उष्ट्र स्वास्थ्य
अनुसंधान कार्यक्रम
- सजगकता, रक्त जांच, निगरानी एवं नियत्रंण उपायों द्वारा उष्ट्र रोग प्रबंधन
अनुसंधान गतिविधियाँ
- उष्ट्र बाहुल्य राज्यों में जानपदिक रोग विज्ञान रेखांकन
- उष्ट्र स्वास्थ्य और उत्पादन पर रोगों के आर्थिक प्रभाव
- महत्वपूर्ण उष्ट्र रोगों के निदान हेतु कार्यविधि का विकास एवं सत्यापन
- ऊँटों में समकालीन वैकल्पिक चिकित्सा की व्यवहार्यता और प्रभावकारिता पर अनुसंधान
- उष्ट्र प्रतिरक्षा प्रणाली का निदान और औषधीय उपचार के लिए उपयोजन
- उष्ट्र कोशिका द्रव्य संबंधी जीन की आण्विक क्लोनिंग एवं निर्धारण
- उष्ट्र के नवजात बच्चों में प्रतिरक्षा संबंधी अध्ययन
अनुसंधान उपलब्धियाँ
- क्षेत्रीय सर्वेक्षण में लगभग 80 प्रतिशत उष्ट्र जनसंख्या मिश्रित सूत्रकृमि संक्रमण से प्रभावित पाई गई जिनमें मुख्य रूप से हेमॉन्कस एवं स्ट्राँगाइलॉयडीज के अण्डे अधिकतम थे।
- विस्तृत रूप से प्रभावशाली कृमिनाशक आइवरमेक्टिन (1 मि.ली./50 कि.ग्रा.भार) तथा मुख द्वारा फेनबेन्डाजोल देने से कृमि अण्डों की संख्या को प्रभावी रूप से कम किया जा सकता है।
- हायलोमा ड्रोमेड्ररी और हायलोमा एन्टोलिकम सामान्यत: चीचड़ के संक्रमण हैं।
- सिंचित क्षेत्र के 7.5 प्रतिशत एवं असिंचित क्षेत्र के 6.5 प्रतिशत ऊँट ट्राइपेनोसोमासिस के संक्रमण से संक्रमित पाए गए हैं।
- चूहों में संरोपण एवं पॉलीमेरज श्रंखला अभिक्रिया ऊँटों में सर्रा रोग का पता लगाने हेतु मानक सिध्द हुई है।
- परऑक्सीडेज एवं एफ.आई.टी.सी. युग्मित प्रति उष्ट्र संयुग्मक संक्रमित रोगों एवं अन्य सम्बन्धित प्रयोजनों हेतु सीरम आधारित रोग निदान में उपयुक्त करने के लिए विकसित किए गए हैं।
- दुग्ध नमूनों के संवर्धन परीक्षण एवं कायिक कोशिकाओं की संख्या 34.40 प्रतिशत ऊँटों में थनैला का उप-रोग लक्षणीय संक्रमण दर्शाते हैं।
- स्टेफाइलोकोकस, स्ट्रप्टोकोकस, कॉरनीबैक्ट्रिरियम एवं बैसीलस प्रजातियां. उप-थनैला रोग लक्षण वाले दूध के नमूनों से प्राप्त किए गए हैं।
- उपर्युक्त सभी बैक्टिरियां क्लोरमफेनीकोल, सेफॉलेक्सिन, एमॉक्सीसिलीन तथा एमॉक्सीक्लॉक्स से प्रभावित हुए है।
- जिन ऊँटों में थनैला रोग नहीं था उनमें सीरम कोबाल्ट तथा ताम्बे की सांद्रता सार्थक रूप से भिन्न पाई गई।
- कोबाल्ट, जिंक एवं सेलीनियम 30 दिन तक खिलाने से थनैला रोग के संक्रमण में लगभग 40 प्रतिशत तक कमी पाई गई।
- विलायती कीकर और अनार की पत्ती के मैथोनल निष्कर्षण में थनैला रोग के जीवणु के प्रति शतप्रतिशत प्रभावी पाए गए।
- ऊँट में सारकोप्टिक खुजली सिंचित, असिंचित एवं संगठित फार्म क्षेत्रों में क्रमश: 46, 42, एवं 21 प्रतिशत आंकी गई। इसका अधिकतम संक्रमण जनवरी से अप्रैल (22 प्रतिशत) एवं मई से अगस्त (19 प्रतिशत) की तुलना में सितम्बर से दिसम्बर (59 प्रतिशत) में देखा गया।
- उष्ट्र पालकों द्वारा ईलाज हेतु 90 प्रतिशत से अधिक वनस्पति आधारित परम्परागत पशु चिकित्सा ज्ञान पद्धतियों को उपयोग में लाया गया।
- 1 वर्ष की कम आयु के उष्ट्र बछडों में त्वचा संक्रमण के लिए उत्पादक एजेंट के रूप में केन्डिडा एल्बीकॉन पृथक किया गया है।