सहित पशुओं एवं गांव सम के 28 पशुपालकों ने ऊँट 76, गाय 23, भेड़ 258 व बकरी 197 पशुओं सहित अपनी सहभागिता निभाते हुए शिविरों में प्रदत पशु स्वास्थ्य सुविधाओं का भरपूर लाभ लिया । शिविर में महिलाओं की अच्छी खासी सहभागिता देखी गई ।
केंद्र निदेशक डॉ. आर्तबंधु साहू ने पशुपालकों से बातचीत करते हुए कहा कि पशुपालन की दिशा में नूतन प्रोद्योगिकी का लाभ लेने हेतु पशुपालकों को जागरूक होना चाहिए ताकि वे अपने पशुधन से पर्याप्त उत्पादन एवं आमदनी प्राप्त कर सकें । केन्द्र निदेशक डॉ.साहू ने विशेषकर ऊँटनी के दूध एवं इससे निर्मित मूल्य संवर्धित उत्पादों एवं दूध की विभिन्न मानवीय रोगों के प्रबंधन में औषधीय उपयोगिता का जिक्र करते हुए कहा कि प्रदेश में ऊँटों की संख्या को ध्यान में रखते हुए ऊँटनी के दुग्ध व्यवसाय में उद्यमिता की संभावनाएं व्याप्त है। साथ ही उन्होंने प्रदेश में पर्यटन की दृष्टि से ऊँटों के महत्व एवं नूतन आयामों में इसकी उपयोगिता के संबंध में भी प्रकाश डाला तथा पशुपालकों के लिए इसे आमदनी का महत्वपूर्ण जरिया बताया । इस अवसर पर उन्होंने पशुपालकों को सरकारी योजनाओं के भरपूर लाभ उठाने की भी बात कही।
केन्द्र की एससीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डॉ. आर.के.सावल, प्रधान वैज्ञानिक ने जानकारी दी कि शिविरों में वैज्ञानिक और पशु पालकों के मध्य वार्ता में पशु पालन व्यवसाय में आ रही बाधाओं व चुनौतियों जैसे- पशुओं से श्रेष्ठ उत्पादन, उनके लिए पर्याप्त चरागाह व्यवस्था, प्रजनन हेतु उत्तम नस्ल के नर ऊँट की उपलब्धता आदि पर बात रखी गई साथ ही क्षेत्र के पशुओं में पाए जाने वाले विशेषकर सर्रा रोग के बारे में वैज्ञानिकों ने विस्तार से जानकारी दी। महिला पशुपालकों को पशुओं से स्वच्छ दूध उत्पादन प्राप्त करने हेतु थनों की अच्छी तरह साफ-सफाई एवं स्वच्छ दूध उत्पादन प्राप्त हेतु जानकारी दी गई ।
किसानों से बातचीत करते हुए केन्द्र वैज्ञानिक डॉ.शान्तनु रक्षित ने एनआरसीसी की प्रसार गतिविधियों के बारे में विस्तृत जानकारी दी । डॉ.काशी नाथ, पशु चिकित्सा अधिकारी ने शिविर में पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में बताया कि अधिकतर पशुओं में चीचड़, भूख कम लगना, पेट में कीड़े पड़ने आदि रोग देखे गए, इनके उपचार के लिए दवा दी गई । साथ ही पशु आहार के रूप में केन्द्र द्वारा निर्मित करभ पशु आहार भी वितरित किया गया। केन्द्र के श्री मनजीत सिंह ने पशुपालकों के पंजीयन, उपचार व आहार वितरण आदि जैसे कार्यों में सक्रिय सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी द्वारा अनुसूचित उप-योजना तहत पशु शिविर व कृषक-वैज्ञानिक संवाद आयोजित
बीकानेर 18.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा अनुसूचित जाति उपयोजना (एससीएसपी) के तहत आज पूगल तहसील के अमरपुरा गांव में पशु स्वास्थ्य शिविर एवं कृषक-वैज्ञानिक संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें इस गांव एवं आस-पास क्षेत्र के 75 पशुपालक सम्मिलित हुए। शिविर में कुल 1470 पशुओं (जिनमें ऊँट 140, गाय 80, भेड़ व बकरी 1250) को दवाइयां, उपचार एवं उचित समाधान देकर लाभान्वित किया गया।
इस दौरान केन्द्र निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने भारत सरकार की एस.सी.एस.पी. उप-योजना के महत्व पर बोलते हुए कहा कि पशुओं के बेहतर रखरखाव एवं प्रबन्धन हेतु पशुपालक भाई, ऐसे जागरूकता कार्यक्रमों का अधिकाधिक लाभ उठाएं ताकि पशुपालन व्यवसाय से अधिक आमदनी प्राप्त कर सकें। उन्होंने बदलते परिवेश में कृषि एवं पशुधन क्षेत्र की नूतन प्रौद्योगिकी से जुड़ने, पर्याप्त चरागाह हेतु क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों एवं भूमि के संरक्षण, एनआरसीसी में ऊँट संबद्ध पारंपरिक पद्धतियों एवं मान्यताओं को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखने, ऊँटनी के औषधीय महत्व, इसका बाजार मूल्य बढ़ने, कैमल-इको टूरिज्म के बदलते स्वरूप को जानने तथा उष्ट्र उद्यमिता संबंधी संभावनाओं आदि पहलुओं पर प्रकाश डाला ।
केन्द्र के एस.सी.एस.पी.उप-योजना के नोडल अधिकारी डॉ.आर.के.सावल ने बताया कि पशुपालकों की कैम्प एवं संवाद कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता के साथ उन्होंने, वैज्ञानिकों से खुलकर अपनी समस्याएं साझा कीं। पशुपालकों को शीत ऋतुओं में पशुओं की देखभाल, पशुओं के लिए आहार चारे की पौष्टिकता एवं स्वच्छ एवं श्रेष्ठ दूध उत्पादन संबंधी जानकारी देने के अलावा केन्द्र में निर्मित पशुओं के खनिज मिश्रण का भी वितरण किया गया।
केन्द्र के पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ.काशी नाथ ने शिविर में लाए गए पशुओं की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि पशुओं में खाज-खुजली (मेंज) एवं तिबरसा रोगों से ग्रसित ऊँटों का उपचार किया गया तथा भेड़ व बकरी आदि में अंन्त: एवं बाह्य परजीवी रोग नाशक दवा लगाई गई। साथ ही ऊँटों के 25 रक्त, 10 मींगणी व 3 दूध के नमूनें लिए गए। उरमूल सीमांत समिति बज्जू की ओर से श्री मोतीलाल ने केन्द्र के इस कार्यक्रम में समन्वयक के रूप में महत्ती सहयोग प्रदान किया।
एनआरसीसी में प्रौद्योगिकी एवं व्यवसायीकरण पर कार्यशाला आयोजित
बीकानेर 14.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र में आज दिनांक को ‘प्रौद्योगिकी प्रबन्धन, बाजार विश्लेषण एवं व्यवसायीकरण‘ विषयक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें एनआरसीसी सहित बीकानेर में स्थित आईसीएआर के संस्थानों/केन्द्रों के विभागाध्यक्ष एवं वैज्ञानिकों ने सहभागिता निभाई ।
एनआरसीसी में आयोजित इस कार्यशाला के मुख्य अतिथि डा. प्रवीण मल्लिक, चीफ चीफ एग्जीक्युटिव ऑफिसर, एग्रीनोवेट इंडिया लिमिटेड, नई दिल्ली ने विषयगत बाते रखते हुए कहा कि वैज्ञानिक विकसित प्रौद्योगिकी को किसी इंडस्ट्री आदि को जारी करने की प्रक्रिया पूर्ण करने से पूर्व, संबंधित सभी पहलुओं के आधार पर समग्र लागत का आकलन जरूर करें, वह इंडस्ट्री के साथ पारस्परिक समन्वय स्थापित करें ताकि बाजार की संभावनाओं के आधार पर प्रौद्योगिकी में अपेक्षित सुधार लाते हुए यह आम किसान को भी स्वीकार्य हो सकें। डा.मलिक ने बेहतर तकनीकी प्रबन्धन हेतु इसे नियन्त्रित किए जाने एवं क्षेत्रानुसार प्रौद्योगिकी उपयुक्तता परखने की आवश्यकता जताई। उन्होंने, वैज्ञानिकों को अपनी विशेषज्ञता का बेहतर इस्तेमाल करने, सैद्धान्तिक के साथ-साथ स्वयं की धारणा जाहिर करने तथा फील्ड स्तर पर जमीनी हकीकत जानने हेतु प्रोत्साहित किया।
इस अवसर पर कार्यशाला के अध्यक्ष एवं केन्द्र निदेशक डा.आर्तबन्धु साहू ने एनआरसीसी द्वारा उष्ट्र उत्पादन, स्वास्थ्य एवं ऊँटनी के दूध से निर्मित उत्पादों के व्यावसायीकरण की दिशा में किए जा रहे प्रयासों जैसे विकसित प्रौद्योगिकी के पेटेंट एवं निजी प्रतिष्ठानों को जारी लाईसेंस, जरूरतमंद पशु पालकों के इसके लाभ आदि के बारे में जानकारी दी। डा.साहू ने कहा कि ऊँटनी का दूध स्वाद में नमकीन होने के कारण इसका भण्डारण एवं प्रसंस्करण कर विभिन्न मूल्य सवंर्धित दुग्ध उत्पादन तैयार किए गए हैं। इन उत्पादों की सामाजिक स्वीकार्यता केन्द्र के लिए उत्साहवर्धक है।
इस अवसर पर डा. जगदीश राणे, निदेशक, केन्द्रीय शुष्क बागवानी संस्थान, बीकानेर ने कहा कि गत वर्षों में विकसित तकनीकी के पेटेंट एवं इनके लाईसेंस आदि की दिषा में बढ़ोत्तरी हुई है परंतु प्रयोगषाला में तैयार प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण से पूर्ण यह किसान का हित साधने वाली होनी चाहिए।
केन्द्र के आईटीएमयू के प्रभारी एवं आयोजन सचिव डा. योगेश कुमार ने कार्यशाला का संचालन किया तथा धन्यवाद प्रस्ताव सह आयोजन सचिव डा. राकेश रंजन, प्रधान वैज्ञानिक ने ज्ञापित किया
एनआरसीसी में पशुधन फिनोम डाटा विश्लेषण एवं व्याख्या पर 10 दिवसीय पाठ्यक्रम का समापन
बीकानेर 12.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) द्वारा ‘जीनोमिक्स के युग में पशुधन फिनोम डेटा रिकॉर्डिंग विश्लेषण एवं व्याख्या में नूतन विकास’ विषयक 10 दिवसीय लघु पाठ्यक्रम का आज समापन हुआ। इस लघु पाठ्यक्रम में देश के अलग-2 राज्यों - असम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएमआर, एनडीडीबी, बीएचयू के सह एवं सहायक आचार्य, अनुसंधानकर्त्ता तथा विषय-विशेषज्ञों सहित कुल 26 प्रतिभागियों ने सहभागिता निभाईं ।
पाठ्यक्रम के समापन कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.पी.के.राउत, वैज्ञानिक सलाहकार, महानिदेशक (आईसीएआर) कार्यालय, नई दिल्ली ने कहा कि हमारा देश बड़े सपने व लक्ष्य के साथ विकसित भारत की ओर तेजी से अग्रसर है। इस संकल्प को पूरा करने के लिए हमें उत्पादन को 2047 तक 4 गुणा बढ़ाने की जरूरत है तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए हमें नूतन फीनोटाइप के आधार पर पशुओं का चयन करना होगा। डॉ.राउत ने ऊँट को अनुकूलनीयता की दृष्टि से श्रेष्ठ पशु प्रजाति बताते हुए ऊँटनी के दूध की मानव स्वास्थ्य हेतु इसकी औषधीयता उपयोगिता के प्रति जागरूकता पैदा करने हेतु पशु हितधारकों की भूमिका को अहम बताया। मुख्य अतिथि ने जीनोमिक प्रोडेक्शन को नीति निर्माण हेतु मुख्य पहलू बताते हुए फिनोम, जीनोम की उपयोगिता, नए फीनोटाइप का संग्रहण तथा उसके विश्लेषण के महत्वपूर्ण होने की बात कही।
समापन कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए केन्द्र के निदेशक डॉ.आर्तबन्धु साहू ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित इस 10 दिवसीय पाठ्यक्रम में व्याख्यानों एवं व्यावहारिक प्रशिक्षण के माध्यम संप्रेषित विषयगत जानकारी को एक अच्छा अवसर बताया। केन्द्र निदेशक ने इस पाठ्यक्रम को प्रायोजित करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद तथा इसके अधीन कार्यरत कृषि शिक्षा विभाग के प्रति आभार व्यक्त किया । उन्होंने पाठ्यक्रम में प्रदत्त ज्ञान को अनुसंधान कार्यक्षेत्र के लिए अनुकूल बताया तथा आशा व्यक्त की कि प्रतिभागी अर्जित ज्ञान से अपने शिक्षण अनुसंधान को और अधिक बेहतर कर सकेंगे। डॉ. साहू ने ऊँट के अनूठे फीनोटाइप के आधार पर विशिष्ट पशु के रूप में पहचान दिलाने की आवश्यकता पर बल दिया । उन्होंने ऊँट को ‘औषधी-भण्डार’ तथा विशेष खूबियों से युक्त पशु बताया तथा इस पर गहन अनुसंधान की आवश्यकता जताई ।
इस अवसर पर प्रतिभागियों ने पाठ्यक्रम के संबंध में अपनी सकारात्मक फीड बैक देते हुए ऐसे पाठ्यक्रमों की महत्ती आवश्यकता जताई। अतिथियों द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए । पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने पाठ्यक्रम की अवधि के दौरान किए गए कार्यों संबंधी प्रतिवेदन प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि कोर्स के दौरान जीनोम तथा फीनोम डाटा के संकलन, विश्लेषण तथा व्याख्या के क्षेत्र में नए अनुसंधान पर आधारित व्याख्यान तथा प्रायोगिक सत्र आयोजित किए गए। जिनमें पशु उत्पादन, बायो मार्कर, जलवायु अनुकूलता इत्यादि सम्बन्धित डाटा संकलन करने की तकनीक तथा विश्लेषण विधियों को विस्तार रूप से बताया गया। कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.सागर अशोक खुलापे, वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी द्वारा जीनोमिक्स युग में पशुधन फिनोम विश्लेषण संबंधी 10 दिवसीय पाठ्यक्रम शुरू
बीकानेर 03.01.2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) में ‘जीनोमिक्स के युग में पशुधन फिनोम डेटा रिकॉर्डिंग विश्लेषण एवं व्याख्या में नूतन विकास’ विषयक 10 दिवसीय लघु पाठ्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। इस लघु पाठ्यक्रम में देश के 8 राज्यों यथा- असम, पंजाब, राजस्थान, तेलंगाना, तमिलनाडु, गुजरात और उत्तरप्रदेश के कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएमआर, एनडीडीबी, बीएचयू के सह एवं सहायक आचार्य, अनुसंधानकर्त्ता तथा विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं।
पाठ्यक्रम के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.टी.के.भट्टाचार्य, निदेशक, भाकृअनुप-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार ने कहा कि किसी भी परियोजना कार्य में वैज्ञानिक की सृजनात्मकता पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है तदुपरांत वैज्ञानिकता के आधार पर संबद्ध प्रकाशन आदि महत्व महत्वपूर्ण है। पाठ्यक्रम विषयगत बात रखते हुए उन्होंने पशु संवर्धन हेतु प्रजनन और जेनेटिक्स के बेहतर ज्ञान तथा पशुधन हितार्थ इसे प्रयोग में लिए जाने की आवश्यकता बताई। डॉ.भट्टाचार्य ने माइक्रोबायोलॉजी, व्यापक डेटा संग्रहण तथा जीनोमिक्स चयन,पशुओं के फिनोटाइप संग्रहण आदि पहलुओं पर अपनी बात रखीं।
इस दौरान केन्द्र के निदेशक एवं कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ.आर्तबन्धु साहू ने इस 10 दिवसीय पाठ्यक्रम को अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि प्रशिक्षणार्थी, विषयगत व्याख्यानों के माध्यम से प्राप्त ज्ञान द्वारा अपने कार्यक्षेत्र में और अधिक बेहतर कर सकेंगे। डॉ.साहू ने डाटा विश्लेषण को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि कैसे, पशु का जन्म भार और उसकी दूध छुड़वाने की आयु भार ( वीनिंग वेट) के आधार पर पशु की उत्पादकता का पता लगाया जा सकता है।
पाठ्यक्रम समन्वयक डॉ.वेद प्रकाश, वरिष्ठ वैज्ञानिक ने जानकारी देते हुए कहा कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद वर्ष 1967 से ऐसे लघु पाठ्यक्रम का आयोजन, प्रायोजित कर रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि विश्वविद्यालय, आईसीएआर संस्थान में कार्यरत शिक्षिकों, शोध कर्त्ताओं को उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में नवीनतम ज्ञान और तकनीकों से अध्यतित (अपडेट) करना है । कार्यक्रम का संचालन पाठ्यक्रम सह-समन्वयक डॉ. बसंती ज्योत्सना, वरिष्ठ वैज्ञानिक द्वारा किया गया तथा धन्यवाद प्रस्ताव डॉ.सागर अशोक खुलापे, वैज्ञानिक द्वारा दिया गया।
एनआरसीसी को मिला राजभाषा पुरस्कार
बीकानेर 01 जनवरी 2024 । भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र (एनआरसीसी) को भारत सरकार गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग की ओर से राजभाषा में श्रेष्ठ कार्य-निष्पादन के लिए क्षेत्रीय राजभाषा पुरस्कार से नवाजा गया है। यह पुरस्कार केन्द्र को हाल ही में आई.आई.टी., जोधपुर में आयोजित उत्तर क्षेत्र -1 तथा उत्तर क्षेत्र-2 के ‘संयुक्त् क्षेत्रीय राजभाषा सम्मेलन एवं पुरस्कार समारोह’ में श्रीमान कलराज मिश्र, माननीय राज्यपाल, राजस्थान के कर कमलों से एवं केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्रीमान अजय कुमार मिश्रा की उपस्थिति में केन्द्र को शील्ड प्रदान की गई ।
आज दिनांक को नव वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित स्नेह मिलन कार्यक्रम में केन्द्र के निदेशक महोदय डॉ.आर्तबन्धु साहू को यह शील्ड नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.आर.के.सावल द्वारा सौंपी गई। डॉ.साहू ने सभी वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं कर्मचारियों को इस शील्ड प्राप्ति हेतु बधाई संप्रेषित करते हुए कहा कि राजभाषा ने कहा कि हमारा केन्द्र ‘क’ क्षेत्र में स्थित होने के कारण राजभाषा हिन्दी में कार्य करने हेतु प्रतिबद्ध है और इसी के तहत कार्यालयीन कार्यों में अधिकाधिक राजभाषा हिन्दी का प्रयोग करते हुए इसे बढ़ावा दिया जा रहा है साथ ही यह केन्द्र ऊँट पालकों एवं किसानों को ऊँटों के विभिन्न पहलुओं से जुड़ी वैज्ञानिक जानकारी राजभाषा पत्रिका ‘करभ’, वार्षिक प्रतिवेदन, लघु पुस्तिकाओं, विस्तार पत्रकों, किसान गोष्ठियों, परिचर्चाओं आदि के माध्यम से हिन्दी में उपलब्ध करवाई जाती है ताकि उनको केन्द्र के अनुसंधानों का अधिकाधिक लाभ मिल सकें।
केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी राजभाषा डॉ.राजेश कुमार सावल ने कहा कि राजभाषा विभाग द्वारा भाकृअनुप-राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसन्धान केन्द्र को ‘क’ क्षेत्र में कार्यालय का (50 से अधिक स्टाफ संख्या वाले ) की श्रेणी में तृतीय पुरस्कार एवं एक प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया जो कि केन्द्र के लिए एक गौरव का विषय है तथा इससे अधिकाधिक राजभाषा हिन्दी में कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी ।