उष्ट्र प्रबंधन एवं प्रसार
अनुसंधान कार्यक्रम
- प्रचलित एवं परिवर्तित जलवायु परिदृश्य में उपयुक्त उष्ट्र प्रबंधन पध्दतियों का विकास
» अनुसंधान गतिविधियाँ
- समाजार्थिक परिवर्तन द्वारा प्रभावित उष्ट्र पालन परिदृश्य का निर्माण करना
- उपयुक्त उष्ट्र फार्मिंग एवं इसके घरेलू आहार एवं आर्थिक सुरक्षा में योगदान पर अध्ययन
- उष्ट्र पालकों के उत्थान के लिए विकसित प्रौद्योगिकी का सत्यापन, शोधन एवं प्रसार
- चारा फसलों की सामयिक अम्ल चयापचय किस्मों का उत्पादन
अनुसंधान उपलब्धियाँ
- शुष्क क्षेत्र में उष्ट्र गाड़ी एवं बैल गाड़ी का तुलनात्मक अध्ययन यह इंगित करता है कि उष्ट्र गाड़ी छोटे व सीमान्त किसानों के लिए अधिक लाभकारी, कम खर्च व शीघ्र लाभ देने के कारण अधिक उपयोगी है।
- उष्ट्र गाड़ी द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में अधिक आय आंकी गई क्योंकि ऊँट पालकों को शहरी क्षेत्र में कृषि, सामान एवं निर्माण सामग्री संबंधी कार्यों के परिवहन के अधिक अवसर उपलब्ध है।
- वयस्क परिपक्व एवं प्रजनन योग्य नर ऊँट को शीघ्र मद में लाने के लिए दो या तीन सप्ताह तक एक वयस्क मादा ऊँट के सामने 20 से 30 मिनट के लिए लाना चाहिए।
- फार्म परीक्षणों में खुले व घास-फूंस से बने उष्ट्र आवास, अदह तथा कंक्रीट से बने आवासों की तुलना में बेहतर पाए गए हैं।
- घास-फूंस से बने खुले उष्ट्र आवास में अदह एवं कंक्रीट निर्मित आवास की तुलना में ताप एवं नमी सूचकांक कम पाया गया है।
- गर्म शुष्क क्षेत्र में छोटे व मध्यम श्रेणी के किसानों के लिए उष्ट्र प्रणाली का कृषि हेतु उपयोग, बैल प्रणाली से अधिक हितकारी व लाभदायक है।
- गर्म शुष्क क्षेत्र में विशेष वैज्ञानिक उपयुक्तता के कारण 156 प्रबंधकीय पध्दतियों की पहचान की गईं हैं।
- सिंचित क्षेत्र में खुजली की बीमारी मुख्य समस्या के रूप में है जबकि असिंचित क्षेत्र में पाचन समस्या बहुतायत में देखी गई है।
- उष्ट्र बाल की आर्थिक उपयोगिता की संभाव्यता का पता लगाने हेतु विभिन्न उत्पाद (दरी, कंबल, शॉल, भाकल, टोपी एवं जैकेट इत्यादि) एवं मिश्रित उत्पाद जो शुध्द उष्ट्र बाल एवं अन्य प्राकृतिक कृत्रिम रेशे मिलाकर बनाए गए।
- उष्ट्र बछडे के पालन हेतु कार्य पद्धति पैकेज विकसित किया गया है।
- उष्ट्र पालन व्यवसाय को लाभदायक बनाने हेतु केन्द्र पर चार अलग-अलग उष्ट्र प्रबन्धन पद्धतियों का परीक्षण किया गया है।
- वैज्ञानिक उष्ट्र प्रबंधन के लिए इथोग्राम विकसित किए गए हैं।
- बदलते वातावरणीय परिदृश्य की विभिन्न अवस्थाओं में तापमान आर्द्रता सूचकांक बनाया गया है।
विस्तार गतिविधियाँ
ऊँटनी के दुग्ध दुहने की प्रतियोगिता दिनांक 25.06.2011 को हाडला गांव एवं दिनांक 16.07.2011 को मोरखाना गांव में आयोजित की गई। लगभग 40 ऊँट पालकों ने अपनी भागीदारिता निभाई तथा प्रत्येक प्रतियोगिता के तीन सर्वश्रेष्ठ दूध निकालने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया। आयोजित प्रतियोगिता ऊँटों को दूध प्रयोजन हेतु पालने के लिए ऊँट पालकों को प्रेरित करेंगी।
केन्द्र के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर दिनांक 05.07.2011 से 19.07.2011 तक आयोजित पखवाडा कार्यक्रम में निम्नलिखित गतिविधियॉं रखी गई –
- मरूस्थली गांव मोरखाना में दिनांक 16.07.2011 को किसान गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें मोरखाना, सिंधु एवं कल्याणसर के ऊँट पालकों ने भाग लिया। इसी दिवस व स्थल पर उष्ट्र स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 82 ऊँटों का परीक्षण किया गया तथा उपचार दिया गया । इसी प्रकार पूर्ववत ही उष्ट्र दुग्ध दुहने की प्रतियोगिता भी रखी गई।
उष्ट्र मेला दिनांक 17.07.2011 को आयोजित किया गया जिसमें बीकानेर नगर एवं आस-पास के विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों सहित आमजन को आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर पधारे पर्यटकों को केन्द्र के उष्ट्र संग्रहालय, उष्ट्र बाड़ों, प्रयोगशाला भवनों, उष्ट्र डेयरी का भ्रमण करवाया गया एवं केन्द्र कार्यकलापों संबंधी वृतचित्र दिखाया गया। बीकानेर तथा आस-पास के लगभग 1100 भ्रमणार्थी केन्द्र परिसर में पधारे। महिला प्रशिक्षण के अन्तर्गत दिनांक 06.08.2011 को देशनोक तथा आस-पास क्षेत्र की 46 ग्रामीण महिलाओं ने अपनी भागीदारिता निभाई तथा ऊँटनी के दूध से निर्मित मूल्य-संवर्धित उत्पाद बनाना सीखा। इन महिलाओं ने केन्द्र की गतिविधियों में गहन रूचि दिखाई तथा उन्हें वैज्ञानिक तरीके से उष्ट्र प्रबन्धन पद्धतियों के संबंध में अवगत करवाया गया। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन समारोह के अवसर पर शासी निकाय की सम्माननीया सदस्या डॉ.चंदा निम्बाकर एवं माननीय उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) डॉ.के.एम.एल.पाठक ने पधार कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। प्रशिक्षण समाप्ति के इस अवसर पर डॉ.चंदा निम्बाकर द्वारा महिला प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किए गए।
निदान और उपचार विस्तार गतिविधियॉं:
- बीकानेर के आस-पास के गांवों में ऊँट पालकों की जरूरत को पूरा करने के लिए उष्ट्र एम्बुलैटरी क्लिनिक सुविधा प्रारम्भ की गई यह उष्ट्र के प्रबंधन, पोषण एवं स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में सहायता प्रदान करती है। दिसम्बर, 2010 से एम्बुलैटरी क्लिनिक सप्ताह में कम से कम एक दौरा कर रही है। अभी तक जैसलमेर, गीगासर, मोरखाना, हुसनसर, मेघासर, पलाना, केसर-केसर बोरान एवं गाढ़वाला गांवों का दौरा कर इसकी सुविधा मुहैया करवाई जा चुकी है। दौरा अन्तर्गत चिन्हित बीमार पशुओं का विषय-विशेषज्ञों द्वारा उपचार किया जा रहा है। अभी तक विभिन्न रोगग्रस्त 483 पशुओं का उपचार किया गया। इसके अलावा ऑनलाइन उपचार सुविधाएं (फोन,ई-मेल) भी प्रदान की जा रही है।
- केन्द्र की निदान (डायग्नोस्टिक) सुविधा, राज्य पशुपालन विभाग की विशेषकर विभिन्न संक्रामक रोगों (वायरल, संक्रमण, फफूंद और परजीवी) के प्रकोप के दौरान सहायता प्रदान कर रही है।
- उष्ट्र बाहुल्य क्षेत्रों में उष्ट्र स्वास्थ्य शिविरों का वर्ष 2007 से निरंतर आयोजन किया जा रहा है। अभी तक बीकानेर, हनुमानगढ़, नागौर, बाड़मेर, उदयपुर, जैसलमेर, झुन्झुनू एवं पाली जिलों में कुल 29 स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जा चुके हैं।
- आनुवंशिक सुधार कार्य के अन्तर्गत आस-पास के ग्रामीण इलाकों के ऊँट पालकों को नि:शुल्क प्रजनन की सुविधा उपलब्ध करवाई जाती है।
- राज्य पशुपालन विभाग के माध्यम से आनुवंशिक रूप से सुधार किए गए नर ऊँट पंचायत समितियों/झुण्ड मालिकों को नि:शुल्क उपलब्ध करवाए जाते हैं।
- हर साल पशु स्वास्थ्य शिविर एवं किसान गोष्ठियां का आयोजन केन्द्र तथा गोद लिए गए गांवों में किया जाता है।
- केन्द्र स्थानीय उष्ट्र उत्सव एवं अन्य राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय शुष्क मेलों एवं प्रदर्शनियों में नियमित रूप से भाग लेता है।
- केन्द्र में एक उष्ट्र संग्रहालय विकसित किया गया है।
- प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण हेतु केन्द्र के बाहर प्रदर्शिनियों का आयोजन किया जाता है।
- किसानों, छात्रों और अन्य लोगों के लिए प्रशिक्षण /एफएलडी/ शैक्षिक जानकारी प्रदान की जाती है
- विभिन्न विस्तार गतिविधियों के माध्यम से एक बडी राशि अर्जित करना।