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उष्ट्र कार्यिकी

अनुसंधान कार्यक्रम

  • तापमान, नमी सूचकांक, जलवायु परिवर्तन से ऊँटों में अनुकूलन तनाव-कार्यिकी पर अनुसंधान

अनुसंधान गतिविधियाँ

  • ऊँट की गर्मी सहने की क्षमता के आकलन हेतु अजैविक एवं जैविक तनाव हेतु जीन अन्वेषण एवं एचएसपी जैसे आणविक चिह्नकों का अनुप्रयोग
  • संभावित वातावरणीय परिवर्तन में आश्रय प्रबंधन
  • विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में अनुकूलन हेतु पोषण और प्रबन्धन प्रयास
  • ऊँट की वृध्दि, गर्भावस्था एवं दुग्धावस्था में रक्त जैव रासायनिक घटक, हार्मोन, एन्जाइम एवं खनिज स्तरों की पूर्ण रूपरेखा

अनुसंधान कार्यक्रम

  • परिवहन, कृषि कार्यों एवं विद्युत उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में उष्ट्र ऊर्जा का लेखा-जोखा तथा उपयोगिता का मूल्यांकन

अनुसंधान गतिविधियाँ

  • गाड़ी खींचने तथा कृषि कार्यों में उष्ट्र ऊर्जा का आकलन
  • उष्ट्र भारवाहकता द्वारा विद्युत उत्पादन

अनुसंधान उपलब्धियाँ

  • रक्त जैव रासायनिक चिह्नक अर्थात लैक्टेट, क्रिएटिनीन काइनेज कॉर्टिसॉल, कार्य तनाव के अन्तर्गत थकान की पहचान के लिए उपयोगी पाए गए हैं।
  • विभिन्न वातावरणीय परिस्थितियों में पानी के प्रतिबंध पर अनुकूलन प्रतिक्रिया इंगित करती है कि यह बिना पानी के 20 प्रतिशत तक शारीरिक भार में कमी सहन कर सकता है और 96 प्रतिशत तक शारीरिक भार की कमी एकल पुनर्जलीकरण से पूर्ण करने में सक्षम है।
  • उष्ट्र सवारी/दौड़ के दौरान शारीरिक लम्बाई, खिंचाव बल एवं कन्धे की ऊँचाई का गति के साथ महत्वपूर्ण संबंध पाया गया है।
  • पानी के प्रतिबंध के लिए शारीरिक, रक्त जैव रासायनिक प्राचल अर्थात रक्त यूरिया, क्रिएटिनीन, बिलिरूबीन, आण्विक परासरण कोलेस्ट्रॉल और शारीरिक प्रतिक्रिया बहुत अच्छे चिह्नक के रूप में अनुकूलन क्षमता दर्शाते हैं।
  • उष्ट्र आसानी से 1, 2 या 3 फाले के हल लगभग 6 घंटा दैनिक रेतीली मिट्टी में आसानी से 3 घंटे के अंतराल में खींच सकता है एवं 750-1050 वर्ग मीटर प्रति घंटा की दर से जुताई कर सकता है जिसमें जुताई की भूमि की गहराई 9-15 सेमी आंकी गई।
  • उष्ट्र अपने शारीरिक भार का 17-22 प्रतिशत खिंचाव बल उत्पन्न कर सकते हैं जिससे 1.16 अश्‍व शक्ति उत्पादित होती है।
  • एक भारतीय ऊँट 1.5 से 2 टन भार ढोते हुए 30-35 किलोमीटर की दूरी प्रतिदिन 2/4 पहिए वाली गाड़ी द्वारा 3-3.5 घंटे विश्राम लेकर लगभग 8 घंटे में तय कर सकता है।
  • बीकानेरी ऊँट, जैसलमेरी एवं कच्छी ऊँटों की अपेक्षा बोझा ढोने में अधिक उपयुक्त है जबकि जैसलमेरी नस्ल के ऊँट सवारी तथा दौड़ के लिए उपयुक्त पाए गए हैं।
  • ऊँट का हृदय घेरा, ऊँचाई शारीरिक भार एवं लम्बाई का अश्‍व शक्ति एवं भारवाहकता के साथ आपसी संबंध हैं।

जैव रसायन

अनुसंधान कार्यक्रम

  • सुरक्षा एवं गुणवत्ता मानकों से युक्त विभिन्न उष्ट्र उत्पादों का प्रसंस्करण और मूल्य संवर्धन

अनुसंधान गतिविधियाँ

  • विभिन्न उष्ट्र उत्पादों एवं उपोत्पादों का प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन तथा व्यावसायीकरण
  • उष्ट्र दूध का औषधीय उपयोगिता हेतु मूल्यांकन तथा इसका कार्यात्मक खाद्य के रूप में उपयोग

अनुसंधान उपलब्धियाँ

  • गाय एवं भैंस के दूध की तुलना में उष्ट्र दुग्ध में वसा, कुल प्रोटीन एवं ठोस पदार्थ कम मात्रा में पाया गया जबकि सकल लवण मुक्त कैल्शियम, प्रतिरक्षी प्रोटीन, विटामिन 'सी' एवं सूक्ष्म खनिज लवण जैसे लोहा, तांबा व जस्त अधिकतम मात्रा में पाए गए।
  • प्रसव के तीन सप्ताह बाद उष्ट्र दुग्‍ध, मानव हेतु उपयोग में लाया जा सकता है।
  • कच्चा दूध सामान्य ताप (37 डिग्री सेन्टीग्रेड) पर 8 घंटे तथा (4-6 डिग्री सेन्टीग्रेड पर) अधिकतम 3 सप्ताह तक रह सकता है। लैक्टोपराक्सीडेज प्रणाली सक्रिय होने पर यह 20 घंटे तक खराब नहीं होता।
  • उष्ट्र रक्त, कोलेस्ट्रोल एवं दूध में सांद्रण प्रतिरक्षी प्रोटीन आई जी 'जी', 'ए' व 'एम', सी-3 तथा सी.4 अधिकतम पाए गए हैं।
  • ऊँट के दूध में लघु श्रंखलायुक्‍त वसीय अम्ल, गुरू श्रंखलायुक्‍त वसीय अम्लों की अपेक्षा कम मात्रा में होते हैं।
  • ऊँटनी के दूध में , गाय के दूध की अपेक्षा अम्लता का विकास तुलनात्मक रूप से धीरे-धीरे होता है।
  • ऊँट दूध का स्कंदन 7.2-7.6 पी.एच. के बाद स्थिर रहता है।
  • उष्‍ट्र दूध मे, गाय के दूध की तुलना में व्‍हे प्रोटीन की उच्‍च सान्‍द्रता पाई जाती है।
  • उष्‍ट्र दूध व्‍हे प्रोटीन, गाय के दूध में विद्यमान व्‍हे प्रोटीनों की अपेक्षा अधिक तापरोधी होते हैं।
  • 23 किलो डाल्‍टन व्‍हे प्रोटीन, उष्‍ट्र दुग्‍ध में प्रकट होती है जबकि गाय के दूध में ऐसा नहीं होता।
  • उष्‍ट्र दुग्‍ध निर्मित त्‍वचा क्रीम, मानव त्‍वचा को मुलायम और आभा युक्‍त बनाने के साथ एक सुखद अनुभव देती है।
  • विभिन्‍न उष्‍ट्र दुग्‍ध उत्‍पाद अर्थात कुल्‍फी, सुगन्धित दूध, लस्‍सी, पनीर, चीज, मावा, गुलाब जामुन, बर्फी, उष्‍ट्र दुग्‍ध पाउडर, चाय एवं कॉफी विकसित एवं मूल्‍यांकित किए गए हैं।

उष्ट्र जनन

अनुसंधान कार्यक्रम

  • सर्वोत्कृष्ट उत्पादन समर्थन हेतु उष्ट्र जनन एवं शरीर क्रियात्मक क्षमता में सुधार

अनुसंधान गतिविधियां

  • वीर्य को अधिक प्रभावशाली बनाने हेतु इसके जैव रासायनिक मानकों का अध्ययन
  • आधुनिक एवं उभरती हुई प्रौद्योगिकियों द्वारा ऊँट की कृत्रिम गर्भाधान प्रभावकारिता में सुधार
  • उच्च अण्डोर्त्सन और तुल्यकालन के लिए उपयुक्त कार्यविधि का विकास करना
  • जनन विकार कारकों की पहचान एवं इनके समाधान हेतु प्रौद्योगिकी का विकास
  • ऊँट जनन में यौन और जैव उत्तेजना की भूमिका
  • ऊँट में जनन क्षमता स्तर का विभिन्न उत्पादन वातावरणीय परिस्थितियों में मूल्यांकन
  • जनन अन्त:स्रावी विज्ञान पर अध्ययन

अनुसंधान उपलब्धियां

  • नर ऊँट से वीर्य का कृत्रिम संग्रहण वर्ष में विशेष अवधि के अन्तर्गत ही संभव है।
  • वीर्य एकत्रण करने की चरम अवस्था जनवरी-फरवरी माह के मध्य में तथा मई माह के अन्त तक रह सकती है। जून के उत्तरार्ध्द से अक्टूबर तक नर द्वारा कामेच्छा प्रदर्शन बहुत कम पाया गया।
  • ऊँटों में कामेच्छा दिसम्बर माह से पुन: आरम्भ होने लगती हैं।
  • यौन कामेच्छा के साथ परिसंचरित टेस्टोस्टीरोन स्तर सकारात्मक रूप से सहसंबध्द होता है।
  • उष्ट्र शुक्राणु रबड़ के संपर्क या साधारण ठंडा अथवा गर्मी जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों में कम से कम प्रभावित होता है।
  • ताजा स्खलित उष्ट्र वीर्य गतिशीलता प्रदर्शित नहीं करता क्योंकि शुक्राणु गतिशीलता हेतु स्वतंत्र नहीं होते। संभवत: इन शुक्राणुओं पर ऐसे आकर्षक रसायनों का लेप हो जो उन्हें शुक्राणु आगार में सम्मूहित कर देता है। ये शुक्राणु आगार या डिपो मोटे धागे जैसे जैल की तरह होते हैं जो न तो तरल अवस्था में आते हैं और न ही किसी उभय-प्रतिरोधी विलयन में मिश्रित नहीं होते हैं। ये शुक्राणु इन आगारों में 4 डिग्री सेल्सियस तापमान पर कई सप्ताह/महीने तक संरक्षित रहते हैं परंतु ये किसी भी उभय-प्रतिरोधी विलयन में घुलनशील नहीं होते।
  • उष्ट्र वीर्य का क्रायो-परिरक्षण एवं साधारण तापमान पर शुक्राणुओं के जीवित होने का व्यावहारिक प्रदर्शन किया गया है।
  • ऊँटों में अत्यधिक अण्डोत्सर्जन हेतु कान में प्रोजेस्टोजन लगाने, पी.एम.एस.जी. व एच.सी.जी उपचार का वांछित प्रभाव नहीं हुआ।
  • डिम्बग्रन्थि में पुटकीय स्थिति का सोनोग्रॉफिक पहचान द्वारा पता लगाने के बाद शीघ्र ही प्रसवोपंरात प्रजनन कराने के प्रयास लगभग सफल रहे।
  • मादा ऊँटनियों में इस्ट्राडाइऑल और प्रोजेस्टीरोन का रेडियो इम्यूनों परीक्षण आधारित विष्लेशण अलग-2 अवस्थाओं में किया गया। पूरे वर्ष के दौरान नर ऊँटों में टेस्टोस्टीरोन का विश्‍लेषण तथा इसकी रूपरेखा का यौन कामेच्छा एवं वीर्य की मात्रा से सहसंबध्द पाया गया।
  • मादा ऊँट में परिसंचारी इस्ट्राडाइऑल स्तर के विश्‍लेषण से पता चलता है कि इनका आधारीय स्तर अपेक्षाकृत अधिक होता है।